तब कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! उन चार दूतों के बारे में तुमसे समझाकर कहता हूँ । उन चार दूतों के नाम - रंभदूत । कुरंभदूत । जयदूत और विजयदूत हैं । अब रंभदूत की बात सुनो । यह भारत के गढ कांलिंजर में अपनी गद्दी स्थापित करेगा । और अपना नाम भगत रखेगा । और बहुत जीवों को अपना शिष्य बनायेगा ।
जो कोई जीव अंकुरी होगा । अर्थात जिसमें सत्यग्यान के प्रति चेतना होगी । तथा जिसके पूर्व के शुभ कर्म होंगे । वह यम ( काल निरंजन ) के इस फ़ँदे को तोङकर बच जायेगा ।
वह कालरूप रंभदूत बहुत बलबान तथा षङयंत्र करने वाला होगा । वह तुम्हारी और मेरी वार्ता का खंडन करेगा । वह दीक्षा विधान को रोकेगा । और सत्यपुरुष के सत्यलोक और दीपों को झूठा बतायेगा । वह अपनी अलग ही रमैनी कहेगा ।
वह मेरी सत्यवाणी के प्रति विवाद करेगा । जिसके कारण उसके जाल में बहुत लोग फ़ँसेंगे । चारों धाराओं का अपने मतानुसार ग्यान करेगा । मेरा नाम कबीर जोङकर अपना झूठा प्रचार प्रसार करेगा । वह अपने आपको कबीर ही बतायेगा । और मुझे पाँच तत्व की देह में बसा हुआ बतायेगा ।
हे भाई वह जीव को सत्यपुरुष के समान सिद्ध करेगा । तथा सत्यपुरुष का खंडन कर जीव को श्रेष्ठ बतायेगा । हँस जीव को इष्ट कबीर ठहरायेगा । तथा कर्ता को कबीर कहकर पुकारेगा । सबका कर्ता काल निरंजन जीवों को घोर दुख देने वाला है । और उसके ही समान यह यमदूत मुझे भी समझता है ।
वह कर्म करने वाले जीव को ही सत्यपुरुष ठहरायेगा । और सत्यपुरुष के नाम ग्यान को छिपाकर अपने आपको प्रकट करेगा । विचार करो । यदि वह जीव अपने आप ही सब कुछ होता । तो इस तरह अनेक दुख क्यों भोगता ?
पाँच तत्व की देह वाला पाँच तत्व के अधीन हुआ ये जीव दुख पाता है । और रम्भदूत जीव को सत्यपुरुष के समान बताता है । सत्यपुरुष का शरीर तो अजर अमर है । उनकी अनेक कलायें हैं । तथा उनका रूप और छाया नहीं है ।
हे धर्मदास ! ये गुरु ग्यान अनुपम है । जिसमें बिना दर्पण के अपना रूप दिखायी देता है । अब तुम दूसरे कुरंभ दूत का वर्णन सुनो ।
वह मगध देश में जाकर प्रकट होगा । और अपना नाम धनीदास रखेगा । कुरंभ छल प्रपंच के बहुत से जाल बिछायेगा । और ग्यानी जीवों को भी भटकायेगा । जिसके ह्रदय में थोङा भी आत्मग्यान होगा । ये यमदूत धोखा देकर उसे नष्ट कर देगा ।
हे धर्मदास ! तुम इस कुरंभ की चालबाजी सुनो । यह अपने कथन की टकसार बताकर मजबूत जाल सजायेगा । वह चन्द्र इङा सूर्य पिंगला नाङियों के अनुसार शुभ अशुभ लगन का प्रचार प्रसार करेगा । तथा राहु केतु आदि गृहों का विस्तार से वर्णन करेगा । जब वह पाँच तत्व तथा उनके गुणों के मत को श्रेष्ठ बताकर उनका वर्णन करेगा । तब अग्यानी जीव उसके फ़ैलाये भृम को नहीं जानेंगे । वह ज्योतिष के मत को टकसार कहकर फ़ैलायेगा । और जीवों को ग्रह नक्षत्र तथा इन्द्रियों के वश में करके उनका असली सत्यपुरुष की भक्ति से ध्यान हटा देगा ।
