- प्यारे बच्चो ! र को हिन्दी वर्णमाला में क्या कहते हैं ?
- मास्टर जी र को र ही कहते हैं । और उर्दू में रे और अंग्रेजी में आर कहते हैं ।.. और पंजाबी उङिया बंगाली सिंधी मराठी पश्तो फ़ारसी में क्या कहते हैं । हमें नहीं पता । और हमें इसलिये नहीं पता । क्योंकि आपने कभी बताया ही नहीं । और आपने इसलिये नहीं बताया कि खुद आपको ही कौन सा पता है ? ही ही ही
- शाबास सत्यकीखोज पढ पढकर वो भी बुद्धिमान हो गये । जिन्हें क से कौआ और ल से लोमङी तक का पता नहीं था ।
...आज प्रश्नों के उत्तर देने का मन नहीं था । क्योंकि प्रश्नों का स्तर अधिकतर बहुत साधारण सा ही होता है । और मैं आपको अपने बहुत थोङे से शेष बचे जीवन में बहुत कुछ रहस्य बता देना चाहता हूँ । वो जो मैं जानता हूँ ?
क्या आपने कभी सोचा है कि - हम किसी भी वस्तु आदि को किसी विशेष शब्द या नाम से क्यों पुकारते हैं ? जैसे जल, वायु, चित्र, वर्ण, व्याघ्र , मृग आदि आदि वे तमाम शब्द या नाम जिनके द्वारा हम जीवन की समस्त गतिविधियों को सुचारु रूप से क्रियान्वित कर पाते हैं । उदाहरण के लिये " दूध " शब्द को ले लीजिये । अब सोचें कि दूध को दूध ही क्यों कहा जाता है ? तो जब आप इसका शब्द शोधन करोगे । तो आपको पता चलेगा कि दूध को दुग्ध या पय आदि भी कहा जाता है । जैसे ये भी पता चल सकता है कि बहुप्रचलित दही शब्द वास्तव में कोई शब्द ही नहीं है । बल्कि दधि
से बिगङकर दही हुआ है । इस तरह खोजते खोजते जब आप किसी वस्तु के यथार्थ नाम ( शब्द मूल ) तक पहुँच जाते हैं । यानी वास्तव में जो उसका शुद्ध और मूल ( जङ या उत्पत्ति ) नाम रहा है । तब आपके सामने फ़िर एक समस्या उत्पन्न हो जाती है । जैसे ठीक है कि दूध का शुद्ध और मूल दुग्ध ही है । मगर दुग्ध भी क्यों है ? तब जाहिर सी बात है कि आप दुग्ध की ही चीरफ़ाङ ( सन्धि विच्छेद । पोस्टमार्टम या आंतरिक तकनीक जानना ) करोगे । और जब आपने दुग्ध को भी विच्छेद किया । तो द + उ + ग + ध ये बना । ध्यान रहे । मैं अभी ये सब मोटे तौर पर ही कह रहा हूँ । क्योंकि जब आप द या ध को भी विच्छेद करोगे । तो वो आधा द ( मतलब हलन्त लगा ) + अ होगा । और ध + अ होगा । अब दुग्ध के रासायनिक परीक्षण ( रस या धातु ) में आपको द + उ + ग + ध घटक कृमशः मिले हुये प्राप्त हुये । ( ध्यान दें । आप इनको किसी और कृम जैसे ग + ध + उ + द में नहीं जोङ सकते । नहीं तो दुग्ध की जगह कोई और ही पदार्थ बन जायेगा । )
फ़िर आपको पता चला कि दुग्ध में तो - लोहा कैल्शियम प्रोटीन वसा आदि तमाम रस धातु मिली हुयी हैं । तब जाकर इस एक तरल पदार्थ का निर्माण हुआ । अब आप दुग्ध और दधि को तो भूल गये । और द + उ + ग + ध के चक्कर ( घनचक्कर ) में उलझ गये । आपने सोचा कि द उ ग ध अक्षरों में ऐसा क्या और क्यों है ? जो दुग्ध बन जाता है । तब आप द उ आदि अक्षरों का मूल खोजोगे कि ये क्या हैं ? और इनकी उत्पत्ति कहाँ से हो रही है । तब आप पाओगे । किसी अज्ञात चेतना से उसी के ( या किसी के ) शाश्वत नियम अनुसार । एक संकुचन द्वारा । ( इच्छा ) वायु उत्पन्न होकर । कंपन के द्वारा