जिनके जीवन में कुछ कला होगी । वे कला से लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेंगे । जिनके जीवन में कुछ भी न होगा । वे अपराध करके ध्यान आकर्षित करेंगे । मनस्विद कहते हैं कि बड़े कलाकार और अपराधियों में । सृजनात्मक पुरुषों में राजनीतिज्ञों में । बहुत फर्क नहीं होता । फर्क यही होता है कि कोई बड़ा गीत लिखता है । उससे लोग आकर्षित हो जाते हैं । जो गीत नहीं लिख पाता । वह किसी की हत्या कर देता है । उससे भी अखबारों में नाम आता है । उससे भी प्रथम पृष्ठ पर नाम छपते हैं । अमरीका के एक हत्यारे ने सात लोगों की हत्याएं कीं एक दिन में । अकारण । ऐसे लोगों को मारा । जिनसे कोई परिचय भी न था । ऐसे भी लोगों को मारा । जिनको उसने देखा भी नहीं था । न मारने के पहले । न मारने के बाद । पीठ के पीछे से आकर गोली मार दी । अजनबी आदमी । सागर के तट पर बैठा सागर को देख रहा था । पीछे से आकर उसने गोली मार दी । अदालत में पूछा गया - यह तूने क्यों किया ? उसने कहा कि मैं अखबार में प्रथम पृष्ठ पर अपना नाम देखना चाहता था । इसकी आकांक्षा तो सोचो । राजनेता है । न गीत लिख सकता है । न मूर्ति बना सकता है । न गीत गा सकता है । न सितार बजा सकता है । न नाच सकता है । तो हड़ताल करवा देता है । जुलूस निकलवा देता है । अनशन करवा देता है । कुछ तो कर ही सकता है । उपद्रव तो कर ही सकता है । उपद्रव तो सुगम है । उपद्रव की लहर पर चढ़कर प्रमुख हो जाता है । महत्वपूर्ण हो जाता है । ध्यान रखना । सृजनात्मक ढंग से अगर तुम प्रेम को आकर्षित कर पाओ । तो पुण्य है । अगर विध्वंसात्मक ढंग से तुमने लोगों का ध्यान आकर्षित किया । तो पाप है । किसी को नुकसान पहुंचाकर, किसी कुरूप और भोंडे ढंग से अगर तुमने लोगों की नजरें अपनी तरफ फेर लीं । तो तुमने कुछ अपना हित नहीं किया । तुम इससे और भी दुखी हो जाओगे । और रोज रोज तुम्हें अपने चेहरे पर और भी दुख की कालिमा पोत लेनी पड़ेगी । तुम्हारे दुख में तुम्हारा न्यस्त स्वार्थ हो जाएगा । धर्म की यात्रा पर निकले व्यक्ति को इसे एक बुनियादी सूत्र समझ लेना चाहिए । स्वस्थ को मांगना । अस्वस्थ को नहीं । क्योंकि अस्वस्थ को मांगोगे । तो और अस्वस्थ हो जाओगे । सुंदर को चाहना । असुंदर को नहीं । असुंदर को एक बार मांगा । तो लिप्त होने लगोगे । उसी में तुम्हारा धंधा जुड़ जाएगा । प्रेम को मांगना । सहानुभूति को नहीं । प्रेम को मलना हो । तो तुम्हें प्रेम के योग्य बनना पड़ता है । इस फर्क को समझ लो । प्रेम मुफ़्त नहीं मिलता । प्रेम की योग्यता चाहिए । लेकिन सहानु्भूति मुफ़्त मिलती है । योग्यता की कोई जरूरत नही । तुम्हें अगर एक सुंदर पति चाहिए । तो योग्य होना पड़ेगा । लेकिन विधवा हो जाने के लिए कोई योग्यता की जरूरत है ? तलाक पाने के लिए कोई योग्यता की जरूरत है ? लेकिन अगर पति तुम्हें तलाक दे दे । तो सभी सहानुभूति देने आ जाएंगे । उनमें से कोई भी यह न पूछेगा कि सहानुभूति देने की जरूरत है ? तलाकी गयी पत्नी को तो कोई भी सहानुभूति देता है । अगर तुम बीमार हो । तो कोई भी सहानुभूति दिखा देगा । बीमारी को कोई थोड़े पूछता है कि सहानुभूति दें । या न दें ? लेकिन अगर तुम स्वस्थ हो । तो ही कोई तुम्हारे स्वास्थ्य की प्रशंसा में दो शब्द कहेगा । कोई गीत गाएगा । तुम्हें देखकर कोई गुनगुनायेगा । परम स्वास्थ्य होगा तुम्हारे भीतर । तो ही