16 जुलाई 2011

राजपुरा की तो बात ही निराली है

जब अगली बार रजत या सुभाष में से किसी का कोई ई-मेल आये । तो आप उनसे पूछना - नन्हें मुन्नों ये 28 लोगों की गिनती आप लोगों ने किस हिसाब से की थी । बस अपने अपने क्लास य़ा टयूशन साथ पढने वालों को गिन लिया । लेकिन मुझे और मेरी 2 सहेलियों को भूल गये ।
नमस्कार राजीव जी ! मेरा नाम सुरेखा सिंधी है । मैं रजत के ताऊ जी की बेटी हूँ । स्कूलिंग राजपुरा के पटेल पब्लिक स्कूल में हुई है । मेरा कालेज भी " पटेल कालेज राजपुरा " ही रहा है । मैंने पटेल कालेज राजपुरा से M.A की हुई है ।
रजत और सुभाष पार्टी ने तो अभी सिर्फ़ B.A Part 2 ही पास किया है । अब आजकल उन लोगों की एडमिशन्स चल रही है । मेरी उमर 25 साल है । मैं आजकल प्रायवेट कम्प्यूटर कोर्स कर रही हूँ । मेरे साथ मेरी 2 सहेलियाँ कविता

और आँचल भी आपका ब्लाग पढती हैं ।
वैसे हमें आपके ब्लाग के बारे में " श्रीमान लल्लू चन्द रजत कुमार " ने ही बताया था । मैं 25 साल की हूँ । और वो 20 साल का है । बचपन में जब मैं 15 साल की थी । तब वो 10 साल का था । उस समय मैंने उसे खूब चपत लगायी हैं ।
आपका ब्लाग तारीफ़ के काबिल है । इसमे तो कोई 2 राय नहीं ।
मैं आपको आज राजपुरा घुमाती हूँ । राजपुरा " गेट वे आफ़ पंजाब " है । अगर पंजाब में दिल्ली की तरफ़ से आना हो । तो सबसे पहला शहर राजपुरा ही आता है । राजपुरा शहर छोटा है । लेकिन GT रोड के साथ साथ बसा होने के कारण इसकी भी 1 अपनी अहमियत है ।
वैसे सिर्फ़ अकेले राजपुरा का माहौल पंजाब के सभी अन्य शहरों से अलग है । राजपुरा में हिन्दी भाषी लोग अधिक है । क्युँ कि राजपुरा पंजाब के बिल्कुल बार्डर पर होने से यहाँ का माहौल हरियाणा या दिल्ली टायप का लगेगा । पंजाब में सिर्फ़ राजपुरा ही ऐसा है । जहाँ आकर आपको लगेगा कि ये पंजाब का एरिया नहीं लगता । पंजाब के बाकी शहरों में तो जाकर साफ़ नजर आ जाता है कि पंजाब आ गया ।
राजपुरा की तो बात ही निराली है । 
यहा हिन्दू लोग अधिक हैं । सिख लोग गिनती में बहुत कम हैं । लेकिन इसके बावजूद भी यहा हिन्दू और सिखों में कभी कोई झगङा नहीं हुआ । यहाँ हिन्दू और सिख ऐसे रहते हैं । जैसे भाई भाई हो । मुझे अभी भी याद है । साल 2007 में जब 1 नकली बाबा के अनुयाईयों और सिख भाईयों के बीच बहुत तनाव हो गया था । तब पंजाब के अलग अलग शहरों में कर्फ़्यू लग

गया था । लेकिन यहाँ राजपुरा में माहौल शान्त बना रहा । कुछ असामाजिक तत्वों ने ( जो गिनती मे कम थे ) शान्ति भंग करने के प्लान बनाये थे । जो बुरी तरह फ़ेल हो गये ।
राजपुरा में हिन्दू और सिखों में फ़ुल एकता है । राजपुरा का पचरंगा चौक मशहूर है । जहाँ से 5 अलग अलग रास्ते राजपुरा के अन्दर जाते हैं । हमारी कालोनी भी निराली है । हम सब " गाँधी कालोनी " में रहते है । पूरी कालोनी ही 1 बङे परिवार की तरह रहती है ।
राजपुरा में 1 ही कालेज है । पटेल कालेज । ये अकेला कालेज ही सब कमी पूरा कर देता है । पुराना और अच्छी संस्था से जुङा होने के कारण इस कालेज की इमेज अच्छी है । शहर से थोङा सा बाहर होने के कारण वहाँ का माहौल सुनसान