तरंग में । और तरंग से गति में रूपान्तरित होकर जब विभिन्न अवयवों से संयोग कर इच्छानुसार क्रिया करती है । तब उसी से सृष्टि के तमाम पदार्थों की उत्पत्ति हो रही है । नहीं समझे । जैसे आपने क अक्षर का स्पष्ट दोष रहित उच्चारण किया । तो चेतना की इच्छा । फ़िर वायु । फ़िर कंपन । फ़िर तरंग और फ़िर इसका निश्चित तंत्र से गुजरकर यंत्र में बदलना । पूरी अखिल सृष्टि मौटे तौर पर इसी चेतना > ऊर्जा > गति > आकर्षण के सिद्धांत पर कार्य करती है । लेकिन अभी मैं इसके सूक्ष्म कारणों सिद्धांत आदि में नहीं जाऊँगा । क्योंकि इससे पहले स्थूल रूप से आपको अक्षर ( पदार्थ या दूसरे भाव में स्थिति ) के बारे में जानना होगा ।
मैंने कई बार आपको कहा है कि र अक्षर और गति एक ही बात है । क्योंकि इसमें दौङना धातु ( या क्रिया ) निहित है । सबसे पहले ये देखिये कि हिन्दी लेखन में सिर्फ़ र ही वह अक्षर है । जो प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे ऊपर नीचे दायें बायें सर्वत्र गति कर सकता है । देखें - सूर्य । पत्र । चक्र । ट्रक । श्रम । वृत । और इसके बाद बिन्दी है । बिन्दी या बिन्दु कंपन है । क्योंकि इसमें न की ध्वनि होती है । जैसे टन्न की ध्वनि का हम किसी मशीन द्वारा ग्राफ़ देखें । तो इसमें स्फ़ोट के घात अनुसार पहले दूर दूर और फ़िर कृमशः पास होते ( गतिज ) बिन्दु नजर आयेंगे । र स्थूल गति का सिद्धांत है । और बिन्दी ( ध्वनि से उत्पन्न कंपन ) सूक्ष्म ( मन की गति ) गति का सिद्धांत है । इसके बाद सिर्फ़ प्रकाश ( मन से भी तेज । चेतना की स्थिति अनुसार इच्छित लक्ष्य पर लगभग तुरन्त ही ) की गति का सिद्धांत है । लेकिन अभी हम र यानी स्थूल गति के रहस्य की ही बात करेंगे । अक्सर आपने सुना पढा होगा कि - चिङिया फ़ुर्र से उङ गयी । गाङी सर्र से निकल गयी । ऐसा इसलिये कहते हैं । क्योंकि इनकी गति में ऐसी ही ध्वनि होती है । अब आप फ़िर वही बात देखें कि र का मुख उच्चारण पूरी वर्णमाला में सबसे अलग गतिमान तरीके से होता है । किसी भी अन्य अक्षर के उच्चारण में ऐसी क्रिया नहीं होती । सिर्फ़ ल का इससे मिलता मगर तकनीकी भिन्नता लिये होता है । अब आप हुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रऽऽऽऽऽऽऽऽ ( हुर्र या भुर्र ) शब्द का उसी तरह उच्चारण करें । जैसे ग्रामीण बच्चे प्रायः कल्पित गाङी चलाने की कल्पना करते हुये भागते समय करते हैं । आप पायेंगे कि आपके मुँह के अन्दर कोई चक्र या पंखा सा तेजी से घूमने लगा । लेकिन यदि आप हुल्ल्ल शब्द का उच्चारण करेंगे । तो ऐसा नहीं होगा । मेरी जानकारी में हिन्दी वर्णमाला को छोङकर आपको विश्व की किसी वर्णमाला में यह चमत्कार या शाश्वत सिद्धांत नहीं मिलेगा । और हिन्दी वर्णमाला के किसी भी अन्य अक्षर या द्वि त्रय आदि अक्षर संयोजन से भी ऐसी गतिज क्रिया नहीं बनेगी । सिवाय छुक छुक अक्षर संयोजन के । ध्यान रहे । यदि आप पुक पुक या फ़ुक फ़ुक या हुप हुप जैसा संयोजन करेंगे । तो गति तो होगी । मगर वैसी ही । जैसे कोई वस्तु एक निश्चित और बहुत सीमित दायरे में ऊपर नीचे गतिमान है । और छुक छुक में भी एक निश्चित बंधी हुयी गति ही है ।
