10 जून 2016

इन्द्रेश कुमार कहिन

‘बौद्धिक आतंकवाद’ पर संगोष्ठि में इन्द्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( आरएसएस )
स्थान - भोपाल 28 फरवरी 

- स्वतंत्रता को कुचलने व जीवन मूल्यों को समाप्त करने की कोशिश का नाम आतंकवाद है । हथियारों के उपयोग द्वारा अथवा गुंडागर्दी से भयभीत करने का नाम ही आतंकवाद नहीं है । बल्कि वैचारिक रूप से भ्रमित करना भी आतंकवाद का एक रूप है ।
शुरूआत दौर में कश्मीर में नारा लगता था - ‘हंसकर लिया है पाकिस्तान । लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान’ लेकिन 1947, 1962, 1965, 1971, 1999 में लगातार पराजित होकर पाकिस्तान ने समझ लिया कि इस प्रकार के युद्ध में वह कभी विजयी नहीं हो सकता । अतः उसने प्रोक्सी वार का सहारा लिया । जो लगातार 60 वर्षों से जारी है ।

- सम्मुख युद्ध में दुश्मन के खिलाफ देश ने सदा एकजुट होकर हुंकार भरी । किन्तु प्रॉक्सी वार में, छदम युद्ध में कभी माओवाद, तो कभी अलगाववाद के नाम पर देश कन्फ्यूज हुआ, डिवाइड हुआ । पाकिस्तान के खिलाफ जो पांच युद्ध हुए । वह कुल मिलाकर 6 माह 26 दिन चला । तथा उनमें 22-23 हजार जिंदगियों का नुकसान हुआ । लेकिन प्रॉक्सी वार 60 साल से लगातार चल रहा है । और उसमें दो लाख से अधिक मानव जीवन को नुकसान हुआ है ।

- जब अमेरिका ने निर्णय लिया कि ओसामा को निबटाना है । तो वहाँ के किसी व्यक्ति ने सवाल नहीं किया । किन्तु हमारे देश में पूछा जाता है - क्या योजना है, क्या नीति है ? यदि योजना अथवा नीति सार्वजनिक कर दी जाए । तो क्या सफलता मिलेगी ?

- हम पागल उसे कहते हैं । जिसे भूतकाल का स्मरण न रहे । मैं कौन हूँ, मेरा कौन है, यह भूल जाए । उसका वर्तमान से भी सम्बन्ध टूट जाता है । तथा वह भविष्य का विचार भी नहीं कर पाता । आजादी के बाद यही कार्य योजनाबद्ध रूप से हमारे यहाँ हुआ है । कहा गया आर्य विदेशी हैं ।

- कम्यूनिस्ट, पश्चिम के स्कॉलर तथा हमारे यहां के पैसों से बिकने वाले लोग हमें हमारी जड़ों से काटने में लग गए । हमारी पहचान हमारा देश होता है । हमारी जाति, धर्म, पार्टी या समाज नहीं ।
- हम कहीं विदेश में जाते हैं । तो वहाँ के लोग हमें हमारे देश के नाम से ही पहचानते हैं । इसी प्रकार हम भी अमेरिका, रूस, कोरिया, जापान, तुर्की या चीन से आए लोगों को उनके देश के नाम से ही जानते हैं । विदेश में कोई किसी की जाति, समाज या पार्टी नहीं पूछता । आर्यावर्त, भारत, हिन्द, हिन्दुस्तान, इंडिया ये नाम देश को प्रतिध्वनित करते हैं । इसी आधार पर दुनिया भर के लोग हमें आर्य, भारतीय, हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तानी कहते हैं।  मुसलमान भी जब मक्का जाते हैं । तो वहां उनको हिन्दी मुस्लिम या इंडियन मुस्लिम कहकर ही पुकारा जाता है । यही सार्वभौमिक सिद्धांत है ।

- ज्ञान लुप्त होता है । तो विज्ञान का भी गला घुटता है । किसी देश को गुलाम बनाना है । तो उसे उसका अतीत भूला दो । उस पर बौद्धिक हमला कर भ्रमित कर दो । 
- 1947 के पहले पूरे भारत में गवाही की कीमत एक समान थी । एक मर्द मुसलमान एक गवाही, एक औरत मुसलमान एक गवाही । आजादी के बाद भारत में तो वही पद्धति रही । किन्तु पाकिस्तान में औरत की गवाही आधी हो गई । एक मर्द की गवाही एक गवाही । किन्तु एक औरत की गवाही, आधी गवाही । 
- इसी प्रकार अगर मुसलमान को पांच टाइम नमाज पढ़नी है । तो आजादी के पहले वह अपने घर, दुकान अथवा बाजार में जहाँ चाहे नमाज पढ़ सकता था । किन्तु आजादी के बाद, भारत में तो वह कहीं भी नमाज पढ़ सकता है । लेकिन पाकिस्तान में अगर वह किसी सार्वजनिक स्थान पर नमाज पढ़े । तो पुलिस पकड़ ले जाएगी । उसे पाकिस्तान में आजादी नहीं । यहाँ भारत में आजादी है ।

- पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिन्ध, बाल्टिस्तान, सबमें आजादी की मांग उठ रही है । इसकी मांग करते-करते लाखों लोग मारे भी जा चुके हैं ।

- किसी की नफ़रत के सहारे कोई भी देश अपने को कायम नहीं रख सकता । यह हैरत की बात है कि जो पाकिस्तान खुद टूट रहा है । उसके जिंदाबाद के नारे लगाने वाले, भारत के टुकड़े होने के ख़्वाब देख रहे हैं ।

- आज अगर कुछ लोग भारत को तोड़ने की बात करते है । इसका अर्थ है कि वे भारत को प्यार नहीं करते । जो भारत को प्यार नहीं करते । वे भारत में रह क्यों रहे हैं ? अगर वे पाकिस्तान जाएं तो हमें क्या आपत्ति ? एक नेता कहते हैं कि हमें आरएसएस देशभक्ति न सिखाए । उन्होंने आजादी के लिए क्या किया ? तो सवाल उठता है कि उन्होंने स्वयं देश की आजादी के लिए क्या किया ? उनके पूर्वजों ने किया । तो प्रत्येक देशवासी के पूर्वजों ने भी किया ।

- देश की आजादी के लिए जो दस बीस लाख बलिदान हुए । क्या वे सब कांग्रेसी थे ? 
- आजादी के पहले देश का बंटवारा हुआ । बंटवारा स्वीकार करने के बाद ही आजादी मिली । कांग्रेस ने रावी के तट पर कसम खाई थी - अखंड भारत की । आपने वायदा किया था अखंड भारत का । आपने पूर्ण स्वराज्य के वायदे के साथ विश्वासघात किया । 

- आजादी की लड़ाई आपके पुरखों ने लड़ी । तो हमारे पुरखों ने भी लड़ी । हाँ, हमने देश नहीं बेचा । जबकि आप आजादी के बाद से ही लगातार देश को बेचने का धंधा करते रहे । हद तो तब हो गई । जब आप मकबूल, याकूब, अफजल, कसाब के कातिल ज़िंदा हैं, हम शर्मिन्दा हैं, जैसे नारे लगाने वालों के साथ जाकर खड़े हो गए ।
जरा सोचिए, राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज की, तो क्या वे कातिल हो गए ? सारी न्यायपालिका व न्यायाधीश भी कातिल हो गए ? जब फांसी हुई । तब राज कांग्रेस का था । तो कांग्रेस भी कातिल ? तो इनकी गिरेबान पकड़कर क्यों नहीं पूछना चाहिए कि आखिर तुम्हें कातिल बताने वालों के साथ जाकर तुम कैसे और क्यों खड़े हो गए ? उन्हें बदनाम करने की जरूरत नहीं है । उन्हें चिढ़ाओ । ताकि वे ठीक हो जाएं ।

- ईश्वर ने बड़ी कृपा की । जो जेएनयू की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को उजागर कर दिया । हमें तय करना होगा कि न तो हम पाप करेंगे । न अपनी आंखों के सामने पाप होने देंगे । कायर और कमजोर नहीं, निडर और बलशाली बनना होगा । अगर कोई देश के विरुद्ध नारा लगा रहा है । तो क़ानून से क्या पूछना ? देशद्रोह को बढ़ावा देने वाला बौद्धिक वर्ग, बौद्धिक आतंकवादी है । कितनी ईमानदारी से ये लोग बेईमानी कर रहे हैं । 
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रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’ 
प्रख्यात साहित्यकार व धर्मपाल शोधपीठ के संयोजक

- देश में कुछ बौद्धिक लम्पटों को सरकारों का संरक्षण मिला । जो लगातार देश की बुनियाद को खोखला करते रहे । हम विदशी धन पर आश्रित मीडिया पर ध्यान ही क्यों दें ? उनकी चर्चा ही क्यों करें ? आज की मैन स्ट्रीम मीडिया है - सोशल मीडिया । उस पर हम सवाल उठाएं कि देशभक्ति को दंडनीय कैसे कहा जा सकता है ? भारत की वीरता को कुंठित क्यों किया जा रहा है ? देशप्रेम की भावना, उसके प्रति संवेदनशीलता तो पुरष्कृत होना चाहिए ।

- हम भी नारा लगाएं - देशद्रोह से आजादी, गद्दारों से आजादी, गद्दारों को पीटने की आजादी । हमें अपना अभिमत रखना आना चाहिए । दूसरों का जबाब नहीं देते रहना चाहिए । अगर समाज में थोड़े लोग भी जागरूक हो जाएं । तो वे अपने सामर्थ्य से सबको बहा ले जाएंगे । राष्ट्रभक्ति को जागृत करें । इस समय लोग खुली बहस की वकालत कर रहे हैं । हम भी उसका फायदा उठाएं । देशद्रोहियों को पीटने का हक है । यह मांग वातावरण में फ़ैलने दीजिए । फिर हाल देखिए इन लफंगे बौद्धिक आतंकवादियों का । 

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