28 जुलाई 2011

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब इस समय विश्व का सर्वोत्तम और सर्वोच्च ग्यान है

सत श्री अकाल महाराज ! मैं बहुत दिन से आपसे बात करने की सोच ही रहा था । लेकिन उचित टापिक नजर नहीं आया । काम काज की भाग दौड अलग से थी । लेकिन आज मैं सिर्फ़ " श्री गुरु ग्रन्थ साहिब " के बारे में ही कुछ बात करना चाहता हूँ ।
यहाँ हमारे पडोसी ( आस्ट्रेलिया में ) पंजाबी परिवार से ही हैं । पंजाबी सिख परिवार है । उनके परिवार में जो 1 बजुर्ग व्यक्ति हैं । उन्हें मैं अंकल बोलता हूँ । उनकी उमर 65 साल की है । आपका ब्लाग पढने के बाद मैंने उनके साथ 1 दिन धार्मिक चर्चा छेड ली । उन्होंने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का पूरा पाठ किया हुआ है । उनकी बातों से जाहिर हुआ कि उनकी समझ हमारे सिख धर्म के जो पेशेवर पाठी सिंह या भाई जी हैं । उन सब लोगों से अधिक समझ उन अंकल को है ।
उन अंकल ने बताया कि - श्री गुरुगृंथ साहिब में सतलोक ( सचखन्ड ) का भी वर्णन है । साथ में अलख लोक ।

अगम लोक और अनामी लोक का वर्णन भी है । उन्होंने कहा कि - श्री गुरू ग्रन्थ साहिब  में परमात्मा को मालिक कहते हुये । उसे बेअन्त कहा गया है । उन्होंने ये भी बताया कि  ग्रन्थ साहिब  में महाकाल स्थिति के बारे में भी बात है । साथ में कालपुरुष । आदिशक्ति । 3 प्रमुख देव और अनेकों ही खण्डों और बृह्माण्डों का जिकर है
उन्होंने ये भी बताया कि ग्रन्थ साहिब  में बार बार नाम जपो का सन्देश है । बार बार " सुरत शब्द योग " की महिमा गायी गई है । उन्होंने ये भी बताया कि इस समय जो सन्तमत की बहुत ही उच्च शाखा " राधास्वामी " चल रही है । ये शाखा भी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की ही वाणी का पाठ और व्याख्या को मुख्य समझती है ।
गुरु ग्रन्थ साहिब में जो पाँच शब्दों की साधना पर विशेष इशारा किया गया है । ये एक अलग ही स्थिति है । जो हर कोई नहीं जानता । ये ही पंचनामा राधा स्वामी सम्प्रदाय में दिया जाता है । जो पाँच शब्द  राधास्वामी में दिये जाते हैं । वो आम पंचनामों की तरह ॐ से शुरु होकर नमः तक वाला नहीं है । उस पंचनामे या पाँच शब्दों या पाँच शब्द वाले नाम में ही ( भी ) सार शब्द या निर्वाणी नाम ( जो स्वांस स्वांस चल रहा है ) या सत्यनाम है ।
क्युँ कि ग्रन्थ साहिब  में जिस सतनाम ( अजपा जाप )

का सन्देश है । वो नाम राधास्वामी लोगों को दे रहे हैं । पाँच शब्दों के रुप में ये नाम इसलिये दिया जा रहा है । क्युँ कि इस पंचनामे की साधना के निचोड में सारी बात क्लीयर हो जाती है । काल, महाकाल और अकाल स्थिति ।
उस अंकल के अनुसार ( उन्होंने कबीर जी की वाणी को भी समझा है ) राधा स्वामीयों के पंचनामे में वो ही ढाई अक्षर का नाम ( कबीर जी वाला ) है । लेकिन इस पंचनामे की साधना का तरीका आम साधना से थोडा सा अलग है ।
लेकिन अफ़सोस अग्यान के कारण हमारे कुछ कट्टर सिख भाई या पेशेवर पाठी सिंह और कुछ अग्यानी साधु टायप लोग ( जो प्रेक्टिकली अधूरे हैं ) इस बात का विरोध करते हुये इस बात को नकारते हैं । हमारे सिख कट्टर भाई पता नहीं क्युँ राधास्वामीयों को सिख धर्म का दुश्मन समझते हैं । कोई उनसे पूछे - भई !