वह जल और वायु का ग्यान बतायेगा । और पवन के विभिन्न नामों और गुणों का वर्णन करेगा । वह सत्य से हटकर ऐसी पूजा विधान चलाकर जीवों को धोखा देकर भरमायेगा भटकायेगा । वह अपने शिष्य बनाते समय विशेष नाटक करेगा । वह अंग अंग की रेखा देखेगा । और पाँव के नाखून से सिर की चोटी को देखते हुये जीवों को कर्मजाल में फ़ँसाकर भरमायेगा । वह जीव को देख समझकर तथा शूरवीर कहकर मोह मद में चङाकर धर खायेगा । भरमाये हुये अपने शिष्यों से दक्षिणा में स्वर्ण तथा स्त्री अर्पण करायेगा । इस प्रकार वह जीवों को ठगेगा ।
शिष्य को गाँठ बाँधकर तब वह फ़ेरा करेगा । और कर्म दोष लगाकर उसे यम का गुलाम बना देगा । 85 पवन काल के हैं । अतः वह शिष्य को पवन नाम लिखकर पान खिलायेगा । वह नीर पवन के ग्यान का प्रसार करेगा । और शिष्यों को पवन नाम देकर आरती उतरवायेगा । काल के 85 पवन अनुसार पूजा करायेगा ।
हे भाई ! क्या नारी क्या पुरुष । वह सबके शरीर के तिल मस्से की पहचान देखा करेगा । शंख चक्र और सीप के चिन्ह देखेगा । काल निरंजन का वह दूत ऐसी दुष्ट बुद्धि का होगा । और जीवों में संशय उत्पन्न करेगा । तथा उन्हें ग्रसित ( बरबाद ) करते हुये पीङित करेगा ।
इस कालदूत का और भी झूठ प्रपँच सुनो । वह अपनी साठ समै तथा बारह चौपाईयों को उठाकर जीवों में भृम उत्पन्न करेगा । वह पंचामृत एकोत्तर नाम का सुमिरन को श्रेष्ठ शब्द और और मुक्तिदाता बतायेगा ।
जीवों के कल्याण का जो असली ग्यान आदिकाल से निश्चित है । वह उसे झूठ और धोखा बतायेगा । तथा पाँच तत्व पच्चीस प्रकृति तीन गुण चौदह यम यही ईश्वर है । अर्थात ऐसा कहेगा । तुम ही सब कुछ हो ।
पाँच तत्व का जाल बनाकर यह यमदूत शरीर के तत्वों का ध्यान करायेगा । विचार करो । तत्वों का ध्यान लगायें । तब शरीर छूटने पर कहाँ जायेंगे । तत्व तो तत्व में मिल जायेगा ।
हे धर्मदास ! जीव को जहाँ आशा होती है । वहीं उसका वास होता है । अतः नाम सुमरन से ध्यान हटने पर तत्व में उलझकर वह तत्व में ही समायेगा । ( इसका मतलव है - जैसे कोई अग्नि तत्व की पूजा ध्यान आदि करता है । तो देह छूटने पर अग्नि के देवता सम्बंधित कोई छोटा मोटा गण बन जायेगा । यही बात दूसरे तत्वों पर समझो । )
हे धर्मदास ! कहाँ तक कहूँ । कुरंभ घमासान विनाश करेगा । उसके छल को वही समझेगा । जो जीव सत्यनाम उपदेश को गृहण करने वाला और समझने वाला होगा । पाँचों जङ तत्व तो काल के अंग है । अतः तत्वों के मत में पङकर जीव की दुर्गति ही होगी । और यह सब कुछ वह कबीर के नाम पर । खुद को कबीर पँथी बताकर । इसको कबीर का ग्यान बताकर करेगा । जो जीव उसके जाल में फ़ँस जायेंगे । वह क्रूर काल निरंजन के मुख में ही जायेंगे ।
