हैलो जी ! हैलो ! हैलो ! क्या हाल हैं सर ? मेरा नाम अम्बर धारीवाल है । मैं गोआ में रहता हु । मैं नेवी में कमान्डर हूँ । मुझे आपके बारे में सुशील जी ने बताया था । मैं सुशील जी का रिश्तेदार हूँ । सुशील जी पिछ्ले हफ़्ते गोआ आये थे । तब हमने रात को समुन्दर के किनारे बैठकर बीयर पी । तब सुशील जी ने आपके ब्लाग के बारे में बताया । और आपकी बहुत तारीफ़ की ।
मुझे बङी जिग्यासा हुई । उनकी बातें सुनकर । इसलिये मैं अपने आपको रोक नहीं पाया । और आपके ब्लाग पर श्रीगणेश कर दिया । मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि - अगर कोई आदमी है । क्या वो अगले मनुष्य जनम में औरत बन सकता है । अगर कोई औरत है । तो क्या वो अगले मनु्ष्य जनम में आदमी बन सकती है । क्या ये सम्भव है ?
मैं ये भी जानना चाहता हूँ कि - क्या हम जैसा सोचते हैं । वैसा ही धीरे धीरे अन्दर से बनते चले जाते हैं । कहते हैं कि पहले विचार पैदा होता है । बाद में एक्शन में चेन्ज होता है । तो क्या इस तरह हमारी जैसी सोच होती है । हम वैसा ही बनते चले जाते हैं । सोच के बदलने से हम भी बदल जाते हैं । लेकिन सही जमीन ( समय ) मिलने पर उस सोच रूपी संस्कार को फ़ूलने फ़लने का मौका मिल जाता है । इस तरह इंसान कर्म योनि होने के कारण जैसा चाहे बन सकता है । क्या इंसान के अलावा और कोई योनि कर्म योनि नहीं है । क्या देवता लोग भी भोग योनि के अन्दर ही
आते हैं । क्या देवता या अन्य अलौकिक सूक्ष्म योनियाँ ( चाहे प्रेत हो या दिव्य योनियाँ ) भी कर्म योनि नहीं है । क्या वो सब भी भोग योनियों में आती हैं । प्लीज इन सब बातों के बारे में खुलकर समझा दीजिये । इन बातों को भी जरा खोलकर समझा दीजिये - जहाँ आसा । वहाँ वासा और जैसी मति । वैसी गति । धन्यवाद ।
***************
सत श्री अकाल धारीवाल जी ! सत्यकीखोज पर प्रथम आगमन पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपसे मिलकर बेहद खुशी हुयी । आपके बारे में जानकर अच्छा लगा । सुशील जी का बहुत बहुत धन्यवाद । जो उन्होंने आपसे मिलाया । गोआ वास्तव में इंडिया का खूबसूरत शहर है । आधा हिंदी आधा इंगलिश है भी । और नाम भी गोआ । यानी जा और आ । मतलब गोआ आने जाने को बारबार दिल करे । ऐसा ही है - गोआ । चलिये आप जैसी शानदार पर्सनालिटी से शानदार बातचीत का आरम्भ करते हैं ।
1 - अगर कोई आदमी है । क्या वो अगले मनुष्य जनम में औरत बन सकता है । अगर कोई औरत है । तो क्या वो अगले मनु्ष्य जनम में आदमी बन सकती है । क्या ये सम्भव है ?
