07 जुलाई 2011

अभिवादनों में छिपे गूढ रहस्य

इस सृष्टि के कण कण में रहस्य छुपा हुआ है । और ईश्वरीय सत्ता ने बङे सूझबूझ के साथ प्रत्येक चीज का ताना बाना बुना है । लेकिन अग्यानता के कारण बहुत लोग मुख्य और सूक्ष्म बातों को भूलकर स्थूलता को ही सर्वोपरि मानने लगे ।
साधारण माने जाने वाले अभिवादन के शब्द - राम राम । जय राम जी की । सीताराम । जय सियाराम । राधेश्याम । राधे राधे । जय श्रीकृष्ण । सतनाम वाहिगुरु । सत श्री अकाल । नमस्ते...ये जन्म से लेकर मृत्यु तक कहे जाते हैं ।
मृत्यु के बाद शवयात्रा के समय कही जाने वाली हिन्दू धर्म की चौपाई - राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्ति है ..तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है । बस इसका सही भाव समझना आवश्यक है ।
मुसलमान और ईसाई धर्म में मुझे बारीकी से पता नहीं कि वे लोग इस तरह के अभिवादन हेतु शायद कुछ और शब्द प्रयोग करते हों । सलाम वालेकुम और

खुदा हाफ़िज या अल्लाह हाफ़िज के प्रयोग मैंने अक्सर सुने हैं । वालेकुम शब्द के सही अर्थ से भी मैं अनजान हूँ । पर हाफ़िज का अर्थ मेरी नालेज में रखवाला है ।
ईसाई लोग या अंग्रेज या विश्व की बहुत सी जगहों पर गुड मार्निंग या नाइट या नून ईवनिंग आदि कहने का प्रचलन ही मुझे पता है । जिसे हिन्दी में शुभ प्रभात या शुभ रात्रि कहा जाता है ।
बाकी इसके लिये वे ईश्वरीय सत्ता से जुङा क्या अभिवादन प्रयोग करते हैं ? इसका मुझे नहीं पता ।
तो आईये । शुरू करते हैं । राम राम से । इसके लिये पहले " राम " को जानिये
केवल चार लाइनों में पहुँचे हुये सन्तों ने ये दुर्लभ रहस्य सरलता से बता दिया है । वे चार लाइनें ये हैं -

जग में 4 राम हैं । 3 सकल व्यवहार ।
चौथा राम निज सार है । ताको करो विचार ।
एक 1 राम दशरथ का बेटा । एक 1 राम घट घट में बैठा ।
एक 1 राम का सकल पसारा । एक 1 राम है सबसे न्यारा ।
अब इसका सही अर्थ - जग में 4 राम हैं । 3 सकल व्यवहार ।
इस संसार में 4 राम हैं । जिनमें से 3 व्यवहार या चलन में हैं । मतलब हम उनसे परिचित हैं । लेकिन -
चौथा राम निज सार है । ताको करो विचार ।
जो इन सबसे अलग चौथा राम हैं । उसी से हमें वास्तविक मतलब है । अतः उसका ही विचार करें ।
एक 1 राम दशरथ का बेटा । एक 1 राम घट घट में बैठा
राजा दशरथ के पुत्र 1 राम को तो लगभग विश्व में सभी जानते हैं । और अग्यानता वश इन्हें ही सब कुछ मानते भी हैं । एक 1 राम घट घट में यानी प्रत्येक शरीर में चेतन या रमता ( गतिशीलता ) रूप में मौजूद हैं । अध्यात्म की तकनीकी
भाषा में इसको ररंकार कहा जाता है । हमारे शरीर की प्रत्येक हरकत क्रिया इसी ररंकार की चेतन ऊर्जा से

