Rajiv ji aap ko mera anant koti koti pranam, maine aap ko ek sawal kiya tha . uska jawab mujhko mila . is liye dhanyawad . rajeev ji pahle mai aap ko mera parichay deta hun . mera nam nitin hai . mai maharastra me rahata hun . 15 th art pad raha hun . meri age 22 sal hai .
ek din aise hi net per baitha hua tha . our kuchh tantra mantra ki website search kar raha tha . tab achanak aap ki site mili . tab maine aap ke 2 lekh padhe . mujhe bahut pasand aye . tab se maine abi tak aap ke bahut lekh padhe hai . our mujh jaise agyani ko kuchh gyan mila hai . mujhe aap ki site bahut pasand aayi hai. Rajeev ji mai aap ko kuchh sawal karunga . asha hai aap mere sawal ka jawab jaldi denge.
Q 1 - rajeev ji mai hans diksha le sakta hun kya ? agar le sakta hun . to mujhe maharasta me diksha milegi . ya aap ke ashram me aakar leni hogi . kyon ki mai itani dur tak nahi aa sakta . aur ghar wale bhi nahi chhodenge .
- विश्व का कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी जाति धर्म समुदाय आदि से हो । हँस दीक्षा ले सकता है । क्योंकि ये सभी इंसानों के लिये ही है । ये परमात्मा की भक्ति है । न कि किसी विशेष जाति धर्म की । और सभी धर्म एक बात निश्चय ही स्वीकार करते हैं कि - सबका मालिक 1 ही है ।
देखें - सबहि सुलभ सब दिन सब देशा । सेवत सादर शमन कलेशा । महाराष्ट्र में आपको दीक्षा नहीं मिल सकती है । बल्कि आपको चिन्ताहरण आश्रम में या दिल्ली में ही दीक्षा मिलेगी ।
जहाँ तक आने जाने का प्रश्न है । प्यासा ही कुंये के पास जाता है । कुंआ नहीं । इसलिये ज्ञान के लिये आपको कुछ उपाय तो करना ही होगा । अभी आप इतनी दूर ( महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश ) नहीं आ सकते । पर मृत्यु उपरांत जीव को भयंकर यमदूतों के साथ कैदी रूप में रोते बिलखते हुये बेहद लम्बी कष्ट युक्त यात्रा करनी होती है । तब क्या और कैसे होगा ? और तब किसी भी जीव के घरवाले भी उसे तुरन्त छोङ देते हैं । देखें - दुनियां में है दो दिन का मेला जुङा । हँस जब भी उङा तब अकेला उङा ।
Q 2 - Kya diksha lene ke baad hum apane ghar per he sadhna kar sakate hain ? kya hame aashram aana padega ? our diksha lene ke baad hume kaun se niyamon ka palan karana hoga.
- क्योंकि ये परमात्मा की भक्ति है । और वही सबका एकमात्र पिता है । अतः इस सुमिरन में कोई भी ढोंग पाखंड प्रपंच नही है । आप चलते फ़िरते उठते बैठते सोते जागते कहीं भी इस सुमिरन को आसानी से कर सकते हैं । देखें - भाव कुभाव अनख आलस हू । नाम जपत मंगल सब दिस हू । क्योंकि इसमें आपके शरीर में होते अजपा नाम ( महामंत्र ) को जाग्रत किया जाता है । जिस पर बस ध्यान देना होता है । मुँह से कुछ बोलना आदि नहीं होता । एक बार नामदान मिलने के बाद आश्रम आने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है । लेकिन आपके भाग्यवश शुभ संस्कार उदय हो जायें । और ऐसे हालात बने कि आश्रम आकर आपको गुरु दर्शन का अवसर बने । तो आप एक बार नहीं । हजार बार आ सकते हैं । एक रहस्य की बात है कि जब आप गुरु से सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करते हैं कि - हे गुरुदेव ऐसी कृपा करें कि मैं आपके दर्शन और नामदान ले सकूँ । तो कुदरती रूप से ऐसी परस्थितियां बन जाती हैं कि सभी रुकावटें दूर हो जाती हैं । अतः इस बारे में कोई चिन्ता करने की आवश्यकता ही नहीं है । बस एक बार प्रार्थना करके देखें । हमारे यहाँ कोई नियम नहीं है । बस आप अधिक से अधिक सुमरन करें । ये ज्ञान आपका आचरण और आंतरिक शुद्धता में परिवर्तन स्वयं ही करता है । अतः अच्छे नियम आदि स्वतः ही आपके व्यवहार में आ जाते हैं । हम कोई नियम जबरन नहीं लादते ।
Q 3 - rajeev ji mai abhi bhagwan shankar ki puja aur naam jap karta hun . per mera koi guru nahi hai . kya bina guru ki aisi puja path karna sahi hai. Maine aap ke kisi lekh me pada tha ki shiv shakti kalyankari shakti hai . kya shiv shakti hume parmatma se mila sakati hai.