हे धर्मदास ! अब तीसरे दूत जयदूत के बारे में जानों । यह यमदूत बङा विकराल होगा । यह झूठा प्रपँची अपनी वाणी को आदि अनादि ( वाणी ) कहेगा । यह जयदूत कुरकुट ग्राम में जाकर प्रकट होगा । जो बाँधौगढ के पास ही है । वह चमार कुल में उत्पन्न होगा । और ऊँचे कुल वालों की जाति को बिगाङने की कोशिश करेगा । यह यमदूत दास कहायेगा । और गणपत नाम का उसका पुत्र होगा । वे दोनों पिता पुत्र प्रबल काल स्वरूप दुखदायी होंगे । और तुम्हारे वंश को आकर घेरेंगे । अर्थात जीवों के उद्धार में यथाशक्ति बाधा पहुँचायेंगे ।
वह कहेगा । असली ग्यान हमारे पास है । और हे धर्मदास ! वह तुम्हारे वंश को उठा देगा । अर्थात प्रभाव खत्म करने की कोशिश करेगा । वह अपना अनुभव कहकर अपने बहुत से गृंथ बनायेगा । और उसमें ग्यानी पुरुष के समान संवाद बनायेगा । वह कहेगा कि मूल ग्यान तो सत्यपुरुष ने मुझे दिया है । धर्मदास के पास मूल ग्यान नहीं है । वह तुम्हारे वंश को भरमा देगा । और ग्यान मार्ग को विचलित करेगा ।
वह तुम्हारे वंश में अपना मत पक्का करेगा । और मूल पारस थाका पँथ चलायेगा । मूल छाप लेकर वंश को बिगाङेगा । वह काल दूत अपना मूल पारस देकर सबकी वैसी ही बुद्धि कर देगा ।
( आप लोगों को रैदास जी की बात याद होगी । जिन्हें एक साधु पारस दे गया था । जिन लोगों ने नहीं पङी । इन्हीं ब्लाग्स में देखें । )
वह भीतर शून्य 0 में झंकृत होने वाले " झंग " शब्द की बात करेगा । जिससे ग्यानहीन कच्चे जीव को भुलावा देगा । पुरुष स्त्री के जिस रज वीर्य ( के जल ) से शरीर की रचना होती है । उसको ही वह अपना मूल मत प्रचलित करेगा ।
शरीर का मूल आधार बीज काम विषय है । परन्तु उसका नाम वह गुप्त रखेगा । पहले तो वह अपना मूल आधार थाका ही गुप्त रखेगा । फ़िर जब शिष्यों को जोङकर पूरी तरह साध लेगा । तव उसका वर्णन करेगा । पहले तो ग्यान गृन्थों को समझायेगा । फ़िर पीछे से अपना मत पक्का करायेगा । वह स्त्री के अंग को पारस ग्यान देगा । जिसे आग्या मानकर उसके सब शिष्य लेंगे ।
पहले वह ग्यान का शब्द उपदेश समझायेगा । फ़िर काम विषय वासना जो नरक की खान है । उसे वह मूल बखानेगा । वह झांझरी दीप की कथा सुनायेगा ।
हे भाई ! पाँच तत्व से बने शरीर की शून्य 0 गुफ़ा में जाकर ये पाँचों तत्व बहुत प्रकार से रंगीन चमकीला प्रकाश बनाते हैं । उस गुफ़ा में " हंग " शब्द बहुत जोर से उठता है ।
जब " सोहंगम " जीव अपना शरीर छोङेगा । तब कौन से विधि से " झंग " शब्द उसके सामने आयेगा । क्योंकि वह तो शरीर के रहने तक ही होता है । शरीर के छूटते ही वह भी समाप्त हो जायेगा । झांझरी दीप काल निरंजन ने रच रखा है । और " झंग - हंग " दोनों काल की ही शाखा हैं ।
ये अन्यायी कालदूत अविहर ( स्त्री पुरुष का काम सम्बन्ध ) ग्यान कहेगा । अविहर ग्यान काल निरंजन का धोखा है । वह तुम्हारे ग्यान की भी महिमा शामिल करके मिलाकर कहेगा । इसलिये उसके मत में बहुत से कङिहार महंत होंगे । वह कालदूत स्थान स्थान पर नीच कर्म करेगा । और हमारी बात करते हुये हम पर ही हँसेगा ।
