11 अगस्त 2013

सम्मोहन की कुछ मुख्य चीजें

pranam gurudev mera name yashpal singh hai. daya karke mujhe hipnotism ke bare men jankari pradan karen.
उत्तर -
कागा किसका धन हरे कोयल किससे लेय । 
मीठी वाणी बोल कर जग अपना कर लेय । 
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ।
अगर मेरे विचार से पूछा जाये तो संसार में इससे बढकर hipnotism यानी सम्मोहन है ही नहीं । जो देवताओं भगवानों और मनुष्यों स्त्रियों आदि की तो बात ही छोङिये । मूक पशु पक्षियों को सम्मोहित कर वशीभूत कर देता है ।
दरअसल लोग सम्मोहन काला जादू तन्त्र मन्त्र की तरफ़ क्यों आकर्षित होते हैं ?
क्योंकि जो काम मानवीय स्तर पर करना उन्हें बेहद कठिन पेचीदा और कभी कभी अपराधिक (कानूनी मुसीबतों में फ़ँसाने वाला) श्रेणी में ले जाकर अभियुक्त बना देने वाला लगता है । वही काम सम्मोहन काला जादू आदि अमानवीय तरीके से सरल और किसी भी कानूनी झंझट से सर्वथा मुक्त लगता है । अलौकिक विधियों के लिये हमारी यही सोच है पर ये एकदम गलत है ।
ये ठीक उसी तरह से है कि कुछ कारणों से आप रोजगार जुटाने में असमर्थ रहें या सज्जनता के स्तर पर किसी जुल्म का प्रतिकार न कर पायें तो अराजक असामाजिक तत्व बन जायें । 
जाहिर है फ़ौरी तौर पर शायद आपको समस्या का हल मिल जाये पर बाद में आपने जो तरीका चुना । वह स्वयं आपके लिये ही पहले से ज्यादा और गम्भीर समस्यायें खङी करेगा और अन्त वही होगा, कठोर कारावास या मृत्युदण्ड ।
ठीक यही फ़ल इन सभी विधाओं का अन्त में होता है । यदि इनका उद्देश्य परोपकार और भलाई के बजाय निजी स्वार्थ, लम्पट वासनाओं की पूर्ति या बदले की क्रूर भावना से किया जाये ।
जैसे कोई आपके सम्बन्धी का कत्ल कर दे और बदले में आप उसका या उसके सम्बन्धी का कर दें । तो कानून आपको शाबासी या सहानुभूति के बजाय एक कातिल के तौर पर ही व्यवहार करेगा । मनुष्यों के कानून की ही तरह प्रभुसत्ता का भी कानून है और उसकी धारायें समझना बेहद कठिन है । अतः एक आंतरिक योगी होने के नाते मैं जानता हूँ कि इन तान्त्रिकों मान्त्रिकों आदि का अन्त में क्या हश्र होता है । कष्टदायी मौत और बाद में घोर नरक । जिन सिद्धों को आप पूजते हो उन्हें भी नरकगामी होना पङता है ।
अतः आत्मज्ञान भक्ति से जुङे होने के कारण यदि मैं आपको प्रेरित करूँ और ऐसी किसी भी विधा सीखने में सहायता करूँ तो कुछ % दोष मुझे भी लगेगा ।

