संतो शब्दई शब्द बखाना । शब्द फ़ांस फ़ंसा सब कोई । शब्द नहीं पहचाना ।
- आज ज्ञान के नाम पर शब्द ही शब्द की बात हो रही है । और इसी शब्द की फ़ांस ( बन्धन ) में हर कोई बँधा हुआ है । लेकिन वास्तविक शब्द को नहीं पहचानता ।
प्रथमहि बृह्म स्व इच्छा ते । पाँचों शब्द उचारा । सोंह निरंजन रंरंकार और शक्ति ओंकारा ।
- सबसे पहले बृह्म ने स्वेच्छा से पाँच शब्द ( ध्वनियां ) प्रकट किये । इनमें - सोहं की ध्वनि । दूसरी निरंजन यानी काल पुरुष की ध्वनि । ररंकार की ध्वनि । शक्ति ( माया ) की ध्वनि । और ॐकार की ध्वनि है ।
विशेष - वास्तव में ये ध्वनियां भी एक एक न होकर दो दो हैं । इस वाणी का सन्देश ही यह है कि अधिकतर लोग अपनी मनमुखता के चलते इन ध्वनियों में अन्तर नहीं समझ पाते । और कोई कोई तो किसी एक ध्वनि ( के सुनाई देने ) को ही सत्य ( शब्द या सार शब्द ) मानकर जान लेता है कि उसे अन्तिम लक्ष्य प्राप्त हो गया ।
पाँचों तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया । लोक दीप चारों खान चौरासी लख बनाया ।
- फ़िर पाँच तत्व । पच्चीस प्रकृति । और तीन गुण उत्पन्न किये । अब ऊपर वाले दोहे का गौर करें । पहले काल पुरुष बना । फ़िर माया ( इच्छाशक्ति या आदिशक्ति ) बनी । फ़िर मन बना । फ़िर ॐकार यानी मनुष्य शरीर बना । इसके बाद इसमें ररंकार यानी चेतना यानी गति का आरम्भ हुआ । तब इन सबके समायोजन के साथ पाँच तत्व । पच्चीस प्रकृति । और तीन गुण का खेल बनाकर अनेकों लोक दीप और चार वर्गों की चौरासी लाख योनियां बनायीं गयीं ।
शब्द काल कलंदर कहिये । शब्दइ भर्म भुलाया । पाँच शब्द की आशा में सरवस मूल गंवाया ।
- अब ये पाँच शब्द वास्तव में काल के शब्द हैं । जो अच्छे अच्छों को भृम में डाल देते हैं । और इन्हीं पाँच शब्दों में उलझकर साधक मूल को नहीं प्राप्त कर पाता है ।
शब्दइ बृह्म प्रकाश मेट के बैठे मूंदे द्वारा । शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा ।
ये पाँच शब्द ही बृह्म ( आत्म ) प्रकाश को छुपाये हैं । यानी ये एक प्रकार के दरवाजे हैं । जो बन्द है । या कहिये । कर दिये गये हैं । शब्द ही निर्गुण है । शब्द ही सगुण है । और वेद शब्द की ही बात कहता है ।
शुद्ध बृह्म काया के भीतर बैठ करै स्थान । ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझान ।
ज्ञानी योगी पंडित और सिद्ध ये सभी शब्द में उलझे हुये हैं । जबकि शरीर के अन्दर शुद्ध बृह्म ( आत्मदेव ) का स्थान कोई और ही है ।
पाँचइ शब्द पाँचइ मुद्रा काया बीच ठिकाना । जो जिहसक आराधन करता सो तिहि करत बखाना ।
पाँच शब्द । पाँच मुद्रायें । ये शरीर के बीच ( में ) स्थित हैं । अतः जो जिसकी साधना करता है । वह उसी का बखान करता है ।
शब्द निरंजन चाचरी मुद्रा है नैनन के माहीं । ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माहीं ।
चाचरी योग मुद्रा आँखों के मध्य का योग है । यहाँ काल निरंजन का शब्द है । इसको महायोगी गोरखनाथ ने जाना था ।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना । व्यास देव ताहि पहचाना । चाँद सूर्य तिहि जाना ।