किसी के भीतर धुन पैदा होगी । प्रेम को पाना हो । तो योग्यता चाहिए । सृजन चाहिए । सहानुभूति मुफ़्त मिल जाती है । सहानुभूति के लिए कुछ भी नहीं करना होता । तुमने कहानी सुनी होगी । बड़ी पुरानी कहानी है कि एक स्त्री ने कंगन बनवाए सोने के । वह हरेक से बात करती । जोर जोर से हाथ भी हिलाती । कंगन लुनी बजाती । लेकिन किसी ने पूछा नहीं कि कहां बनवाए ? कितने में खरीदे ? आखिर उसने अपने झोपड़े में आग लगा ली । जब वह छाती पीट पीटकर रोने लगी । तब एक महिला ने पूछा - अरे, हमने कंगन तो तेरे देखे ही नहीं । उसने कहा कि - नासमझ अगर पहले ही पूछ लेती । तो घर में आग लगाने की जरूरत तो न पडती । आज झोपड़ा जलता क्यों ? तुम हंसना मत । तुमने भी बहुत झोपड़े इसी तरह जलाए हैं । क्योंकि कंगन को कोई पूछ ही न रहा था । तुमने न मालूम कितनी बार सिर दर्द पैदा किया है । बीमार हुए हो । रुग्ण हुए हो । उदास दुखी हुए हो । घर जलाए । क्योंकि तुम्हारे सौंदर्य की कोई चर्चा ही न कर रहा था । तुम्हारी बुद्धिमानी की कोई बात ही न कर रहा था । तुम्हारी योग्यता का कोई गीत ही न गा रहा था । कोई प्रशंसा तुम्हारी तरफ आ ही न रही थी । कोई ध्यान दे ही न रहा था । ये कहानियां साधारण कहानियां नहीं हैं । ये हजारों साल के मनुष्य के अनुभव का निचोड़ हैं । यह कहानी किसी ने गढ़ी नहीं है । इसका कोई लेखक नहीं है । यह निचोङ है । यह हजारों हजारों साल के मनुष्य के अनुभव का निचोड़ है । इसे खयाल रखना ।
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तुम पूछते हो - क्या विषाद की लंबी श्रृंखला ही मेरे भाग्य में लिखी है ? ऐसा लगता है । विषाद में भी थोड़ा मजा ले रहे हो । लंबी श्रृंखला, विषाद, बड़े बहुमूल्य शब्द मालूम होते हैं । जैसे तुम कोई विशेष काम कर रहे हो । इस गंदगी में रस मत लो । अन्यथा यह गंदगी तुमसे चिपट जाएगी । रस से चीजें जुड़ जाती हैं । फिर तोड़ना मुश्किल हो जाता है । फिर अगर तुमने विषाद को ही अपना चेहरा बना लिया । और इसी के आधार पर लोगों से सहानुभूति मांगी । लोगों का हृदय मला । प्रेम मांगा । तो फिर तुम इसे छोड़ कैसे पाओगे ? क्योंकि तब डर लगेगा कि रकार विषाद छूटा । तो यह सब प्रेम भी चला जाएगा । यह सब सहानुभूति, यह लोगों का ध्यान, यह सब खो जाएगा । फिर तो तुम इसे पकड़ोगे । फिर तो तुम इसकी अतिश्योक्ति करोगे । फिर तो तुम इसे बढ़ाओगे । फिर तो तुम इसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाओगे । फिर तो तुम इसे गुब्बारे की तरह फैलाओगे । और तुम शोरगुल भी खूब मचाओगे कि मै बड़ा दुखी हूं । मैं बड़ा दुखी हूं । लेकिन तुम कभी खयाल करो । जब लोग दुख की चर्चा करते हैं । तुम जरा उनका खयाल करना । वे क्या कहते हैं । उस पर उतना ध्यान मत देना । कैसे कहते हैं । उस पर ध्यान देना । तुम पाओगे । वे रस ले रहे हैं । उनकी आंखों में तुम चमक पाओगे । तुम पाओगे । उन्हें भीतर एक गर्हित सुख मिल रहा है । जब लोग अपने दुखों का लोगों से वर्णन करने लगते हैं । तब तुम देखो । उनके जीवन में कैसी चमक आ जाती है । वे बड़े कुशल हो जाते हैं वर्णन करने में । लुक ले लेकर कहने लगते हैं । और अगर तुम उनकी बातों में रस न लो । तो वे दुखी होते हैं । अगर तुम उनकी बातों में रस न लो । तो तुम पर नाराज होते हैं । वे तुम्हें कभी क्षमा न कर पाएंगे । दूसरों की फिकर छोड़ दो । अपने पर तो