च्वांगत्सु एक मरघट से निकलता था । सांझ का वक्त था । अंधेरा हो रहा था । और उसका एक खोपड़ी से पैर लग गया । तो वह वहीं बैठ गया । उसके शिष्य भी साथ थे । वे भी चौंककर खड़े हो गए कि वह क्या कर रहा है ।
उसने उस खोपड़ी को सिर से लगाया । और बहुत क्षमा मांगी कि क्षमा करिए । माफ करिए । नाराज मत होईए । थोड़ी देर तो शिष्य बरदाश्त करते रहे । फिर उन्होंने कहा - आप पागल हो गए हैं । या क्या बात है ? इस खोपड़ी से क्षमा मांगते हैं ?
च्वांगत्सु ने कहा - जरा सोचो । अगर यह आदमी जिंदा होता । तो आज अपनी मुसीबत हो गई होती । और यह कोई छोटा मोटा आदमी नहीं । मैं तुमसे कह दूं । क्योंकि यह बड़े लोगों का मरघट है । यहां सिर्फ राजा महाराजा इस मरघट में दफनाए जाते हैं । आज अपनी गरदन कट गई होती । वह तो संयोग की बात कहो कि यह मर चुका है । मगर क्षमा मांग लेना उचित है । बड़े लोग, इनका क्या भरोसा । कहीं नाराज हो जाए । भूत प्रेत हो । नाराज हो जाए । कुछ उपद्रव खड़ा करे । और वह तो उस खोपड़ी को अपने घर ले आया । और उसको सदा अपने पास रखने लगा । लोग जब भी आते । तो चौंककर पूछते कि यह खोपड़ी किसलिए ? तो वह कहता - यह खोपड़ी इस बात की याद दिलाने के लिए कि एक दिन अपनी खोपड़ी भी इसी तरह पड़ी होगी । कहीं मरघट में । लोगों की लातें लगेंगी । कोई क्षमा भी नहीं मांगेगा । जिस दिन से इस खोपड़ी को ले आया हूं । उस दिन से अब कोई मुझे मार भी जाता है । तो मैं इसकी तरफ देखता हूं । और मुस्कुराता हूं । मैं कहता हूं - देखो ! ये अभी से ही लोग मारने लगे । अभी हम मरे भी नहीं । और लोग मारने लगे । मगर यह तो होना ही है । आज नहीं कल होना है । सत्तर साल की जिंदगी है । और उसके बाद अनंतकाल तक यह खोपड़ी कहां पड़ी रहेगी । तुमसे पहले बहुत लोग हुए हैं । कहां हैं अब ? तुमसे कम अकड़ वाले न थे वे । तुम्हारी जैसी ही अकड़ थी । तुम्हारी अकड़ भी ऐसे ही खो जाएगी । यह संसार सूली है । यहां हर आदमी अपनी फांसी की प्रतीक्षा कर रहा है । यहां हम क्यू में खड़े हैं । फांसी लगती जाती है । क्यू आगे बढ़ता जाता है । जो जो आदमी मरता है । वह तुम्हारी मृत्यु को करीब ले आता है । क्योंकि तुम करीब पहुंचने लगे । क्यू आगे सरकने लगा । जल्दी ही तुम्हारा भी नाम पुकारा जाएगा । यहां मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ घटता ही नहीं । यहां रोज मौत घटती है । यहां मौत ही एक वास्तविक घटना है । बाकी सब घटनाओं का कोई मूल्य नहीं है । क्योंकि मौत सारी घटनाओं को पोंछ जाती है । आखिर में मौत की ही लकीर बचती है । बाकी सब मिट जाता है । मीरा कहती है - यहां सोना भी चाहूं । कैसे सो जाऊं ? यहां सूली पर सेज कैसे लगे ? तो एक तो
इस अर्थ को समझना कि संसार सूली है । दूसरे इस अर्थ में भी मीरा कहती है कि - डार गयो मनमोहन फांसी । और जब से यह परमात्मा की धुन सवार हुई है । दोहरी फांसी हो गई है । यहां तो मौत थी ही । यहां तो जीवन कष्ट पूर्ण था ही । यहां तो हजार दुख थे ही । अब एक और बड़े दुख का जन्म हुआ है । अब एक और एक नई फांसी लग गई है कि जब तक परमात्मा से मिलन न हो जाए । तब तक चैन नहीं हो सकता । तब तक शांति नहीं हो सकती ।