जो काम ( वाणी की व्याख्या और नामदान ) आप लोगों को करना चाहिये । वो अब दूसरे लोग कर रहे हैं । आपने तो किया नहीं । और न ही करने की नीयत लगती है आपकी । तो फ़िर दूसरों को तो अच्छा काम कर लेने दो ।
लोग अपने आत्म कल्याण के लिये कहीं न कहीं किसी न किसी के पास तो जायेंगे ही । उस अंकल ने ये भी बताया कि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में अलग अलग स्तर के भगतों की वाणी दर्ज है ( ये तो आपको भी और बहुत से लोगों को भी पता ही होगा ) ग्रन्थ साहिब में कबीर जी को सबसे उत्तम भगत कहा गया है । 1 खास बात ग्रन्थ साहिब में नौवें गुरु " गुरु तेगबहादुर जी " की वाणी सबसे गहरी और गम्भीर है । ये वाणी ग्रन्थ साहिब के आखिरी अंगों ( पन्नों ) पर दर्ज है ।

ग्रन्थ साहिब के कुल 1430 अंग ( पन्ने ) हैं । उस अंकल ने ये भी बताया कि ग्रन्थ साहिब में जो भगतों की वाणी है । वो " गुरु नानक देव जी " ने अपने जीवन काल में स्वयँ जगह जगह जाकर खुद इकठ्ठी की थी । कईयों से वो स्वयँ मिले । तो कईयों के ( जो गुजर चुके थे ) अनुयाईयों से वाणी ली गई । उस अंकल ने ये भी कहा था कि कबीर जी की सम्पूर्ण वाणी में से जो कबीर जी की वाणी का सबसे मोस्ट इम्पोर्टेंट भाग था । वो ही ग्रन्थ साहिब में दर्ज किया गया है ।
उन अंकल के अनुसार अगर सिख समाज ये बात समझ जाये । तो उन्हें कहीं जाने की जरुरत नहीं ( उनका यहाँ अर्थ था कि किसी किस्म के पाखण्ड करने की जरुरत नहीं ) बस सिख समाज इन पेशेवर पाठी सिंह ( जिन्होंने केवल बाहरी भेष धारण किये हुये हैं ) के चक्कर से निकल कर ग्रन्थ साहिब का अध्ययन करे । 

