30 अगस्त 2013

मेरा पढाई में मन नहीं लगता है

राजीव जी ! सादर प्रणाम । मैं आपके ब्लॉग का काफी समय से एक मूक पाठक हूँ । निस्संदेह ज्ञान का सागर है । ऐसे ब्लॉग को लिखने के लिये आप प्रशंसा और आदर के पात्र हैं । मेरा नमन स्वीकार करें । एक निवेदन है - द्वैत और अद्वैत की विवेचना कर मेरे जैसे अज्ञानी पाठकों पर उपकार करें । आपका लक्ष्मण सिंह
उत्तर - मैं आपके प्रश्न का ( सही ) आशय नहीं समझा । अद्वैत शब्द का मतलब किसी भी चीज के सिर्फ़ एक पक्ष से है । जैसे सुख हो । पर दुख न हो । प्रकाश हो । पर अंधेरा न हो । अतः अद्वैत ( ज्ञान ) में परमात्मा ( या परमात्म सृष्टि या हँस जीव या मुक्त आत्मायें या अति महा शक्तियां या कहिये आत्मा की बेहद उच्च स्थितियां हैं ) और वहाँ के हँसों के लोक दीप आदि आते हैं । यह सभी कुछ जीवन मरण से परे है । दैहिक दैविक भौतिक से भी परे है । यहाँ का जीवन प्रकाश भोजन आदि सभी कुछ सिर्फ़ " अदभुत " ही कहा जा सकता है । यही प्रत्येक जीवात्मा का असली घर है । क्योंकि जीवात्मा अमर है । और अमृत ही उसका भोजन है । मन के पार जाने की योग  क्रिया द्वारा इसका न सिर्फ़ बोध होता है । बल्कि इसकी प्राप्ति भी होती है । मगर इसकी चाभी ( या ज्ञान ) सिर्फ़ सच्चे सन्तों के पास होता है । खास बात यह है कि - इस ज्ञान में ज्ञान योग प्रधान होता है । यानी कर्म योग की महत्ता नहीं है ।
द्वैत - शब्द का मतलब ही किसी भी भाव के दो पक्षों से है । जैसे - जीवन फ़िर मरण । रात फ़िर दिन । सुख फ़िर दुख । अतः द्वैत में कर्म प्रधान होता है । इसमें सिर्फ़ कर्म का ही ज्ञान हो पाता है । स्थिति का ही ज्ञान हो पाता है । स्थिति और उपाधि से परे निरुपाधि का ज्ञान नहीं होता । अतः इसमें किसी भी परिस्थिति से मुक्ति होती है । जबकि अद्वैत ज्ञानी हर स्थिति परिस्थिति से मुक्त होता है ।
फ़िर भी आप द्वैत अद्वैत के किस पक्ष को जानना चाहते हैं । उस पर अपने भाव लिखें । मैं आपकी जिज्ञासा को सन्तुष्ट करने की कोशिश करूँगा ।
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सर ! कृपया एक और समाधान करें - मैं एक 12 वीं का विद्यार्थी हूँ । मैं हमेशा 5-6 घण्टे पढने का प्रयास करता हूँ । पर पता नहीं । क्या कारण है कि मैं चाहकर भी पढ नहीं पाता हूँ । और मेरा मन एकाग्रचित नहीं रह पाता । जब मैं पढने बैठता हूँ । तो मेरा मन पता नहीं किधर चला जाता है । और मैं भूल जाता हूँ कि मैं पढ रहा हूँ । जब दोबारा ध्यान आता है कि मैं पढ रहा हूँ । उसके बाद तो मन में बेचेनी सी होती है । और 1 मिनट भी पढाई में मन नहीं लगता है । फिर मैंने आपसे सलाह लेने का निश्चय किया । मुझे आपसे बङी उम्मीद है कि आप इसका हल जरूर देंगे । ( फ़ेसबुक पर एक मैसेज । नाम खोलना मुझे उचित नहीं लगा )
उत्तर - आप इन चार शब्दों ( वास्तव में मूल मंत्रों ) पर विशेष ध्यान दें । ये चार जीवन में प्रत्येक क्षण हैं - रुचि । खतरा । केन्द्रीयकरण या केन्द्रित होना । और फ़िर सन्तुलन ।
अब इनको समझें । आप बिना रुचि के कोई कार्य नहीं कर सकते । और कार्य में रुचि तभी होगी । जब आपको कार्य के परिणाम ( फ़ल ) का सही ज्ञान होगा । मतलब कार्य करने से हमें क्या प्राप्त होगा । और कार्य न करने पर हम किस चीज से वंचित रहेंगे । लेकिन अगर सिर्फ़ यही बात भी होती । तो भी आवश्यक नहीं कि किसी भी कार्य में हमारा पूर्ण रुझान हो ही जाता । तब बात आती है - खतरे की । मतलब यदि हम कुछ आवश्यक कार्यों में लापरवाही करें । या बिलकुल न करें । तो भविष्य में उसके गम्भीर परिणाम क्या होंगे ?
इस सम्बन्ध में एक बहुत ही रोचक दृष्टांत है । एक साधु के बारे में प्रसिद्ध था कि - वह लोगों का भविष्य बता देता है । तब एक आदमी उसके पास गया । और बोला - मैं इस बात को लेकर हैरान हूँ कि आप कभी कोई गलत बात ( या कार्य )  नहीं करते । दूसरे लोग जिस तरह के फ़ालतू लङाई झगङे या समय की बर्बादी वाले अन्य कार्य करते हैं । वह भी आप नहीं करते । और बङे सार्थक तरीके से जैसे पूरी सतर्कता से जीवन यापन कर रहे हैं ।
तब वह साधु व्यक्ति बोला - वह सब छोङो । मुझे अभी अभी एक अजीब बात पता हो रही कि - तुम सात दिन के अन्दर मर जाने वाले हो । अतः जाओ । अपने परिवार के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करो । और मनचाहा खाओ पियो । सात दिन अपनी जिन्दगी भरपूर रूप से जियो ।
उस व्यक्ति को जैसे लकवा मार गया । वह घर चला आया । और किसी को बिना कुछ बताये चुपचाप लेट गया । सातवें दिन वह साधु उस व्यक्ति के पास पहुँचा । और बोला - मैं जानने आया हूँ । ये सात दिन तुमने कैसे बिताये । तब वह व्यक्ति बोला - कैसे बिताता । तबसे हर क्षण मुझे मौत ही नजर आती रही । अतः और व्यर्थ की चीजें मैं सोच ही नहीं पाया ।
वह साधु बोला - बस ठीक है । मैंने तुमसे झूठ कहा था । तुम अभी मरने वाले नहीं हो । अब तुम्हें समझ में आया । मुझे ये अच्छी तरह पता है कि यदि मैंने जीवन व्यर्थ में गंवा दिया । तो अन्त में उसका परिणाम क्या होगा ? और व्यर्थ में मैं जो भी गलत करूँगा । उसका भी परिणाम क्या होगा ? इसीलिये मैं फ़ालतू चीजों के बारे में सोच भी नहीं पाता । क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूँ । जीवन कब समाप्त हो जायेगा । इसका किसको पता है ?
तो जब हम ऐसे खतरों के प्रति जागरूक हो जाते हैं । तो हम सार्थक लक्ष्यों की तरफ़ स्वतः केन्द्रित हो जाते हैं । या कृमशः होने लगते हैं । और तब जीवन केक प्रत्येक कार्य में हमारा अदभुत सन्तुलन हो जाता है । आपको आश्चर्य होगा । इसी सन्तुलन को बुद्ध महावीर या तमाम योगियों ने समता कहा है ।
जहाँ तक पढाई से अरुचि या मन हटने की बात है । सीधी सी बात है कि आप उसको ग्रहण नहीं कर पा रहे । उसमें जो रस है । वह आपसे नहीं निकल रहा । जबकि मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि किसी भी अध्ययन में उसका एक विशेष रस है । बस आपको उसका मूल , तरीका , ध्येय , प्राप्ति जैसे बिन्दुओं को जानना होगा ।
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मांसाहारी जानवर तो मांस पर ही निर्भर होते है । क्या मांसाहारी जानवरों का मांस खाना भी पाप है ? दीपक
उत्तर - आपने देखा होगा कि जब तक कोई अपराधी कानून के शिकंजे में नहीं फ़ँसता । तब तक वह सही गलत ( का संविधान ) बङे मनमाने ढंग से बताता है । जैसे - अरे कुछ नहीं होता । कोई भगवान नहीं है । भगवान भी पापियों का साथ अधिक देता है । खुद देख लो पापी मौज कर रहे हैं । महंगाई भृष्टाचार इतना है कि आदमी नम्बर दो का काम न करे । तो मर ही जाये ।
ऐसे ही माँसाहारियों के कुछ कुतर्क देखिये - अगर इनको खाया नहीं जायेगा । तो इनकी संख्या कितनी हो जायेगी । भारतीय धर्म ग्रन्थों में भी भगवान जैसे चरित्रों ने शिकार आदि किये । कोई हम अकेले ही थोङे ही खाते हैं । एक हम नहीं खायेंगे । उससे क्या अन्तर आ जायेगा ।
लेकिन ये सिर्फ़ मन को समझाना भर है । सच्चाई नहीं है ।
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जिस लडकी ने आसाराम बापू पर आरोप लगाए थे । उस लडकी की सहेली ने मीडिया के सामने उससे हुई बातचीत के बारे में बताया । और आरोप का खण्डन किया । आप भी देखिए ।
http://www.youtube.com/watch?v=oyeWUJpz5SA

