बृह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित लोकमान्य सिद्धान्त । बिग बैंग ( महाविस्फोट ) सिद्धान्त - यह सिद्धान्त इस अवलोकन पर आधारित है कि बृह्मांड में मौजूद सभी वस्तुएं एक दूसरे से दूर जा रही है| इससे वैज्ञानिकों द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि किसी समय अवश्य ही एक बिग बैंग ( महाविस्फोट ) हुआ होगा । जिसके फलस्वरूप यह बृह्मांड फैलता जा रहा है | वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि उस महाविस्फोट के पूर्व समस्त पदार्थ एवं विकिरण एक अति सघन अति उष्म महज़ कुछ मिलीमीटर के एक बिदु में समाहित थे| इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि स्वयं महा विस्फोट किस कारण से हुआ यह अज्ञात है|
- यह जानकारी मुझे साहिल मियां ने भेजी है । साहिल मुसलमान है या सिख हैं ? यह ऊपर लिखे अपूर्ण शोध सिद्धांत की ही तरह गहन वैज्ञानिक खोज का विषय है । पर इतना तय है कि साहिल मुझसे मिलने के बाद धर्म परिवर्तन कर पूर्ण पण्डित बन चुके हैं । यानी हमारे काबिल शिष्यों में से एक हैं । गहरी वैज्ञानिक जानकारियाँ रखने वाले और अंग्रेजी भाषा के परम पण्डित साहिल के अनुसार अक्सर वैज्ञानिक बकबास अधिक करते हैं । बहुत कम वैज्ञानिक लक्ष्य की ओर गम्भीरता से उन्मुख होते हैं । और अपने शोध पर सार्थक ढंग से वक्तव्य देते हैं । सब भाषाओं की जबरन नानी बनी बैठी अंग्रेजी के लिये साहिल मियां का मानना है - यह एक लंगङी भाषा है । जिसमें सभी भाव
अभिव्यक्तियों या बहुत सी अन्य चीजों के लिये शब्द ही नहीं हैं । खैर ..साहिल पर एक किताब भी लिख दी जाये । तो उनकी पूर्ण प्रशंसा सम्भव नहीं है ।
अतः बात ऊपर लिखी बात पर ही करते हैं ।
अब देखिये । यदि इस बिग बैंग सिद्धांत को आप बाह्य अन्दाज ( बाह्य अन्दाज से मेरा आशय बाहरी जानकारी से है । दरअसल ये सभी कुछ आपके अन्दर ही है ) में देखें । तो यह बङा डरावना दुर्लभ पहुँच से बाहर और अनोखा रोमांचक आदि आदि सा लगेगा । जिस पर सैकङों वर्षों तक वैज्ञानिक खोज करेंगे । तब शायद रहस्य पता लगे । अब बहुत सरलता से समझें । आदिमानव से लेकर आज तक की बृह्माण्डीय या अन्य वैज्ञानिक खोज कैसे पता लगी ? क्या बाहर की कोई चीज आपके अन्दर आयी । आयी तो कहाँ आयी ? मेरा मतलब आपके शरीर में वो जगह ( स्थान शब्द पर विशेष ध्यान दें ) क्या और कहाँ हैं ? जहाँ इस सब जानकारी का भण्डारण होता है । यदि होता है । तो कोई भी मनुष्य किसी भी ( अब तक ) नई अज्ञात जानकारी ( जैसे खगोलीय यांत्रिकी आदि ) को अपने अन्दर उतारता है । तो वह उसके ज्ञाता दूसरे मनुष्य की ही तरह कैसे उसके अन्दर पैदा हो जाती है । नहीं समझें । उदाहरण के लिये मान लीजिये । किसी एक व्यक्ति ने पूरा आस्ट्रेलिया घूमा । अब एक तरह से पूरा आस्ट्रेलिया उसके अन्दर आ गया । अब वह अभी भारत में भी है । तो जैसे ही आस्ट्रेलिया के किसी भी स्थान या पूरे के बारे में सोचेगा । तो वह साक्षात होगा । लेकिन जिस व्यक्ति ने आस्ट्रेलिया कभी नहीं देखा । वह आस्ट्रेलिया के नाम पर बगलें झाकेंगा ।