यहां भक्त और ज्ञानी के मार्ग का भेद समझना । इन सूत्रों में दो तीन जगह भेद खयाल में आएगा । ज्ञानी कहता है - तुम शांत हो जाओ । तो सत्य मिल जाएगा । भक्त कहता है - सत्य मिले । तो ही मैं शांत हो सकूंगा । नहीं तो शांत कैसे हो जाऊं ? ज्ञानी कहता है - अंधेरे को हटा दो । तो रोशनी हो जाएगी । भक्त कहता है - रोशनी हो । तो ही अंधेरा हटेगा । अन्यथा अंधेरा हटेगा कैसे ? ज्ञानी कहता है - तुम सरल हो जाओ । तुम सब तरह की चिंताओं से मुक्त हो जाओ । तुम शांति को उपलब्ध हो जाओ । भक्त कहता है - कैसे ? अभी तो अशांति रहेगी ही । जब तक कि परम प्रिय से मिलन न हो जाए । उससे मिलने के पहले शांति हो कैसे सकती है ? शांति तो छाया की तरह होगी । वह मिला कि शांति हो जाएगी । भक्त के मार्ग पर विरह, परमात्मा की प्यास की पीड़ा सहयोगी है । भक्त तो दुखी रहेगा । रोता रहेगा । पुकारता रहेगा । शांत नहीं हो सकता । शांत हो जाने में तो खतरा है । शांत होने में तो पुकार खो जाएगी । शांत होने में तो खोज ही बंद हो जाएगी ।
तो एक तो संसार की सूली लगी है । और दूसरे । मीरा कहती है - जब से उस प्यारे की आंख में झलक पड़ गई । जब से उस प्यारे की छवि आंख में उतर गई । एक दूसरी फांसी भी लग गई है । सूली ऊपर सेज हमारी । सोवण किस विधि होइ । तो एक तो संसार के दुख पर्याप्त हैं जगाने को । मगर फिर भी किसी तरह सो लेते । सांसारिक सो ही जाता है । लेकिन एक और एक नया दुख पकड़ गया । एक नया तीर प्राणों में चुभ गया है । और यह ऐसा तीर है कि इसका कोई इलाज नहीं । कोई औषधि इसको शांत नहीं कर सकती । परम प्यारा आए । तो ही कुछ हो सकता है । इसलिए सोना कहां ? चैन कहां ? सांत्वना कहां ? गगन मंडल पे सेज पिया की । किस विधि मिलना होइ । यहां तो चिंता ही सोने की नहीं है । चिंता एक ही है कि उस प्यारे से मिलना कैसे हो ? और अड़चन बड़ी है । हम जमीन पर हैं । और गगन मंडल पे सेज पिया की । हम क्षुद्र में बंधे हैं । और वह विराट में है । हम सीमा में हैं । वह है - असीम । हम पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण के भीतर । और वह सारे गगन के विस्तार में । हम बड़े - क्षुद्र । कैसे उससे मिलन होगा ? यह हमारी छोटी सी बूंद उस सागर को कैसे मिलेगी ? कैसे खोजेगी ? गगन मंडल पे सेज पिया की । गगन मंडल शब्द का प्रयोग कबीर ने, दादू ने, मीरा ने एक बहुत विशेष अर्थों में किया है । इसको तो गगन कहते ही हैं । जो आकाश हमें दिखाई पड़ता है । लेकिन भक्त कहते हैं - तुम्हारे भीतर भी ऐसा ही आकाश है । इतना ही बड़ा । उसे गगन मंडल कहते हैं । जितना बड़ा आकाश भीतर है । उतना ही बड़ा आकाश बाहर है । दोनों समतुल हैं । तुमने भीतर झांका नहीं । नहीं तो इतना बड़ा विस्तार वहां भी है । सहस्रार में जब कोई पहुंचता है । तो गगन मंडल में पहुंचता है । जब अपने सातवें चक्र में कोई थिर हो जाता है । तो भीतर के आकाश में थिर हो जाता है ।