अब आप विशेष गौर करें कि यदि आप सिर्फ़ र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र का उच्चारण करते हैं । तो यह संभव नहीं । इससे पहले आपको इसे किसी माध्यम ( यन्त्र ) जैसे हु या भु या कोई भी अन्य अक्षर आधार के साथ जोङना ही होगा । अन्यथा गति कहाँ से और कितनी उत्पन्न हुयी । और किस चेतना स्रोत से जुङी है । क्या उपयोग होगा । ये सभी समीकरण गङबङा जायेंगे । क्योंकि मैंने र को स्थूल गति कहा है । रमने वाला ।
तो अब आप समझे कि आपके शरीर में र अक्षर जिस स्थान से उत्पन्न होकर और जिस क्रिया ( तंत्र ) से गुजरकर एक गतिमान प्रवाह या यांत्रिक ऊर्जा जैसी स्थितियों में परिवर्तित होता है । ठीक यही स्थूल गति का सिद्धांत किसी वाहन वायुयान या जीवधारियों आदि में होता है । अतः सिर्फ़ हिन्दी वर्णमाला ही ऐसी है । जिसमें चेतना > ऊर्जा > गति > आकर्षण = पदार्थ ( और इनको मिलाकर बनती है सृष्टि ) इन सभी का मूल रहस्य समाहित है । और आपको हैरानी होगी । इस सबको जानना एकदम सरल है । बस आपको चाहिये होगा - एक छोटी सी हिन्दी व्याकरण की किताब । संस्कृत हिन्दी शब्दकोष । और फ़िर स्वयं अक्षरों के विभिन्न उच्चारण आदि प्रयोग द्वारा उसके मूल को जानना । और सबसे जरूरी - राजीव बाबा । इन चार का संयोजन होते ही आप सृष्टि रहस्य और फ़िर स्वयं के रहस्य को जानने की सरल सहज यात्रा पर जा सकते हैं ।
फ़िलहाल गृहकार्य में आप अ आ से क्ष त्र ज्ञ तक का सही तरीके से बारबार उच्चारण करें । और देखें कि उच्चारण में क्या और किस तरह से क्रिया होती है । और उसका परिणाम ( पदार्थ ) क्या होता है ?
और ये भी देखिये - य र ल व ये चार अंतःस्थ व्यंजन होते हैं । इनके उच्चारण में वायु मुख के किसी भाग को पूरी तरह स्पर्श नहीं करती ।
- श ष स ह ये चार ऊष्म व्यंजन होते हैं । इनके उच्चारण में वायु मुख के विभिन्न भागों से टकराकर ऊष्मा ( गर्मी या ताप ) पैदा करती है ।
- ङ और ढ ये दो अतिरिक्त व्यंजन हैं । इनके उच्चारण में वायु जीभ से टकराकर चापस आती है । और फ़िर बाहर निकलती है । इनसे कोई शब्द शुरू नहीं होता ।
विशेष - समय का अभाव और बीच बीच में व्यवधान । ये अक्सर मुझे वह नहीं कहने देते । जो मैं कहना चाहता हूँ ।
आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
- मास्टर जी र को र ही कहते हैं । और उर्दू में रे और अंग्रेजी में आर कहते हैं ।.. और पंजाबी उङिया बंगाली सिंधी मराठी पश्तो फ़ारसी में क्या कहते हैं । हमें नहीं पता । और हमें इसलिये नहीं पता । क्योंकि आपने कभी बताया ही नहीं । और आपने इसलिये नहीं बताया कि खुद आपको ही कौन सा पता है ? ही ही ही
- शाबास सत्यकीखोज पढ पढकर वो भी बुद्धिमान हो गये । जिन्हें क से कौआ और ल से लोमङी तक का पता नहीं था ।
...आज प्रश्नों के उत्तर देने का मन नहीं था । क्योंकि प्रश्नों का स्तर अधिकतर बहुत साधारण सा ही होता है । और मैं आपको अपने बहुत थोङे से शेष बचे जीवन में बहुत कुछ रहस्य बता देना चाहता हूँ । वो जो मैं जानता हूँ ?