और शान्त है । कालेज का एरिया भी बहुत है । खेल का मैदान भी बहुत बङा है । वैसे अक्सर छोटे शहरों में इतना बडा कालेज नहीं होता । ये भी नोट करने वाला पाइन्ट है । हमारा पटेल कालेज अन्य शहरों के किसी भी कालेज को टक्कर दे सकता है । यहाँ के बच्चे ( पटेल कालेज के ) पढाई के साथ साथ खेलों में भी पूरी दिलचस्पी लेते हैं ।
बस सुभाष और रजत ही खेल में दिलचस्पी नहीं लेते । अभी ये दोनों नन्हें मुन्ने हैं । राजपुरा में कालेज तो 1 है । लेकिन स्कूल बहुत हैं । यहाँ हिन्दी मीडियम स्कूल बहुत हैं । पंजाबी मीडियम स्कूल भी अलग से हैं । सिर्फ़ लङकियों का स्कूल भी है । और सिर्फ़ लडकों का स्कूल भी अलग से है । यहा C.B.S.E स्कूल भी है । और पंजाब बोर्ड स्कूल भी है । ईसाईयों के I.C.S.E स्कूल भी हैं । यहाँ तक कि यहाँ पर आर्य समाजी स्कूल भी है ।

1 छोटे शहर में इतने किस्म के स्कूल । ये भी नोट करने वाली बात है ।
लेकिन मुझे सिर्फ़ 1 बात अखरती है । यहाँ का जो ईसाईयों का स्कूल है । जिसका नाम है " होली एंजिल " जिसको कुछ लोग राजपुरा का न. 1 स्कूल मानते हैं । उस स्कूल में हमारे पडोसी के बच्चे पढते हैं । उस स्कूल को चलाने वाली संस्था बेसिकली केरला राज्य की किसी बङी संस्था की ब्राँच है । इस स्कूल का मुख्य स्टाफ़ भी ईसाई ( दक्षिण भारतीय हिन्दूओं से ईसाई बने हुये ) हैं ।
इस स्कूल में 1 खास नियम है । यहाँ हिन्दी बोलना मना है । सिर्फ़ हिन्दी भाषा के पीरियड में ही हिन्दी बोली जा सकती है । अगर इसके अलावा किसी बच्चे को हिन्दी बोलते सुना गया । तो उसे जुर्माना लगता है । हिन्दी का 1 शब्द और 5 रूपये जुर्माना । बस ये 1 बात मुझे अखरती है ।
क्यूँ भई हिन्दुस्तान में हिन्दुस्तान के बच्चों को हिन्दी बोलने पर जुर्माना । उस स्कूल में हिन्दू भी । और कुछ सिख भी अपने बच्चों को शान से पढने को भेजते हैं । मैं मानती हूँ कि आज के समय, काल और स्थिति के हिसाब से अंग्रेजी भाषा महत्वपूर्ण है । ये अब इंटरनेशनल भाषा है । कम्प्यूटर में भी इसका उपयोग है । और कई अन्य जगह भी ।
लेकिन क्या हिन्दी भाषा बोलने पर जुर्माना लगा देने से । या हिन्दी भाषा पर रोक लगा देने से । या हिन्दी भाषा को बैन कर देने से राजपुरा " मुम्बई " बन जायेगा ?

अब अन्त में 1 बात और पूछनी थी । कुछ दिन पहले सुभाष कह रहा था कि शायद 15 जुलाई या शायद 20 जुलाई कहा था उसने । उसने कहा था कि इस तारीख के बाद सभी पाठकों को एक के बाद एक कई प्रेत कहानियाँ पढने को मिलेंगी । क्या ये सच है ?
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नमस्कारम ! स्वागतम ! सुरेखा जी..सत्यकीखोज पर प्रथम शुभ आगमन पर आपका कविता जी और आँचल जी का बहुत बहुत स्वागत है । आप लोगों से मिलकर बहुत खुशी हुयी ।
- आप कहाँ कम्प्यूटर का प्रायवेट कोर्स करने में टाइम वेस्ट कर रही हैं । आपको तो TV चैनल का रिपोर्टर । ऐंकर । या रेडियो जाकी होना चाहिये । क्या रिपोर्टिंग की है - वाओ ।
- बस एक ही कमी रह गयी । रजत जी पर प्यार की वारिश ( चपत ) करने की एक फ़ोटो भी होती । तो लाइव टेलीकास्ट ही हो जाता । लाइव का जमाना है भई ।
हिन्दी बोलने पर जुर्माना - मेरा नजरिया इस बारे में थोङा अलग है । किसी भी स्कूल की प्रतिष्ठा उसके कङे