बात को ठीक से समझते हुये फ़िर किसी सच्चे सन्त की शरण में जाये । और अपना आत्म कल्याण करे ।
अगर समय की कमी के कारण लोग अधिक अध्ययन नहीं भी कर पाते । तो भी कोई बात नहीं । सिख समाज सिर्फ़ गुरु नानक देव जी की ही वाणी को गहराई से समझ ले । तो भी अति बेहतर रहेगा । उस अंकल के अनुसार गुरु नानक देव जी भी परवश जनम न लेकर प्रकट ही हुये थे । सतगुरु क्या होता है ? गुरु नानक देव जी इसके प्रमुख उदाहरण हैं ।
वैसे वो अलग बात है । हर सम्प्रदाय अपने अपने बीते हुये महापुरुष को सतगुरु कहती है । चाहे कबीर जी हों । या ओशो । या राधा स्वामीयों के पुराने गुरु । लेकिन ये सब लोग अपने अपने समय के सतगुरु ही थे । बात सब ( असल में अगर गहराई से समझा जाये तो ) 1 ही कह रहे हैं । सिर्फ़ भाषा के अलग अलग होने या झूठे अहंकार के कारण लोग बात समझने की बजाय झगडा करने लग जाते हैं ।
मैं आपको अपने 3 छोटे छोटे अनुभव बताता हूँ । जब मैं आस्ट्रेलिया आने से पहले दिल्ली में था । तब मेरी शादी भी नहीं हुई थी । बस पढाई ही चल रही थी । उस समय जहाँ दिल्ली में हम रहते थे । आसपास हिन्दू भाई बहन भी बहुत रहते थे । मैं अपने 1 दोस्त के घर गया । जो हिन्दू था । उनके यहाँ कोई पूजा हो रही थी । पूजा के बाद मैंने वैसे ही जिग्यासा वश पन्डित जी को अपना हाथ दिखाया । और कहा - पन्डित जी !जरा बता दीजिये । मुझे अच्छी नौकरी मिल जायेगी कि नहीं ?
पन्डित जी ने भी बस इधर उधर की बातें कर दी । फ़िर मैंने अचानक वैसे ही पूछ लिया - पन्डित जी ! आप शिवजी ( शंकर जी )  विष्णु जी और बृह्माजी को रब्ब बताते हो । लेकिन मैंने सुना है । रब्ब तो सिर्फ़ 1 है । मेरी बात सुनकर पन्डित जी थोडा सा हैरानी 


और फ़िर हँसकर बोले - अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है । ये सब रब्ब ही है । रब्ब ही 3 रुपों में है ।
मुझे उस समय इतनी समझ नहीं थी । मैंने चुपचाप उनकी बात मान ली । लेकिन वो अलग बात है कि आपके ब्लाग पर किसी लेख में शिव जी ( शिवशक्ति ) और  शंकर भगवान के अन्तर को स्पष्ट कर दिया गया । मुझे मेरे दोस्त ने बाद में बताया था कि - ये पन्डित जी एम काम पास हैं । लेकिन कहीं ठीक से नौकरी न मिलने के कारण पन्डिताई लाइन में आ गये ।
मेरे दोस्त ने ये भी कहा कि - ये पन्डित जी ने ज्योतिष वगैरह की डिगरी बनारस से ली है । मेरे दोस्त ने उनकी हासिल किसी और किस्म की विध्या के बारे में भी बताया था । वो बात मेरे को ठीक से याद नहीं ।
अब मैं आपको दूसरी घटना सुनाता हूँ । ये घटना पहली वाली घटना के काफ़ी बाद की बात है । मैंने 1 बार किसी पुराने पन्डित को जो किसी शिवालय का प्रमुख पुजारी आदि है । उससे अचानक किसी के घर मुलाकात की । मैंने उससे आत्मा के ग्यान और श्रीमदभगवत गीता  के बारे में बात की । तो उसने कहा कि - आप लोग आत्मा वात्मा के चक्कर में मत पङो ।
मैंने फ़िर जरा बिनती के स्टायल में पूछा । तो उन्होंने कहा कि - आत्मा क्या है ? जैसे ये हवा चल रही है । वैसे ही आत्मा है । हवा की तरह आत्मा भी दिखती नहीं । बस महसूस हो जाती होगी । साथ में उसने ये भी कहा था कि - भगवत गीता तो वो लोग पढते हैं । 

जिन्होंने साधु वगैरह बनना होता है । जिनकी जिन्दगी नीरस हो जाती है । गृहस्थ के लोगों के लिये गीता ठीक नहीं है ।
जाते जाते उस पन्डित जी ने ये भी कह दिया कि - असल मसला तो सिर्फ़ रोजी रोटी का ही है । आप सिर्फ़ उधर ध्यान दीजिये ।
मैं बाद में सोचता रहा कि रोजी रोटी तो खैर कमा ही लेंगे । अब तक उसी में तो लगे हुये हैं । लेकिन आत्मा को हवा बता दिया । लेकिन मैंने सुना है कि आत्मा दिव्य प्रकाश रुपा है ।
अब मैं आपको तीसरी बात बताता हूँ । मुझे 1 बाबा किसी के घर मिला । वो बाबा पाठ तो गुरु ग्रन्थ साहिब का करता था । लेकिन था शायद हिन्दु । लेकिन कपडे साधुओं वाले भगवे रंग के ही पहनता था । उसके परिवार का सारा खर्चा पाठ पूजा करके कमाये हुये पैसों से ही चलता था ।