क्या आपने कभी सोचा है कि - हम किसी भी वस्तु आदि को किसी विशेष शब्द या नाम से क्यों पुकारते हैं ? जैसे जल, वायु, चित्र, वर्ण, व्याघ्र , मृग आदि आदि वे तमाम शब्द या नाम जिनके द्वारा हम जीवन की समस्त गतिविधियों को सुचारु रूप से क्रियान्वित कर पाते हैं । उदाहरण के लिये " दूध " शब्द को ले लीजिये । अब सोचें कि दूध को दूध ही क्यों कहा जाता है ? तो जब आप इसका शब्द शोधन करोगे । तो आपको पता चलेगा कि दूध को दुग्ध या पय आदि भी कहा जाता है । जैसे ये भी पता चल सकता है कि बहुप्रचलित दही शब्द वास्तव में कोई शब्द ही नहीं है । बल्कि दधि
से बिगङकर दही हुआ है । इस तरह खोजते खोजते जब आप किसी वस्तु के यथार्थ नाम ( शब्द मूल ) तक पहुँच जाते हैं । यानी वास्तव में जो उसका शुद्ध और मूल ( जङ या उत्पत्ति ) नाम रहा है । तब आपके सामने फ़िर एक समस्या उत्पन्न हो जाती है । जैसे ठीक है कि दूध का शुद्ध और मूल दुग्ध ही है । मगर दुग्ध भी क्यों है ? तब जाहिर सी बात है कि आप दुग्ध की ही चीरफ़ाङ ( सन्धि विच्छेद । पोस्टमार्टम या आंतरिक तकनीक जानना ) करोगे । और जब आपने दुग्ध को भी विच्छेद किया । तो द + उ + ग + ध ये बना । ध्यान रहे । मैं अभी ये सब मोटे तौर पर ही कह रहा हूँ । क्योंकि जब आप द या ध को भी विच्छेद करोगे । तो वो आधा द ( मतलब हलन्त लगा ) + अ होगा । और ध + अ होगा । अब दुग्ध के रासायनिक परीक्षण ( रस या धातु ) में आपको द + उ + ग + ध घटक कृमशः मिले हुये प्राप्त हुये । ( ध्यान दें । आप इनको किसी और कृम जैसे ग + ध + उ + द में नहीं जोङ सकते । नहीं तो दुग्ध की जगह कोई और ही पदार्थ बन जायेगा । )
फ़िर आपको पता चला कि दुग्ध में तो - लोहा कैल्शियम प्रोटीन वसा आदि तमाम रस धातु मिली हुयी हैं । तब जाकर इस एक तरल पदार्थ का निर्माण हुआ । अब आप दुग्ध और दधि को तो भूल गये । और द + उ + ग + ध के चक्कर ( घनचक्कर ) में उलझ गये । आपने सोचा कि द उ ग ध अक्षरों में ऐसा क्या और क्यों है ? जो दुग्ध बन जाता है । तब आप द उ आदि अक्षरों का मूल खोजोगे कि ये क्या हैं ? और इनकी उत्पत्ति कहाँ से हो रही है । तब आप पाओगे । किसी अज्ञात चेतना से उसी के ( या किसी के ) शाश्वत नियम अनुसार । एक संकुचन द्वारा । ( इच्छा ) वायु उत्पन्न होकर । कंपन के द्वारा तरंग में । और तरंग से गति में रूपान्तरित होकर जब विभिन्न अवयवों से संयोग कर इच्छानुसार क्रिया करती है । तब उसी से सृष्टि के तमाम पदार्थों की उत्पत्ति हो रही है । नहीं समझे । जैसे आपने क अक्षर का स्पष्ट दोष रहित उच्चारण किया । तो चेतना की इच्छा । फ़िर वायु । फ़िर कंपन । फ़िर तरंग और फ़िर इसका निश्चित तंत्र से गुजरकर यंत्र में बदलना । पूरी अखिल सृष्टि मौटे तौर पर इसी चेतना > ऊर्जा > गति > आकर्षण के सिद्धांत पर कार्य करती है । लेकिन अभी मैं इसके सूक्ष्म कारणों सिद्धांत आदि में नहीं जाऊँगा । क्योंकि इससे पहले स्थूल रूप से आपको अक्षर ( पदार्थ या दूसरे भाव में स्थिति ) के बारे में जानना होगा ।