भूचरी योग मुद्रा का स्थान त्रिकुटी है । यहाँ ॐकार की शब्द ध्वनि है । इस शब्द तक का ज्ञान व्यास को हुआ था ।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफ़ा स्थाना । शुकदेव मुनि ताहि पहचाना । सुन अनहद को काना ।
अगोचरी मुद्रा का स्थान भंवर गुफ़ा है । यहाँ सोहं शब्द की ध्वनि है । इसी शब्द तक का ज्ञान शुकदेव को हुआ था ।
शब्द ररंकार खेचरी मुद्रा दसवां द्वार ठिकाना । बृह्मा विष्णु महेश आदि लो ररंकार पहिचाना ।
खेचरी योग मुद्रा का स्थान दशम द्वार है । यहाँ ररंकार शब्द की ध्वनि है । इसको बृह्मा विष्णु शंकर ने जाना ।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही । झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे जाने जनक विदेही ।
उनमुनी योग मुद्रा का स्थान आकाश है । यहाँ शक्ति शब्द की ध्वनि है । यहाँ झिलमिल झिलमिल ज्योति जल रही है । इसे राजा जनक ने जाना था ।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा सो निश्चय कर जाना । आये पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न आना ।
- ये पाँच शब्द पाँच मुद्राओं को ही साधु सत्य मान लेते हैं । लेकिन वास्तविक पुरुष और निःअक्षर की खबर तक नहीं पता होती ।
नौ नाथ चौरासी सिद्ध लों पाँच शब्द में अटके । मुद्रा साध रहे घट भीतर फ़िर औंधे मुख लटके ।
- 9 नाथ और 84 सिद्ध ये सभी इन पाँच शब्दों में ही अटक ( उलझ ) कर रह गये । शरीर के अन्दर योग क्रियाओं द्वारा मुद्राओं को साधते रहे । और फ़िर औंधे मुँह हुये । यानी सत्य से वंचित ही रहे ।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक दीप यम जाला । कहे कबीर अक्षर के आगे निःअक्षर का उजियाला ।
अब देखिये । सबसे महत्वपूर्ण बात - ये पाँच शब्द । पाँच मुद्रायें । लोक दीप । ये सब यम ( काल ) का जाल ही हैं । इसलिये कबीर ने स्पष्ट किया है कि - इन अक्षरों ( इन ध्वनियों या शब्द ) के भी पार या आगे सत्य या निःअक्षर है । निःअक्षर का अर्थ ही है - अक्षर से भी अलग ।
- मैंने कई बार इस बात को स्पष्ट किया है कि - आपको निश्चयात्मक और सार ज्ञान जानना है । तो कबीर से अधिक स्पष्ट सरल और संक्षेप में कोई वाणी नहीं है । कबीर के नाम पर ज्ञान देने वाले तमाम कबीर पंथी और अन्य मता साधु ज्ञान के बजाय कचरा बाँटते हुये भरमा अधिक रहे हैं । जैसा कि स्वयं काल पुरुष ने कबीर से कहा था -
कबीर ने कहा - सुनो धर्मराया । हम संखों हंसा पद परसाया ।
जिन लीन्हा हमरा प्रवाना । सो हंसा हम किए अमाना ।
तब काल पुरुष क्या बोला - द्वादस ( 12 ) पंथ करूं मैं साजा । नाम तुम्हारा ले करूं अवाजा ।
अर्थ - मैं तुम्हारे नाम से बनाबटी 12 पंथ बनाऊँगा । और इन्हें कबीर का ज्ञान बताऊँगा ।
द्वादस यम ( कालदूत.. छदम सन्त के वेश में ) संसार पठहो । नाम तुम्हारे पंथ चलैहो । ( जो तुम्हारे नाम से पंथ चलायेंगे । )
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई । पीछे अंश तुम्हारा आई ।
- पहले मेरा दूत जाकर प्रकट होगा । पीछे तुम्हारा अंश आयेगा ।
