यज्ञार्थात कर्मोण्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः ।
अर्थात यज्ञ के लिए ही कर्म होना चाहिए ।
पुरुषो वाव गौतमाग्निस्तस्य वागेन समित्प्राणो धूमो जिह्वार्चिश्चक्षुरङ्गाराः श्रोत्रं विस्फुलिंगाः । तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवा अन्नं जुह्वति तस्वा आहुते रेतः सम्भवति । छान्दोग्य श्रुति
हे गौतम ! पुरुष अग्नि है । उसकी वाणी समित है । प्राण धूम है । जिह्वा ज्वाला है । आँख अंगारे हैं । कान चिनगारियां हैं । उसी अग्नि में देवता अन्न का होम करते हैं । उसी आहुति से वीर्य बनता है ।
योषा वाव गौतमाग्निस्तस्या उपस्थ एव समिद्यदुपमन्त्रयते ।
स धूमो योनिरर्चिर्यदन्तः करोति तेऽङ्गाराः अभिनन्दा विस्फुलिङ्गाः ।
तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवा रेतो जुह्वति तस्या आहुतेर्गर्भः सम्भवति । छान्दोग्य श्रुति
हे गौतम ! स्त्री अग्नि है । उसका उपस्थ समित है । उस समय जो बातें करता है । वही धूम है । स्त्री की योनि ही ज्वाला है । सम्भोग अंगारा है । मुख चिनगारियां हैं । उसी अग्नि में देवता लोग वीर्य का होम करते हैं । उसी आहुति से गर्भ बनता है ।
सम्भोग काल में यदि पुरुष स्त्री दोनों के दक्षिण स्वर जारी हों या किये जायें तो पुत्र की प्राप्ति होगी और इसके विपरीत वाम स्वर जारी हों तो कन्या की प्राप्ति होगी ।
(पवन विजय स्वरोदय, स्वर सिद्धान्त)
परन्तु इसके लिए स्वर परीक्षण और मनोवांछित परिवर्तन को जानकर अभ्यास करना होगा और भोगकाल में भी सांस पर नियन्त्रण रखना होगा ।
स्त्री को हमेशा पुरुष के बांयीं तरफ़ सोना चाहिये । कुछ देर बांयें करवट लेटने से दांया स्वर और दांयीं करवट लेटने से बांया स्वर चलने लगता है ।
अतः जब पुरुष का दांया और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये । इस स्थिति में गर्भाधान होने पर उत्तम पुत्र प्राप्त होता है । स्वर की जांच नथुनों पर उंगली आदि रखकर करें ।
पुरुष का जब दांया स्वर चलता है तब उसका दाहिना अण्डकोश अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का उत्सर्जन करता है । जिससे अधिक मात्रा में पुत्रदायी पुल्लिंग शुक्राणु निकलते हैं ।
उत्तम कन्या गर्भाधान हेतु ठीक पुत्र क्रिया के विपरीत स्त्री को हमेशा पुरुष के दांयीं तरफ़ सोना चाहिये । जब पुरुष का बांया और स्त्री का दांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये ।
स्वस्थ सुन्दर गुणी सन्तान प्राप्ति हेतु - गडांत, ग्रहण, सूर्योदय और सूर्यास्त काल, निधन, नक्षत्र, रिक्ता तिथि, दिवाकाल, भद्रा, पर्वकाल, अमावस्या, श्राद्ध के दिन, गंड तिथि, गंड नक्षत्र, तथा आठवें चन्द्रमा का त्याग कर शुभ मुहूर्त में संभोग करना चाहिये ।
3-4 मास का गर्भ हो जाने के पश्चात संभोग वर्जित है । इससे गर्भस्थ संतान अपंग और रोगी हो सकती है ।
यदि सिर्फ़ कामवासना वश रति करना चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुनः मासिक आने तक सहवास कर सकते हैं । इन दिनों गर्भाधान की आशंका न के समान होती है ।
मासिक धर्म या ऋतुचर्या के बाद निम्न रात्रियों में सन्तान प्राप्ति का फ़ल इस तरह से है ।
मासिक धर्म शुरू होने के पहले चार दिनों में संभोग करने से पुरुष रोगी होता है ।
1 चौथी रात्रि - अल्पायु/दरिद्रपुत्र ।
2 पांचवीं रात्रि - पुत्रवती/योग्य पुत्री ।
3 छठी रात्रि - सामान्य आयु वाला पुत्र ।
4 सातवीं रात्रि - वंध्या पुत्री ।
5 आठवीं रात्रि - ऐश्वर्यवान पुत्र ।
6 नौवीं रात्रि - ऐश्वर्यवान पुत्री ।
7 दसवीं रात्रि - बुद्धिमान पुत्र ।
8 ग्यारहवीं रात्रि - सुन्दर लेकिन दुश्चरित्रा पुत्री ।
9 बारहवीं रात्रि - उत्तम गुणवान पुत्र ।
10 तेरहवीं रात्रि - चिन्ता देने वाली कुलघातिनी पुत्री ।
11 चौदहवीं रात्रि - अति उत्तम सदगुणी और बली पुत्र ।
12 पन्द्रहवीं रात्रि - लक्ष्मी स्वरूपा, सौभाग्यवती, सुचरित्रा पुत्री ।
13 सोलहवीं रात्रि - सर्वगुण सम्पन्न, सर्वज्ञ पुत्र ।
इसके बाद किया गर्भस्थापन का प्रयास मरुभूमि में बीज बोना है या तो अंकुरण ही नहीं होगा या विकृति पूर्ण होगा ।
दीर्घायु और सर्वगुण सम्पन्न सन्तान प्राप्ति हेतु माता पिता को खानपान रहन सहन आदि अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए । पुरुष को सात्विक (सामान्य राजसिक) आहार लेना चाहिये । साथ ही आवश्यकतानुसार असगन्ध, शतावरी, श्वेत-श्याम मूसली, मुलहठी तुलसी बीज, रेवन्दचीनी, पोस्तदाना आदि का सेवन गो दुग्ध के साथ करना चाहिये । ताकि ओजस्वी सन्तान प्राप्त हो ।
स्त्री को गर्भधारण की योजना बनाते समय 3-6 माह तक गर्भाशय एवं शोणित शोधन हेतु कशीस, मुसब्बर, हींग, सुहागा, अरिष्ठा, ऐंठा, चित्रक, इन्द्रवारुणी, लक्ष्मणा, मालकांगनी आदि द्रव्यों का सेवन करना चाहिए । विशेष परिस्थिति में महाभैषज्य फल घृत का भी सेवन करना चाहिए ।
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अवश्यमेवभोक्तव्यं कृते कर्म शुभाशुभं ।
होनी को कदापि टाला नहीं जा सकता ।
विधि का लेख अटल होता है ।
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-06-2016) को "पेड़ कटा-अतिक्रमण हटा" (चर्चा अंक-2365) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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