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बलात्कार तो ईसाईयों के पादरी भी करते हैं । कभी इतनी लम्बी कवरेज देखी । किसी ने भारतीय दलाल मीडिया के परदे पर ??
http://www.youtube.com/watch?v=Nc5bXVVcbts&feature=youtu.be
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इस पोस्ट को वायरस की तरह फैला दीजिए l  तभी देश का भविष्य बचने की कोई उम्मीद है l  नहीं तो एक समय ऐसा आएगा । जब आपका सारा बैंक बैलेंस जिम्बावे देश के लोगों की तरह जीरो हो जाएगा l या नोटों की गड्डी तो बहुत होगी । लेकिन उसके बदले में सामान कुछ नहीं मिलेगा l

पहली पोस्ट https://www.facebook.com/photo.php?fbid=380596492068551&set=a.123905557737647.17980.100003546114467&type=1&theater

दूसरी पोस्ट https://www.facebook.com/notes/siddharth-bharodiya/रुपया-गीरा-या-जनता-का-नसीब-/232067490279453
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अर्ज़ किया है - मत निकालो मेरा जनाज़ा उसकी गली से यारों । वर्ना उसकी माँ कहेगी कि - कमीना मरते मरते भी एक राउंड लगा गया ।
साभार शान फ़ेसबुक पेज से

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326