यही विधि जीव न ( जीवों ) को भरमाऊं । पुरुष नाम जीवन समझाऊं ।
- इसी विधि से जीवों का भरमाऊँगा । और ( सत्य ) पुरुष का ( बनाबटी ) नाम लेकर जीवों को समझाऊँगा ।
द्वादस पंथ नाम जो लैहे । सो हमरे मुख आन समै है ।
- इन 12 पंथों ( के नकली कालदूत सन्तों से ) से जो नाम ( दीक्षा ) लेंगे । वह मेरे ( काल के ) मुँह में ही आयेंगे ।
कहा तुम्हारा जीव नहीं माने । हमरी ओर होय बाद बखानै ।
- हे कबीर साहब ! इसलिये जीव तुम्हारा कहना नहीं मानेंगे । और मेरा ही पक्ष लेकर उल्टे तुमसे ही विवाद करेंगे । मैं क्या करूँगा कि -
मैं दृढ़ फंदा रची बनाई । जामें जीव रहे उरझाई ।
- ऐसा मजबूत फ़न्दा तैयार करूँगा । जिसमें जीव उलझकर रह जायेगा । और सत्य को नहीं जान पायेगा ।
देवल देव पाषान पूजाई । तीर्थ वृत जप तप मन लाई ।
- मैं देवी देवता पत्थर पूजा तीर्थ वृत जप तप में ही मन ( काल ही मन रूप है ) को लगाये रखूँगा ।
यज्ञ होम अरू नेम अचारा । और अनेक फंद मैं डारा ।
- यज्ञ हवन और आचार नियम आदि के अनेक फ़न्दे में मैं जीव को फ़ंसा दूँगा ।
जो ज्ञानी जाओ संसारा । जीव न मानै कहा तुम्हारा ।
- इसलिये ज्ञानी ( कबीर ) जी आप संसार में भले ही जाओ । पर कोई तुम्हारी बात का विश्वास ही नहीं करेगा । ( ये वार्तालाप कबीर के सतलोक से आते समय मानसरोवर पर हुआ था )
कबीर साहब ने उत्तर दिया - ज्ञानी कहे सुनो अन्यायी । काटो फंद जीव ले जाई । - हे अन्यायी धूर्त काल निरंजन सुन । मैं तेरे प्रत्येक फ़न्दे को काटकर जीव को ( उसके वास्तविक घर सतलोक ) ले जाऊँगा ।
जेतिक फंद तुम रचे विचारी । सत्य शबद तै सबै बिंडारी ।
- जितने भी फ़न्दे तू बनायेगा । वे सत्य शब्द से सभी नष्ट हो जायेंगे ।
और भी सत्य को जानिये ।
ओंकार निश्चय भया । यह कर्ता मत जान । सांचा शब्द कबीर का । परदे मांही पहचान ।
- ॐकार ही सत्य शब्द है । परमात्मा है । यह गलत है । सत्य शब्द गुप्त है । परदे में है ।
राम कृष्ण अवतार हैं । इनका नांही संसार । जिन साहेब संसार किया । सो किन्हूं न जनमया नार ।
राम कृष्ण सिर्फ़ अवतार है । सृष्टि के स्वामी नहीं । जो साहेब इस सृष्टि का स्वामी है । वो किसी नारी से उत्पन्न नहीं है ।
चार भुजा के भजन में । भूलि परे सब संत । कबिरा सुमिरो तासु को । जाके भुजा अनंत ।
चार भुजाओं के देवताओं की भक्ति में सभी सन्त भूले हुये हैं । लेकिन कबीर अनन्त भुजाओं वाले साहेब की भक्ति करता है ।
समुद्र पाट लंका गये । सीता को भरतार । ताहि अगस्त मुनि पीय गयो । इनमें को करतार ।
राम समुद्र पर पुल बनाकर लंका गये थे । लेकिन अगस्त्य मुनि ने तो समुद्र को पूरा ही पी लिया । अब इनमें कौन बङा हुआ ?
गिरवर धारयो कृष्ण जी । द्रोणागिरि हनुमंत । शेष नाग सब सृष्टि सहारी । इनमें को भगवंत ।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठाया । और संजीवनी बूटी लेने गये हनुमान ने द्रोणागिरि पर्वत ही उठा लिया था । लेकिन शेषनाग तो पूरी प्रथ्वी को ही उठाये हुये है ( जिस पर ये सभी पर्वत भी हैं ) अब इनमें बङा या भगवान कौन है ?