तो मीरा कहती है - उस सातवें चक्र पर, सहस्रार पर, उस प्राण प्यारे का वास है । तुमने देखा न । विष्णु कमल पर विराजमान । बुद्ध भी कमल पर विराजमान । कृष्ण भी कमल पर विराजमान । हमने सारे अवतारों की धारणा कमल पर की है । क्योंकि हमारे भीतर वह जो सातवां चक्र है । वह कमल जैसा है । इसलिए उसको सहस्रार कहा है । सहस्रदल कमल । उसकी हजार पंखुड़ियां हैं । और जब भीतर का हमारा अंतिम चक्र खुलता है । तो हजार पंखुड़ियों वाला कमल खुलता है । उसी में परमात्मा विराजमान है । मीरा कहती है - हम कीचड़ में घिसट रहे हैं । और प्रभु विराजमान है - गगन में । बड़ी दूरी है । किस विधि मिलना होइ ? तड़फते हैं प्राण । हम इस पार । तुम उस पार । नाव का कुछ पता नहीं । कैसे हम उस पार आएं ? कैसे तुम इस पार आओ ? कैसे मिलना हो ? और जब तक मिलना न हो । तब तक कैसी सांत्वना । कैसी शांति । कैसा विश्राम ? सूली ऊपर सेज हमारी । सोवण किस विधि होइ । गगन मंडल पे सेज पिया की । किस विधि मिलना होइ । दरद की मारी बन बन डोलूं । बैद मिल्या नहिं कोइ । वैद्य मिल भी नहीं सकता । यह बीमारी ऐसी नहीं कि जिसकी चिकित्सा हो जाए । यह तो परम वैद्य मिलेगा । तो ही बीमारी जाएगी । दरद की मारी बन बन डोलूं । मीरा कहती है - घूमती हूं । इस कोने से । उस कोने । इस नगर से उस नगर । इस वन से उस वन । पुकारती फिरती हूं । सब तरफ आवाज देती हूं । सब द्वार खटखटाती हूं । इस मंदिर के । उस मंदिर के । लेकिन कहीं कोई वैद्य नहीं मिलता । कहीं कोई नहीं मिलता । जो इस बाण को खींच ले । घाव को भर दे । नहीं कोई वैद्य मिल सकता । और अच्छा ही है कि वैद्य नहीं मिल सकता । उस वैद्य का उपाय ही नहीं किया है - परमात्मा ने । जिसको भक्ति का घाव लगा । वह फिर भरने वाला नहीं है । वह बढ़ता ही चला जाता है । भक्त एक दिन पूरा का पूरा घाव हो जाता है । पूरा प्यास हो जाता है । उस दिन मिलन है । उसके पहले मिलन नहीं । यह कीमत चुकानी पड़ती है । मीरा की प्रभु पीर मिटेगी । जब बैद सांवलिया होइ । यह पीड़ा तो तभी मिटेगी । जब सांवलिया खुद वैद्य होकर आएगा । खुद प्रियतम वैद्य होगा । खुद परमात्मा ही जब हाथ रखेगा इस घाव पर । तभी यह भरेगा । किसी और हाथ से भर नहीं सकता ।
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साईं के नाम बिना कोनी निस्तारा । जाग जाग नर क्या सोता ।
जागत नगरी में चोर कोनी लागे । झक मारे तेरा यमदूता ।
जप कर तप कर कोटि यतन कर । कासी जाय करोत ले ले ।
भजे बिना तेरी मुक्ति न होवे । भज ले जोगी अवधूता ।
जोगी होकर जटा बढाले । अंग रमाले भभूता ।
जोग जुगत की सार कोनी जाणे । जोग नहीं तेरा हठ झूंठा ।
जिनकी सुरता लगी भजन में । काल जाळ से नहीं डरता ।
अधर अणि पर आसन रखता । सो जोगी है अवधूता ।
सोवतडा नर भोगै चोरासी । जगतडा नर जग जीत्या ।
रामानंद का भणे कबीरा । मंझला मंझला जाय पहुच्या ।
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मन के पास ईश्वर सिर्फ एक शब्द है । ईश्वर बिल्कुल नही है । भीतर के शरीर में प्रवेश करना पड़ेगा । जहाँ कोई विचार की तरंग नही होती । जहाँ शून्य । कहना चाहिए । कुछ भी नही होता ।
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जीवन भर जिसे खोजते रहे । वो अब मिला । अभी मिला । हद हो गयी हमारी सुस्ती की - हा हा हा हा हा हा । उडी बाबा ! यह क्या हो गया ? पर कहते हैं ना कि हर चीज़ समय पर मिलती है । जब तुम्हे वास्तव में उसकी ज़रुरत हो । तब मिलती है ।
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पछताया बहुत उसके दरवाज़े पर दस्तक देकर ।
दर्द की इंतहा हो गई जब पूछा कौन हो तुम ?
