अगर मैं आपको आत्मा की आवाज और दिल का दर्द बताऊँ । तो वो वही है कि अधिक से अधिक जीवों को काल के पंजे से छुङाना । क्योंकि किसी भी सन्त का यही खास काम और कर्तव्य होता है । और इसका तरीका भी वही होता है कि जन्म जन्म से काल के पंजे में फ़ँसा और अग्यानता में उसी को अपना हितैषी मानता और पूजता जीव सिर्फ़ आत्मा और सतनाम की बात पर चौंकता है । उसे कुछ याद सा आता है । जो असली है । और उसका अपना है । यह सत्यपुरुष का प्रताप है कि उनके बारे में बात करते ही जीव को काल और माया की सारी चालाकी समझ में आ जाती है । और वह नींद में झिंझोङा गया सा उठकर बैठ जाता है ।
जब से मैंने ब्लाग शुरू किया । तबसे यहाँ भी तमाम लोग ऐसे हैं । बल्कि हजारों लोग ! और विश्व में करोङों लोग इस अनबूझ सृष्टि और प्रकृति तथा परमात्मा के बारे में जानने की जबर्दस्त इच्छा रखते हैं ।
पर जाने कैसी इच्छा है ? और कैसी तलाश है कि वे कहते हैं । हम अभी तक खोज रहे हैं ?
अभी एक पाठक सुभाष जी ने लिखा कि - आप ( मैं ) स्वयँ सत्यकीखोज कर रहे हैं ? आप लोग क्या ब्लाग पढते हो ? हैरानी है । ध्यान..समाधि..नाम ( सार शब्द या परमात्मा का वास्तविक नाम ) और उसके बाद नाम से पार होने पर.. परमात्मा से साक्षात्कार ! बस यही शाश्वत सत्य है । जब परमात्मा को जान लिया । या वह मार्ग मिल गया । तो अब खोजना क्या रह गया ?
संभवतः ये बात ब्लाग के नाम " सत्यकीखोज " से सुभाष जी के जेहन में आयी हो । लेकिन भाई इसी सत्यकीखोज ( के आगे ) - आत्मग्यान लिखा हो । तो उसको पूरा अर्थ ही बदल जाता है । क्या आपको ब्लाग के किसी लेख से ऐसा लगा कि मैं सत्य खोज रहा हूँ ? या मेरे सामने कोई प्रश्न शेष है ? किन्ही कारणों से - रजत जी की भाषा में - कभी कभी बात की जलेबी अवश्य बना देता हूँ । सुबह सुबह गरम गरम मीठी मीठी जलेबी देखकर किसका खाने को मन नहीं करता ?
दूसरे ये मेरी या अन्य किसी की खोज नहीं है । बल्कि ये ग्यान आदिकाल से ही प्रकट है । और सुरक्षित है ।
खैर..जैसा कि पिछले दिनों आये ई मेल के विषयों के निचोङ में मैं यह बात लिख रहा हूँ । अगर आप सत्य को पूरी तरह जानना चाहते हो । बल्कि अनुभूत.. महसूस करना चाहते हो । आप समाज में । देश में । विश्व में - एक नयी क्रान्ति - नया बदलाव लाना चाहते हो । और आप खुद को पूर्ण ओजस्वी शक्तिमान होने की चाहत रखते हो । तो इसकी कीमत है सिर्फ़ 800 रुपये । 800 रुपये । 800 रुपये ( 1000 भी हो सकती है । ) अब इतना सस्ता तो अच्छा मोबायल भी नहीं आता ।
ये तीन किताबें - 1 अनुराग सागर 2 बीजक ( कबीर ) 3 बाबन अक्षरी ।
अनुराग सागर - के बारे में पहले ही लिख चुका हूँ कि काल और उसकी पत्नी माया और उसके तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश किस तरह जीवों को सत्यग्यान से वंचित कर स्वर्ग नरक में उलझाये हुये हैं । दुनियाँ में फ़ैली ऊल जूलूल धार्मिक मान्यताओं के पीछे क्या रहस्य है ? लोग कैसे भक्षक काल को रक्षक समझ कर पूज रहे हैं । उस पर विश्वास कर रहे हैं । और उसका आहार बन रहे हैं आदि । और भी ढेरों प्रश्नों की चौंकाने वाली जानकारी इस पुस्तक से प्राप्त होती है । आपके बहुत से सवाल हमेशा के लिये समाप्त हो जाते हैं । दिमाग में भरा धार्मिक कचरा साफ़ हो जाता है ।
बीजक - पढ के तो आप मुझे ही फ़ोन करके कहोगे । अच्छा राजीव बाबा ! अब बहुत ग्यान बाँट लिये हो । अब आप पूछो । हम बतायी । यहाँ से नकल मार मार के ग्यान का रुतबा दिखाते थे ।
..कहने का मतलब बीजक में आपको सब कुछ मिल जाता है । ये देवी देवताओं का क्या चक्कर है ? कौन सी महाशक्ति क्या है ? उसकी स्थिति क्या है ? बृह्माण्ड आदि की स्थितियाँ । और जीव.. जीवन के आंतरिक पहलू । जीवन में भी । और मृत्यु के बाद भी । रहस्य के दायरे में आने वाली कोई भी बात शायद ही बचे । जो आपको जानना शेष रह जाय ।
