21 अगस्त 2013

और फ़िर शुरू होता है - मौत का तांडव

आत्माओं का घर - डर की सच्ची कहानियाँ । किला । जहाँ सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्माएं । पुराने किले । मौत । हादसों । अतीत । और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है । ऐसी कोई जगह जहाँ मौत का साया बनकर रूहें घुमती हों । उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है । और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारे में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है । अपने घुटने टेक देता है । दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले हैं । जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है । और वहाँ आज भी रूहों का वास है । दुनियाँ में ऐसी जगहों के बारे में लोग जानते हैं । लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं । जो इनसे रूबरू होने की हिम्मत रखते हैं । जैसे हम दुनियां में अपने होने या ना होने की बात पर विश्वास करते हैं । वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है । ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इंकार करते हों ।

लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्ली दे सकते हैं । दुनियां की हकीकत को नहीं बदल सकते हैं । कुछ ऐसा ही एक किले के बारे में आपको बताऊँगा । जो कि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ  साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है । अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारे में पढ़ा है । लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी कि भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा । जहाँ सूरज डूबते ही रूहों का कब्जा हो जाता है । और शुरू हो जाता है - मौत का तांडव । राजस्थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है । तो आइये । इस लेख के माध्यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं । भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था । इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था । राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे । उस

समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी । भानगढ़ अलवर जिले में स्थित एक शानदार किला है । जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है । चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्प कलाओ का प्रयोग किया गया है । इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदि के बेहतरीन और अति प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं । इस किले में कुल पांच द्वार हैं । और साथ साथ एक मुख्य दीवार है । इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है । जो अति प्राचीन काल से अपने यथास्थिति में पड़े हुये हैं । भानगड किले पर काले जादूगर सिंघिया का शाप - भानगड़ किला देखने में जितना शानदार है । उसका अतीत उतना ही भयानक है । आपको बता दें कि - भानगड़ किले के बारे में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भानगड़ की राजकुमारी रत्नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खूबसूरत थी । उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी । और  देश के कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे । उस समय उनकी उमृ महज 18 वर्ष ही थी । और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था । उस समय कई राज्यों से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे । उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं ।

राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची । और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी । उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम का व्यक्ति खड़ा होकर उन्हें बहुत ही गौर से देख रहा था । सिंघीया उसी राज्य में रहता था । और वो काले जादू का महारथी था । ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दीवाना था । और उनसे प्रगाण प्रेम करता था । वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था । इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र की बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी । उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया । जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था । तस्वीरों में देखें । बङी-बड़ी एक्ट्रेस से भी सेक्सी हैं - ये हसीनायें । राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया । लेकिन उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया । पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया । और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया । इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा । और तांत्रिक को कुचल दिया । जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी । मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि - इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे । और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे । और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी । उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगड और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ । जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये । यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी । और उनकी भी मौत हो गयी । एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्ले आम के बाद वहाँ मौत की चीखें गूंज गयीं । और आज भी उस किले में उनकी रूहें घुमती हैं । किले में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध है । फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है । किले के चारों तरफ आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ( ए एस आई ) की टीम मौजूद रहती है । ए एस आई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है । इस किले में जो भी सूर्यास्त के बाद गया । वो कभी भी वापस नहीं आया है । कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है । और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है ।
इस ऐतिहासिक किले की यात्रा करने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें । और जानें कि आप कैसे इस जगह जा सकते हैं । कैसे करें - भानगढ़ की यात्रा ?
किले में रूहों का कब्जा - इस किले में कत्ले आम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं । कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है । एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहाँ लगायी थी । ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सके । लेकिन वो भी असफल रही । कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी । इस किले में आज भी जब आप अकेले होंगे । तो तलवारों की टंकार और लोगों की चीख को महसूस कर सकते हैं । इसके अलावा इस किले के भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चूडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती हैं । किले के पिछले हिस्से में जहाँ एक छोटा सा दरवाजा है । उस दरवाजे के पास बहुत ही अंधेरा रहता है । कई बार वहाँ किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है । वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है । और अचानक ही किसी के चीखने की भयानक आवाज इस किले में गूँज जाती है । आपको यह आर्टिकल कैसा लगा । कमेंट बॉक्स में अपने विचार जरूर दें । साभार विकीपीडिया