मैंने कई बार आपको कहा है कि र अक्षर और गति एक ही बात है । क्योंकि इसमें दौङना धातु ( या क्रिया ) निहित है । सबसे पहले ये देखिये कि हिन्दी लेखन में सिर्फ़ र ही वह अक्षर है । जो प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे ऊपर नीचे दायें बायें सर्वत्र गति कर सकता है । देखें - सूर्य । पत्र । चक्र । ट्रक । श्रम । वृत । और इसके बाद बिन्दी है । बिन्दी या बिन्दु कंपन है । क्योंकि इसमें न की ध्वनि होती है । जैसे टन्न की ध्वनि का हम किसी मशीन द्वारा ग्राफ़ देखें । तो इसमें स्फ़ोट के घात अनुसार पहले दूर दूर और फ़िर कृमशः पास होते ( गतिज ) बिन्दु नजर आयेंगे । र स्थूल गति का सिद्धांत है । और बिन्दी ( ध्वनि से उत्पन्न कंपन ) सूक्ष्म ( मन की गति ) गति का सिद्धांत है । इसके बाद सिर्फ़ प्रकाश ( मन से भी तेज । चेतना की स्थिति अनुसार इच्छित लक्ष्य पर लगभग तुरन्त ही ) की गति का सिद्धांत है । लेकिन अभी हम र यानी स्थूल गति के रहस्य की ही बात करेंगे । अक्सर आपने सुना पढा होगा कि - चिङिया फ़ुर्र से उङ गयी । गाङी सर्र से निकल गयी । ऐसा इसलिये कहते हैं । क्योंकि इनकी गति में ऐसी ही ध्वनि होती है । अब आप फ़िर वही बात देखें कि र का मुख उच्चारण पूरी वर्णमाला में सबसे अलग गतिमान तरीके से होता है । किसी भी अन्य अक्षर के उच्चारण में ऐसी क्रिया नहीं होती । सिर्फ़ ल का इससे मिलता मगर तकनीकी भिन्नता लिये होता है । अब आप हुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रऽऽऽऽऽऽऽऽ ( हुर्र या भुर्र ) शब्द का उसी तरह उच्चारण करें । जैसे ग्रामीण बच्चे प्रायः कल्पित गाङी चलाने की कल्पना करते हुये भागते समय करते हैं । आप पायेंगे कि आपके मुँह के अन्दर कोई चक्र या पंखा सा तेजी से घूमने लगा । लेकिन यदि आप हुल्ल्ल शब्द का उच्चारण करेंगे । तो ऐसा नहीं होगा । मेरी जानकारी में हिन्दी वर्णमाला को छोङकर आपको विश्व की किसी वर्णमाला में यह चमत्कार या शाश्वत सिद्धांत नहीं मिलेगा । और हिन्दी वर्णमाला के किसी भी अन्य अक्षर या द्वि त्रय आदि अक्षर संयोजन से भी ऐसी गतिज क्रिया नहीं बनेगी । सिवाय छुक छुक अक्षर संयोजन के । ध्यान रहे । यदि आप पुक पुक या फ़ुक फ़ुक या हुप हुप जैसा संयोजन करेंगे । तो गति तो होगी । मगर वैसी ही । जैसे कोई वस्तु एक निश्चित और बहुत सीमित दायरे में ऊपर नीचे गतिमान है । और छुक छुक में भी एक निश्चित बंधी हुयी गति ही है ।
अब आप विशेष गौर करें कि यदि आप सिर्फ़ र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र का उच्चारण करते हैं । तो यह संभव नहीं । इससे पहले आपको इसे किसी माध्यम ( यन्त्र ) जैसे हु या भु या कोई भी अन्य अक्षर आधार के साथ जोङना ही होगा । अन्यथा गति कहाँ से और कितनी उत्पन्न हुयी । और किस चेतना स्रोत से जुङी है । क्या उपयोग होगा । ये सभी समीकरण गङबङा जायेंगे । क्योंकि मैंने र को स्थूल गति कहा है । रमने वाला ।