- औरत का आदमी और आदमी का औरत अगले जन्मों में बनना ये लिंग परिवर्तन की एक बेहद जटिल और उलझी हुयी प्रक्रिया है । जो यकायक होना असंभव ही है । यहाँ में मूल परिवर्तन होने की बात कर रहा हूँ । वैसे छदम रूप में विभिन्न योग शक्तियाँ इस तरह का शरीर बदल लेती हैं । जिसका सबसे बङा उदाहरण भगवान विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण करना था । पर वह बनाबटी मामला होता है ।
हर शरीर के अन्दर एक स्त्री और एक पुरुष दोनों ही होते हैं । पर सामान्य अवस्था में यह % 15 और 85 के लगभग अनुपात में होता है । यानी एक पुरुष में 15 % स्त्री 85 % पुरुष । इसी तरह एक स्त्री में 15 % पुरुष और 85 % स्त्री । ये बात आप किसी के स्वभाव में विपरीत गुण से सरलता से अनुभव कर सकते हैं । अब क्योंकि ये प्रक्रिया लाखों जन्म उपरान्त हो पाती है । अतः % की ये दर 1 - 1 बिंदु पर बदलती है । और इस घनचक्करी लीला में सामान्य को छोङकर फ़िर बदलाव प्रक्रिया से गुजर रहे जीवों का अनुपात अलग अलग होता चला जाता है । 16/84..17/83..46/54 etc
और इसको किसी भी स्त्री में पुरुष % गुण स्वभाव का समावेश होना । और किसी पुरुष में स्त्री % गुण स्वभाव आदि का समावेश होना । यदि हम बारीकी से देखें । तो स्पष्ट पता चल जाता है ।
समलैंगिकता की भी एक मुख्य वजह यह भी होती है । किसी पुरुष के अन्दर यह स्त्री इच्छा जागृत होना कि आखिर सम्भोग के समय स्त्री कैसा फ़ील करती है । वह कुछ हद तक इसका अनुभव अप्राकृतिक गुदा मैथुन द्वारा महसूस करता है । दूसरे बहुत स्त्रियों को भी यह पुरुष भावना हो जाती है कि आखिर ये ऊँट सवारी सी करता हुआ पुरुष क्या फ़ील करता है । तब वे कृतिम लिंगों की बेल्ट पहनकर इस भावना को महसूस करने की कोशिश करती हैं ।
ये तो हुयी कामभावना वाली मुख्य बात । इसके अतिरिक्त भी बहुत सी स्वभाव गत चीजें ऐसी हैं । जिनको आज के समय में स्पष्ट देखा जा सकता है । जैसे महिलाओं पुरुषों का एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश । पुरुष खाना अचार मसाले आदि स्त्रियोचित विषयों में निपुण हैं । और स्त्रियाँ तमाम पुरुषोचित कार्यों में । किसी पुरुष को स्त्रियों जैसा मेकअप लुभाता है । तो कोई स्त्री पुरुष जैसा रफ़ टफ़ नजर आती है ।
इस तरह जव ये गुण और स्वभाव का % चेतना में घुलकर सही स्तर पर पहुँच जाता है । तब लिंग परिवर्तन हो जाता है । इस तरह ऊपर बताये गये % का लेवल घट बङ होता रहता है ।
अगर लिंग योनि की बनावट पर आपने गौर किया हो । तो वो समान है । अगर आप लिंग को एक बैलून मानें । तो ये जो बाहर बेलानाकार है । इसी को बैलून के छेद के बजाय दूसरे कोने से पेंसिल आदि से बीच में दबाया जाये । और पुरुष शरीर में अन्दर कर दिया जाये । तो यही योनि बन जायेगी । और अण्डकोष को अन्दर एडजस्ट कर दिया जाये । तो वो गर्भाशय । इस तरह दोनों एक ही हैं । मैं कहता हूँ ना । सेक्स एकदम फ़ालतू मैटर ।
2 - क्या हम जैसा सोचते हैं । वैसा ही धीरे धीरे अन्दर से बनते चले जाते हैं....जमीन ( समय ) मिलने पर उस सोच रूपी संस्कार को फ़ूलने फ़लने का मौका मिल जाता है । इस तरह इंसान कर्म योनि होने के कारण जैसा चाहे बन सकता है ।