अनुशासन पर भी निर्भर है । आप विश्व के किसी भी कोने में यहाँ तक बिलकुल अलग थलग दूर दीपों में आदिवासी लोगों में भी जाईये । तो वहाँ भी इंगलिश के कुछ शब्द बोलने वाले अवश्य मिल जायेंगे । इस तरह इंगलिश पूरी प्रथ्वी पर ( भले ही उसका कोई भी कारण हो ) महत्वपूर्ण भाषा है ।
अब सोचिये - English हमारी मातृभाषा तो है नहीं । जो हमें उसकी अच्छी प्रेक्टिस बिना प्रयास ही होती रहेगी । अतः किसी भी इंगलिश मीडियम स्कूल की प्रतिष्ठा उसके द्वारा एक अच्छा छात्र निर्माण करने पर ही होती है । बच्चे ( और अभिभावक भी ) जुर्माना का सख्त नियम होने पर अधिक से अधिक इंगलिश का प्रयोग करेंगे । हालांकि शुरू में कुछ अटपटा ( हमारी मातृभाषा न होने से ) लगेगा । फ़िर वे इंगलिश बोलने में निपुण हो जायेंगे । इस तरह एक परायी मगर अंतर्राष्ट्रीय भाषा वे कङे नियम के चलते आसानी से सीख लेंगे ।
इसमें कोई दिक्कत वाली गलत बात मुझे इसलिये नहीं लगती । क्योंकि स्कूल से बाहर घर परिवार समाज आदि में उन्हें हिन्दी या अपनी बोली भरपूर रूप से मिलेगी । इस तरह वे दोनों भाषाओं में निपुण हो जायेंगे । वास्तव में किसी भी इंगलिश मीडियम में अभिभावकों द्वारा पढाने का एक मुख्य ध्येय यह भी होता है । इसलिये इसमें मेरी दृष्टि में कुछ अनुचित नहीं है ।

कङे अनुशासन का महत्व - जब इस तरह की बात छिङ ही गयी है । तो आपसे कुछ अपने अनुभव भी शेयर करता हूँ । जिनसे आपको एक स्वच्छ अनुशासित समाज देश बनाने की प्रेरणा मिलेगी ।
मैं जिस स्थान पर रहता हूँ । इसको गाँव के नाम से पुकारा जाता है । यहाँ पहले गाँव ही बसा था । पर अब एक आधुनिक कालोनी भी है । इस तरह गाँव और शहर के लोग आपस में मिले हुये हैं । और दोनों ही सभ्यताओं का सुन्दर समन्वय है ।
- हमारे मकान में एक किरायेदार बाहर से आये थे । वे अपने को शहरी मानते हुये नक्शेबाजी दिखाते थे । पुराने ग्रामीण स्वभाव के अनुसार अभी भी बहुत औरतें खुले में झाङियों के पीछे शौच को जाती हैं । ये मि. नक्शेबाज छत पर खङे उनको शौच के समय देखते रहे । उनमें एक बुजुर्ग और एक युवा महिला थी ।
शौच के बाद वह दोनों महिलायें हमारे घर आयी । उन्होंने लङके को प्यार से बुलाया । और बेहद बुजुर्ग महिला ने बिना किसी चेतावनी के बिना कुछ बोले सबके सामने एक भरपूर थप्पङ मि. नक्शेबाज के गाल पर मारा । और तब बात बतायी । उस दिन के बाद मि. नक्शेबाज शौच जैसे समय छोङो । साधारण समय में भी महिलाओं के प्रति सभी कायदे सीख गये ।

- हमारे यहाँ यदि कोई बाहरी अनजान व्यक्ति किसी से झगङा करे । या शहरी सभ्यता के अनुसार महिलाओं पर अश्लील छींटाकसी करे । तो बिना पिटे नहीं जा सकता । इस तरह की एकता बहुत है ।
- इसी तरह की एक घटना स्वयँ मेरे और मेरे दोस्त ग्यानू के साथ घटी थी । हम भी गाँव के इस नियम को नहीं जानते थे । और एक गाँव में गये हुये थे । तथा शौच के लिये चलते रास्ते के पास ही खेत में बैठ गये थे । तब वहाँ से गुजरती हुयी दो युवा महिलाओं में से एक ने कहा - जिजी ईंट देतूँ हूँ जाके खोपङे में ( जीजी अभी इसके सिर में ईंट मारती हूँ )
तब दूसरी जो कुछ कुछ शहरी लोगों की इस अनभिग्यता को जानती समझती थी । उसने कहा - ये जानबूझ कर ऐसा नहीं कर रहे । बल्कि ये हमारे ग्रामीण नियम मर्यादा को नहीं जानते हैं ।
तब वे दोनों मुँह फ़ेरकर चली गयीं । लेकिन उनकी जोर से कही बात हमने सुन ली थी । और हम दोनों को ही अपनी गलती न होते हुये भी गलती का अहसास हुआ । तबसे आज तक जब भी हम किसी नयी जगह या नया ढंग अपनाना होता है । तो सावधानी बरतते हैं । इस तरह हमें उस दिन उन महिलाओं ने बहुत अच्छी सीख दी ।
- इसी तरह की एक प्रेरक घटना और बताना चाहूँगा । क्योंकि ये बीमारी समाज में आम है ।
मेरा एक दोस्त अजीत यादव सुनील शेट्टी का फ़ैन । उसी जैसा स्टायली । उसी जैसा हट्टा कट्टा । जिम जाने