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रग रग में तेरी याद समाये तो क्या करूं ?
दिल से तेरा ख्याल न जाये तो क्या करूं ।
हर हाल में शराब का पीना हराम है ।
अगर नजर से कोई पिलाये तो क्या करूं ।
मुझको जुनूं नहीं कि जागूं तमाम रात ।
लेकिन तेरा ख्याल जगाये तो क्या करूं ।
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खुशबू सी आ रही है, इधर जाफरान की ।
खिड़की खुली है आज फिर उनके मकान की ।
हारे हुए परिंदे ज़रा उड़ के देख तो ।
आ जायेगी ज़मीन पे छत आसमान की ।
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पंडित, पुरोहित, मुल्ला, फादर और राजनेता । यह सभी मानव और मानवता के शोषक हैं । मानवता के इन हत्यारों के प्रति जल्द ही जाग्रत होना जरूरी है । अन्यथा ये मूढ़ सामूहिक आत्महत्या के लिए मजबूर कर देंगे । मनुष्य को धर्म और राजनीति ने मार डाला है । आज हमें हिंदू, मुसलमान, ईसाई और अन्य कोई नजर आते हैं । लेकिन मनुष्य नहीं । कुछ लोगों को हिम्मत करना होगी । अपने " आदमी " होने की । वरना मानवता महाविनाश के दलदल में धंसती जाएगी । घोषणा कर दें कि - मैं सिर्फ आदमी हूँ । फकत आदमी ।
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जीवन का एक सार सत्य जान लो । दूसरोँ का दिया गया धोखा । अंत मेँ स्वयं को दिया गया साबित होता है ।
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तुम दुनियां को धोखा दे सकते हो । लेकिन स्वयं को और परमात्मा को कभी नहीं - तन की जाने । मन की जाने । जाने चित्त की चोरी । उस साहिब से क्या बचोगे । जिसके हाथ में डोरी ।
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समाधि का अर्थ है - स्वयं के भीतर ऐसे चैतन्य की दशा । जहां न कोई विचार है । न कोई भाव है । न कोई स्मृति । न कोई कल्पना । चित्त की सारी लहरें समाप्त हो गईँ । चित्त के सारे कार्य निरोध को उपलब्ध हो गए - चित्त वृति निरोधः । बस वह योग की दशा है । चित्त की झील बिलकुल ही तरंग शून्य हो गई । उस निस्तरंग झील मे चांद का प्रतिबिम्ब बन जाता है । ऐसे ही मनुष्य की चेतना की शांत शून्य अवस्था मे परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है ।
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तुम सांत्वना चाहते हो । तुम चाहते हो । कोई तुम्हें भरोसा दिला दे कि तुम रहोगे । आगे भी रहोगे । मिट न जाओगे । शरीर ही छूटेगा । आत्मा बचेगी । ऐसा कोई तुम्हें समझा दे । कोई तुम्हें सिद्धात पकड़ा दे । कोई तुम्हें विश्वास दे दे । कोई तुम्हें थोथे सिद्धातों की आङ में सुरक्षित कर दे । कोई कह दे कि इतनी पूजा कर लो रोज कि इतना पुण्य कर देना कि गंगा स्नान कर आना कि सब ठीक हो जायेगा । कोई सस्ता सा, सुगम सा उपाय बता दे । जागना भी न पड़े । क्योंकि जागना महंगा सौदा है । जागने के लिए मरना होता है । तुमने जिसे अभी तक जिंदगी जाना है । वह जिंदगी छूटेगी । अगर जागना चाहोगे । वही है मृत्यु का अर्थ । तुमने जिसे जिंदगी जाना । वह जायेगी । तभी वह जिंदगी आयेगी । जिससे तुम अभी परिचित नहीं हो । एक जिंदगी जाये । तो दूसरी जिंदगी आये । जैसे तुम हो । ऐसे मर जाओ । तो तुम वैसे पैदा होओ । जैसे तुम्हें होना चाहिए ।
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टके भर खाना अवधू बाए अंग लेटना रे । त्रिकाली में देना पहरा हो ।
पेट के लिए आहार जरूरी भी है । भूखे जन्मे भी नहीं । तो शरीर एक यंत्र है । थोड़ा खाना । बाए अंग लेटना । शरीर के लिए सही कहा योगियो ने । क्योंकि पाचन शक्ति सही रहती है । और त्रिकाली में ध्यान लगाना । और ही आनन्द हैं । मस्तिक पर जहाँ त्रिनेत्र कहा जाता है । अगर उसमें चूक हो गई । तो जम भी छोड़ेगे नहीं । जम नाम है - रोग का । कलेश का ।