- आपने एकदम सही कहा । इसका उत्तर मैं आपको प्रेक्टीकल रूप में देता हूँ । आप अपना रियल अस्तित्व एक घने बर्फ़ीले कोहरे के रूप में कल्पना करिये । जिसको आत्मा से चेतना प्राप्त होती है । ये आत्मा से जुङा अदृश्य प्रकृति रूपी मैटर है । अब इस कोहरे में आप विभिन्न रंगों का गुलाल ( यहाँ गुण कर्म आदि ) उछालिये । जाहिर है । कोहरा रंगों से मिलकर रंगीन हो जायेगा । इसकी खासियत ये होती है कि आपके उछाले गये अलग अलग रंग घनीभूत होकर अलग अलग कर्मफ़ल रूपी संस्कारी बीज का निर्माण कर देते हैं । और जैसा कि आपने सही कहा कि जमीन मिलने पर संस्कार रूपी बीज उत्पन्न होकर फ़लने लगता है । मतलब आपके दयालु विचार हैं । तब तक दयालु टायप बीज अंकुरित होकर फ़लते फ़ूलते हैं । जैसे ही आपकी विचारधारा किसी भी वजह से बदलती है । तब वैसे बीज फ़ूलने लगते हैं । मिश्रित मामला भी होता है ।
इसका सबसे बङा उदाहरण भीष्म पितामह का है । उन्हें अपने उच्च संस्कारों के चलते जीवन में कोई कष्ट नहीं हुआ । पर धृतराष्ट की अनीतियों को विवशता से मानना । और उनके सामने द्रोपदी का नंगा किया जाना आदि वे परिस्थितियों वश देखते रहे । और उनके पापकर्म का बीज फ़लित हो गया । तब उन्हें शरशैय्या का पीङादायी कष्ट भोगना पङा । ये मैटर विस्तार से जानने के लिये " मेरी ऐसी गति क्यों हुयी " लेख आप इन्हीं ब्लाग में देखें ।
3 - क्या इंसान के अलावा और कोई योनि कर्म योनि नहीं है । क्या देवता लोग भी भोग योनि के अन्दर ही आते हैं । क्या देवता या अन्य अलौकिक सूक्ष्म योनियाँ ( चाहे प्रेत हो या दिव्य योनियाँ ) भी कर्म योनि नहीं है ।
- यहाँ पहले आप कर्मयोनि शब्द का सही अर्थ समझ लें । हालांकि आप और बहुत लोग इसको जानते भी होंगे । लेकिन अन्य अनजान पाठकों के हितार्थ बताना ठीक ही है । कर्मयोनि से तात्पर्य होकर यह ध्वनि नहीं निकलती कि कर्मयोनि न होने से कोई कार्य नहीं करना होगा । ठाले बैठे मुफ़्त की खाओ । ऐसा नहीं है । देवता से लेकर एक बहुत छोटी सी चींटी तक का कर्म निर्धारित है । सिर्फ़ आत्मा या परमात्मा ये कोई कर्म नहीं करते । बाकी बङी से बङी शक्ति को अपनी डयूटी बङे सख्त नियम के अधीन करनी होती है ।
यहाँ कर्मयोनि से आशय ये है कि - मनुष्य को छोङकर बाकी कोई भी योनि वाला कर्मफ़ल द्वारा अपनी गति या
स्थिति में बदलाव नहीं कर सकता । लेकिन मनुष्य ऐसा कर सकता है । इसलिये इसका बेहद महत्व है । ये सबसे शक्तिशाली आत्मा या आत्मरूप को मनुष्य शरीर के रहते प्राप्त कर सकता है । और शेष सभी भोग योनियाँ ही हैं ।
4 - जहाँ आसा । वहाँ वासा और जैसी मति । वैसी गति ।
- ये तो बङी साधारण सी बात है । पहले आपकी इच्छा से आशा बन जाती है । फ़िर आप अपने आशा महल को सृजन भी कर लेते हो । यह बात हर चीज में हर जगह लागू होती है । पूरा खेल ही आसा वासा पर डिपेंड है । बस जीवन को गौर से देखिये । ये उत्तर हर जगह मौजूद है ।
मति से गति भी सरल है । अपराध मति है । तो जेल ही होगी । और उच्च मति है । तो फ़िर तदनुसार गति होगी ही । किस्मत शब्द का मतलब ही यह है कि - आप किस - मत के हो । वही आपकी किस्मत हो जायेगी ।
बस मति गति का गणित और परमात्मा का कानून जानना अनिर्वाय है । भक्ति की मति हुयी । तो भक्ति अनुसार मोक्ष या स्वर्ग आदि । पशुवत मति रही - तो फ़िर कानून अनुसार 84
मुझे बङी जिग्यासा हुई । उनकी बातें सुनकर । इसलिये मैं अपने आपको रोक नहीं पाया । और आपके ब्लाग पर श्रीगणेश कर दिया । मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि - अगर कोई आदमी है । क्या वो अगले मनुष्य जनम में औरत बन सकता है । अगर कोई औरत है । तो क्या वो अगले मनु्ष्य जनम में आदमी बन सकती है । क्या ये सम्भव है ?