- लगभग पूरे विश्व के सभी धर्मों में ही इसी तरह की मनमुखी पूजा का प्रचलन है कि - खुद को जो ठीक लगे । वही सही मान लिया जाता है । सब भगवान देखेगा । ऐसा सोचकर । पर यह एकदम गलत है । आप कल्पना करो कि आप टीवी के सामने बैठकर उसको अगरबत्ती फ़ूल प्रसाद आदि चढाकर कहो - टीवी शुरू हो जा । हमें ये समाचार दिखा । वो फ़िल्म कार्यकृम दिखा आदि । तो क्या वो करेगा ? अब भगवान शंकर कौन क्या है । उनका मंत्र क्या है ? पूजा क्या है ? ये सब जाने बिना किसी से पढ सुनकर खुद निर्णय लेना उचित नहीं है । क्योंकि ये कोई सिद्ध सांसारिक चीज नहीं है । जैसे दूध से दही जमना । बिना गुरु के ऐसी पूजा करना न उचित ही है । न अनुचित ही । क्योंकि ये निरर्थक कार्य की तरह है । इससे सिर्फ़ भाव अच्छा होता है । जिससे आगे के लिये जिज्ञासा और मार्ग बनता है ।
शिव शक्ति कल्याणकारी शक्ति है । पर शंकर से शिव का क्या मतलब ? वो ( इनके तुलनात्मक ) कल्पनातीत महाशक्ति है । शंकर जैसे उनके यहाँ पानी भरने का कार्य करते हैं । मतलब शिव बहुत अलग हैं । और शंकर बहुत अलग । शिवोह्म - यानी सर्वात्मा । और शंकर तमोगुण का प्रतिनिधि एक अत्यन्त छोटा देवता । शिव शक्ति हो । या अन्य कोई भी बङी से बङी शक्ति आपको परमात्मा से कोई नहीं मिला सकता । सिवाय आपके । और इसके लिये समर्थ गुरु की शरण में जाना होता है । देखें - सन्त मिलें तो मैं मिल जाऊँ सन्त न मोते न्यारे । बिना सन्त के ना मिल पाऊँ कोटि जतन कर डारो । मोर वचन चाहे पङ जाय फ़ीका । सन्त वचन पत्थर की लीका ।
Q 4 - Hamare pure world me hans dikshit log kitane hain ? aur kitane logon ko aatm gyan hua hai ?
- आत्मज्ञान दुर्लभ ज्ञान की श्रेणी में आता है । और संसार में द्वैत पूजा का प्रचलन अधिक होता है । अतः बहुत कम लोग इस ज्ञान को जानते हैं । और सबसे बङी बात इस ज्ञान के सच्चे सन्त बहुत ही कम मिलते हैं । यह सिर्फ़ जीव की अत्यन्त भाव पूर्ण प्रार्थना से ही सम्भव है । पूरा आत्म ज्ञान गिने चुने लोगों को ही हो पाता है । इसीलिये इसके लिये बिरला शब्द का प्रयोग किया जाता है । देखें - कोटि नाम संसार में तिन से मुक्ति न होय । आदि नाम जो गुप्त है बूझे बिरला कोय ।
Q 5 - Hans diksha lene ke baad hume aatm gyan kitane dino me hota hai.