अब मान लीजिये । यह दूसरा व्यक्ति भी पहले के समान आस्ट्रेलिया घूम आया । अब मेरा प्रश्न है कि आस्ट्रेलिया इसके अन्दर पहले वाले जैसा ही आया । या किसी भी अन्य रूप में । निसन्देह पहले वाले की ही तरह । कुतर्की व्यक्ति विशेष ध्यान दें । मैं यहाँ सामान्य बुद्धि व्यक्तियों की सोच और उनकी विभिन्न्ता के बारे में बात न कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक सोच ( नियम ) पर बात कर रहा हूँ । अब और भी समझें । आस्ट्रेलिया ( बृह्माण्ड या महा विस्फ़ोट आदि ) इन दोनों व्यक्तियों के जानने से पहले भी था । जानने के बाद ( यथासम्भव ) इनकी पहुँच में भी आ गया । मेरी बात गौर से समझें । कोई भी बाह्य चीज आपके अन्दर कैसे आ सकती है ? और दूसरे के अन्दर भी समान रूप से आयी । दरअसल वह आपके अन्दर ही थी । अभी तक सिर्फ़ गुप्त थी । अज्ञात थी । अब प्रकाशित हो गयी । अन्दर बाहर एकरूप हो गयी । इसी को ( उसका ) ज्ञान होना या सिद्ध होना भी कहा जाता है । ज्ञान प्रकाश और रू शब्दों का एक ही अर्थ है । इस बात को और भी ठीक से समझने के लिये मेरे प्रिय श्लोक ॐ पूर्णमिद पूर्ण मिदाय पूर्णमेवशिष्यते को ठीक से समझना होगा । इसको ( श्लोक आधार पर ) बेहद सरल भाषा में यों समझ सकते हैं कि पूरे समुद्र के पानी में जो गुण तत्व आदि होंगे । वही उसकी एक अति सूक्ष्म बूँद में भी होंगे । किसी भी पदार्थ के अति विशाल भण्डार ( या आकार ) में जो गुण तत्व आदि होंगे । वही उसके एक बहुत छोटे कण में भी होंगे । तो आस्ट्रेलिया चाहे एक व्यक्ति घूमें या अनन्त । आस्ट्रेलिया ( या कोई भी कुछ भी अन्य ) सबमें समान रूप से ही प्रकाशित होगा ।
अब इसी को और विस्तार से समझें । महाविस्फ़ोट का सिद्धांत यहाँ एक बिलकुल नये पाठक से लेकर अब तक हजारों वैज्ञानिकों के दिमाग में उनके शोध और दर्शन ( की जितनी ग्रहणता हुयी हो ) के अनुसार अलग अलग स्तर के दृष्य के साथ होगा । अब इनमें से अलग अलग स्तर वाले जो भी इस जानकारी पर सही और कृमबद्ध ढंग से जितना आगे बढेंगे । वे महाविस्फ़ोट को उतना जानते जायेंगे । फ़िर सोचिये । ये आपके अन्दर था । या बाहर से अन्दर आया । दरअसल ये आपके अन्दर भी है । और बाहर आपकी ही कल्पना का साकार दृष्य ।
अब मुझे नहीं पता कि साहिल ने - बृह्मांड फैलता जा रहा है | जैसा वैज्ञानिक तथ्य फ़ाइनल रिपोर्ट से लगाया है । या किसी वैज्ञानिक जानकारी का एक अंश ही है । और बृह्माण्ड शब्द से साहिल या वैज्ञानिकों का क्या आशय है ? क्या पूरी सृष्टि या पूरा विराट ? देखिये हमारे धर्म शास्त्र क्या कहते हैं - विराट पुरुष के रोम रोम में करोङों खण्ड बृह्माण्ड हैं ।
अतः मैं नहीं समझ पाता कि बृह्माण्ड फ़ैल रहा है । या आकाश फ़ैल रहा है । वैज्ञानिक या बुद्धिजीवी इस बात को कैसे और किन अर्थों में लेते हैं । दरअसल वैज्ञानिकों के लिये बहुत महत्वपूर्ण ये बिग बैंग प्रभुसत्ता के लिये किसी बच्चे का पटाखा फ़ोङने जैसा ही है । जी हाँ ! पदार्थों के पुनः निर्माण के लिये नये बृह्माण्ड के लिये ऐसे महाविस्फ़ोट सृष्टि में आम होते रहते हैं । जैसे प्रथ्वी की आंतरिक और बाह्य सरंचना को प्राकृतिक रूप में पुनःनिर्मित करने के लिये विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी विस्फ़ोट