मैं ये भी जानना चाहता हूँ कि - क्या हम जैसा सोचते हैं । वैसा ही धीरे धीरे अन्दर से बनते चले जाते हैं । कहते हैं कि पहले विचार पैदा होता है । बाद में एक्शन में चेन्ज होता है । तो क्या इस तरह हमारी जैसी सोच होती है । हम वैसा ही बनते चले जाते हैं । सोच के बदलने से हम भी बदल जाते हैं । लेकिन सही जमीन ( समय ) मिलने पर उस सोच रूपी संस्कार को फ़ूलने फ़लने का मौका मिल जाता है । इस तरह इंसान कर्म योनि होने के कारण जैसा चाहे बन सकता है । क्या इंसान के अलावा और कोई योनि कर्म योनि नहीं है । क्या देवता लोग भी भोग योनि के अन्दर ही
आते हैं । क्या देवता या अन्य अलौकिक सूक्ष्म योनियाँ ( चाहे प्रेत हो या दिव्य योनियाँ ) भी कर्म योनि नहीं है । क्या वो सब भी भोग योनियों में आती हैं । प्लीज इन सब बातों के बारे में खुलकर समझा दीजिये । इन बातों को भी जरा खोलकर समझा दीजिये - जहाँ आसा । वहाँ वासा और जैसी मति । वैसी गति । धन्यवाद ।
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सत श्री अकाल धारीवाल जी ! सत्यकीखोज पर प्रथम आगमन पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपसे मिलकर बेहद खुशी हुयी । आपके बारे में जानकर अच्छा लगा । सुशील जी का बहुत बहुत धन्यवाद । जो उन्होंने आपसे मिलाया । गोआ वास्तव में इंडिया का खूबसूरत शहर है । आधा हिंदी आधा इंगलिश है भी । और नाम भी गोआ । यानी जा और आ । मतलब गोआ आने जाने को बारबार दिल करे । ऐसा ही है - गोआ । चलिये आप जैसी शानदार पर्सनालिटी से शानदार बातचीत का आरम्भ करते हैं ।
1 - अगर कोई आदमी है । क्या वो अगले मनुष्य जनम में औरत बन सकता है । अगर कोई औरत है । तो क्या वो अगले मनु्ष्य जनम में आदमी बन सकती है । क्या ये सम्भव है ?
