सियाराम मय सब जग जानी । करहु प्रनाम जोरि जुग पानि ।
1अ 2 आ 3 इ 4 ई 5 उ 6 ऊ 7 ऋ 8 ऋ 9 लृ 10 लृ् 11 ए 12 ऐ 13 ओ 14 औ 15 अं 16 अः
1 क 2 ख 3 ग 4 घ 5 ङ । 6च 7 छ 8 ज 9 झ 10 ञ । 11 ट 12 ठ 13 ड 14 ढ 15 ण । 16 त 17 थ 18 द 19 ध 20 न । 21 प 22 फ 23 ब 24 भ 25 म । 26 य 27 र 28 ल 29 व । 30 श 31 ष 32 स 33 ह 34 क्ष 35 त्र 36 ज्ञ
सीताराम
स + ई ( सी ) त + आ ( ता ) र + आ ( रा ) म
32 + 4 = 36 16 + 2 = 18 27 + 2 = 29 25
( 9 ) ( 9 ) ( 2 ) ( 7 )
36 + 18 = 54 = 5 + 4 = ( 9 ) | 29 + 25 = 54 = 5 + 4 = ( 9 )
54 + 54 = 108
आईये आज जपने की माला में 108 मनके क्यों होते हैं । इस पर बात करते हैं । सबसे पहले अंक विद्या के अनुसार 108 को चाहे किसी तरह से जोङें । इनका योग 9 ही आयेगा । जैसे 10+ 8 = 18 = 1 + 8 = 9 या 1+0+8 = 9 यही बात सीता और राम शब्दों के अंक योग पर भी होती है । 9 अंक अंकों की पूर्णता का द्योतक है । अर्थात 9 के बाद कोई अंक नहीं आता । पूरी गणना गणित 1 से 9 के ही अन्दर है । अतः सीता शब्द का अंक योग 54 है । और राम का भी 54 ही है । और दोनों का योग 108 होता है ।
इसके अलावा 108 का एक दूसरा रहस्य भी है । 108 में सबसे पहले 1 अंक आता है । जो परमात्मा का द्योतक है । इसके बाद 0 आता है । और 0 ( से नहीं ) में ही सृष्टि उत्पन्न हुयी है । यहाँ 0 का मतलब कुछ नहीं होने से हैं । यानी आज जहाँ ये तमाम सृष्टि स्थिति है । ये स्थान तक नहीं था । तब अन्य चीजों की तो बात ही छोङ दें ।
अब 1 परमात्मा तो शाश्वत है ही । था । और हमेशा रहता है । इसके बाद 2 ( द्वैत ) 3 ( गुण ) 4 ( लोक ) 5 ( महाभूत ) आदि आदि का खेल है । 1 परमात्मा में तो कोई बात नहीं है । लेकिन 2 ( द्वैत ) से तमाम खेल प्रंपच शुरू हो जाता है । इसलिये इसमें कोई कृम या ये ठीक ऐसे ही था है । बताना लगभग असंभव है । क्योंकि एकदम कई चीजें एक साथ घटीं । हाँ लेकिन 2 से 9 तक एक बात पूर्ण सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में 0 रूपी परदे ( या स्थान पर ) पर जीवन था । इसलिये यदि 0 न हो । तो कोई कृम गणना आदि कुछ नहीं हो सकता । 0 की यही भूमिका है । 1 की चेतना से 8 का खेल । 8 यानी 2 से 9 । यह 8 क्या है ? मन के 8 वर्ग या भाव । ये आठ भाव ये हैं - 1 काम ( विभिन्न इच्छायें । वासनायें ) । 2 क्रोध । 3 लोभ । 4 मोह । 5 मद ( घमण्ड ) । 6 मत्सर ( जलन ) । 7 ज्ञान । 8 वैराग । आप खूब कोशिश कर लें । इन आठ भावों से अधिक कोई भी नया भाव नहीं खोज पायेंगे । और एक तुच्छ जीव से लेकर उच्च ( महा ) आत्मा ( वास्तव में महा जीवात्मा ) तक इन्हीं आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है । यही 108 का रहस्य है । सीताराम शब्द में सीता माया है । और राम चेतन पुरुष है । इसीलिये भक्ति हेतु जपी जाने वाली माला में 108 मनकों की परम्परा बनायी गयी है ।