तो अब आप समझे कि आपके शरीर में र अक्षर जिस स्थान से उत्पन्न होकर और जिस क्रिया ( तंत्र ) से गुजरकर एक गतिमान प्रवाह या यांत्रिक ऊर्जा जैसी स्थितियों में परिवर्तित होता है । ठीक यही स्थूल गति का सिद्धांत किसी वाहन वायुयान या जीवधारियों आदि में होता है । अतः सिर्फ़ हिन्दी वर्णमाला ही ऐसी है । जिसमें चेतना > ऊर्जा > गति > आकर्षण = पदार्थ ( और इनको मिलाकर बनती है सृष्टि ) इन सभी का मूल रहस्य समाहित है । और आपको हैरानी होगी । इस सबको जानना एकदम सरल है । बस आपको चाहिये होगा - एक छोटी सी हिन्दी व्याकरण की किताब । संस्कृत हिन्दी शब्दकोष । और फ़िर स्वयं अक्षरों के विभिन्न उच्चारण आदि प्रयोग द्वारा उसके मूल को जानना । और सबसे जरूरी - राजीव बाबा । इन चार का संयोजन होते ही आप सृष्टि रहस्य और फ़िर स्वयं के रहस्य को जानने की सरल सहज यात्रा पर जा सकते हैं ।
फ़िलहाल गृहकार्य में आप अ आ से क्ष त्र ज्ञ तक का सही तरीके से बारबार उच्चारण करें । और देखें कि उच्चारण में क्या और किस तरह से क्रिया होती है । और उसका परिणाम ( पदार्थ ) क्या होता है ?
और ये भी देखिये - य र ल व ये चार अंतःस्थ व्यंजन होते हैं । इनके उच्चारण में वायु मुख के किसी भाग को पूरी तरह स्पर्श नहीं करती ।
- श ष स ह ये चार ऊष्म व्यंजन होते हैं । इनके उच्चारण में वायु मुख के विभिन्न भागों से टकराकर ऊष्मा ( गर्मी या ताप ) पैदा करती है ।
- ङ और ढ ये दो अतिरिक्त व्यंजन हैं । इनके उच्चारण में वायु जीभ से टकराकर चापस आती है । और फ़िर बाहर निकलती है । इनसे कोई शब्द शुरू नहीं होता ।
विशेष - समय का अभाव और बीच बीच में व्यवधान । ये अक्सर मुझे वह नहीं कहने देते । जो मैं कहना चाहता हूँ ।
आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्म प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
आपके द्वारा दिया गया ये ज्ञान आज दुर्लभ है बहुत अच्छा लगा आशा करता हूँ कि इन अक्षरों का ज्ञान भारत ही नही पुरे विश्व में आपके द्वारा प्रचारित हो
यही मेरी आशा है और आगे भी इसी तरह इस विषय पर यथा संभव ज्ञान दें प्रतीक्षा में रहूंगा.
मेरा मत है संस्कृत भाषा संगीत से उत्पन्न है, इस पर आपका क्या विचार है?
सभी इंसानों की मूल भाषा एक ही है - संस्कृत । यह स्वांस द्वारा हुये संकुचन>वायु>स्फ़ोट>फ़िर अलग अलग चक्रों से उठते अक्षर की ध्वनियां>फ़िर अलग अलग स्थानों से गुजरकर समन्वित होकर, कंठ में वैसे शब्दों का रूप लेते हैं । जो हम सभी सुनते समझते हैं ।
यह बात अक्षर निर्माण की है ।
संगीत का भी यही विधान है । पर उसकी चेतना लयात्मक ताल होती है ।
जबकि बोली की कदम ताल कह सकते हैं ।
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