और अन्य गैस रिसाव तथा प्रथ्वी के गर्भ में अनेकों आंतरिक हलचलें होती रहती हैं । इस तरह जो बृह्माण्ड फ़ैल रहा है ( या सिकुङता है ) । वह एक सुनिश्चित कसे तन्त्र के तहत इन्हीं विस्फ़ोटों से पैदा हुयी ऊर्जा को उनके निर्धारित जगह पर समायोजित करने हेतु होता है । यह मैं बहुत ही मोटे तौर पर बता रहा हूँ । इसके दस बीस तथ्य भी बताने पर मामला बहुत पेचीदा और वैज्ञानिक जटिलता जैसा हो जायेगा । दरअसल ये सब ( इंसानी ) मन बुद्धि से परे का ज्ञान है ।
सुनहु तात यह अकथ कहानी । समझत बनत न जात बखानी ।
हालांकि ये महाविस्फ़ोट सिद्धांत एक दूसरे भाव में सही है । ( परन्तु वैसे नहीं जैसा वैज्ञानिकों का अनुमान है ) क्योंकि ( सर्वप्रथम ) महाविस्फ़ोट - आत्मा में संकुचन । फ़िर उसने सोचा - मैं कौन हूँ ? इसके बाद हुआ । और ये पांच महाभूत - प्रथ्वी ( मगर तत्व ) आकाश ( तत्व ) अग्नि ( तत्व ) वायु ( तत्व ) जल ( तत्व ) प्रकट हुये । ये आदि महाविस्फ़ोट था । यदि वैज्ञानिकों के अंतर्मन में इस महाविस्फ़ोट की विस्मृति सी स्मृति भी है । तो मेरे लिये आश्चर्य की बात नहीं । क्योंकि वैज्ञानिक भी कोई अन्य नहीं । ईश्वर अंश जीव अविनाशी । जो तुम हो । वही मैं हूँ । और ...ॐ पूर्णमिद पूर्ण मिदाय पूर्णमेवशिष्यते श्लोक यही तो कहता है । क्योंकि महाविस्फ़ोट की पूर्ण जानकारी उनके ( या सभी के ) अन्दर आज भी ज्यों की त्यों है । लेकिन ऊपर लिखे महाविस्फ़ोट सिद्धांत से जो भाव निकल रहा है । वह बहुत तुच्छता का है । क्योंकि इस भाव के महाविस्फ़ोटक पटाखे सृष्टि में अक्सर फ़ूटते रहते हैं । वो इसलिये क्योंकि " महाकारण क्षेत्र " में जो ( अनेकों ) बृह्माण्ड उत्पत्ति और लय के लिये नियमानुसार जो गतिविधियाँ चलती रहती हैं । उससे अनेकों अनगिनत चित्र विचित्र सृष्टियों ( प्रथ्वियों सौर मण्डल आदि ) का निर्माण विध्वंस जारी रहता है ।
दरअसल ये सब समझाना आसान नहीं है । जब तक आप आंतरिक योग में थोङा भी प्रयोगात्मक न जानते हों । लेकिन मैं आपको एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य बताता हूँ । जिस तरफ़ शायद प्रथ्वी के किसी भी बुद्धिजीवी का ध्यान नहीं गया । पदार्थ को अंग्रेजी भाषा में MATTER कहते हैं । और सृष्टि उत्पत्ति के रहस्य को लेकर वैज्ञानिकों ने यहाँ हाथ जोङ लिये कि सबसे पहले कोई न कोई ( अन्तिम निष्कर्ष ) MATTER था । क्योंकि किसी न किसी चीज को उन्हें भी शाश्वत मानना ही होगा । ( वरना फ़िर कैसे क्या होता ) और इसीलिये साहिल अंग्रेजी को लंगङी भाषा कहता है । क्योंकि हिन्दी में यदि वैज्ञानिक इसी को पदार्थ कहते । तो पद + अर्थ = पदार्थ । अर्थात पद ( कोई स्थिति या उपाधि ) अर्थ ( उस पद के क्या अर्थ हैं । यानी उसमें क्या क्या समाहित हैं ) अब समझें । यदि कोई पद अर्थ युक्त है । तो जरूर उसका निर्माता नियंता भी कोई होगा । और जो भी होगा । वही शाश्वत होगा । इसलिये पदार्थ से सृष्टि उत्पत्ति का सिद्धांत अति लघुविस्फ़ोट से ही उङ जाता है । जबकि आत्मा शब्द के साथ ऐसा नहीं है ।
खैर.. आज इतना ही ।