http://www.youtube.com/watch?v=SwxGm0lVSPQ&feature=youtube_gdata_player

http://www.youtube.com/watch?v=hBCvyrqrSXQ&feature=youtube_gdata_player


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आज '' रक्षाबन्धन '' है । यानी मनहूस सेकुलरों का धर्म निरपेक्षता का नगाड़ा जोर शोर से बजाने का पसंदीदा त्यौहार ।
और आज मनहूस सेकुलर सेकुलरता का नगाड़ा बजाते हुए लोगों को बहकाने के लिये रानी कर्णवती और दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को राखी भेजने का किस्सा  नमक मिर्च लगाकर सुनायेंगे । लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस कहानी का सच क्या है ? दरअसल ये कलंक कथा है । एक धार्मिक हिन्दू महारानी के राखी पर अटूट विश्वास । और, उसके साथ मुस्लिम जनित विश्वासघात करता तैमूरलंग के वंशज हुमायूँ का ।
आयें । आज उस कलंक गाथा की वास्तविकता से आपको परिचय करवाता हूँ ।
हुआ कुछ यूँ था कि मालवा और गुजरात में राज्य कर रहा बहादुर शाह दिल्ली के मुग़ल बादशाह हुमायूँ का जानी दुश्मन था । क्योंकि बहादुर शाह ने हुमायूँ के जानी दुश्मनों को अपने राज्य में शरण दे रखी थी । जिनमें प्रमुख था - इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ । हुमायूँ की सौतेली बहन मासूमा सुल्तान के पति मोहम्मद जमाँ मिर्जा और हुमायूँ के खून का प्यासा बाबर का ही अपना सगा बहनोई मीर मोहम्मद मेंहदी ख्वाजा ( याद रखें कि मुस्लिमों में ये बहुत आम है )
इधर बहादुर शाह ने हुमायूँ से दुश्मनी के कारण हुमायूँ के सारे के सारे दुश्मनों को अपने पास बैठा रखे थे ।
इस तरह बहादुर शाह हुमायूँ का नम्बर एक का दुश्मन बन गया  था । क्योंकि बहादुर शाह से हुमायूँ की जान और राजपाट के जाने का खतरा था । इसलिये हुमायूँ बहादुर शाह को किसी भी हालत में समाप्त करना चाहता था । और वो इसके लिए उचित मौके की तलाश में था । सौभाग्य से इसी बीच उसे मौका मिल गया । क्योंकि जब बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला किया । और चित्तौड़ के किले को घेर लिया । तो धर्म परायण रानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर उसे राखी भाई बना लिया । और उससे सहायता करने की गुहार लगाई ।
इस मौके को पाते ही हुमायूँ ने जो पहले से बहादुर शाह के लिये घात लगाये था । मौके का फायदा उठाने की गरज से ये सोचा कि बहादुर शाह राजपूतों से उलझा है । और ऐसे में उस पर अचानक हमला कर दो । और दुश्मन को खत्म कर दो । और इसी इरादे से हुमायूँ दिल्ली से पूरे लाव-लश्कर के साथ चला । न कि कर्णवती की रक्षा के लिये ।
यही कारण था कि हुमायूँ दिल्ली से चल तो दिया । लेकिन रानी कर्णवती की राखी की लाज बचाने के स्थान पर वह रास्ते में डेरा ड़ालकर बैठ गया । और बहादुर शाह के कमजोर होने का इंतज़ार करता रहा । इधर चित्तौड़ की रानी ने उस हुमायूँ को सन्देश पर सन्देश भेजा । लेकिन हुमायूँ अपनी जगह से टस से मस नही हुआ । और दूर में ही बैठा मौज मस्ती मनाता रहा । क्योंकि अपनी बहन से ही शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाला हुमायूँ क्या जाने राखी अथवा अपनी बहन की अस्मिता को ? उसे तो सिर्फ मतलब था - अपने दुश्मन बहादुर शाह से । इधर बहादुर शाह ने रानी कर्णवती के चित्तौड़ किले को जीतकर उसे जी भर कर लूटा । इस तरह रानी कर्णवती की राखी की लाज मुसलमान घुड़सवारों की टापों के नीचे कुचल गयी । इसके बाद बहादुर शाह चित्तौड़ को लूटकर जब जाने लगा । तो हुमायूँ ने लूट का माल हड़पने तथा, कमजोर हो चुके बहादुर शाह का खत्म करने के लिए उसका गुजरात तक पीछा किया ।
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इस तरह की एक दूसरी राखी भोपाल की रानी कमलावती ने दोस्त मोहम्मद को बाँधी थी कि वह उसकी राखी की लाज रखे । और उसके पति के हत्यारे बाड़ी बरेली के राजा का वध करे । और दोस्त मोहम्मद ने बाड़ी बरेली के राजा का कत्ल कर भी दिया । जिसके बदले में रानी ने अपने इस राखी भाई को जागीर और बहुत सा धन दिया ।
परन्तु धन और जागीर पाने के बाद और शक्तिशाली हो गये दोस्त मोहम्मद ने भोपाल की रानी और अपनी राखी बहन कमलावती का सफ़ाया कर पूरे भोपाल राज्य को ही हड़प लिया ।
यही हकीकत है - इन ऐतिहासिक हिन्दू-मुस्लिम राखी भाई बहनों की ।
जागो हिन्दू । और अपनी आँखें खोलो । नहीं तो सबके सब बारी बारी इसी तरह बेमौत मारे जाओगे । जय महाकाल !
साभार Kumar Satish's फ़ेसबुक 

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