काटे बंधन विपति में । कठिन किया संग्राम । चिन्हों रे नर प्राणियां । गरुड बड़ो की राम ।
आपत्ति के समय गरुण ने ही नागपाश काटकर राम को बन्धन मुक्त करा जीवन दिया था । अब इनमें कौन बङा हुआ ।
- आज ज्ञान के नाम पर शब्द ही शब्द की बात हो रही है । और इसी शब्द की फ़ांस ( बन्धन ) में हर कोई बँधा हुआ है । लेकिन वास्तविक शब्द को नहीं पहचानता ।
प्रथमहि बृह्म स्व इच्छा ते । पाँचों शब्द उचारा । सोंह निरंजन रंरंकार और शक्ति ओंकारा ।
- सबसे पहले बृह्म ने स्वेच्छा से पाँच शब्द ( ध्वनियां ) प्रकट किये । इनमें - सोहं की ध्वनि । दूसरी निरंजन यानी काल पुरुष की ध्वनि । ररंकार की ध्वनि । शक्ति ( माया ) की ध्वनि । और ॐकार की ध्वनि है ।
विशेष - वास्तव में ये ध्वनियां भी एक एक न होकर दो दो हैं । इस वाणी का सन्देश ही यह है कि अधिकतर लोग अपनी मनमुखता के चलते इन ध्वनियों में अन्तर नहीं समझ पाते । और कोई कोई तो किसी एक ध्वनि ( के सुनाई देने ) को ही सत्य ( शब्द या सार शब्द ) मानकर जान लेता है कि उसे अन्तिम लक्ष्य प्राप्त हो गया ।
पाँचों तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया । लोक दीप चारों खान चौरासी लख बनाया ।
- फ़िर पाँच तत्व । पच्चीस प्रकृति । और तीन गुण उत्पन्न किये । अब ऊपर वाले दोहे का गौर करें । पहले काल पुरुष बना । फ़िर माया ( इच्छाशक्ति या आदिशक्ति ) बनी । फ़िर मन बना । फ़िर ॐकार यानी मनुष्य शरीर बना । इसके बाद इसमें ररंकार यानी चेतना यानी गति का आरम्भ हुआ । तब इन सबके समायोजन के साथ पाँच तत्व । पच्चीस प्रकृति । और तीन गुण का खेल बनाकर अनेकों लोक दीप और चार वर्गों की चौरासी लाख योनियां बनायीं गयीं ।
शब्द काल कलंदर कहिये । शब्दइ भर्म भुलाया । पाँच शब्द की आशा में सरवस मूल गंवाया ।
- अब ये पाँच शब्द वास्तव में काल के शब्द हैं । जो अच्छे अच्छों को भृम में डाल देते हैं । और इन्हीं पाँच शब्दों में उलझकर साधक मूल को नहीं प्राप्त कर पाता है ।
शब्दइ बृह्म प्रकाश मेट के बैठे मूंदे द्वारा । शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा ।
ये पाँच शब्द ही बृह्म ( आत्म ) प्रकाश को छुपाये हैं । यानी ये एक प्रकार के दरवाजे हैं । जो बन्द है । या कहिये । कर दिये गये हैं । शब्द ही निर्गुण है । शब्द ही सगुण है । और वेद शब्द की ही बात कहता है ।
शुद्ध बृह्म काया के भीतर बैठ करै स्थान । ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझान ।
ज्ञानी योगी पंडित और सिद्ध ये सभी शब्द में उलझे हुये हैं । जबकि शरीर के अन्दर शुद्ध बृह्म ( आत्मदेव ) का स्थान कोई और ही है ।
पाँचइ शब्द पाँचइ मुद्रा काया बीच ठिकाना । जो जिहसक आराधन करता सो तिहि करत बखाना ।
पाँच शब्द । पाँच मुद्रायें । ये शरीर के बीच ( में ) स्थित हैं । अतः जो जिसकी साधना करता है । वह उसी का बखान करता है ।
शब्द निरंजन चाचरी मुद्रा है नैनन के माहीं । ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माहीं ।
चाचरी योग मुद्रा आँखों के मध्य का योग है । यहाँ काल निरंजन का शब्द है । इसको महायोगी गोरखनाथ ने जाना था ।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना । व्यास देव ताहि पहचाना । चाँद सूर्य तिहि जाना ।
