इसीलिए कृष्ण गीता में कहते है कि - योगी सोता नहीं । योगी का अर्थ है । जो अपने अंतिम केंद्र पर पहुंच गया । अपनी परम खिलावट पर जो कमल की भांति खिल गया । वह कभी नहीं सोता । उसका शरीर सोता है । मन सोता है । वह कभी नहीं सोता । बुद्ध जब सो भी रहे होते हैं । तो अंतस में कहीं गहरे में प्रकाश आलोकित रहता है । सातवें चक्र में निद्रा का कोई स्थान नहीं होता । बाकी 6 चक्रों में यिन और यैंग, शिव और शक्ति, दोनों है । कभी वे जाग्रत होते है । और कभी सुषुप्ति में । उनके दोनों पहलू हैं ।
जब तुम्हें भूख लगती है । तो भूख का चक्र जाग्रत हो जाता है । यदि आपने कभी उपवास किया । तो आप चकित हुए होंगे । शुरू में पहले 2 या 3 दिन भूख लगती है । और फिर अचानक भूख खो जाती है । यह फिर लगेगी । और फिर समाप्त हो जाएगी । फिर लगेगी । ओर तुम कुछ भी नहीं खा रहे हो । इसलिए तुम यह भी नहीं कह सकते हो कि - भूख मिट गई । क्योंकि मैंने कुछ खा लिया है । तुम उपवास किए हो । कभी कभी तो भूख जोरों से लगती है । तुम तड़प जाते हो । लेकिन यदि तुम बेचैन नहीं होते हो । तो यह समाप्त हो जायेगी । चक्र सो गया है । दिन में फिर 1 समय आएगा । जब यह जगेगा । और फिर सो जायेगा ।
काम केंद्र में भी ऐसा ही होता है । कामवासना जगती है । तुम उसमें उतरते हो । और संपूर्ण वासना तिरोहित हो जाती है । चक्र सो गया है । यदि तुम बिना दमन किए ब्रह्मचर्य का पालन करो । तो तुम हैरान रह जाओगे । यदि तुम कामवासना का दमन न करो । और केवल साक्षी रहो । 3 महीने के लिए यह प्रयोग करो - बस साक्षी रहो । जब काम वासना उठे । शांत बैठ जाओ । इसे उठने दो । इसे द्वार खटखटाने दो । आवाज सुनो । ध्यान में सुनो । लेकिन इसके साथ बह मत जाओ । इसे उठने दो । इसे दबाओ मत । इसमें लिप्त मत होओ । साक्षी बने रहो । और तुम जानकर चकित रह जाओगे । कभी कभी वासना इतनी तीव्रता से उठती है कि लगता है पागल हो जाओगे । और फिर स्वय: ही तिरोहित हो जाएगी । जैसे कभी थी ही नहीं । वह फिर लौटेगी । फिर चली जाएगी ।
चक्र चलता रहता है । कभी कभी दिन में वासना जगेगी । और फिर रात में सो जाएगी । और सातवें चक्र के नीचे सब 6 चक्रों में ऐसा ही होता है ।
अपना अगल चक्र नहीं है । लेकिन सहस्त्रार के अतिरिक्त प्रत्येक चक्र में इसका अपना स्थान है । तो 1 बात और समझ लेने जैसी है । जैसे जैसे तुम ऊपर के चक्रों में प्रवेश करते जाओगे । तुम्हारी नींद की गुणवता बेहतर होती जाएगी । क्योंकि प्रत्येक चक्र में गहरी विश्रांति का गुण है । जो व्यक्ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है । उसकी नींद गहरी न होगी । उसकी नींद उथली होगी । क्योंकि यह दैहिक तल पर जीता है । भौतिक स्तर पर जीता है । मैं इन चक्रों कि व्याख्या इस प्रकार भी कर सकता हूं ।
1 भौतिक - मूलाधार । 2 प्राणाधार - स्वाधिष्ठान ।
3 काम या विद्युत केंद्र - मणिपूर । 4 नैतिक अथवा सौंदयपरक - अनाहत ।
5 धार्मिक - विशुद्ध । 6 आध्यात्मिक - आज्ञा । 7 दिव्य - सहस्त्रार ।
जैसे जैसे ऊपर जाओगे । तुम्हारी नींद गहरी हो जाएगी । और इसका गुणवता बदल जायेगी । जो व्यक्ति भोजन ग्रसित है । और केवल खाने के लिए जीता है । उसकी नींद बेचैन रहेगी । उसकी नींद शांत न होगी । उसमें संगीत न होगा । उसकी नींद 1 दु:ख स्वप्न होगी । जिस व्यक्ति का रस भोजन में कम होगा । और जो वस्तुओं की बजाए व्यक्तियों में अधिक उत्सुक होगा । लोगों के साथ जुड़ना चाहता है । उसकी नींद गहरी होगी । लेकिन बहुत गहरी नहीं । निम्नतर क्षेत्र में कामुक व्यक्ति की नींद सर्वाधिक गहरी होगी । यही कारण है कि सेक्स का लगभग ट्रैक्युलाइजर, नशे की तरह उपयोग किया जाता है । यदि तुम सो नहीं पार रहे हो । तो और तुम संभोग में उतरते हो । तो शीघ्र ही तुम्हें नींद आ जायेगी । संभोग तुम्हें तनाव मुक्त करता है । पश्चिम में चिकित्सक उन सबको सेक्स की सलाह देते हैं । जिन्हें नींद नहीं आ रहा है । अब तो वे उन्हें भी सेक्स की सलाह देते हैं । जिन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा है । क्योंकि सेक्स तुम्हें विश्रांत करता है । तुम्हें गहरी नींद प्रदान करता है । निम्न तल पर सेक्स तुम्हें सर्वाधिक गहरी नींद देता है ।