फ़िर भी मैं आपकी जिज्ञासा पूर्ति हेतु सम्मोहन की कुछ मुख्य चीजें बताता हूँ । वास्तव में सरल शब्दों में सम्मोहन का अर्थ है । बङी चेतना से छोटी चेतना को नियन्त्रित करना । जैसे बुद्धिमान व्यक्ति कम अक्ल वालों को अधिक बल वाला कमजोर को आदि नियन्त्रित करता है ।
यह ठीक इसी तरह है कि एक कम वोल्टेज का बल्ब जल रहा हो और वहाँ दुगने वोल्टेज का बल्ब लगा दें तो पहले का प्रकाश उसके समक्ष प्रभाहीन हो जायेगा । इसलिये सम्मोहन विधा हर जगह काम भी नहीं करती । मान लीजिये आपमें अच्छी सम्मोहन शक्ति है परन्तु एक भक्त श्रेणी का व्यक्ति आपके सामने आया तो बेकार । क्योंकि उसकी ऊर्जा ठोस और सम्मोहन से अधिक पावरफ़ुल है । मान लीजिये भयंकर तमोगुणी (कुचालक) आ गया तो भी बेकार । 
क्योंकि वह सुचालक नियम का विरोधी होता है । मान लीजिये आप छोटे सम्मोहन कर्ता हैं और इसके ज्यादा अज्ञात पहलूओं के बारे में नहीं जानते । तब आपने किसी अज्ञात जीव (अस्तित्व) को छेङ दिया तो वो आपको ऐसी जगह ले जाकर भटका सकता है कि सब सम्मोहन भूलकर सिर्फ़ हाय हाय याद रह जाये ।
इसलिये आध्यात्म विज्ञान बच्चों का खेल नहीं है । ये वो बिजली है जिसमें जरा भी चूक हुयी तो तुरन्त मार देगी । अतः जब आप ऐसे किसी विषय में रुचि लेते हैं तो पहले से प्रयोग या क्रिया करने के बजाय भली प्रकार उसका अध्ययन करें । फ़िर उसमें कार्यरत लोगों से जुङें । उसको धैर्य से सीखें  तब व्यवहार में लायें । अगर उपरोक्त के बाद सम्मोहन सीखने की तैयारी करते हैं तो खतरे कम और सफ़लता की सम्भावनायें अधिक होती हैं ।
सरल तरीके से सम्मोहन सीखने के लिये सबसे पहले दिमाग को खाली या कम से कम विचार युक्त करना होता है । इसके लिये एकान्त, नदी का किनारा और सुनसान स्थान पर बिना किसी भाव बिना किसी उद्देश्य और बिना कोई क्रिया (यथा - मोबाइल, कोई किताब या अन्य कुछ जिसमें मन या शरीर क्रियाशील रहे) किये दो तीन घण्टे गुजारना आवश्यक होता है । बङे शहरों में रहने वाले टाप फ़्लोर की छत या किसी कमरे में भी ऐसा कर सकते हैं ।
सम्मोहन की सबसे बङी जरूरत है - एकाग्रता और त्राटक सिद्ध होना । एकाग्रता के लिये आप किसी भी राईदाने के बराबर बिन्दु को एकटक और अपलक देखने का अभ्यास करें । जब आपकी पलकें जबरदस्ती गिरने लगें । आंसू आने लगे तब पलक बन्द करें । दो मिनट संयत हों और पुनः अभ्यास करें । विशेष ध्यान रहे । ये अपलक होने का अभ्यास बहुत सावधानी से और धीरे धीरे ही बढायें अन्यथा सम्मोहन सिद्ध हो न हो । भेंगापन आ सकता है । निगाह कमजोर हो सकती है । अतः पलकों को रोकने हेतु धीरे धीरे जोर डालें यानी अपलक होने का समय जबरदस्ती न बढाकर कृमशः अभ्यास द्वारा बढायें ।
जब एकाग्रता का अच्छा अभ्यास हो जाये तब इसका दूसरा महत्वपूर्ण कदम ‘त्राटक योग’ है । इसके लिये किसी प्रकाशित चमकीले बिन्दु (आसमान के एक तारे जैसा, आजकल L.E.D बहुत अच्छा विकल्प है) को वही अपलक देर तक देखते रहना त्राटक को सिद्ध कर देता है ।