खयाल रखना कि जब तुम अपने दुख की चर्चा करो । तो भूलकर भी किसी तरह का स्वाद मत लेना । अन्यथा तुम उसी दुख में बंधे रह जाओगे । फिर तुम चिल्लाओगे बहुत । लेकिन छूटना न चाहोगे । फिर तुम कारागृह में रहोगे । शोरगुल बहुत मचाओगे । लेकिन कारागृह के अगर दरवाजे भी खोल दिए जाएं । तो तुम निकलकर भागोगे नहीं । अगर तुम्हें बाहर भी निकाल दिया जाए । तुम लौटकर पीछे के दरवाजे से वापस आ जाओगे । तुम्हारा कारागृह बहुत बहुमूल्य हो गया । अब उसे छोड़ा नहीं जा सकता । दुख में किसी तरह की संपत्ति को नियोजित मत करना । और जीवन में दोनों हैं । यहां कांटे भी हैं । फूल भी हैं । अब तुम्हारे ऊपर है कि तुम क्या चुन लेते हो ।
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तुम पूछते हो - क्या विषाद की लंबी श्रृंखला ही मेरे भाग्य में लिखी है ? ऐसा लगता है । विषाद में भी थोड़ा मजा ले रहे हो । लंबी श्रृंखला, विषाद, बड़े बहुमूल्य शब्द मालूम होते हैं । जैसे तुम कोई विशेष काम कर रहे हो । इस गंदगी में रस मत लो । अन्यथा यह गंदगी तुमसे चिपट जाएगी । रस से चीजें जुड़ जाती हैं । फिर तोड़ना मुश्किल हो जाता है । फिर अगर तुमने विषाद को ही अपना चेहरा बना लिया । और इसी के आधार पर लोगों से सहानुभूति मांगी । लोगों का हृदय मला । प्रेम मांगा । तो फिर तुम इसे छोड़ कैसे पाओगे ? क्योंकि तब डर लगेगा कि रकार विषाद छूटा । तो यह सब प्रेम भी चला जाएगा । यह सब सहानुभूति, यह लोगों का ध्यान, यह सब खो जाएगा । फिर तो तुम इसे पकड़ोगे । फिर तो तुम इसकी अतिश्योक्ति करोगे । फिर तो तुम इसे बढ़ाओगे । फिर तो तुम इसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाओगे । फिर तो तुम इसे गुब्बारे की तरह फैलाओगे । और तुम शोरगुल भी खूब मचाओगे कि मै बड़ा दुखी हूं । मैं बड़ा दुखी हूं । लेकिन तुम कभी खयाल करो । जब लोग दुख की चर्चा करते हैं । तुम जरा उनका खयाल करना । वे क्या कहते हैं । उस पर उतना ध्यान मत देना । कैसे कहते हैं । उस पर ध्यान देना । तुम पाओगे । वे रस ले रहे हैं । उनकी आंखों में तुम चमक पाओगे । तुम पाओगे । उन्हें भीतर एक गर्हित सुख मिल रहा है । जब लोग अपने दुखों का लोगों से वर्णन करने लगते हैं । तब तुम देखो । उनके जीवन में कैसी चमक आ जाती है । वे बड़े कुशल हो जाते हैं वर्णन करने में । लुक ले लेकर कहने लगते हैं । और अगर तुम उनकी बातों में रस न लो । तो वे दुखी होते हैं । अगर तुम उनकी बातों में रस न लो । तो तुम पर नाराज होते हैं । वे तुम्हें कभी क्षमा न कर पाएंगे । दूसरों की फिकर छोड़ दो । अपने पर तो खयाल रखना कि जब तुम अपने दुख की चर्चा करो । तो भूलकर भी किसी तरह का स्वाद मत लेना । अन्यथा तुम उसी दुख में बंधे रह जाओगे । फिर तुम चिल्लाओगे बहुत । लेकिन छूटना न चाहोगे । फिर तुम कारागृह में रहोगे । शोरगुल बहुत मचाओगे । लेकिन कारागृह के अगर दरवाजे भी खोल दिए जाएं । तो तुम निकलकर भागोगे नहीं । अगर तुम्हें बाहर भी निकाल दिया जाए । तुम लौटकर पीछे के दरवाजे से वापस आ जाओगे । तुम्हारा कारागृह बहुत बहुमूल्य हो गया । अब उसे छोड़ा नहीं जा सकता । दुख में किसी तरह की संपत्ति को नियोजित मत करना । और जीवन में दोनों हैं । यहां कांटे भी हैं । फूल भी हैं । अब तुम्हारे ऊपर है कि तुम क्या चुन लेते हो ।
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