08 मई 2011

उदासी का भी अपना मजा है

ॐ सार्वभौमिक सत्य - ॐ को चुनने के 2 कारण हैं । 1 तो, 1 ऐसे शब्द की तलाश थी । जिसका अर्थ न हो । जिसका तुम अर्थ न लगा पाओ । क्योंकि अगर तुम अर्थ लगा लो । तो वह पांचवें के इस तरफ का हो जाएगा । 1 ऐसा शब्द चाहिए था । जो 1 अर्थ में मीनिंगलेस हो । हमारे सब शब्द मीनिंगफुल हैं । शब्द बनाते ही हम इसलिए हैं कि उसमें अर्थ होना चाहिए । अगर अर्थ न हो । तो शब्द की जरुरत क्या है ? उसे हम बोलने के लिए बनाते हैं । और बोलने का प्रयोजन ही यह है कि मैं तुम्हें कुछ समझा पाऊं । मैं जब शब्द बोलूं । तो तुम्हारे पास कोई अर्थ का इशारा हो पाए । जब लोग सातवें से लौटे । या सातवें को जाना । तो उन्हें लगा कि इसके लिए कोई भी शब्द बनाएंगे । उसमें अगर अर्थ होगा । तो वह पांचवे शरीर के पहले का । जो जाएगा - तत्काल । उसका भाषा कोश में से अर्थ लिख दिया जाएगा । लोग पढ़ लेंगे । और समझ लेंगे । लेकिन सातवें का तो कोई अर्थ नहीं हो सकता । या तो कहो - मीनिंगलेस अर्थहीन । या कहो - बियांड मीनिंग, अर्थातीत । दोनों 1 ही बात हैं । तो उस अर्थातीत के लिए - जहां कि सब अर्थ खो गए हैं । कोई अर्थ ही नहीं बचा है - कैसा शब्द खोजें ? और उस शब्द को कैसे बनाएं ? तो शब्द को बनाने में बड़े विज्ञान का प्रयोग किया गया । वह शब्द बनाया बहुत बहुत ही कल्पनाशील । और बड़े विजन । और बड़े दूरदृष्टि से वह शब्द बनाया गया । क्योंकि वह बनाया जा रहा था । और 1 रूट । 1 मौलिक शब्द था । जो मूल आधार पर खड़ा करना था । तो कैसे इस शब्द को खोजें । जिसमें कि कोई अर्थ न हो । और किस प्रकार से खोजें कि वह गहरे अर्थ में मूल आधार का प्रतीक भी हो जाए । तो हमारी भाषा की जो मूल ध्वनि हैं । वे 3 हैं - A  U   M - अ उ म । हमारा सारा का सारा शब्दों का विस्तार इन 3 ध्वनियों का विस्तार है । तो रूट ध्वनियां 3 हैं - अ उ म । अच्छा अ उ और म में कोई अर्थ नहीं है । अर्थ तो इनके संबंधों से तय होगा । अ जब " अब " बन जाएगा । तो अर्थपूर्ण हो जाएगा । म जब कोई शब्द बन जाएगा । तो अर्थ पूर्ण हो जाएगा । अभी अर्थहीन हैं । अ उ म इनका कोई अर्थ नहीं है । और ये 3 मूल हैं । फिर सारी हमारी वाणी का विस्तार इन 3 का ही फैलाव है । इन 3 का ही जोड़ है । तो ये 3 मूल ध्वनियों को पकड़ लिया गया - अ उ म । तीनों के जोड़ से ओम बना दिया । तो ओम लिखा जा सकता था । लेकिन लिखने से फिर शक पैदा होता किसी को कि इसका कोई अर्थ होगा । क्योंकि फिर वह शब्द बन जाता । अब, आज, ऐसा ही ओम में भी 1 शब्द बन जाता । और लोग उसका अर्थ निकाल लेते कि ओम यानी वह जो सातवें पर है । तो फिर शब्द न बनाएं । इसलिए हमने चित्र बनाया ओम का । ताकि शब्द, अक्षर का भी उपयोग मत करो उसमें । अ उ म तो है वह । पर वह ध्वनि है - शब्द नहीं । अक्षर नहीं । इसलिए फिर हमने ओम का 