संचालित हैं । और स्वयँ ररंकार को ये ऊर्जा नाम ( वास्तविक शब्द ) से प्राप्त होती है ।
एक 1 राम का सकल पसारा ।
एक 1 राम जो अखिल सृष्टि में व्यापक है । जिसको कण कण में समाया बोलते हैं । और उसी चेतना से क्रियाशील होती जङ प्रकृति माया के परदे पर इस सृष्टि को बनाती बिगाङती रहती है । अर्थात परिवर्तन करती रहती है ।
एक 1 राम है सबसे न्यारा ।
विशेष - यही वो " राम " हैं । जिसको जानने से वास्तविक लाभ होता है । अतः हमारे समस्त भाव समस्त जिग्यासाएं इन्हीं पर केन्द्रित होनी चाहिये । मेरे ब्लाग्स के सभी लेखों का प्रमुख केन्द्र बिन्दु यही हैं । जो सभी ग्यात अग्यात अखिल सृष्टि के मालिक हैं ।
अब आईये " राम राम " अभिवादन का रहस्य समझें
यहाँ भाव ये होना चाहिये कि परस्पर राम राम कहते समय दोनों को ही " चौथा राम " याद आना चाहिये ।
इस अभिवादन परम्परा का गूढ रहस्य यही था कि - माया के परदे में अगर आप उस " चौथा राम " को भूल गये । तो सर्वनाश हो जायेगा । बहुत बङा पतन हो जायेगा । याद है तो आबाद है । भूल गये तो बरबाद है । अतः सुबह सुबह । किसी से मिलने पर । रास्ते आदि में इंसान परस्पर " राम राम " कहता करता था । इससे उसका ध्यान माया में नहीं फ़ँसता था । और वह सत्य के एकदम करीब रहता था ।

पर प्रश्न वही है । बिना " सत्यनाम " को जाने । बिना विधिवत दीक्षा के प्राप्त किये आप उस सत्य को जानते ही नहीं । तो फ़िर वहाँ ध्यान जा ही नहीं सकता
जय राम जी की - मैं भी यही भाव है कि उसी राम की जय है । बाकी सबकी पराजय ही है ।
सीताराम । जय सियाराम - सीता या सिया का आध्यात्म की तकनीकी भाषा में सही अर्थ " सुरति " है । अतः सीता + राम यानी सुरति + शब्द । इस तरह हम शाश्वत सत्य को भूलें नहीं । इस हेतु इस अभिवादन का प्रचलन किया गया । जय सियाराम का भाव भी वही हो जाता है । इसी को जानने से जय है । वरना 84 लाख योनियों और घोर नरक के असीम कष्ट तय हैं ।
राधेश्याम । राधे राधे - रा + धा यानी रा का अर्थ ररंकार और धा का अर्थ दौङना । राधा - इसका सीधा सा अर्थ बना

सुरति । सुरति जो राम की तरफ़ गतिशील हो । जबकि अभी ये संसार की मोहमाया में लगी हुयी है । इस तरह राधे राधे आदि कहना भी परमात्म सत्ता को याद रखना ही था । श्याम का सही अर्थ इस वक्त मुझे ग्यात नहीं । पर ये भाव श्रीकृष्ण के लिये ही बनता है । जो आगे स्पष्ट है ।
जय श्रीकृष्ण - भी अभिवादन में बहुत प्रयोग होता है । पर अफ़सोस ! लोग इसका भी सही अर्थ नहीं जानते । जय का मतलब तो विजय या जीत है ही । श्री का मतलव ऐश्वर्य या वैभव है । कृष्ण का सही मतलब शब्द धातु आदि से निकालने पर " आकर्षण " होता है । अतः इसका सही अर्थ या भाव बना । जो समस्त ऐश्वर्य ( श्री ) का मालिक है । और जिसके

( कृष्ण ) आकर्षण ( चुम्बकीय बल ) से ये अखिल सृष्टि कार्य कर रही है । उसी की जय है । यानी केवल उसी को जानने मात्र से आप सदा " जीत " को हासिल कर सकते हो । दूसरा कोई उपाय नहीं
सतनाम वाहिगुरु । सत श्री अकाल - मुझे ये दोनों अभिवादन बहुत अच्छे लगते हैं । क्योंकि इनसे सरल परमात्मा की याद वाले अभिवादन मेरी नजर में आज तक नहीं आये । सतनाम वाहिगुरु - सत ( सत्य ) नाम ( परमात्मा से मिलाने वाला वास्तविक नाम या शब्द । जिसकी महिमा संतों ने कही है । ) वाहिगुरु ( परमात्मा )
अर्थात उस सत्य नाम का हमेशा सुमरन रहना । जो परमात्मा से मिलाता है । इसी से फ़तह हासिल होगी ।
सत श्री अकाल - सत ( सत्य ) श्री ( समस्त ऐश्वर्य या वैभव का मालिक ) अकाल ( जो समय या काल से परे हैं । यानी सदा है । अमर है । ) अर्थात उस 1 ही परमात्मा को सदा याद रखो । जो इस समस्त का मालिक है । और वही सत्य है । और काल से परे भी है ।