मैंने उसे 1 बार गुरु नानक देव जी के बारे कुछ पूछा । तो उसने कहा कि - गुरु नानक देव जी विष्णु भगवान के अवतार थे । उसने यहाँ तक कह दिया कि - कृष्ण जी और गुरु नानक जी विष्णु जी का ही अवतार थे । हर अवतार विष्णु जी का ही आता है । विष्णु जी ही रब्ब हैं ।
1 बात और उस आदमी ने कही । जिससे मुझे शक हुआ कि ये आदमी असल में कुछ भी नहीं जानता । उस आदमी को शायद सन्तों की अहमियत नहीं पता । वो सन्तों को अपने बराबर मानता है । वो कहता है कि - मैं विद्वान हूँ । अगर कोई दूसरा विद्वान ( यहाँ उसका मतलब था सन्त ) सामने आ जाये । तो फ़िर 1 विद्वान दूसरे विद्वान को पहचान ही लेता है ।
तो इन सब बातों से ये साफ़ जाहिर होता है कि - दुनिया में असली बाबा ( जो कही सुनी और लिखती बातों के साथ पूरा प्रेक्टीकल भी जानते हों ) बहुत ही कम हैं । अधूरे किस्म के बाबा लोग भरे पडे हैं । लेकिन प्रेक्टीकली भी हर किसी की पहुँच एक समान नहीं होती ।

ये भी सत्य है । ऐसे सच्चे सन्त जिनकी पहुँच पारबृह्म अकाल पुरुष तक हो । विरले ( कोई कोई ) ही होते हैं । उनके चेहरे का नूर ही उनकी स्थिति बयान कर देता है । उन्हें किसी किस्म के फ़ालतू पचडों की आवश्यकता कभी नहीं पडती ।
इसलिये राजीव जी ! कई बातों का लिखती खुलासा तो आपके ब्लाग पर आकर ही हुआ । इसलिये मैं आपकी बात से 100 %  सहमत हूँ कि - श्री गुरु ग्रन्थ साहिब इस समय विश्व का सर्वोत्तम और सर्वोच्च ग्यान है । अब आप इस पूरे लेख के आधार पर कोई उचित राय सभी पाठक भाई बहनों को जरुर दें । सत श्री अकाल । सबका भला करे करतार ।

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- किसी दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह आपका ये मेल मुझे इतना महत्वपूर्ण लगा कि कल रात को आये इस मेल को मैंने सबसे पहले छापना उचित समझा । अच्छी और सर्वजन हितार्थ महत्वपूर्ण बात जितनी जल्दी लोगों तक पहुँचे । उतना ही शुभ है । कहते हैं ना । शुभ कार्य में देर नहीं करनी चाहिये ।
आपके इस मेल से मेरे कलेजे में बेहद ठंडक सी महसूस हुयी । एक असीम शांति का अनुभव हुआ । दिल से यही 


