चित्र बनाया । उसको पिक्टोरिअल कर दिया । ताकि उसमें सीधा कोई भाषा कोश में खोजने न चला जाए उसे कि ओम का क्या मतलब होता है । तो वह ओम जो है । आपकी आंखों में गड़ जाए । और प्रश्नवाचक बन जाये कि क्या मतलब ? जब भी कोई आदमी संस्कृत पढ़ता है । या पुराने ग्रन्थ पढ़ने दुनिया के किसी कोने से आता है । तो इस शब्द को बताना मुश्किल हो जाता है उसे । और शब्द तो सब समझ में आ जाते हैं । क्योंकि सबका अनुवाद हो जाता है । वह बार बार दिक्कत यह आती है कि - ओम यानी क्या ? इसका मतलब क्या है ? और फिर इसको अक्षरों में क्यों नहीं लिखते हो ? इसको ओम लिखो न । यह चित्र क्यों बनाया हुआ है ? उस चित्र को भी अगर तुम गौर से देखोगे । तो उसके भी 3 हिस्से हैं । और वे अ उ और म के प्रतीक हैं । वह पिक्चर भी बड़ी खोज है । वह चित्र भी साधारण नहीं है । और उस चित्र की खोज भी चौथे शरीर में की गई है । उस चित्र की खोज भी भौतिक शरीर से नहीं की गई है । वह चौथे शरीर की खोज है । असल में जब चौथे शरीर में कोई जाता है । और निर्विचार हो जाता है । तब उसके भीतर अ उ म इनकी ध्वनियां गूंजने लगती हैं । और उन तीनों का जोड़ ओम बनने लगता है । जब पूर्ण सन्नाटा हो जाता है विचार का । जब सब विचार खो जाते हैं । तब ध्वनियां रह जाती हैं । और ओम की ध्वनि गूंजने लगती है । वह जो ओम की ध्वनि गूंजने लगती है । वहां चौथे शरीर से उसको पकड़ा गया है कि ये जहां विचार खोते हैं । भाषा खोती है । वहां जो शेष रह जाता है । वह ओम की ध्वनि रह जाती है ।
निर्विचार चेतना में ओम का अविर्भाव - इधर से तो उस ध्वनि को पकड़ा गया । और जैसा मैंने तुमसे कहा कि जिस तरह हर शब्द का 1 पैटर्न है । हर शब्द का 1 पैटर्न है । जब हम 1 शब्द का प्रयोग करते हैं । तो हमारे भीतर 1 पैटर्न बनना शुरू हो जाता है । तो जब यह ओम की ध्वनि रह जाती है भीतर सिर्फ । तब अगर इस ध्वनि पर एकाग्र किया जाए चित । तो ध्वनि - अगर चित एकाग्र हो । जो कि चौथे पर हो जाना कठिन नहीं है । और जब यह ओम सुनाई पड़ेगा । तो हो ही जाएगा । उस चौथे शरीर में ओम की ध्वनि गूंजती रहे । गूंजती रहे । गूंजती रहे । और अगर कोई एकाग्र इसको सुनता रहे । तो इसका चित्र भी उभरना शुरू हो जाता है । इस तरह बीज मंत्र
खोजे गए । सारे बीज मंत्र इसलिए खोजे गए । 1-1 चक्र पर जो ध्वनि होती है । उस ध्वनि पर जब एकाग्र चित्त से साधक बैठता है । तो उस चक्र का बीज शब्द उसकी पकड़ में आ जाता है । और वे बीज शब्द इस तरह निर्मित किये गए । ओम जो है । वह परम बीज है । वह किसी 1 चक्र का बीज नहीं है । वह परम बीज है । वह सातवें का प्रतीक है । या अनादि का प्रतीक है । या अनंत का प्रतीक है ।
ओम - सार्वभौमिक सत्य । इस भांति उस शब्द को खोजा गया । और करोड़ों लोगों ने जब उसको टैली किया । और स्वीकृति दी । तब वह स्वीकृत हुआ । एकदम से स्वीकृत नहीं हो गया । सहज स्वीकृत नहीं कर लिया कि - 1 आदमी ने कह दिया । करोड़ों साधकों को जब वही प्रति बार हो गया । और जब वह सुनिश्चित हो गया । इसलिए ओम शब्द जो है । वह किसी धर्म की । किसी संप्रदाय की बपौती नहीं है । ओशो
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तुम ध्यान करते हो । लेकिन तुम इस उद्देश्य के साथ ध्यान करते हो कि ध्यान के द्वारा तुम कहीं किसी लक्ष्य तक पहुंच जाओगे । तुम बात चूक रहे हो । ध्यान में डूबो । और उसका आनंद लो । कोई लक्ष्य नहीं है । कोई भविष्य नहीं है । आगे कुछ नहीं है । ध्यान करो । अगर आनंद मनाओ । बिना किसी उद्देश्य के ।
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उदासी - उदासी उतना उदास नहीं करती । जितना उदासी आ गई । यह बात उदास करती है । उदासी की तो अपनी कुछ खूबियां हैं । अपने कुछ रहस्य हैं । अगर उदासी स्वीकार हो । तो उदासी का भी अपना मजा है । मुझे कहने दो इसी तरह कि उदासी का भी अपना मजा है । क्योंकि उदासी में 1 शांति है । 1 शून्यता है । उदासी में 1 गहराई है । आनंद तो छिछला होता है । आनंद तो ऊपर ऊपर होता है । आनंद तो ऐसा होता है । जैसे नदी भागी जाती है । और उसके ऊपर पानी का झाग । उदासी ऐसी होती है । जैसी नदी की गहराई - अंधेरी और काली । आनंद तो प्रकाश जैसा है । उदासी अंधेरे जैसी है । अंधेरी रात का मजा देखा ? अमावस की रात का मजा देखा ? अमावस की रात का रहस्य देखा ? अमावस की रात की गहराई देखी ? मगर जो अंधेरे से डरता है । वह तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है । अमावस को देखना ही नहीं चाहता । जो अंधेरे से डरता है । वह तो अपने द्वार दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है । वह अंधेरे को झुठला देता है । अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे ? दिन में वे तारे नहीं होते । दिन में वे तारे नहीं हो सकते । दिन की वह क्षमता नहीं है । वे तारे तो रात के अंधेरे में । रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं । वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं । और नाचते हैं । ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं । अपने स्वाद हैं । अपने रस हैं । ओशो
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