- इसमें यदि साधक धैर्य से चलता रहे । तो साधारणतः चार जन्म लगते हैं । जैसे मान लो किसी की इसी जन्म में शुरूआत हुयी । तो तीन जन्म और लेना होगा । लेकिन कोई पहले ही दो जन्म से यात्रा करता आया है । तो उसकी यात्रा बीच से शुरू हो जायेगी । और आगामी दो जन्म में समाप्त हो जायेगी । इसके अतिरिक्त परिस्थितियों गुरु कृपा और ऊँच नीच संस्कारों का भी फ़र्क पङता है ।
Q 6 - Rajeev ji humara jeev kisne tayyar kiya hai . koi to hoga . humare jeev ko banane wala.
- वास्तव में तुम्हारा जीव किसी और ने नहीं । स्वयं तुमने ही तैयार किया है । क्योंकि और कोई दूसरा है ही नहीं । तुम्हारी कोई इच्छा चाह ही तुम्हारे जीवन का बीज बन जाती है । और तुम आत्मा से जीवात्मा बन जाते हो । दिव्य भोगों की चाह होने पर उस संस्कार बीज से दिव्यात्मा बन जाते हो । जैसे अभी तुम बिजनेस मेन बनना चाहो । डाकू बनना चाहो । तो स्वयं तुम ही तो बनते हो ।
Q 7 - sharab pina, mans khana, bhog karna kya ye paap hai kya ? agar ye paap hai . to aghori sadhak our bhairvi sadhak sadhana ke samay iska use kyon karate hai.
- शराब पीना पाप नहीं है । पर शराब के नशे में जो तमाम व्यभिचार शराबी से होते हैं । वो पाप का कारण ( बीज ) बन जाते हैं । मांस खाना निश्चय ही घोर पाप है । क्योंकि इससे मारे गये जीव को बेहद कष्ट से गुजरना होता है । और किसी को भी कष्ट पहुँचाना ही महापाप है । देखें - परहित सरस धर्म नहीं भाई । पर पीङा सम नहीं अधिकाई । बस ये सोच लो कि - ऐसे ही तुम्हें या तुम्हारे प्रिय को कोई काटे मारे भूने खाये । तो तुम्हें कैसा लगेगा ? व्यर्थ के भोग करना और रोगों को गले लगाना एक समान ही है । यह साधारण अनुभव से ही जाना जा सकता है । अघोरी साधक भैरव साधक अनपढ जाहिल और मूर्ख गंवार होते हैं । और मूर्खों के बारे में क्या कहा जाये ।
Bas rajeev ji aaj itana he . mere aise bahut sawal hai . fir aap ki seva me aaunga . aur ek bar thanx rajeev ji.
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Q 1 - rajeev ji mai hans diksha le sakta hun kya ? agar le sakta hun . to mujhe maharasta me diksha milegi . ya aap ke ashram me aakar leni hogi . kyon ki mai itani dur tak nahi aa sakta . aur ghar wale bhi nahi chhodenge .