अतः अग्यानी संसारी लोग समझेंगे कि यह सब समान है ।
अर्थात कबीर का मत और जयदूत का मत एक ही है । जब कोई इस भेद को जानने की कोशिश करेगा । तभी उसे पता चलेगा । जिसके हाथ में सतनाम रूपी दीपक होगा । वह हँस जीव काल के इस जंजाल को त्यागकर अपना कल्याण करेगा । इसमें कोई संदेह नहीं है । ये कपटी काल बगुले का ध्यान लगाये रहेगा । और सत्यनाम को छोङकर काल सम्बन्धी नामों को प्रकटायेगा ।
हे धर्मदास ! अब चौथे विजयदूत की बात सुनो । यह बुन्देलखन्ड में जाकर प्रकट होगा । और अपना नाम जीव धरायेगा । यह विजयदूत सखा भाव की भक्ति पक्की करेगा । यह सखियों के साथ रास रचायेगा । और मुरली बजायेगा । अनेक सखियों के संग लगन प्रेम लगायेगा । और अपने आपको दूसरा कृष्ण कहायेगा । वह जीवों को धोखा देकर फ़ाँसेगा ।
और कहेगा - आँखों के आगे मन की छाया रहती है । और नाक के ऊपर की ओर आकाश शून्य 0 है । आँख और कान बन्द कर ध्यान लगाने की स्थिति में कोहरा जैसा दीखता है । सफ़ेद । काला । नीला । पीला आदि रंग दिखना चित्त की क्रियायें हैं । परन्तु वह मुक्ति के नाप पर उनमें जीवों को डालकर भरमायेगा । ये सब काल का धोखा है । यह प्रतिक्षण बदलती क्रियायें स्थिर हैं । जो शरीर की आँखों से देखी जाती हैं । अतः यह कालदूत मन की छाया माया दिखायेगा । और मुक्ति का मूल छाया को बतायेगा । यह सत्यनाम से जीव को भटकाकर काल के मुख में ले जायेगा ।
विशेष - अब मेरे तमाम पाठक समझ सकते हैं कि आजकल मुक्ति ग्यान के नाम पर जो हो रहा है । वह सब क्या है ? क्यों है ? और उसे बताने वाले कौन हैं ?
जो कोई जीव अंकुरी होगा । अर्थात जिसमें सत्यग्यान के प्रति चेतना होगी । तथा जिसके पूर्व के शुभ कर्म होंगे । वह यम ( काल निरंजन ) के इस फ़ँदे को तोङकर बच जायेगा ।
वह कालरूप रंभदूत बहुत बलबान तथा षङयंत्र करने वाला होगा । वह तुम्हारी और मेरी वार्ता का खंडन करेगा । वह दीक्षा विधान को रोकेगा । और सत्यपुरुष के सत्यलोक और दीपों को झूठा बतायेगा । वह अपनी अलग ही रमैनी कहेगा ।
वह मेरी सत्यवाणी के प्रति विवाद करेगा । जिसके कारण उसके जाल में बहुत लोग फ़ँसेंगे । चारों धाराओं का अपने मतानुसार ग्यान करेगा । मेरा नाम कबीर जोङकर अपना झूठा प्रचार प्रसार करेगा । वह अपने आपको कबीर ही बतायेगा । और मुझे पाँच तत्व की देह में बसा हुआ बतायेगा ।
हे भाई वह जीव को सत्यपुरुष के समान सिद्ध करेगा । तथा सत्यपुरुष का खंडन कर जीव को श्रेष्ठ बतायेगा । हँस जीव को इष्ट कबीर ठहरायेगा । तथा कर्ता को कबीर कहकर पुकारेगा । सबका कर्ता काल निरंजन जीवों को घोर दुख देने वाला है । और उसके ही समान यह यमदूत मुझे भी समझता है ।
वह कर्म करने वाले जीव को ही सत्यपुरुष ठहरायेगा । और सत्यपुरुष के नाम ग्यान को छिपाकर अपने आपको प्रकट करेगा । विचार करो । यदि वह जीव अपने आप ही सब कुछ होता । तो इस तरह अनेक दुख क्यों भोगता ?