भूचरी योग मुद्रा का स्थान त्रिकुटी है । यहाँ ॐकार की शब्द ध्वनि है । इस शब्द तक का ज्ञान व्यास को हुआ था ।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफ़ा स्थाना । शुकदेव मुनि ताहि पहचाना । सुन अनहद को काना ।
अगोचरी मुद्रा का स्थान भंवर गुफ़ा है । यहाँ सोहं शब्द की ध्वनि है । इसी शब्द तक का ज्ञान शुकदेव को हुआ था ।
शब्द ररंकार खेचरी मुद्रा दसवां द्वार ठिकाना । बृह्मा विष्णु महेश आदि लो ररंकार पहिचाना ।
खेचरी योग मुद्रा का स्थान दशम द्वार है । यहाँ ररंकार शब्द की ध्वनि है । इसको बृह्मा विष्णु शंकर ने जाना ।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही । झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे जाने जनक विदेही ।
उनमुनी योग मुद्रा का स्थान आकाश है । यहाँ शक्ति शब्द की ध्वनि है । यहाँ झिलमिल झिलमिल ज्योति जल रही है । इसे राजा जनक ने जाना था ।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा सो निश्चय कर जाना । आये पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न आना ।
- ये पाँच शब्द पाँच मुद्राओं को ही साधु सत्य मान लेते हैं । लेकिन वास्तविक पुरुष और निःअक्षर की खबर तक नहीं पता होती ।
नौ नाथ चौरासी सिद्ध लों पाँच शब्द में अटके । मुद्रा साध रहे घट भीतर फ़िर औंधे मुख लटके ।
- 9 नाथ और 84 सिद्ध ये सभी इन पाँच शब्दों में ही अटक ( उलझ ) कर रह गये । शरीर के अन्दर योग क्रियाओं द्वारा मुद्राओं को साधते रहे । और फ़िर औंधे मुँह हुये । यानी सत्य से वंचित ही रहे ।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक दीप यम जाला । कहे कबीर अक्षर के आगे निःअक्षर का उजियाला ।
अब देखिये । सबसे महत्वपूर्ण बात - ये पाँच शब्द । पाँच मुद्रायें । लोक दीप । ये सब यम ( काल ) का जाल ही हैं । इसलिये कबीर ने स्पष्ट किया है कि - इन अक्षरों ( इन ध्वनियों या शब्द ) के भी पार या आगे सत्य या निःअक्षर है । निःअक्षर का अर्थ ही है - अक्षर से भी अलग ।
- मैंने कई बार इस बात को स्पष्ट किया है कि - आपको निश्चयात्मक और सार ज्ञान जानना है । तो कबीर से अधिक स्पष्ट सरल और संक्षेप में कोई वाणी नहीं है । कबीर के नाम पर ज्ञान देने वाले तमाम कबीर पंथी और अन्य मता साधु ज्ञान के बजाय कचरा बाँटते हुये भरमा अधिक रहे हैं । जैसा कि स्वयं काल पुरुष ने कबीर से कहा था -
कबीर ने कहा - सुनो धर्मराया । हम संखों हंसा पद परसाया ।
जिन लीन्हा हमरा प्रवाना । सो हंसा हम किए अमाना ।
तब काल पुरुष क्या बोला - द्वादस ( 12 ) पंथ करूं मैं साजा । नाम तुम्हारा ले करूं अवाजा ।
अर्थ - मैं तुम्हारे नाम से बनाबटी 12 पंथ बनाऊँगा । और इन्हें कबीर का ज्ञान बताऊँगा ।
द्वादस यम ( कालदूत.. छदम सन्त के वेश में ) संसार पठहो । नाम तुम्हारे पंथ चलैहो । ( जो तुम्हारे नाम से पंथ चलायेंगे । )
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई । पीछे अंश तुम्हारा आई ।
- पहले मेरा दूत जाकर प्रकट होगा । पीछे तुम्हारा अंश आयेगा ।
यही विधि जीव न ( जीवों ) को भरमाऊं । पुरुष नाम जीवन समझाऊं ।