- विश्व का कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी जाति धर्म समुदाय आदि से हो । हँस दीक्षा ले सकता है । क्योंकि ये सभी इंसानों के लिये ही है । ये परमात्मा की भक्ति है । न कि किसी विशेष जाति धर्म की । और सभी धर्म एक बात निश्चय ही स्वीकार करते हैं कि - सबका मालिक 1 ही है ।
देखें - सबहि सुलभ सब दिन सब देशा । सेवत सादर शमन कलेशा । महाराष्ट्र में आपको दीक्षा नहीं मिल सकती है । बल्कि आपको चिन्ताहरण आश्रम में या दिल्ली में ही दीक्षा मिलेगी ।
जहाँ तक आने जाने का प्रश्न है । प्यासा ही कुंये के पास जाता है । कुंआ नहीं । इसलिये ज्ञान के लिये आपको कुछ उपाय तो करना ही होगा । अभी आप इतनी दूर ( महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश ) नहीं आ सकते । पर मृत्यु उपरांत जीव को भयंकर यमदूतों के साथ कैदी रूप में रोते बिलखते हुये बेहद लम्बी कष्ट युक्त यात्रा करनी होती है । तब क्या और कैसे होगा ? और तब किसी भी जीव के घरवाले भी उसे तुरन्त छोङ देते हैं । देखें - दुनियां में है दो दिन का मेला जुङा । हँस जब भी उङा तब अकेला उङा ।
Q 2 - Kya diksha lene ke baad hum apane ghar per he sadhna kar sakate hain ? kya hame aashram aana padega ? our diksha lene ke baad hume kaun se niyamon ka palan karana hoga.
- क्योंकि ये परमात्मा की भक्ति है । और वही सबका एकमात्र पिता है । अतः इस सुमिरन में कोई भी ढोंग पाखंड प्रपंच नही है । आप चलते फ़िरते उठते बैठते सोते जागते कहीं भी इस सुमिरन को आसानी से कर सकते हैं । देखें - भाव कुभाव अनख आलस हू । नाम जपत मंगल सब दिस हू । क्योंकि इसमें आपके शरीर में होते अजपा नाम ( महामंत्र ) को जाग्रत किया जाता है । जिस पर बस ध्यान देना होता है । मुँह से कुछ बोलना आदि नहीं होता । एक बार नामदान मिलने के बाद आश्रम आने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है । लेकिन आपके भाग्यवश शुभ संस्कार उदय हो जायें । और ऐसे हालात बने कि आश्रम आकर आपको गुरु दर्शन का अवसर बने । तो आप एक बार नहीं । हजार बार आ सकते हैं । एक रहस्य की बात है कि जब आप गुरु से सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करते हैं कि - हे गुरुदेव ऐसी कृपा करें कि मैं आपके दर्शन और नामदान ले सकूँ । तो कुदरती रूप से ऐसी परस्थितियां बन जाती हैं कि सभी रुकावटें दूर हो जाती हैं । अतः इस बारे में कोई चिन्ता करने की आवश्यकता ही नहीं है । बस एक बार प्रार्थना करके देखें । हमारे यहाँ कोई नियम नहीं है । बस आप अधिक से अधिक सुमरन करें । ये ज्ञान आपका आचरण और आंतरिक शुद्धता में परिवर्तन स्वयं ही करता है । अतः अच्छे नियम आदि स्वतः ही आपके व्यवहार में आ जाते हैं । हम कोई नियम जबरन नहीं लादते ।
Q 3 - rajeev ji mai abhi bhagwan shankar ki puja aur naam jap karta hun . per mera koi guru nahi hai . kya bina guru ki aisi puja path karna sahi hai. Maine aap ke kisi lekh me pada tha ki shiv shakti kalyankari shakti hai . kya shiv shakti hume parmatma se mila sakati hai.
