तुम सम पुरुष न मो सम नारी । यह संजोग विधि रचा विचारी ।
तुलसी कृत रामचरित मानस में यह दोहा पंचवटी में शूर्पनखा के द्वारा राम के लिये बोला गया है । सामान्यतयाः इस दोहे का शब्दार्थ कुछ कठिन नहीं है - ( राम ) तुम्हारे समान पुरुष नहीं है । और मेरे समान कोई स्त्री नहीं है । हमारा यह संयोग विधि ( बृह्मा ) ने विचार पूर्वक ही लिखा है । अब इसका सामान्य भावार्थ लोग अक्सर ये लगा लेते हैं कि शूर्पनखा राम से स्वयं के विवाह हेतु ऐसा कह रही है ।
पर देखिये । आत्मज्ञान या अलौकिक ज्ञान में ऐसे साधारण श्रंगार भाव या कवित्त की व्यर्थ बातें नहीं होती । बल्कि उनका एक एक अर्थ गूढता लिये हुये होता है ।
अब इसका गूढ अर्थ देखिये । शूर्पनखा ( सूप के समान नाखूनों वाली ) कह रही है । राम आपके समान कोई पुरुष नहीं है ( जो इन तमाम राक्षसों का वध करने में समर्थ हो । ) और मेरे समान कोई स्त्री नहीं । ( जो अपने भाई को ही पूरी राक्षस जाति सहित समाप्त कराना चाहती हो । ) और आगे की बात बेहद महत्वपूर्ण है - हमारा ये संयोग होना कोई साधारण नहीं है । बल्कि इसको बृह्मा ने कारण बनाकर बङे विचार पूर्वक तय किया है । या लिखा है । यह संयोग विधि रचा विचारी..वाक्य में ही बेहद गूढता है ।
दरअसल शूर्पनखा की ऐसी छुपी आंतरिक प्रतिशोध भावना के पीछे लगभग वैसा ही कारण कार्य कर रहा था । जो महाभारत में अपनी बहनों को भीष्म पितामह द्वारा बलात हर लिये जाने पर भीष्म की शक्ति के आगे असहाय राजकुमार शकुनि के मन में उत्पन्न हुआ था । वह भीष्म का सीधे ( प्रत्यक्ष ) मुकाबला नहीं कर सकता था । अतः उसने अप्रत्यक्ष भूमिका द्वारा ( उसी वक्त ) कुरुवंश को मन ही मन समूल मिटा देने की ठान ली थी । और दुर्योधन की भावनाओं को भङकाकर उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर उसने ऐसा ही किया भी ।
आपके मन में प्रश्न उठा होगा । शूर्पनखा अपने भाई रावण का सर्वनाश क्यों कराना चाहती थी ? दरअसल विधवा शूर्पनखा रावण के प्रति प्रतिशोध की भयंकर ज्वाला में जल रही थी । शूर्पनखा ने विधुतजिह्वा नाम के राक्षस से प्रेम विवाह किया था । विधुतजिह्वा एक शक्तिशाली राक्षस था । और कुछ कारणों से रावण को खटकता था । अतः रावण को शूर्पनखा का ये विवाह कतई रास नहीं आया । दरअसल रावण खास राक्षस जाति में किसी भी ऐसे राक्षस को पसन्द नहीं करता था । जो कभी भी उसकी अधीनता और साम्राज्य को चुनौती दे सकता हो । यदि वह बहन के विवाह को स्वीकार कर लेता । तो भाई बहन का स्नेहिल सम्बन्ध ( का दबाव ) और बहनोई का उच्च पद होना उसके लिये बहुत जगह परेशानियां पैदा करने वाला था । पर विधुतजिह्वा और शूर्पनखा भी अच्छी तरह जानते थे कि - रावण को उनका सम्बन्ध कतई पसन्द नहीं । और वह अपने मूढ स्वभाव के चलते कुछ भी कर सकता है । यानी विधुतजिह्वा की हत्या भी । जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है विधुतजिह्वा की जीभ से ( आसमानी ) बिजली ( की भांति ) लपकती हुयी दुश्मन का काम तमाम कर देती थी ।
खैर..शूर्पनखा और विधुतजिह्वा का अभी नया नया ही प्रेम विवाह हुआ था । और वे दोनों रावण से छिपकर रहते हुये एक गुप्त स्थान पर नित्य ही अभिसार करते थे । जिसका रावण ने पता लगा लिया । और एक बार अभिसार के बाद जब विधुतजिह्वा अकेला सो रहा था । और शूर्पनखा जंगल में निकल गयी थी । रावण ने सोते में ही विधुतजिह्वा की हत्या कर दी । वापस लौटने पर शूर्पनखा को सारा माजरा समझते देर न लगी । और उसने वहीं अपने भाई रावण को वंश सहित मिटाने की प्रतिज्ञा की । आप गौर करें । तो राम रावण युद्ध के लिये जिम्मेदार ये महत्वपूर्ण चरित्र रावण की सभा में खर और दूषण की मृत्यु का समाचार तथा रावण को राम के खिलाफ़ पूर्णतया भङकाने और उसकी अति लम्पटता युक्त काम पिपासा को सीता के अप्रतिम सौन्दर्य के बखान से लोलुपता के शिखर पर पहुँचाने के बाद कहीं नजर नहीं आया । अगर राम से मिलने के बाद बलशाली खर और दूषण से शूर्पनखा का मिलना । उनका संहार कराना । फ़िर रावण की सभा में जाकर जिस बुद्धिमता चातुर्य और सफ़ल कूटनीति ( साम दाम दण्ड भेद ) से उसने अपना कार्य सिद्ध किया । उसके आगे शकुनि भी फ़ेल और बौना नजर आता है ।
मजे की बात ये है कि - रावण की झोंपङी में ये आग लगाकर शूर्पनखा मानों उसकी बरबादी के प्रति पूर्ण निश्चित भाव से टाटा बाय बाय करती हुयी नैमिषारण्य तीर्थ में तप करने चली गयी । लेकिन ऐसा जिक्र रामायण में कहीं नहीं है । बल्कि एक पुराण में प्रसंगवश आता है ।
अब इसी से अन्दाजा लगा लीजिये कि रामायण के एक एक दोहे के पीछे कितने गूढ रहस्य छुपे हुये हैं । और सामान्य लोग उसका क्या और कितना साधारण भाव लगाते हैं ।
रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर शूर्पनखा को समर्पित विशेष लेख ।
आप सभी के अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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