देखिये आप यकीन करें न करें । मैं जो ये लिखता हूँ । उस समय वही चीज ज्यों की त्यों मेरे सामने होती है । जिस बिन्दु पर मैं लिख रहा होता हूँ । जैसे आप पर्यटन के बाद किसी स्थान का या अपने किसी अनुभव को लिखते समय अनुभव करते हैं । अतः एक रौ युक्त बहाव में तेजी से लिखता हूँ । पर हो सकता है । वह कहीं आपको समझ न आता हो । तब उसको आप पूछ सकते हैं ।
आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
- यह जानकारी मुझे साहिल मियां ने भेजी है । साहिल मुसलमान है या सिख हैं ? यह ऊपर लिखे अपूर्ण शोध सिद्धांत की ही तरह गहन वैज्ञानिक खोज का विषय है । पर इतना तय है कि साहिल मुझसे मिलने के बाद धर्म परिवर्तन कर पूर्ण पण्डित बन चुके हैं । यानी हमारे काबिल शिष्यों में से एक हैं । गहरी वैज्ञानिक जानकारियाँ रखने वाले और अंग्रेजी भाषा के परम पण्डित साहिल के अनुसार अक्सर वैज्ञानिक बकबास अधिक करते हैं । बहुत कम वैज्ञानिक लक्ष्य की ओर गम्भीरता से उन्मुख होते हैं । और अपने शोध पर सार्थक ढंग से वक्तव्य देते हैं । सब भाषाओं की जबरन नानी बनी बैठी अंग्रेजी के लिये साहिल मियां का मानना है - यह एक लंगङी भाषा है । जिसमें सभी भाव
अभिव्यक्तियों या बहुत सी अन्य चीजों के लिये शब्द ही नहीं हैं । खैर ..साहिल पर एक किताब भी लिख दी जाये । तो उनकी पूर्ण प्रशंसा सम्भव नहीं है ।
अतः बात ऊपर लिखी बात पर ही करते हैं ।
अब देखिये । यदि इस बिग बैंग सिद्धांत को आप बाह्य अन्दाज ( बाह्य अन्दाज से मेरा आशय बाहरी जानकारी से है । दरअसल ये सभी कुछ आपके अन्दर ही है ) में देखें । तो यह बङा डरावना दुर्लभ पहुँच से बाहर और अनोखा रोमांचक आदि आदि सा लगेगा । जिस पर सैकङों वर्षों तक वैज्ञानिक खोज करेंगे । तब शायद रहस्य पता लगे । अब बहुत सरलता से समझें । आदिमानव से लेकर आज तक की बृह्माण्डीय या अन्य वैज्ञानिक खोज कैसे पता लगी ? क्या बाहर की कोई चीज आपके अन्दर आयी । आयी तो कहाँ आयी ? मेरा मतलब आपके शरीर में वो जगह ( स्थान शब्द पर विशेष ध्यान दें ) क्या और कहाँ हैं ? जहाँ इस सब जानकारी का भण्डारण होता है । यदि होता है । तो कोई भी मनुष्य किसी भी ( अब तक ) नई अज्ञात जानकारी ( जैसे खगोलीय यांत्रिकी आदि ) को अपने अन्दर उतारता है । तो वह उसके ज्ञाता दूसरे मनुष्य की ही तरह कैसे उसके अन्दर पैदा हो जाती है । नहीं समझें । उदाहरण के लिये मान लीजिये । किसी एक व्यक्ति ने पूरा आस्ट्रेलिया घूमा । अब एक तरह से पूरा आस्ट्रेलिया उसके अन्दर आ गया । अब वह अभी भारत में भी है । तो जैसे ही आस्ट्रेलिया के किसी भी स्थान या पूरे के बारे में सोचेगा । तो वह साक्षात होगा । लेकिन जिस व्यक्ति ने आस्ट्रेलिया कभी नहीं देखा । वह आस्ट्रेलिया के नाम पर बगलें झाकेंगा ।
अब मान लीजिये । यह दूसरा व्यक्ति भी पहले के समान आस्ट्रेलिया घूम आया । अब मेरा प्रश्न है कि आस्ट्रेलिया इसके अन्दर पहले वाले जैसा ही आया । या किसी भी अन्य रूप में । निसन्देह पहले वाले की ही तरह । कुतर्की व्यक्ति विशेष ध्यान दें । मैं यहाँ सामान्य बुद्धि व्यक्तियों की सोच और उनकी विभिन्न्ता के बारे में बात न कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक सोच ( नियम ) पर बात कर रहा हूँ । अब और भी समझें । आस्ट्रेलिया ( बृह्माण्ड या महा विस्फ़ोट आदि ) इन दोनों व्यक्तियों के जानने से पहले भी था । जानने के बाद ( यथासम्भव ) इनकी पहुँच में भी आ गया । मेरी बात गौर से समझें । कोई भी बाह्य चीज आपके अन्दर कैसे आ सकती है ? और दूसरे के अन्दर भी समान रूप से आयी । दरअसल वह आपके अन्दर ही थी । अभी तक सिर्फ़ गुप्त थी । अज्ञात थी । अब प्रकाशित हो गयी । अन्दर बाहर एकरूप हो गयी । इसी को ( उसका ) ज्ञान होना या सिद्ध होना भी कहा जाता है । ज्ञान प्रकाश और रू शब्दों का एक ही अर्थ है । इस बात को और भी ठीक से समझने के लिये मेरे प्रिय श्लोक ॐ पूर्णमिद पूर्ण मिदाय पूर्णमेवशिष्यते को ठीक से समझना होगा । इसको ( श्लोक आधार पर ) बेहद सरल भाषा में यों समझ सकते हैं कि पूरे समुद्र के पानी में जो गुण तत्व आदि होंगे । वही उसकी एक अति सूक्ष्म बूँद में भी होंगे । किसी भी पदार्थ के अति विशाल भण्डार ( या आकार ) में जो गुण तत्व आदि होंगे । वही उसके एक बहुत छोटे कण में भी होंगे । तो आस्ट्रेलिया चाहे एक व्यक्ति घूमें या अनन्त । आस्ट्रेलिया ( या कोई भी कुछ भी अन्य ) सबमें समान रूप से ही प्रकाशित होगा ।
अब इसी को और विस्तार से समझें । महाविस्फ़ोट का सिद्धांत यहाँ एक बिलकुल नये पाठक से लेकर अब तक हजारों वैज्ञानिकों के दिमाग में उनके शोध और दर्शन ( की जितनी ग्रहणता हुयी हो ) के अनुसार अलग अलग स्तर के दृष्य के साथ होगा । अब इनमें से अलग अलग स्तर वाले जो भी इस जानकारी पर सही और कृमबद्ध ढंग से जितना आगे बढेंगे । वे महाविस्फ़ोट को उतना जानते जायेंगे । फ़िर सोचिये । ये आपके अन्दर था । या बाहर से अन्दर आया । दरअसल ये आपके अन्दर भी है । और बाहर आपकी ही कल्पना का साकार दृष्य ।
अब मुझे नहीं पता कि साहिल ने - बृह्मांड फैलता जा रहा है | जैसा वैज्ञानिक तथ्य फ़ाइनल रिपोर्ट से लगाया है । या किसी वैज्ञानिक जानकारी का एक अंश ही है । और बृह्माण्ड शब्द से साहिल या वैज्ञानिकों का क्या आशय है ? क्या पूरी सृष्टि या पूरा विराट ? देखिये हमारे धर्म शास्त्र क्या कहते हैं - विराट पुरुष के रोम रोम में करोङों खण्ड बृह्माण्ड हैं ।
अतः मैं नहीं समझ पाता कि बृह्माण्ड फ़ैल रहा है । या आकाश फ़ैल रहा है । वैज्ञानिक या बुद्धिजीवी इस बात को कैसे और किन अर्थों में लेते हैं । दरअसल वैज्ञानिकों के लिये बहुत महत्वपूर्ण ये बिग बैंग प्रभुसत्ता के लिये किसी बच्चे का पटाखा फ़ोङने जैसा ही है । जी हाँ ! पदार्थों के पुनः निर्माण के लिये नये बृह्माण्ड के लिये ऐसे महाविस्फ़ोट सृष्टि में आम होते रहते हैं । जैसे प्रथ्वी की आंतरिक और बाह्य सरंचना को प्राकृतिक रूप में पुनःनिर्मित करने के लिये विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी विस्फ़ोट और अन्य गैस रिसाव तथा प्रथ्वी के गर्भ में अनेकों आंतरिक हलचलें होती रहती हैं । इस तरह जो बृह्माण्ड फ़ैल रहा है ( या सिकुङता है ) । वह एक सुनिश्चित कसे तन्त्र के तहत इन्हीं विस्फ़ोटों से पैदा हुयी ऊर्जा को उनके निर्धारित जगह पर समायोजित करने हेतु होता है । यह मैं बहुत ही मोटे तौर पर बता रहा हूँ । इसके दस बीस तथ्य भी बताने पर मामला बहुत पेचीदा और वैज्ञानिक जटिलता जैसा हो जायेगा । दरअसल ये सब ( इंसानी ) मन बुद्धि से परे का ज्ञान है ।