- लगभग पूरे विश्व के सभी धर्मों में ही इसी तरह की मनमुखी पूजा का प्रचलन है कि - खुद को जो ठीक लगे । वही सही मान लिया जाता है । सब भगवान देखेगा । ऐसा सोचकर । पर यह एकदम गलत है । आप कल्पना करो कि आप टीवी के सामने बैठकर उसको अगरबत्ती फ़ूल प्रसाद आदि चढाकर कहो - टीवी शुरू हो जा । हमें ये समाचार दिखा । वो फ़िल्म कार्यकृम दिखा आदि । तो क्या वो करेगा ? अब भगवान शंकर कौन क्या है । उनका मंत्र क्या है ? पूजा क्या है ? ये सब जाने बिना किसी से पढ सुनकर खुद निर्णय लेना उचित नहीं है । क्योंकि ये कोई सिद्ध सांसारिक चीज नहीं है । जैसे दूध से दही जमना । बिना गुरु के ऐसी पूजा करना न उचित ही है । न अनुचित ही । क्योंकि ये निरर्थक कार्य की तरह है । इससे सिर्फ़ भाव अच्छा होता है । जिससे आगे के लिये जिज्ञासा और मार्ग बनता है ।
शिव शक्ति कल्याणकारी शक्ति है । पर शंकर से शिव का क्या मतलब ? वो ( इनके तुलनात्मक ) कल्पनातीत महाशक्ति है । शंकर जैसे उनके यहाँ पानी भरने का कार्य करते हैं । मतलब शिव बहुत अलग हैं । और शंकर बहुत अलग । शिवोह्म - यानी सर्वात्मा । और शंकर तमोगुण का प्रतिनिधि एक अत्यन्त छोटा देवता । शिव शक्ति हो । या अन्य कोई भी बङी से बङी शक्ति आपको परमात्मा से कोई नहीं मिला सकता । सिवाय आपके । और इसके लिये समर्थ गुरु की शरण में जाना होता है । देखें - सन्त मिलें तो मैं मिल जाऊँ सन्त न मोते न्यारे । बिना सन्त के ना मिल पाऊँ कोटि जतन कर डारो । मोर वचन चाहे पङ जाय फ़ीका । सन्त वचन पत्थर की लीका ।
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- इसमें यदि साधक धैर्य से चलता रहे । तो साधारणतः चार जन्म लगते हैं । जैसे मान लो किसी की इसी जन्म में शुरूआत हुयी । तो तीन जन्म और लेना होगा । लेकिन कोई पहले ही दो जन्म से यात्रा करता आया है । तो उसकी यात्रा बीच से शुरू हो जायेगी । और आगामी दो जन्म में समाप्त हो जायेगी । इसके अतिरिक्त परिस्थितियों गुरु कृपा और ऊँच नीच संस्कारों का भी फ़र्क पङता है ।
Q 6 - Rajeev ji humara jeev kisne tayyar kiya hai . koi to hoga . humare jeev ko banane wala.
- वास्तव में तुम्हारा जीव किसी और ने नहीं । स्वयं तुमने ही तैयार किया है । क्योंकि और कोई दूसरा है ही नहीं । तुम्हारी कोई इच्छा चाह ही तुम्हारे जीवन का बीज बन जाती है । और तुम आत्मा से जीवात्मा बन जाते हो । दिव्य भोगों की चाह होने पर उस संस्कार बीज से दिव्यात्मा बन जाते हो । जैसे अभी तुम बिजनेस मेन बनना चाहो । डाकू बनना चाहो । तो स्वयं तुम ही तो बनते हो ।
Q 7 - sharab pina, mans khana, bhog karna kya ye paap hai kya ? agar ye paap hai . to aghori sadhak our bhairvi sadhak sadhana ke samay iska use kyon karate hai.
- शराब पीना पाप नहीं है । पर शराब के नशे में जो तमाम व्यभिचार शराबी से होते हैं । वो पाप का कारण ( बीज ) बन जाते हैं । मांस खाना निश्चय ही घोर पाप है । क्योंकि इससे मारे गये जीव को बेहद कष्ट से गुजरना होता है । और किसी को भी कष्ट पहुँचाना ही महापाप है । देखें - परहित सरस धर्म नहीं भाई । पर पीङा सम नहीं अधिकाई । बस ये सोच लो कि - ऐसे ही तुम्हें या तुम्हारे प्रिय को कोई काटे मारे भूने खाये । तो तुम्हें कैसा लगेगा ? व्यर्थ के भोग करना और रोगों को गले लगाना एक समान ही है । यह साधारण अनुभव से ही जाना जा सकता है । अघोरी साधक भैरव साधक अनपढ जाहिल और मूर्ख गंवार होते हैं । और मूर्खों के बारे में क्या कहा जाये ।
Bas rajeev ji aaj itana he . mere aise bahut sawal hai . fir aap ki seva me aaunga . aur ek bar thanx rajeev ji.
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