निकला - रब्ब तेरा लख लख शुक्र । जो मेरी मेहनत सफ़ल हुयी ।
आपका ये मेल मेरे पास होने में 100 में से 100 नम्बर देने वाली मार्कशीट ही है ।
- जैसा कि कहा जाता है । ग्यानी का हर जगह ही सम्मान होता है । उसे सबका प्रेम मिलता है । मैं खुद को ग्यानी ध्यानी तो नहीं मानता । बस रब्ब दी मेहर और संतों की कृपा से जो कुछ जान सका । बस उसी की चर्चा कर लेता हूँ ।
ये बात मैं खास इसलिये कह रहा हूँ कि प्रभु कृपा से आज दिन तक कट्टर सिख भाईयों से मेरा पाला नहीं पङा । सिख महिलाओं और युवतियों में तो मैंने हमेशा ही एक विनमृता और अपनत्व की भावना महसूस की । ये बात मैं सिर्फ़ यहाँ ब्लाग पर ही नहीं । जीवन में रूबरू हुये अनुभव के बेस पर कह रहा हूँ । और मुझे यह भी आश्चर्य होता है कि - वे कौन से सिख हैं । जो गुरु परम्परा को नकारते हैं ? क्योंकि हमारे मण्डल के नंगलीधाम ( मेरठ ) तपोभूमि ( आगरा ) श्री अद्वैत स्वरूप आश्रम w/9 राजौरी गार्डन दिल्ली । सार शब्द मिशन - निजात्म नगर बस्ती नौ जालंधर । तथा कानपुर आदि में कई बार इन जगहों पर सिख भाई बहनों से भेंटा हुआ । उन सभी ने नामदान या उपदेश लिया हुआ था । और उनके गुरु भी थे ।
हाँ इस बात से मैं अवश्य सहमत हूँ कि कुछ गुरुद्वारों में नियुक्त पाठी आदि लोगों से मुझे अच्छा अनुभव नही हुआ । उन्हें ये लगा कि - मैं मुफ़्त की चाय पीने या लंगर से पेट भरने आया हूँ । जबकि मैं न कहीं चाय पीता हूँ । न

खाना खाता हूँ । यहाँ तक कि लोग जो परसाद टायप कुछ बाँटते हैं । उसको भी पहले तो मैं लेता ही नहीं । और मजबूरी में लेने पर कुत्ते आदि को खिला देता हूँ । ये मेरी बचपन से ही आदत रही ।
इसको भी छोङिये । तो भी मुझे उनके अन्दर ऐसी टोन महसूस हुयी कि वे ही खास हैं । और मैं या अन्य लोग हीन हैं । इससे भी आगे की बात ये कि - जब मैंने उनसे कुछ सतसंग टायप करना चाहा । तो उसमें उनकी कोई रुचि नहीं थी ।
वास्तव में गुरुद्वारा में कोई जगह मिलते ही किसी भी इंसान के एक तरह से वारे न्यारे हो जाते हैं । कमाने खाने की चिंता नहीं । कोई खास मेहनत नहीं । खाओ और मौज करो । ये सिर्फ़ मैं इक्का दुक्का जगह हुआ अनुभव बता रहा हूँ । हो सकता है । अन्य जगहों पर ये बात न हो ।
वास्तव में सभी प्रकार की धार्मिक भावनायें विचार और रीति रिवाज का सही उपयोग एक विशाल दरिया पर बने पुल के समान होना चाहिये । जिससे पार होकर हम एक दूसरे को अच्छी तरह समझें । बहुरंगी संस्कृति का आनन्द लें । उनसे मिलना जुलना हो । हम एक दूसरे का दुख सुख बँटाये । जबकि हो ये रहा है कि - धार्मिकता का उपयोग लोगों ने इंसान के बीच अधिक से अधिक चौङी मजहबी खाई खोदने के लिये अधिक किया है ।
खैर..आपने स्वयँ बहुत कुछ कह दिया । किसी भी समझदार व्यक्ति के लिये इशारा ही काफ़ी होता है । जबकि आपने बुजुर्ग अंकल जी के माध्यम से बहुत कुछ विस्तार से बता दिया । जो एकदम सही है ।
बस मुझे यही बात खलती है कि जब सिख बिरादरी में ऐसे समझदार बुजुर्ग मौजूद हैं । फ़िर दूसरे लोग उनसे सीख क्यों नहीं लेते । जो उन्हें भी इस मनुष्य जीवन का लक्ष्य और परम सत्य पता चले ।

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