13 जून 2011

काल कसाई जीव बकरा

कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! द्वापर युग बीत गया । और कलियुग आया । तब मैं फ़िर सत्यपुरुष की आग्या से जीवों को चेताने हेतु प्रथ्वी पर आया । और मैंने काल निरंजन को अपनी ओर आते देखा ।
मुझे देखकर वह भय से मुरझा ही गया । और बोला - किसलिये मुझे दुखी करते हो । और मेरे भक्ष्य भोजन जीवों को सत्यलोक पहुँचाते हो । तीनों युग - त्रेता । द्वापर । सतयुग में आप संसार में गये । और जीवों का कल्याण कर मेरा संसार उजाङा ।
सत्यपुरुष ने जीवों पर शासन करने का वचन मुझे दिया हुआ है । मेरे अधिकार क्षेत्र से आप जीव को छुङा लेते हो । आपके अलावा यदि कोई दूसरा भाई इस प्रकार आता । तो मैं उसे मारकर खा जाता । लेकिन आप पर मेरा कोई वश नहीं चलता । आपके बल प्रताप से ही हँस जीव ( मनुष्य ) अपने वास्तविक घर अमरलोक को जाते हैं । अब आप फ़िर संसार में जा रहे हो । परन्तु आपके शब्द उपदेश को संसार में कोई नहीं सुनेगा ।
शुभ और अशुभ कर्मों के भरमजाल का मैंने ऐसा ठाट मोह सुख रचा है कि जिससे उसमें फ़ँसा जीव आपके बताये सत्यलोक के सद मार्ग को नहीं समझ पायेगा । धर्म के नाम पर मैंने घर घर में भृम का भूत पैदा कर दिया है । इसलिये सभी जीव असली पूजा को भूलकर भगवान । देवी । देवता । भूत । भैरव । पिशाच आदि की पूजा भक्ति में लगे हुये हैं और इसी को सत्य समझकर खुद को धन्य मान रहे हैं । इस प्रकार धोखा देकर मैंने सब जीवों को अपनी कठपुतली बनाया हुआ है ।

संसार में जब जीवों को भृम और अग्यान का भूत लगेगा । परन्तु जो आपको तथा आपके सद उपदेश को पहचानेगा । उसका भरम तत्काल दूर हो जायेगा । लेकिन मेरे भृम भूत से गृस्त मनुष्य मदिरा माँस खायेंगे पियेंगे । और ऐसे नीच मनुष्यों को माँस खाना बहुत प्रिय होगा ।
मैं अपने ऐसे मत पँथ प्रकट करूँगा । जिसमें सब मनुष्य माँस मदिरा का सेवन करेंगे । तब मैं चंडी । योगिनी । भूत । प्रेत आदि को मनुष्य से पुजवाऊँगा । और इसी भृम से सारे संसार के जीवों को भटकाऊँगा ।
जीवों को अनेक प्रकार के मोह बँधनों में बाँधकर इस प्रकार के फ़ँदों में फ़ँसा दूँगा कि वे अपने अन्त समय तक मृत्यु को भूलकर पाप कर्मों में लिप्त और वास्तविक भक्ति से दूर रहेंगे । और इस प्रकार मोह बँधनों में बँधे वे जीव जन्म पुनर्जन्म और 84 लाख योनियों में बारम्बार भटकते ही रहेंगे ।
हे भाई ! आपके द्वारा बनी हुयी सत्यपुरुष की भक्ति तो बहुत कठिन है । आप समझाकर कहोगे । तब भी कोई नहीं मानेगा ।
तब कबीर साहब बोले - हे निरंजन !  तुमने जीवों के साथ बङा धोखा किया है । मैंने तुम्हारे धोखे को पहचान लिया है । सत्यपुरुष ने जो वचन कहा है । वह दूसरा नहीं हो सकता । उसी की वजह से तुम जीवों को सताते और मारते हो ।

सत्यपुरुष ने मुझे आग्या दी है । उसके अनुसार सब श्रद्धालु जीव सत्यनाम के प्रेमी होंगे । इसलिये मैं सरल स्वभाव से जीवों को समझाऊँगा । और सत्यग्यान को गृहण करने वाले अंकुरी जीवों को भवसागर से छुङाऊँगा ।
तुमने मोह माया के जो करोंङो जाल रच रखे हैं । और वेद शास्त्र पुराण में जो अपनी महिमा बताकर जीव को भरमाया है । यदि मैं प्रत्यक्ष कला धारण करके संसार में आऊँ । तो तेरा जाल और ये झूठी महिमा समाप्त कर सब जीवों को संसार से मुक्त करा दूँ ।
लेकिन जो मैं ऐसा करता हूँ । तो सत्यपुरुष का वचन भंग होता है । उनका वचन तो सदा न टूटने वाला । न डोलने वाला और बिना मोह का अनमोल है । अतः मैं उसका पालन अवश्य ही करूँगा । जो श्रेष्ठ जीव होंगे । वे मेरे सार शब्द ग्यान को मानेंगे ।
तेरी चालाकी समझ में आते ही शीघ्र सावधान होने वाले अंकुरी जीवों को मैं भवसागर से मुक्त कराऊँगा । और तुम्हारे सारे जाल को काटकर उन्हें सत्यलोक ले जाऊँगा । जो तुमने जीवों के लिये करोंङो भृम फ़ैला रखे हैं । वे तुम्हारे फ़ैलाये हुये भृम को नहीं मानेंगे । मैं सब जीवों का सत्य शब्द पक्का करके उनके सारे भृम छुङा दूँगा ।
तब निरंजन बोला - हे जीवों को सुख देने वाले । मुझे एक बात समझाकर कहो कि जो तुमको लगन लगाकर रहेगा । उसके पास मैं काल नहीं जाऊँगा । मेरा कालदूत आपके हँस को नहीं पायेगा । और यदि वह उस हँस जीव के पास ( सत्यनाम दीक्षा वाले के पास ) जायेगा । तो मेरा वह कालदूत मूर्छित हो जायेगा । और मेरे पास खाली हाथ लौट आयेगा ।
हे भाई ग्यानी जी ! लेकिन आपके गुप्त ग्यान की यह बात मुझे समझ नहीं आती । अतः उसका भेद समझाकर कहो । वह क्या है ?
तब मैंने कहा - हे निरंजन ! ध्यान से सुन । सत्य श्रेष्ठ पहचान है । और वह सत्य शब्द ( निर्वाणी नाम ) मोक्ष प्रदान कराने वाला है । सत्यपुरुष का नाम गुप्त प्रमाण है ।