वाला । तगङा फ़ौजी जवान जैसा है । स्वाभाविक है । सबका दादा भाई है । अजीत की माँ जी किन्ही एक अन्य महिला के साथ सङक से जा रही थीं । तब एक सङक छाप दादा इन गुजरती महिलाओं की परवाह किये बिना माँ बहन की गालियों जैसे भद्दे शब्दों का प्रयोग करते हुये जोर जोर से बात कर रहा था ।
अजीत की माँ जी ने कहा - बेटा ! गालियाँ क्यों दे रहे हो । लेडीज का तो ख्याल किया करो ।
इस पर वह बोला - आँटी जी आपको क्या मतलब । आप चुपचाप जाईये ना ।
माँ जी चुपचाप ही चली गयीं । वे ऐसी बातें अजीत को कभी नहीं बताती थीं । क्योंकि वे भलीभांति उसका परिणाम जानती थीं
फ़िर भी अजीत तक यह बात पहुँच गयी । एक मिनट की भी देर किये बिना उसने लङके को खोज लिया । और रास्ते में लगे समय के तुरन्त बाद - उस लङके के सामने । वह लङका उस समय बाजार में एक टेलर की दुकान पर बाहर ही खङा था । अजीत के एक ही मुक्के में वह एकदम लट्टू की तरह घूमता हुआ दुकान से  सङक पर आ गया । फ़िर उस दिन बाजार की तमाम पब्लिक ने एक रियल हीरो द्वारा एक रियल विलेन की वो भरपूर धुनाई देखी कि अक्षय कुमार की फ़िल्में फ़ीकी हो गयीं । अजीत ने कितने लात घूँसे मारे । गिनना मुश्किल था । हालांकि पुलिस पास ही मौजूद थी । पर हीरो का गुस्सा देखकर किसी की हिम्मत नहीं पङी । विलेन सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था । और घोर अपमान से पीला पङ गया था । उसके द्वारा पलटवार तो बहुत दूर । वह बेचारा एक चोट को सहला नहीं पाता । तब तक दूसरा भीषण प्रहार ( जोरदार लात पङती ) उस पर हो जाता ।

वह विलेन लङका भी इतना गया गुजरा नहीं था । और बेहद जख्मी हालत में था । उसके परिवार द्वारा अजीत के खिलाफ़ नामजद रिपोर्ट हुयी । पूरे शहर में यह खबर बिजली की तरह फ़ैल गयी । पर इस सबसे बेखबर अजीत घर में घोङे बेचकर सो रहा था । मानों उसने कुछ किया ही न हो ।
स्वयँ दरोगा बाइक पर इस " भाई " ( अजीत ) को अरेस्ट करने आया । पर जैसे ही उसे पता चला कि - यादव जी का लङका है । उसके सब अरमान ठंडे पङ गये । उसने सिर्फ़ एक चाय पी । जबकि वह मालपानी की सोचकर आया था
फ़िर दरोगा जी ने कहा - यादव जी ! आपका लङका जवान है । इसे थोङा कंट्रोल में रखिये । एक बार यदि इसका जूता चल गया । तो फ़िर संभालना मुश्किल होगा ।
खैर..बताने की आवश्यकता नहीं । बे बात गाली देने वाले भाई साहब हमेशा के लिये सुधर गये । आप सोच रहे होंगे । अजीत कोई भाई टायप भाई है । सच तो ये है कि - वो बहुत सीधा है । और छोटे बच्चों तक से प्यार से बोलता है । महिलाओं और बुजुर्गों का बेहद सम्मान करता है । उसे सहज में गुस्सा नहीं आता । पर जब आता है तब - बाप रे बाप । उसे कंट्रोल करना - इम्पासिबल ।
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आज सङक पर छींटाकसी करने वाले । सभ्य समाज में रहती इस गन्दगी को साफ़ करने के लिये ऐसे ही नौजवानों द्वारा कदम उठाने की आवश्यकता है ।
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प्रेत कहानियाँ - ये सच है । अब मैं 20 जुलाई से फ़्री ही हूँ । अतः आप सबकी बहुत माँग पर प्रेत कहानियाँ लगातार देने की कोशिश करूँगा । अन्त में आप सभी का बहुत बहुत आभार । हेव अ नाइस डे ।

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