1अ 2 आ 3 इ 4 ई 5 उ 6 ऊ 7 ऋ 8 ऋ 9 लृ 10 लृ् 11 ए 12 ऐ 13 ओ 14 औ 15 अं 16 अः
1 क 2 ख 3 ग 4 घ 5 ङ । 6च 7 छ 8 ज 9 झ 10 ञ । 11 ट 12 ठ 13 ड 14 ढ 15 ण । 16 त 17 थ 18 द 19 ध 20 न । 21 प 22 फ 23 ब 24 भ 25 म । 26 य 27 र 28 ल 29 व । 30 श 31 ष 32 स 33 ह 34 क्ष 35 त्र 36 ज्ञ
सीताराम
स + ई ( सी ) त + आ ( ता ) र + आ ( रा ) म
32 + 4 = 36 16 + 2 = 18 27 + 2 = 29 25
( 9 ) ( 9 ) ( 2 ) ( 7 )
36 + 18 = 54 = 5 + 4 = ( 9 ) | 29 + 25 = 54 = 5 + 4 = ( 9 )
54 + 54 = 108
आईये आज जपने की माला में 108 मनके क्यों होते हैं । इस पर बात करते हैं । सबसे पहले अंक विद्या के अनुसार 108 को चाहे किसी तरह से जोङें । इनका योग 9 ही आयेगा । जैसे 10+ 8 = 18 = 1 + 8 = 9 या 1+0+8 = 9 यही बात सीता और राम शब्दों के अंक योग पर भी होती है । 9 अंक अंकों की पूर्णता का द्योतक है । अर्थात 9 के बाद कोई अंक नहीं आता । पूरी गणना गणित 1 से 9 के ही अन्दर है । अतः सीता शब्द का अंक योग 54 है । और राम का भी 54 ही है । और दोनों का योग 108 होता है ।
इसके अलावा 108 का एक दूसरा रहस्य भी है । 108 में सबसे पहले 1 अंक आता है । जो परमात्मा का द्योतक है । इसके बाद 0 आता है । और 0 ( से नहीं ) में ही सृष्टि उत्पन्न हुयी है । यहाँ 0 का मतलब कुछ नहीं होने से हैं । यानी आज जहाँ ये तमाम सृष्टि स्थिति है । ये स्थान तक नहीं था । तब अन्य चीजों की तो बात ही छोङ दें ।
अब 1 परमात्मा तो शाश्वत है ही । था । और हमेशा रहता है । इसके बाद 2 ( द्वैत ) 3 ( गुण ) 4 ( लोक ) 5 ( महाभूत ) आदि आदि का खेल है । 1 परमात्मा में तो कोई बात नहीं है । लेकिन 2 ( द्वैत ) से तमाम खेल प्रंपच शुरू हो जाता है । इसलिये इसमें कोई कृम या ये ठीक ऐसे ही था है । बताना लगभग असंभव है । क्योंकि एकदम कई चीजें एक साथ घटीं । हाँ लेकिन 2 से 9 तक एक बात पूर्ण सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में 0 रूपी परदे ( या स्थान पर ) पर जीवन था । इसलिये यदि 0 न हो । तो कोई कृम गणना आदि कुछ नहीं हो सकता । 0 की यही भूमिका है । 1 की चेतना से 8 का खेल । 8 यानी 2 से 9 । यह 8 क्या है ? मन के 8 वर्ग या भाव । ये आठ भाव ये हैं - 1 काम ( विभिन्न इच्छायें । वासनायें ) । 2 क्रोध । 3 लोभ । 4 मोह । 5 मद ( घमण्ड ) । 6 मत्सर ( जलन ) । 7 ज्ञान । 8 वैराग । आप खूब कोशिश कर लें । इन आठ भावों से अधिक कोई भी नया भाव नहीं खोज पायेंगे । और एक तुच्छ जीव से लेकर उच्च ( महा ) आत्मा ( वास्तव में महा जीवात्मा ) तक इन्हीं आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है । यही 108 का रहस्य है । सीताराम शब्द में सीता माया है । और राम चेतन पुरुष है । इसीलिये भक्ति हेतु जपी जाने वाली माला में 108 मनकों की परम्परा बनायी गयी है ।
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