चित्र बनाया । उसको पिक्टोरिअल कर दिया । ताकि उसमें सीधा कोई भाषा कोश में खोजने न चला जाए उसे कि ओम का क्या मतलब होता है । तो वह ओम जो है । आपकी आंखों में गड़ जाए । और प्रश्नवाचक बन जाये कि क्या मतलब ? जब भी कोई आदमी संस्कृत पढ़ता है । या पुराने ग्रन्थ पढ़ने दुनिया के किसी कोने से आता है । तो इस शब्द को बताना मुश्किल हो जाता है उसे । और शब्द तो सब समझ में आ जाते हैं । क्योंकि सबका अनुवाद हो जाता है । वह बार बार दिक्कत यह आती है कि - ओम यानी क्या ? इसका मतलब क्या है ? और फिर इसको अक्षरों में क्यों नहीं लिखते हो ? इसको ओम लिखो न । यह चित्र क्यों बनाया हुआ है ? उस चित्र को भी अगर तुम गौर से देखोगे । तो उसके भी 3 हिस्से हैं । और वे अ उ और म के प्रतीक हैं । वह पिक्चर भी बड़ी खोज है । वह चित्र भी साधारण नहीं है । और उस चित्र की खोज भी चौथे शरीर में की गई है । उस चित्र की खोज भी भौतिक शरीर से नहीं की गई है । वह चौथे शरीर की खोज है । असल में जब चौथे शरीर में कोई जाता है । और निर्विचार हो जाता है । तब उसके भीतर अ उ म इनकी ध्वनियां गूंजने लगती हैं । और उन तीनों का जोड़ ओम बनने लगता है । जब पूर्ण सन्नाटा हो जाता है विचार का । जब सब विचार खो जाते हैं । तब ध्वनियां रह जाती हैं । और ओम की ध्वनि गूंजने लगती है । वह जो ओम की ध्वनि गूंजने लगती है । वहां चौथे शरीर से उसको पकड़ा गया है कि ये जहां विचार खोते हैं । भाषा खोती है । वहां जो शेष रह जाता है । वह ओम की ध्वनि रह जाती है ।
निर्विचार चेतना में ओम का अविर्भाव - इधर से तो उस ध्वनि को पकड़ा गया । और जैसा मैंने तुमसे कहा कि जिस तरह हर शब्द का 1 पैटर्न है । हर शब्द का 1 पैटर्न है । जब हम 1 शब्द का प्रयोग करते हैं । तो हमारे भीतर 1 पैटर्न बनना शुरू हो जाता है । तो जब यह ओम की ध्वनि रह जाती है भीतर सिर्फ । तब अगर इस ध्वनि पर एकाग्र किया जाए चित । तो ध्वनि - अगर चित एकाग्र हो । जो कि चौथे पर हो जाना कठिन नहीं है । और जब यह ओम सुनाई पड़ेगा । तो हो ही जाएगा । उस चौथे शरीर में ओम की ध्वनि गूंजती रहे । गूंजती रहे । गूंजती रहे । और अगर कोई एकाग्र इसको सुनता रहे । तो इसका चित्र भी उभरना शुरू हो जाता है । इस तरह बीज मंत्र

खोजे गए । सारे बीज मंत्र इसलिए खोजे गए । 1-1  चक्र पर जो ध्वनि होती है । उस ध्वनि पर जब एकाग्र चित्त से साधक बैठता है । तो उस चक्र का बीज शब्द उसकी पकड़ में आ जाता है । और वे बीज शब्द इस तरह निर्मित किये गए । ओम जो है । वह परम बीज है । वह किसी 1 चक्र का बीज नहीं है । वह परम बीज है । वह सातवें का प्रतीक है । या अनादि का प्रतीक है । या अनंत का प्रतीक है ।
ओम - सार्वभौमिक सत्य । इस भांति उस शब्द को खोजा गया । और करोड़ों लोगों ने जब उसको टैली किया । और स्वीकृति दी । तब वह स्वीकृत हुआ । एकदम से स्वीकृत नहीं हो गया । सहज स्वीकृत नहीं कर लिया कि - 1 आदमी ने कह दिया । करोड़ों साधकों को जब वही प्रति बार हो गया । और जब वह सुनिश्चित हो गया । इसलिए ओम शब्द जो है । वह किसी धर्म की । किसी संप्रदाय की बपौती नहीं है । ओशो
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तुम ध्यान करते हो । लेकिन तुम इस उद्देश्य के साथ ध्यान करते हो कि ध्यान के द्वारा तुम कहीं किसी लक्ष्य तक पहुंच जाओगे । तुम बात चूक रहे हो । ध्यान में डूबो । और उसका आनंद लो । कोई लक्ष्य नहीं है । कोई भविष्य नहीं है । आगे कुछ नहीं है । ध्यान करो । अगर आनंद मनाओ । बिना किसी उद्देश्य के ।
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उदासी - उदासी उतना उदास नहीं करती । जितना उदासी आ गई । यह बात उदास करती है । उदासी की तो अपनी कुछ खूबियां हैं । अपने कुछ रहस्य हैं । अगर उदासी स्वीकार हो । तो उदासी का भी अपना मजा है । मुझे कहने दो इसी तरह कि उदासी का भी अपना मजा है । क्योंकि उदासी में 1 शांति है । 1 शून्यता है । उदासी में 1 गहराई है । आनंद तो छिछला होता है । आनंद तो ऊपर ऊपर होता है । आनंद तो ऐसा होता है । जैसे नदी भागी जाती है । और उसके ऊपर पानी का झाग । उदासी ऐसी होती है । जैसी नदी की गहराई - अंधेरी और काली । आनंद तो प्रकाश जैसा है । उदासी अंधेरे जैसी है । अंधेरी रात का मजा देखा ? अमावस की रात का मजा देखा ? अमावस की रात का रहस्य देखा ? अमावस की रात की गहराई देखी ? मगर जो अंधेरे से डरता है । वह तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है । अमावस को देखना ही नहीं चाहता । जो अंधेरे से डरता है । वह तो अपने द्वार दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है । वह अंधेरे को झुठला देता है । अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे ? दिन में वे तारे नहीं होते । दिन में वे तारे नहीं हो सकते । दिन की वह क्षमता नहीं है । वे तारे तो रात के अंधेरे में । रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं । वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं । और नाचते हैं । ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं । अपने स्वाद हैं । अपने रस हैं । ओशो

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326