- औरत का आदमी और आदमी का औरत अगले जन्मों में बनना ये लिंग परिवर्तन की एक बेहद जटिल और उलझी हुयी प्रक्रिया है । जो यकायक होना असंभव ही है । यहाँ में मूल परिवर्तन होने की बात कर रहा हूँ । वैसे छदम रूप में विभिन्न योग शक्तियाँ इस तरह का शरीर बदल लेती हैं । जिसका सबसे बङा उदाहरण भगवान विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण करना था । पर वह बनाबटी मामला होता है ।
हर शरीर के अन्दर एक स्त्री और एक पुरुष दोनों ही होते हैं । पर सामान्य अवस्था में यह % 15 और 85 के लगभग अनुपात में होता है । यानी एक पुरुष में 15 % स्त्री 85 % पुरुष । इसी तरह एक स्त्री में 15 % पुरुष और 85 % स्त्री । ये बात आप किसी के स्वभाव में विपरीत गुण से सरलता से अनुभव कर सकते हैं । अब क्योंकि ये प्रक्रिया लाखों जन्म उपरान्त हो पाती है । अतः % की ये दर 1 - 1 बिंदु पर बदलती है । और इस घनचक्करी लीला में सामान्य को छोङकर फ़िर बदलाव प्रक्रिया से गुजर रहे जीवों का अनुपात अलग अलग होता चला जाता है । 16/84..17/83..46/54 etc
और इसको किसी भी स्त्री में पुरुष % गुण स्वभाव का समावेश होना । और किसी पुरुष में स्त्री % गुण स्वभाव आदि का समावेश होना । यदि हम बारीकी से देखें । तो स्पष्ट पता चल जाता है ।
समलैंगिकता की भी एक मुख्य वजह यह भी होती है । किसी पुरुष के अन्दर यह स्त्री इच्छा जागृत होना कि आखिर सम्भोग के समय स्त्री कैसा फ़ील करती है । वह कुछ हद तक इसका अनुभव अप्राकृतिक गुदा मैथुन द्वारा महसूस करता है । दूसरे बहुत स्त्रियों को भी यह पुरुष भावना हो जाती है कि आखिर ये ऊँट सवारी सी करता हुआ पुरुष क्या फ़ील करता है । तब वे कृतिम लिंगों की बेल्ट पहनकर इस भावना को महसूस करने की कोशिश करती हैं ।
ये तो हुयी कामभावना वाली मुख्य बात । इसके अतिरिक्त भी बहुत सी स्वभाव गत चीजें ऐसी हैं । जिनको आज के समय में स्पष्ट देखा जा सकता है । जैसे महिलाओं पुरुषों का एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश । पुरुष खाना अचार मसाले आदि स्त्रियोचित विषयों में निपुण हैं । और स्त्रियाँ तमाम पुरुषोचित कार्यों में । किसी पुरुष को स्त्रियों जैसा मेकअप लुभाता है । तो कोई स्त्री पुरुष जैसा रफ़ टफ़ नजर आती है ।
इस तरह जव ये गुण और स्वभाव का % चेतना में घुलकर सही स्तर पर पहुँच जाता है । तब लिंग परिवर्तन हो जाता है । इस तरह ऊपर बताये गये % का लेवल घट बङ होता रहता है ।
अगर लिंग योनि की बनावट पर आपने गौर किया हो । तो वो समान है । अगर आप लिंग को एक बैलून मानें । तो ये जो बाहर बेलानाकार है । इसी को बैलून के छेद के बजाय दूसरे कोने से पेंसिल आदि से बीच में दबाया जाये । और पुरुष शरीर में अन्दर कर दिया जाये । तो यही योनि बन जायेगी । और अण्डकोष को अन्दर एडजस्ट कर दिया जाये । तो वो गर्भाशय । इस तरह दोनों एक ही हैं । मैं कहता हूँ ना । सेक्स एकदम फ़ालतू मैटर ।
2 - क्या हम जैसा सोचते हैं । वैसा ही धीरे धीरे अन्दर से बनते चले जाते हैं....जमीन ( समय ) मिलने पर उस सोच रूपी संस्कार को फ़ूलने फ़लने का मौका मिल जाता है । इस तरह इंसान कर्म योनि होने के कारण जैसा चाहे बन सकता है ।