यह सुनकर काल निरंजन बोला - हे अंतर्यामी स्वामी ! सुनो और मुझ पर कृपा करो । इस युग में आपका क्या नाम होगा ? मुझे बताओ ? और अपने नाम दान उपदेश को भी बताओ कि किस तरह और कौन सा नाम आप जीव को दोगे । वह सब मुझे बताओ ।
जिस कारण आप संसार में जा रहे हो । उसका सब भेद मुझसे कहो । तब मैं भी जीवों को उस नाम का उपदेश कर चेताऊँगा । और उन जीवों को सत्यपुरुष के सत्यलोक भेजूँगा । हे प्रभु ! आप मुझे अपना दास बना लीजिये । तथा ये सारा गुप्त ग्यान मुझे भी समझा दीजिये ।
तब मैंने कहा - हे निरंजन सुन ! मैं जानता हूँ । आगे के समय में तुम कैसा छल करने वाले हो । दिखावे के लिये तो तुम मेरे दास रहोगे । और गुप्त रूप से कपट करोगे । गुप्त सार शब्द का भेद ग्यान मैं तुम्हें नहीं दूँगा । सत्यपुरुष ने ऐसा आदेश मुझे नहीं दिया है । इस कलियुग में मेरा नाम कबीर होगा । और यह इतना प्रभावी होगा कि " कबीर " कहने से यम अथवा उसका दूत उस श्रद्धालु जीव के पास नहीं जायेगा ।
तब काल निरंजन बोला - आप मुझसे द्वेष रखते हो । लेकिन एक खेल नैं फ़िर भी खेलूँगा । मैं ऐसी छलपूर्ण बुद्धि बनाऊँगा । जिससे अनेक नकली हँस जीवों को अपने साथ रखूँगा । और आपके समान रूप बनाऊँगा । तथा आपका नाम लेकर अपना मत चलाऊँगा । इस प्रकार बहुत से जीवों को धोखे में डाल दूँगा कि वे समझे । वे सत्यनाम का ही मार्ग अपनाये हुये हैं । इससे अल्पग्य जीव सत्य असत्य को नहीं समझ पायेंगे ।
तब कबीर साहब बोले - अरे काल निरंजन ! तू तो सत्यपुरुष का विरोधी है । उनके ही विरुद्ध षङयंत्र रचता है । अपनी छलपूर्ण बुद्धि मुझे सुनाता है । परन्तु जो जीव सत्यनाम का प्रेमी होगा । वो इस धोखे में नहीं आयेगा । जो सच्चा हँस होगा । वह तुम्हारे द्वारा मेरे ग्यान गृँथों में मिलायी गयी मिलावट और मेरी वाणी का सत्य साफ़ साफ़ पहचानेगा और समझेगा । जिस जीव को मैं दीक्षा दूँगा । उसे तुम्हारे धोखे की पहचान भी करा दूँगा । तब वह तुम्हारे धोखे में नहीं आयेगा ।
हे धर्मदास ! ये बात सुनकर काल निरंजन चुप हो गया । और अंतर्ध्यान होकर अपने भवन को चला गया । हे धर्मदास इस काल की गति बहुत निकृष्ट और कठिन है । यह धोखे से जीवों के मन बुद्धि को अपने फ़ँदे में फ़ाँस लेता है ।
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कबीर साहब ने धर्मदास  द्वारा काल के चरित्र के बारे में पूछने पर बताया कि - जैसे कसाई बकरा पालता है । उसके लिये चारे पानी की व्यवस्था करता है । गर्मी सर्दी से बचने के लिए भी प्रबन्ध करता है । जिसकी वजह से उन अबोध बकरों को लगता है कि - हमारा मालिक बहुत अच्छा और दयालु है ? हमारा कितना ध्यान रखता है ।
इसलिये जब वह कसाई उनके पास आता है । तो वे सीधे साधे बकरे उसे अपना सही मालिक जानकर अपना प्यार जताने के लिए आगे वाले पैर उठाकर कसाई के शरीर को स्पर्श करते हैं । कुछ उसके हाथ पैरों को भी चाटते हैं ।
तब कसाई जब उन बकरों को छूकर । कमर पर हाथ लगाकर । दबा दबाकर देखता है । तो बेचारे बकरे समझते हैं । मालिक प्यार दिखा रहा है । परन्तु कसाई देख रहा है कि - बकरे में कितना मांस हो गया ? और जब मांस खरीदने ग्राहक आता है । तो उस समय कसाई नहीं देखता कि किसका बाप मरेगा ? किसकी बेटी मरेगी ? किसका पुत्र मरेगा ? या परिवार मर रहा है ।
वो तो बस छुरी रखी । और कर दिया - मैं ssss
उनको सुविधा देने खिलाने पिलाने का उसका यही उद्देश्य था । ठीक इसी प्रकार सर्व प्राणी काल बृह्म की पूजा साधना करके काल आहार ही बने हैं ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326