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भीतर देखो । इससे अधिक सरल क्या हो सकता है ? जैसे ही तुम भीतर देखते हो । एक पूरी अलग ही दुनियां के दरवाजे खुलते हैं । और तुम्हारी पुरानी भाषा असंगत हो जाती है । तुम इतना ही कह सकते हो । पुराना समाप्त हो गया ।
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इमारत की दीवार पर चलना कैसे - यह न कोई योग है । न कोई ट्रिक है । बल्कि ये बहुत उच्च क्षमता वाले चुम्बकीय जूतों और वैसे ही खास वस्त्रों का कमाल है । आप ध्यान दें । तो ऐसी बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में अत्यधिक इस्पात का इस्तेमाल किया जाता है । वही इस्पात से यह शक्तिशाली चुम्बक आकर्षित होकर सन्तुलन बनाये रखता है । ये चुम्बक इतना शक्तिशाली होता है कि आपको आश्चर्य होगा कि ऐसे करतब दिखाने वाले को पैर उठाने में भी खासा जोर लगाना पङता है । इसके अतिरिक्त आजकल के हाई फ़ाई आधुनिक चोर और खुफ़िया विभाग के धुरंधर जासूस ऐसे जूतों और वस्त्रों का प्रयोग छत के लेंटर से चिपक कर छिपने में भी करते हैं ।
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मनुष्यों के चार हजार प्रकार कैसे - जिस प्रकार उच्चता निम्नता ( मस्तिष्कीय क्षमता, गुण, भाग्य, आचरण आदि ) के कई कारणों के आधार पर मनुष्य की कई श्रेणियां कई वर्ग बन जाते हैं । शास्त्र की भाषा में इसको जङ ( ता ) और चेतन ( ता ) कहा जाता है । सन्तों की भाषा में इसे - गङे ( वृक्ष पहाङ आदि ) पङे ( पशु आदि ) खङे ( विभिन्न मनुष्य ) कहा जाता है । तो सरलता से समझने हेतु इसे विभिन्न मनुष्यों में जङता चेतनता के % से मूल्यांकन प्रमुख चार हजार मनुष्यों के रूप में किया गया है । इसमें सबसे श्रेष्ठ वह है । जो इससे पूर्व जन्म में मनुष्य था । और ज्ञान अर्जित कर रहा था । फ़िर प्रमुखतया जो इससे पूर्व साधारण सज्जन था । और दूसरे जन्म में ज्ञान प्रवृत हुआ । इससे भी पूर्व पुण्य आधार पर मनुष्य बना । ऐसे ही नीचे की स्थितियां बनती जाती हैं । जिसे अज्ञान से ज्ञान की ओर यात्रा में चार हजार मुख्य भागों में बांटा गया है । दुनियां में मनुष्यों के लाखों प्रकार और स्तर देखकर ये आसानी से समझा जा सकता है । इसी आधार पर चांडाल शूद्र आदि निम्न और क्षत्रिय ब्राह्मण आदि उच्च कुलों परिवार आदि में जन्म भी होता है ।
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भारत में एक प्रधान मत्री हुए - मोरारजी देसाईं । उन्होंने इसको भगा दिया था । पर फिर ये इस देश में घुस आई है । अब एक ही तरीका है बंद करने का - बहिष्कार । क्योंकि बहिष्कार वह हथियार है । यह वह डायनामाइट है । जो बड़े से बड़े गुलामी के पहाड़ को तोड़ सकता है ।
http://bollywood.bhaskar.com/article-hb/ENT-BOL-amitabh-bachchan-left-ad-of-pepsi-4509091-PHO.html http://epaper.bhaskar.com/jabalpur/180/16012014/mpcg/3/
राजीव भाई ने तो पहले ही कहा था कि - papsi जहर है ।
http://www.youtube.com/watch?v=h5EC_4ddLMg
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Your challenge for the weekend: If you can't be kind, be quiet. —Buddhist Boot Camp
http://buddhistbootcamp.com
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http://hindi.webdunia.com/yoga-dhyana/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8-1120821040_1.htm
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