सुनहु तात यह अकथ कहानी । समझत बनत न जात बखानी ।
हालांकि ये महाविस्फ़ोट सिद्धांत एक दूसरे भाव में सही है । ( परन्तु वैसे नहीं जैसा वैज्ञानिकों का अनुमान है ) क्योंकि ( सर्वप्रथम ) महाविस्फ़ोट - आत्मा में संकुचन । फ़िर उसने सोचा - मैं कौन हूँ ? इसके बाद हुआ । और ये पांच महाभूत - प्रथ्वी ( मगर तत्व ) आकाश ( तत्व ) अग्नि ( तत्व ) वायु ( तत्व ) जल ( तत्व ) प्रकट हुये । ये आदि महाविस्फ़ोट था । यदि वैज्ञानिकों के अंतर्मन में इस महाविस्फ़ोट की विस्मृति सी स्मृति भी है । तो मेरे लिये आश्चर्य की बात नहीं । क्योंकि वैज्ञानिक भी कोई अन्य नहीं । ईश्वर अंश जीव अविनाशी । जो तुम हो । वही मैं हूँ । और ...ॐ पूर्णमिद पूर्ण मिदाय पूर्णमेवशिष्यते श्लोक यही तो कहता है । क्योंकि महाविस्फ़ोट की पूर्ण जानकारी उनके ( या सभी के ) अन्दर आज भी ज्यों की त्यों है । लेकिन ऊपर लिखे महाविस्फ़ोट सिद्धांत से जो भाव निकल रहा है । वह बहुत तुच्छता का है । क्योंकि इस भाव के महाविस्फ़ोटक पटाखे सृष्टि में अक्सर फ़ूटते रहते हैं । वो इसलिये क्योंकि " महाकारण क्षेत्र " में जो ( अनेकों ) बृह्माण्ड उत्पत्ति और लय के लिये नियमानुसार जो गतिविधियाँ चलती रहती हैं । उससे अनेकों अनगिनत चित्र विचित्र सृष्टियों ( प्रथ्वियों सौर मण्डल आदि ) का निर्माण विध्वंस जारी रहता है ।
दरअसल ये सब समझाना आसान नहीं है । जब तक आप आंतरिक योग में थोङा भी प्रयोगात्मक न जानते हों । लेकिन मैं आपको एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य बताता हूँ । जिस तरफ़ शायद प्रथ्वी के किसी भी बुद्धिजीवी का ध्यान नहीं गया । पदार्थ को अंग्रेजी भाषा में MATTER कहते हैं । और सृष्टि उत्पत्ति के रहस्य को लेकर वैज्ञानिकों ने यहाँ हाथ जोङ लिये कि सबसे पहले कोई न कोई ( अन्तिम निष्कर्ष ) MATTER था । क्योंकि किसी न किसी चीज को उन्हें भी शाश्वत मानना ही होगा । ( वरना फ़िर कैसे क्या होता ) और इसीलिये साहिल अंग्रेजी को लंगङी भाषा कहता है । क्योंकि हिन्दी में यदि वैज्ञानिक इसी को पदार्थ कहते । तो पद + अर्थ = पदार्थ । अर्थात पद ( कोई स्थिति या उपाधि ) अर्थ ( उस पद के क्या अर्थ हैं । यानी उसमें क्या क्या समाहित हैं ) अब समझें । यदि कोई पद अर्थ युक्त है । तो जरूर उसका निर्माता नियंता भी कोई होगा । और जो भी होगा । वही शाश्वत होगा । इसलिये पदार्थ से सृष्टि उत्पत्ति का सिद्धांत अति लघुविस्फ़ोट से ही उङ जाता है । जबकि आत्मा शब्द के साथ ऐसा नहीं है ।
खैर.. आज इतना ही ।
देखिये आप यकीन करें न करें । मैं जो ये लिखता हूँ । उस समय वही चीज ज्यों की त्यों मेरे सामने होती है । जिस बिन्दु पर मैं लिख रहा होता हूँ । जैसे आप पर्यटन के बाद किसी स्थान का या अपने किसी अनुभव को लिखते समय अनुभव करते हैं । अतः एक रौ युक्त बहाव में तेजी से लिखता हूँ । पर हो सकता है । वह कहीं आपको समझ न आता हो । तब उसको आप पूछ सकते हैं ।
आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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