नमस्ते - का अर्थ है । मैं आपको नमन करता है । यह संस्कृत का शब्द है । यहाँ भी भाव वही है । मैं आपको ( आपके अन्दर जो परमात्मा है ) उसको नमन करता हूँ । क्योंकि किसी भी व्यक्ति का नाम रूप और पंचतत्व शरीर तो एक दिन मिट्टी में मिल जायेगा । अतः उसको नमन करने से कोई लाभ नहीं ।
 अतः किसी भी व्यक्ति को नमस्ते करते समय यही भाव रहना चाहिये कि - इस शरीर रूपी घर में वही परमात्मा है । मैं उसी को नमन करता हूँ । इससे उस व्यक्ति और आप दोनों का फ़ायदा होगा । क्योंकि इससे एक दूसरे की सुप्त चेतना झंकृत होती है ।
इसका बहुत बङा उदाहरण गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में दिया है ।
सियाराम मय सब जग जानी । करहुँ प्रनाम जोर जुग पानी ।
- अर्थात ये सम्पूर्ण संसार ही सिया राम रूप में है । सिया राम यानी वही सुरति और शब्द का खेल । अतः समस्त स्त्री पुरुषों के रूप में वही है । इसलिये मैं दोनों हाथ जोङकर प्रणाम करता हूँ ।

अब आईये देखें - राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्ति है ..मृत्यु के समय बोली जाने वाली ये लाइन इतनी पवित्र है कि - मैं तो कहता हूँ । प्रत्येक व्यक्ति इसको ही दिन में दो तीन बार बोले । तो उसका कल्याण हो जाय । क्योंकि इसको बोलते ही आपको चार कंधों पर रखा अर्थी पर जाता शव याद आयेगा । और उसकी याद आते ही ( यदि संसार का नशा नहीं चढा हो ) आपको याद आयेगा कि एक दिन यही हश्र आपका भी होगा । इसलिये - राम नाम सत्य है.. अर्थात जो सत्य राम नाम है । उसको याद करो । तो - सत्य बोलो मुक्ति है..तो आपको 84 लाख योनियों के जन्म मरण के इस कठोर पीङादायी यातनादायी आवागमन से मुक्ति मिल जायेगी । जिस में माया के अधीन होकर आप फ़ँस गये । और ये शव जा रहा है ।
आप में से जिसको भी शवयात्रा में शामिल होने का अनुभव है । उन्हें बखूबी पता होगा कि - मृत्यु से लेकर शवदाह तक ज्यादातर हरेक मौजूद इंसान को उस समय क्षणिक वैराग हो ही जाता है कि - क्या यही जीवन सार है ? कल तक यही इंसान ( मृतक ) जीता था । चलता फ़िरता था । मेरा तेरा करता था । पिता पति पुत्र माँ आदि तमाम सम्बन्ध थे । आज कैसा मिट्टी होकर निचेष्ट इसका शरीर पङा हुआ है । और यह सब कुछ छोङकर कहीं अग्यात को रवाना हो गया । अब वहाँ भला इसका कौन साथी है होगा आदि ।
अतः इंसान का जीवन भर अभिवादनों द्वारा " वह " भाव न बने । तो कम से कम मृत्यु के समय तो बने । पर मुझे नहीं लगता कि - बहुत इंसान प्रतिदिन होती मृत्यु से भी शायद ही ये सबक लेते हों कि एक दिन उनका भी यही हाल होना है ।
खास बात - तो अब आप समझ ही गये होंगे कि - जिस अभिवादन को आप अभी तक साधारण समझते रहे । उसमें भी कितना बङा गूढ रहस्य है । मेरा अनुभव है कि - ज्यादातर लोग परस्पर अभिवादन करते समय उस व्यक्ति को ही अभिवादन करते हैं । भले ही वह " राम राम " कहें । या कुछ और ।
इसके बजाय ऊपर लिखे भावों से करें । तो निश्चित ही इतने से ही धार्मिक क्रांति हो जायेगी ।
जय राम जी की ।
प्रातकाल उठकर रघुनाथा । मात पितहु गुरु नावहि माथा ।
राम की माया । कहीं धूप कहीं छाया ।

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