बाबन अक्षरी - बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व विजेता सिकन्दर कबीर का शिष्य था । अपने पहले मुस्लिम धार्मिक गुरु द्वारा मुस्लिम समुदाय के कानून की धमकी देने पर सिकन्दर ने 52 बार कबीर को मौत की सजा दी । सजा तो बेचारा क्या देता ? 52 बार मौत के मुँह में धकेलने के समान परीक्षणों से गुजारा ।
पर कबीर का एक बाल भी नहीं टेङा हुआ । इस किताब की सबसे बङी खासियत यह है कि आज से 500 साल पहले कबीर ने पूरे विश्व में किस तरह न सिर्फ़ सतनाम का डंका बजा दिया । बल्कि हिन्दू मुस्लिम ( को तो छोङिये ) सिख ईसाई आदि तमाम जातिगत भेदभाव.. धार्मिक भेदभाव ही मिटा दिया । सारी दुनियाँ ही कबीर के पीछे पीछे चलने लगी । मेरा मुसलमान भाईयों से अनुरोध है । ये पुस्तक अवश्य पढें ।
*** मेरे अनुभव में आया है । टीकाकारों को आंतरिक ग्यान न होने के कारण वे कबीर की कही असल बात को उतना तो नहीं समझा पाये । पर किताब में कबीर के मूल दोहों और मेरे ब्लागों को पढने के बाद आप असल बात को काफ़ी हद तक समझ सकते हैं । अब रही बात । प्रयोगात्मक अनुभवों के लिये । जब कोई ना मिले । फ़िर मैं तो हूँ ही ।
*** मुझे बङा अफ़सोस है कि तमाम प्रकाशक । धार्मिक संस्थायें । किताब पढने के शौकीन । शिक्षक । हमारे बुजुर्गों आदि ने यदि इन तीन किताबों के बारे में ही जागरूकता बनाये रखी होती । इनका सही प्रचार किया होता । तो दुनियाँ का दृश्य ही बदला होता । तो आज बच्चा बच्चा ग्यानी होता ।
अब ज्यादा क्या लिखूँ । इस लेख को पढकर यदि हजार लोग भी इन किताबों को खरीदकर पढ लेते हैं । और लोगों को वह ग्यान बताते हैं । तो पूरा भारत ही बदल जायेगा । धर्मगुरु बन जायेगा । केवल एक लाख लोग पूरे विश्व को सिर्फ़ 5 साल में बदल देंगे । और अनुमानित कीमत वही 800 रुपये ।
विशेष - इन किताबों को पढने से सिर्फ़ मौखिक जानकारी या बौद्धिक विकास ही नहीं होता । बल्कि प्रयोगात्मक स्तर पर कुछ कुछ आत्मिक अनुभूतियाँ भी स्वतः शुरू हो जाती हैं ।
अन्त में - हाँ तो भाईयो ! आपकी बस अब जाने ही वाली है । जिस भाई को भी चाहिये । अपनी सीट से आवाज दें । एक के साथ.. एक नहीं.. बल्कि दो फ़्री हैं । सिर्फ़ 800 रुपये में तीन ।
- वैसे ये मत सोच लेना कि मैं अपने प्रकाशन की सेल बङा रहा हूँ । बाबा रामदेव की तरह मेरा कोई प्रकाशन नहीं हैं । न मैंने इनमें से किसी किताब की टीका लिखी है । जो मुझे आर्थिक फ़ायदा होगा ।
*** कल एक गुमनाम भाई जो मेरे सहयोगी हैं - का 10 तस्वीर अटैच्ड ई मेल आया । जो मेरे लेखों के विषय अनुसार तस्वीरें भेजा करेंगे । वाकई उन्होंने कमाल की तस्वीरें भेजी । जो मैंने अनुराग सागर के लेखों में जोङ भी दीं । उनको बेहद धन्यवाद ।
- अभी कई ई मेल के जबाब भी देने हैं । पर लाइट और गर्मी का व्यवधान है । प्रेत कहानी की भी यही दिक्कत है ।
- आप सभी लोग हिन्दी टायप में उस्ताद हो गये हो । यदि कोई सहयोग करना चाहे । तो ऊपर लिखी तीन किताबों तथा ऐसी ही अन्य किताबों का मैटर दो दो तीन पेज का एक बार में भेजो । उसे संशोधित करके लेख रूप में प्रकाशित मैं कर दूँगा । नव जागरण में आप सभी का सहयोग भी आवश्यक है ।
जब से मैंने ब्लाग शुरू किया । तबसे यहाँ भी तमाम लोग ऐसे हैं । बल्कि हजारों लोग ! और विश्व में करोङों लोग इस अनबूझ सृष्टि और प्रकृति तथा परमात्मा के बारे में जानने की जबर्दस्त इच्छा रखते हैं ।
पर जाने कैसी इच्छा है ? और कैसी तलाश है कि वे कहते हैं । हम अभी तक खोज रहे हैं ?