- इसी विधि से जीवों का भरमाऊँगा । और ( सत्य ) पुरुष का ( बनाबटी ) नाम लेकर जीवों को समझाऊँगा ।
द्वादस पंथ नाम जो लैहे । सो हमरे मुख आन समै है ।
- इन 12 पंथों ( के नकली कालदूत सन्तों से ) से जो नाम ( दीक्षा ) लेंगे । वह मेरे ( काल के ) मुँह में ही आयेंगे ।
कहा तुम्हारा जीव नहीं माने । हमरी ओर होय बाद बखानै ।
- हे कबीर साहब ! इसलिये जीव तुम्हारा कहना नहीं मानेंगे । और मेरा ही पक्ष लेकर उल्टे तुमसे ही विवाद करेंगे । मैं क्या करूँगा कि -
मैं दृढ़ फंदा रची बनाई । जामें जीव रहे उरझाई ।
- ऐसा मजबूत फ़न्दा तैयार करूँगा । जिसमें जीव उलझकर रह जायेगा । और सत्य को नहीं जान पायेगा ।
देवल देव पाषान पूजाई । तीर्थ वृत जप तप मन लाई ।
- मैं देवी देवता पत्थर पूजा तीर्थ वृत जप तप में ही मन ( काल ही मन रूप है ) को लगाये रखूँगा ।
यज्ञ होम अरू नेम अचारा । और अनेक फंद मैं डारा ।
- यज्ञ हवन और आचार नियम आदि के अनेक फ़न्दे में मैं जीव को फ़ंसा दूँगा ।
जो ज्ञानी जाओ संसारा । जीव न मानै कहा तुम्हारा ।
- इसलिये ज्ञानी ( कबीर ) जी आप संसार में भले ही जाओ । पर कोई तुम्हारी बात का विश्वास ही नहीं करेगा । ( ये वार्तालाप कबीर के सतलोक से आते समय मानसरोवर पर हुआ था )
कबीर साहब ने उत्तर दिया - ज्ञानी कहे सुनो अन्यायी । काटो फंद जीव ले जाई । - हे अन्यायी धूर्त काल निरंजन सुन । मैं तेरे प्रत्येक फ़न्दे को काटकर जीव को ( उसके वास्तविक घर सतलोक ) ले जाऊँगा ।
जेतिक फंद तुम रचे विचारी । सत्य शबद तै सबै बिंडारी ।
- जितने भी फ़न्दे तू बनायेगा । वे सत्य शब्द से सभी नष्ट हो जायेंगे ।
और भी सत्य को जानिये ।
ओंकार निश्चय भया । यह कर्ता मत जान । सांचा शब्द कबीर का । परदे मांही पहचान ।
- ॐकार ही सत्य शब्द है । परमात्मा है । यह गलत है । सत्य शब्द गुप्त है । परदे में है ।
राम कृष्ण अवतार हैं । इनका नांही संसार । जिन साहेब संसार किया । सो किन्हूं न जनमया नार ।
राम कृष्ण सिर्फ़ अवतार है । सृष्टि के स्वामी नहीं । जो साहेब इस सृष्टि का स्वामी है । वो किसी नारी से उत्पन्न नहीं है ।
चार भुजा के भजन में । भूलि परे सब संत । कबिरा सुमिरो तासु को । जाके भुजा अनंत ।
चार भुजाओं के देवताओं की भक्ति में सभी सन्त भूले हुये हैं । लेकिन कबीर अनन्त भुजाओं वाले साहेब की भक्ति करता है ।
समुद्र पाट लंका गये । सीता को भरतार । ताहि अगस्त मुनि पीय गयो । इनमें को करतार ।
राम समुद्र पर पुल बनाकर लंका गये थे । लेकिन अगस्त्य मुनि ने तो समुद्र को पूरा ही पी लिया । अब इनमें कौन बङा हुआ ?
गिरवर धारयो कृष्ण जी । द्रोणागिरि हनुमंत । शेष नाग सब सृष्टि सहारी । इनमें को भगवंत ।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठाया । और संजीवनी बूटी लेने गये हनुमान ने द्रोणागिरि पर्वत ही उठा लिया था । लेकिन शेषनाग तो पूरी प्रथ्वी को ही उठाये हुये है ( जिस पर ये सभी पर्वत भी हैं ) अब इनमें बङा या भगवान कौन है ?
काटे बंधन विपति में । कठिन किया संग्राम । चिन्हों रे नर प्राणियां । गरुड बड़ो की राम ।
आपत्ति के समय गरुण ने ही नागपाश काटकर राम को बन्धन मुक्त करा जीवन दिया था । अब इनमें कौन बङा हुआ ।
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