- आपने एकदम सही कहा । इसका उत्तर मैं आपको प्रेक्टीकल रूप में देता हूँ । आप अपना रियल अस्तित्व एक घने बर्फ़ीले कोहरे के रूप में कल्पना करिये । जिसको आत्मा से चेतना प्राप्त होती है । ये आत्मा से जुङा अदृश्य प्रकृति रूपी मैटर है । अब इस कोहरे में आप विभिन्न रंगों का गुलाल ( यहाँ गुण कर्म आदि ) उछालिये । जाहिर है । कोहरा रंगों से मिलकर रंगीन हो जायेगा । इसकी खासियत ये होती है कि आपके उछाले गये अलग अलग रंग घनीभूत होकर अलग अलग कर्मफ़ल रूपी संस्कारी बीज का निर्माण कर देते हैं । और जैसा कि आपने सही कहा कि जमीन मिलने पर संस्कार रूपी बीज उत्पन्न होकर फ़लने लगता है । मतलब आपके दयालु विचार हैं । तब तक दयालु टायप बीज अंकुरित होकर फ़लते फ़ूलते हैं । जैसे ही आपकी विचारधारा किसी भी वजह से बदलती है । तब वैसे बीज फ़ूलने लगते हैं । मिश्रित मामला भी होता है ।
इसका सबसे बङा उदाहरण भीष्म पितामह का है । उन्हें अपने उच्च संस्कारों के चलते जीवन में कोई कष्ट नहीं हुआ । पर धृतराष्ट की अनीतियों को विवशता से मानना । और उनके सामने द्रोपदी का नंगा किया जाना आदि वे परिस्थितियों वश देखते रहे । और उनके पापकर्म का बीज फ़लित हो गया । तब उन्हें शरशैय्या का पीङादायी कष्ट भोगना पङा । ये मैटर विस्तार से जानने के लिये " मेरी ऐसी गति क्यों हुयी " लेख आप इन्हीं ब्लाग में देखें ।
3 - क्या इंसान के अलावा और कोई योनि कर्म योनि नहीं है । क्या देवता लोग भी भोग योनि के अन्दर ही आते हैं । क्या देवता या अन्य अलौकिक सूक्ष्म योनियाँ ( चाहे प्रेत हो या दिव्य योनियाँ ) भी कर्म योनि नहीं है ।
- यहाँ पहले आप कर्मयोनि शब्द का सही अर्थ समझ लें । हालांकि आप और बहुत लोग इसको जानते भी होंगे । लेकिन अन्य अनजान पाठकों के हितार्थ बताना ठीक ही है । कर्मयोनि से तात्पर्य होकर यह ध्वनि नहीं निकलती कि कर्मयोनि न होने से कोई कार्य नहीं करना होगा । ठाले बैठे मुफ़्त की खाओ । ऐसा नहीं है । देवता से लेकर एक बहुत छोटी सी चींटी तक का कर्म निर्धारित है । सिर्फ़ आत्मा या परमात्मा ये कोई कर्म नहीं करते । बाकी बङी से बङी शक्ति को अपनी डयूटी बङे सख्त नियम के अधीन करनी होती है ।
यहाँ कर्मयोनि से आशय ये है कि - मनुष्य को छोङकर बाकी कोई भी योनि वाला कर्मफ़ल द्वारा अपनी गति या
स्थिति में बदलाव नहीं कर सकता । लेकिन मनुष्य ऐसा कर सकता है । इसलिये इसका बेहद महत्व है । ये सबसे शक्तिशाली आत्मा या आत्मरूप को मनुष्य शरीर के रहते प्राप्त कर सकता है । और शेष सभी भोग योनियाँ ही हैं ।
4 - जहाँ आसा । वहाँ वासा और जैसी मति । वैसी गति ।
- ये तो बङी साधारण सी बात है । पहले आपकी इच्छा से आशा बन जाती है । फ़िर आप अपने आशा महल को सृजन भी कर लेते हो । यह बात हर चीज में हर जगह लागू होती है । पूरा खेल ही आसा वासा पर डिपेंड है । बस जीवन को गौर से देखिये । ये उत्तर हर जगह मौजूद है ।
मति से गति भी सरल है । अपराध मति है । तो जेल ही होगी । और उच्च मति है । तो फ़िर तदनुसार गति होगी ही । किस्मत शब्द का मतलब ही यह है कि - आप किस - मत के हो । वही आपकी किस्मत हो जायेगी ।
बस मति गति का गणित और परमात्मा का कानून जानना अनिर्वाय है । भक्ति की मति हुयी । तो भक्ति अनुसार मोक्ष या स्वर्ग आदि । पशुवत मति रही - तो फ़िर कानून अनुसार 84
1 टिप्पणी:
Mai aurat banna chahta hoo.. Ek beti,ek patni,ek bahu,ek maa banna chahta hoo.. Kya yeah sambhav hai???
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