21 अगस्त 2013

जप माला के 108 मनकों का रहस्य ।

सियाराम मय सब जग जानी । करहु प्रनाम जोरि जुग पानि ।
1अ 2 आ 3  इ 4  ई 5  उ 6  ऊ 7  ऋ 8  ऋ 9  लृ 10  लृ् 11 ए 12 ऐ 13 ओ 14 औ 15 अं 16 अः
1 क  2 ख  3 ग  4 घ  5 ङ । 6च  7 छ  8 ज  9 झ  10 ञ । 11 ट  12 ठ  13  ड  14  ढ  15 ण । 16  त  17 थ  18  द  19 ध  20  न । 21 प  22 फ  23 ब  24  भ  25 म । 26 य  27 र  28 ल  29 व । 30 श  31  ष  32  स  33  ह 34  क्ष 35  त्र 36  ज्ञ
सीताराम 
स + ई ( सी ) त + आ ( ता ) र + आ ( रा ) म
32 + 4 = 36    16  +  2 = 18     27 + 2  = 29     25
( 9 )                    ( 9 )                    ( 2 )           ( 7 )
36 + 18 = 54 = 5 + 4 = ( 9 ) |  29  + 25 = 54 = 5 + 4 = ( 9 )
54 + 54 = 108

आईये आज जपने की माला में 108 मनके क्यों होते हैं । इस पर बात करते हैं । सबसे पहले अंक विद्या के अनुसार 108  को चाहे किसी तरह से जोङें । इनका योग 9  ही आयेगा । जैसे 10+ 8  = 18 = 1 + 8 = 9 या 1+0+8 = 9 यही बात सीता और राम शब्दों के अंक योग पर भी  होती है । 9 अंक अंकों की पूर्णता का द्योतक है । अर्थात 9 के बाद कोई अंक नहीं आता । पूरी गणना गणित 1 से 9 के ही अन्दर है । अतः सीता शब्द का अंक योग 54 है । और राम का भी 54 ही है । और दोनों का योग 108 होता है ।
इसके अलावा 108 का एक दूसरा रहस्य भी है । 108 में सबसे पहले 1 अंक आता है । जो परमात्मा का द्योतक है । इसके बाद 0 आता है । और 0 ( से नहीं ) में ही सृष्टि उत्पन्न हुयी है । यहाँ 0 का मतलब कुछ नहीं होने से हैं । यानी आज जहाँ ये तमाम सृष्टि स्थिति है । ये स्थान तक नहीं था । तब अन्य चीजों की तो बात ही छोङ दें ।
अब 1 परमात्मा तो शाश्वत है ही । था । और हमेशा रहता है । इसके बाद 2 ( द्वैत ) 3 ( गुण ) 4 ( लोक ) 5 ( महाभूत ) आदि आदि का खेल है । 1 परमात्मा में तो कोई बात नहीं है । लेकिन 2 ( द्वैत ) से तमाम खेल प्रंपच शुरू हो जाता है । इसलिये इसमें कोई कृम या ये ठीक ऐसे ही था है । बताना लगभग असंभव है । क्योंकि एकदम कई चीजें एक साथ घटीं । हाँ लेकिन 2 से 9 तक एक बात पूर्ण सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में 0 रूपी परदे ( या स्थान पर ) पर जीवन था । इसलिये यदि 0 न हो । तो कोई कृम गणना आदि कुछ नहीं हो सकता । 0 की यही भूमिका है । 1 की चेतना से 8 का खेल । 8 यानी 2 से 9 । यह 8 क्या है ? मन के 8 वर्ग या भाव । ये आठ भाव ये हैं - 1 काम ( विभिन्न इच्छायें । वासनायें ) । 2 क्रोध । 3 लोभ । 4 मोह । 5 मद ( घमण्ड  ) । 6 मत्सर ( जलन ) । 7 ज्ञान । 8 वैराग । आप खूब कोशिश कर लें । इन आठ भावों से अधिक कोई भी नया भाव नहीं खोज पायेंगे । और एक तुच्छ जीव से लेकर उच्च ( महा ) आत्मा ( वास्तव में महा जीवात्मा ) तक इन्हीं आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है । यही 108 का रहस्य है । सीताराम शब्द में सीता माया है । और राम चेतन पुरुष है । इसीलिये भक्ति हेतु जपी जाने वाली माला में 108 मनकों की परम्परा बनायी गयी है । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326