अभी एक पाठक सुभाष जी ने लिखा कि - आप ( मैं ) स्वयँ सत्यकीखोज कर रहे हैं ? आप लोग क्या ब्लाग पढते हो ? हैरानी है । ध्यान..समाधि..नाम ( सार शब्द या परमात्मा का वास्तविक नाम ) और उसके बाद नाम से पार होने पर.. परमात्मा से साक्षात्कार ! बस यही शाश्वत सत्य है । जब परमात्मा को जान लिया । या वह मार्ग मिल गया । तो अब खोजना क्या रह गया ?
संभवतः ये बात ब्लाग के नाम " सत्यकीखोज " से सुभाष जी के जेहन में आयी हो । लेकिन भाई इसी सत्यकीखोज ( के आगे ) - आत्मग्यान लिखा हो । तो उसको पूरा अर्थ ही बदल जाता है । क्या आपको ब्लाग के किसी लेख से ऐसा लगा कि मैं सत्य खोज रहा हूँ ? या मेरे सामने कोई प्रश्न शेष है ? किन्ही कारणों से - रजत जी की भाषा में - कभी कभी बात की जलेबी अवश्य बना देता हूँ । सुबह सुबह गरम गरम मीठी मीठी जलेबी देखकर किसका खाने को मन नहीं करता ?
दूसरे ये मेरी या अन्य किसी की खोज नहीं है । बल्कि ये ग्यान आदिकाल से ही प्रकट है । और सुरक्षित है ।
खैर..जैसा कि पिछले दिनों आये ई मेल के विषयों के निचोङ में मैं यह बात लिख रहा हूँ । अगर आप सत्य को पूरी तरह जानना चाहते हो । बल्कि अनुभूत.. महसूस करना चाहते हो । आप समाज में । देश में । विश्व में - एक नयी क्रान्ति - नया बदलाव लाना चाहते हो । और आप खुद को पूर्ण ओजस्वी शक्तिमान होने की चाहत रखते हो । तो इसकी कीमत है सिर्फ़ 800 रुपये । 800 रुपये । 800 रुपये ( 1000 भी हो सकती है । ) अब इतना सस्ता तो अच्छा मोबायल भी नहीं आता ।
ये तीन किताबें - 1 अनुराग सागर 2 बीजक ( कबीर ) 3 बाबन अक्षरी ।
अनुराग सागर - के बारे में पहले ही लिख चुका हूँ कि काल और उसकी पत्नी माया और उसके तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश किस तरह जीवों को सत्यग्यान से वंचित कर स्वर्ग नरक में उलझाये हुये हैं । दुनियाँ में फ़ैली ऊल जूलूल धार्मिक मान्यताओं के पीछे क्या रहस्य है ? लोग कैसे भक्षक काल को रक्षक समझ कर पूज रहे हैं । उस पर विश्वास कर रहे हैं । और उसका आहार बन रहे हैं आदि । और भी ढेरों प्रश्नों की चौंकाने वाली जानकारी इस पुस्तक से प्राप्त होती है । आपके बहुत से सवाल हमेशा के लिये समाप्त हो जाते हैं । दिमाग में भरा धार्मिक कचरा साफ़ हो जाता है ।
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..कहने का मतलब बीजक में आपको सब कुछ मिल जाता है । ये देवी देवताओं का क्या चक्कर है ? कौन सी महाशक्ति क्या है ? उसकी स्थिति क्या है ? बृह्माण्ड आदि की स्थितियाँ । और जीव.. जीवन के आंतरिक पहलू । जीवन में भी । और मृत्यु के बाद भी । रहस्य के दायरे में आने वाली कोई भी बात शायद ही बचे । जो आपको जानना शेष रह जाय ।
बाबन अक्षरी - बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व विजेता सिकन्दर कबीर का शिष्य था । अपने पहले मुस्लिम धार्मिक गुरु द्वारा मुस्लिम समुदाय के कानून की धमकी देने पर सिकन्दर ने 52 बार कबीर को मौत की सजा दी । सजा तो बेचारा क्या देता ? 52 बार मौत के मुँह में धकेलने के समान परीक्षणों से गुजारा ।