जब तुम और ऊपर की और जाते हो । चौथे अनाहत चक्र पर । तो नींद अत्यंत निष्कंप, शांत, पावन व परिष्कृत हो जाती है । जब तुम किसी से प्रेम करते हो । तो तुम अत्यंत अनूठी विश्रांति का अनुभव करते हो । मात्र विचार कि कोई तुम्हें प्रेम करता है । और तुम किसी से प्रेम करते हो । तुम्हें विश्रांत कर देता है । सब तनाव मिट जाते है । एक प्रेमी व्यक्ति गहरी निद्रा जानता है । घृणा करो । तो तुम सो न पाओगे । क्रोध करो । तो तुम सो न पाओगे । तुम नीचे गिर जाओगे । प्रेम करो । करूणा करो । और तुम गहरी नींद आएगी ।
पांचवें चक्र के साथ नींद लगभग प्रार्थना पूर्ण बन जाती है । इसीलिए सब धर्म लगभग आग्रह करते है कि सोने से पहले तुम प्रार्थना करो । प्रार्थना को निद्रा के साथ जोड़ दो । प्रार्थना के बिना कभी मत सोओ । ताकि निद्रा में भी तुम्हें उसके संगीत का स्पंदन हो । प्रार्थना की प्रतिध्वनि तुम्हारी नींद को रूपांतरित कर देती है ।
पांचवां चक्र प्रार्थना है - और यदि तुम प्रार्थना कर सकते हो । तो और अगली सुबह तुम चकित होओगे । तुम उठोगे ही प्रार्थना करते हुए । तुम्हारा जागना ही 1 तरह की प्रार्थना होगी । पांचवें चक्र में नींद प्रार्थना बन जाती है । यह साधारण नींद नहीं रहती ।
तुम निद्रा में नहीं जा रहे । बल्कि 1 सूक्ष्म रूप से परमात्मा में प्रवेश कर रहे हो । निद्रा 1 द्वार है । जहां तुम अपना अहंकार भूल जाते हो । और परमात्मा में खो जाना आसान होता है । जो कि जाग्रत अवस्था में नहीं हो पाता । क्योंकि जब तुम जागे हुए होते हो । तो अहंकार बहुत शक्तिशाली होता है ।
जब तुम गहरी निद्रावस्था में प्रवेश कर जाते हो । तुम्हारी आरोग्यता प्रदान करने वाली शक्तियों की क्षमता सर्वाधिक होती है । इसीलिए चिकित्सक का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति बीमार है । और सो नहीं पाता । तो उसके ठीक होने की संभावना कम हो जाती है । क्योंकि आरोग्यता भीतर से आती है । आरोग्यता तब आती है । जब अहंकार का आस्तित्व बिलकुल नहीं बचता । जो व्यक्ति पांचवें चक्र - प्रार्थना के चक्र तक पहुंच गया है । उसका जीवन 1 प्रसाद बन जाता है । जब वह चलता है । तो उसकी भाव भंगिमाओं में आप 1 विश्रांति का गुण पाओगे । आज्ञा चक्र - अंतिम चक्र है । जहां नींद श्रेष्ठतम हो जाती है । इसके पार नींद की आवश्यकता नहीं रहती । कार्य समाप्त हुआ । छटे चक्र तक निद्रा की आवश्यकता है । छठे चक्र में निद्रा ध्यान में रूपांतरित हो जाती है । प्रार्थना पूर्ण ही नहीं - ध्यान पूर्ण ।
क्योंकि प्रार्थना में द्वैत है । मैं और तुम । भक्त और भगवान । छठवें में द्वैत समाप्त हो जाता है । निद्रा गहन हो जाती है । इतनी जितनी की मृत्यु । वास्तव में मृत्यु और कुछ नहीं । बल्कि 1 गहरी नींद है । और कुछ नहीं । बल्कि 1 छोटी सी मृत्यु है । छठे चक्र के साथ नींद अंतस की गहराई तक प्रवेश हो जाती है । और कार्य समाप्त हो जाता है । जब तुम छठे से सातवें तक पहुंचते हो । तो निद्रा की आवश्यकता नहीं रहती । तुम द्वैत के पार चले गए हो । तब तुम कभी थकते ही नहीं । इसलिए निद्रा की आवश्यकता नहीं रहती है । यह सातवीं अवस्था विशुद्ध जागरण की अवस्था है - ओशो ।
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