त्राटक सिद्ध हो गया । इसकी पहचान यही होती है कि जब आप उस प्रकाशित बिन्दु से निगाह हटाकर किसी दूसरी एक जगह या चंचल भाव से निगाह को लगातार कहीं भी ले जायेंगे । वह प्रकाशित बिन्दु (अभ्यास बिन्दु जैसा ही) बहुत देर तक आपकी निगाह के समक्ष उतनी ही दूरी पर रहेगा । फ़िर जब आप अपना दिमाग और दृष्टि किसी अन्य भौतिक वस्तु में लगा देंगे तो ये दिखना बन्द हो जायेगा । इसका अर्थ है त्राटक का प्रथम चरण सफ़लता से सिद्ध हुआ और इसके दूसरे चरण के सिद्ध होते ही साधारण जिज्ञासुओं के लिये खतरे की घण्टी बज जाती है और वह कोई अलग नहीं है । अभ्यास यही जारी रहता है लेकिन त्राटक योग का % बढ जाने से अलग अनुभव और शक्ति को महसूस किया जाता है और वो वही है ।
पहले में प्रकाशित बिन्दु आपके दूसरे तरफ़ आकर्षित होने पर अलोप हो जाता है लेकिन इसमें आप दस बीस पचास बार भी इधर उधर दिमाग लगायें । ये (आपके योग % अनुसार) कई घण्टों तक आपके सामने से नहीं हटता । मतलब आपको ये दिखा । आपने दूसरी चीज देखी (भले ही दस मिनट तक) जैसे ही उस चीज से ध्यान हटा । फ़िर ये दिखने लगेगा । भले ही आप अभ्यास स्थल से 100 किमी दूर आ गये हों और घनी काली रात हो ।
इसका तीसरा चरण खतरे की घण्टी ही नहीं बजाता बल्कि चेतावनी देता है कि आप डेंजरस जोन में प्रवेश कर गये हैं और इसका भी अभ्यास वही है । लेकिन अनुभव इस तरह से हैं जब आप प्रकाशित बिन्दु पर अभ्यास के बाद दृष्टि दूसरे स्थान पर ले गये तो वही बिन्दु आपको नजर आया । दूसरे चरण में दूसरी चीजों पर ध्यान देने से कुछ समय के लिये यह बिन्दु हट जाता है लेकिन तीसरे चरण में जब आप बदलकर किसी भी वस्तु पर ध्यान देते हैं तो उस वस्तु पर ये प्रकाश बदस्तूर हटाये नहीं हटता । यानी उस समय आपको वो वस्तु और प्रकाश बिन्दु मिले हुये दिखाई देते हैं । यही वो तरीका है जिसमें योग चेतना दूसरी चेतना या जङ पदार्थों को भी इच्छानुसार नियन्त्रित करना शुरू कर देती है । लेकिन आप समझें यह कोई साधारण पढाई या वैज्ञानिक आविष्कार करना नहीं है । बल्कि यह अलौकिक उर्जा, क्रिया और क्षेत्र का मामला है । अतः वहाँ कार्यरत अन्य (अदृश्य) लोग इस किस्म के कार्यों पर नियन्त्रण रखने वाले (अदृश्य) प्रशासनिक लोग आपके साथ इच्छानुसार अच्छा बुरा कोई भी व्यवहार कर सकते हैं । अतः ये सभी विधायें इनके समर्थ गुरु द्वारा (उनके सानिंध्य में) ही सीखी जाती है । ये सब मैंने मुख्य मुख्य और संक्षेप में बताया । इसके व्यवहारिक पक्ष में बहुत सी अन्य सावधानियां, जरूरतें और संरक्षण की आवश्यकता होती हैं । जिनको पूर्णतया बताना सम्भव नहीं है ।
हमेशा की तरह मैं तो यथासम्भव आपकी ज्ञानपिपासा को पूर्ण सन्तुष्ट करने की कोशिश करता हूँ । फ़िर भी कहीं अस्पष्ट लगे तो पुनः निसंकोच पूछें ।

आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।   

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326