पर कबीर का एक बाल भी नहीं टेङा हुआ । इस किताब की सबसे बङी खासियत यह है कि आज से 500 साल पहले कबीर ने पूरे विश्व में किस तरह न सिर्फ़ सतनाम का डंका बजा दिया । बल्कि हिन्दू मुस्लिम ( को तो छोङिये ) सिख ईसाई आदि तमाम जातिगत भेदभाव.. धार्मिक भेदभाव ही मिटा दिया । सारी दुनियाँ ही कबीर के पीछे पीछे चलने लगी । मेरा मुसलमान भाईयों से अनुरोध है । ये पुस्तक अवश्य पढें ।
*** मेरे अनुभव में आया है । टीकाकारों को आंतरिक ग्यान न होने के कारण वे कबीर की कही असल बात को उतना तो नहीं समझा पाये । पर किताब में कबीर के मूल दोहों और मेरे ब्लागों को पढने के बाद आप असल बात को काफ़ी हद तक समझ सकते हैं । अब रही बात । प्रयोगात्मक अनुभवों के लिये । जब कोई ना मिले । फ़िर मैं तो हूँ ही ।
*** मुझे बङा अफ़सोस है कि तमाम प्रकाशक । धार्मिक संस्थायें । किताब पढने के शौकीन । शिक्षक । हमारे बुजुर्गों आदि ने यदि इन तीन किताबों के बारे में ही जागरूकता बनाये रखी होती । इनका सही प्रचार किया होता । तो दुनियाँ का दृश्य ही बदला होता । तो आज बच्चा बच्चा ग्यानी होता ।
अब ज्यादा क्या लिखूँ । इस लेख को पढकर यदि हजार लोग भी इन किताबों को खरीदकर पढ लेते हैं । और लोगों को वह ग्यान बताते हैं । तो पूरा भारत ही बदल जायेगा । धर्मगुरु बन जायेगा । केवल एक लाख लोग पूरे विश्व को सिर्फ़ 5 साल में बदल देंगे । और अनुमानित कीमत वही 800 रुपये ।
विशेष - इन किताबों को पढने से सिर्फ़ मौखिक जानकारी या बौद्धिक विकास ही नहीं होता । बल्कि प्रयोगात्मक स्तर पर कुछ कुछ आत्मिक अनुभूतियाँ भी स्वतः शुरू हो जाती हैं ।
अन्त में - हाँ तो भाईयो ! आपकी बस अब जाने ही वाली है । जिस भाई को भी चाहिये । अपनी सीट से आवाज दें । एक के साथ.. एक नहीं.. बल्कि दो फ़्री हैं । सिर्फ़ 800 रुपये में तीन ।
- वैसे ये मत सोच लेना कि मैं अपने प्रकाशन की सेल बङा रहा हूँ । बाबा रामदेव की तरह मेरा कोई प्रकाशन नहीं हैं । न मैंने इनमें से किसी किताब की टीका लिखी है । जो मुझे आर्थिक फ़ायदा होगा ।
*** कल एक गुमनाम भाई जो मेरे सहयोगी हैं - का 10 तस्वीर अटैच्ड ई मेल आया । जो मेरे लेखों के विषय अनुसार तस्वीरें भेजा करेंगे । वाकई उन्होंने कमाल की तस्वीरें भेजी । जो मैंने अनुराग सागर के लेखों में जोङ भी दीं । उनको बेहद धन्यवाद ।
- अभी कई ई मेल के जबाब भी देने हैं । पर लाइट और गर्मी का व्यवधान है । प्रेत कहानी की भी यही दिक्कत है ।
- आप सभी लोग हिन्दी टायप में उस्ताद हो गये हो । यदि कोई सहयोग करना चाहे । तो ऊपर लिखी तीन किताबों तथा ऐसी ही अन्य किताबों का मैटर दो दो तीन पेज का एक बार में भेजो । उसे संशोधित करके लेख रूप में प्रकाशित मैं कर दूँगा । नव जागरण में आप सभी का सहयोग भी आवश्यक है ।