पाँच तत्व की देह वाला पाँच तत्व के अधीन हुआ ये जीव दुख पाता है । और रम्भदूत जीव को सत्यपुरुष के समान बताता है । सत्यपुरुष का शरीर तो अजर अमर है । उनकी अनेक कलायें हैं । तथा उनका रूप और छाया नहीं है ।
हे धर्मदास ! ये गुरु ग्यान अनुपम है । जिसमें बिना दर्पण के अपना रूप दिखायी देता है । अब तुम दूसरे कुरंभ दूत का वर्णन सुनो ।
वह मगध देश में जाकर प्रकट होगा । और अपना नाम धनीदास रखेगा । कुरंभ छल प्रपंच के बहुत से जाल बिछायेगा । और ग्यानी जीवों को भी भटकायेगा । जिसके ह्रदय में थोङा भी आत्मग्यान होगा । ये यमदूत धोखा देकर उसे नष्ट कर देगा ।
हे धर्मदास ! तुम इस कुरंभ की चालबाजी सुनो । यह अपने कथन की टकसार बताकर मजबूत जाल सजायेगा । वह चन्द्र इङा सूर्य पिंगला नाङियों के अनुसार शुभ अशुभ लगन का प्रचार प्रसार करेगा । तथा राहु केतु आदि गृहों का विस्तार से वर्णन करेगा । जब वह पाँच तत्व तथा उनके गुणों के मत को श्रेष्ठ बताकर उनका वर्णन करेगा । तब अग्यानी जीव उसके फ़ैलाये भृम को नहीं जानेंगे । वह ज्योतिष के मत को टकसार कहकर फ़ैलायेगा । और जीवों को ग्रह नक्षत्र तथा इन्द्रियों के वश में करके उनका असली सत्यपुरुष की भक्ति से ध्यान हटा देगा ।
वह जल और वायु का ग्यान बतायेगा । और पवन के विभिन्न नामों और गुणों का वर्णन करेगा । वह सत्य से हटकर ऐसी पूजा विधान चलाकर जीवों को धोखा देकर भरमायेगा भटकायेगा । वह अपने शिष्य बनाते समय विशेष नाटक करेगा । वह अंग अंग की रेखा देखेगा । और पाँव के नाखून से सिर की चोटी को देखते हुये जीवों को कर्मजाल में फ़ँसाकर भरमायेगा । वह जीव को देख समझकर तथा शूरवीर कहकर मोह मद में चङाकर धर खायेगा । भरमाये हुये अपने शिष्यों से दक्षिणा में स्वर्ण तथा स्त्री अर्पण करायेगा । इस प्रकार वह जीवों को ठगेगा ।
शिष्य को गाँठ बाँधकर तब वह फ़ेरा करेगा । और कर्म दोष लगाकर उसे यम का गुलाम बना देगा । 85 पवन काल के हैं । अतः वह शिष्य को पवन नाम लिखकर पान खिलायेगा । वह नीर पवन के ग्यान का प्रसार करेगा । और शिष्यों को पवन नाम देकर आरती उतरवायेगा । काल के 85 पवन अनुसार पूजा करायेगा ।
हे भाई ! क्या नारी क्या पुरुष । वह सबके शरीर के तिल मस्से की पहचान देखा करेगा । शंख चक्र और सीप के चिन्ह देखेगा । काल निरंजन का वह दूत ऐसी दुष्ट बुद्धि का होगा । और जीवों में संशय उत्पन्न करेगा । तथा उन्हें ग्रसित ( बरबाद ) करते हुये पीङित करेगा ।
इस कालदूत का और भी झूठ प्रपँच सुनो । वह अपनी साठ समै तथा बारह चौपाईयों को उठाकर जीवों में भृम उत्पन्न करेगा । वह पंचामृत एकोत्तर नाम का सुमिरन को श्रेष्ठ शब्द और और मुक्तिदाता बतायेगा ।
जीवों के कल्याण का जो असली ग्यान आदिकाल से निश्चित है । वह उसे झूठ और धोखा बतायेगा । तथा पाँच तत्व पच्चीस प्रकृति तीन गुण चौदह यम यही ईश्वर है । अर्थात ऐसा कहेगा । तुम ही सब कुछ हो ।
पाँच तत्व का जाल बनाकर यह यमदूत शरीर के तत्वों का ध्यान करायेगा । विचार करो । तत्वों का ध्यान लगायें । तब शरीर छूटने पर कहाँ जायेंगे । तत्व तो तत्व में मिल जायेगा ।
हे धर्मदास ! जीव को जहाँ आशा होती है । वहीं उसका वास होता है । अतः नाम सुमरन से ध्यान हटने पर तत्व में उलझकर वह तत्व में ही समायेगा । ( इसका मतलव है - जैसे कोई अग्नि तत्व की पूजा ध्यान आदि करता है । तो देह छूटने पर अग्नि के देवता सम्बंधित कोई छोटा मोटा गण बन जायेगा । यही बात दूसरे तत्वों पर समझो । )
हे धर्मदास ! कहाँ तक कहूँ । कुरंभ घमासान विनाश करेगा । उसके छल को वही समझेगा । जो जीव सत्यनाम उपदेश को गृहण करने वाला और समझने वाला होगा । पाँचों जङ तत्व तो काल के अंग है । अतः तत्वों के मत में पङकर जीव की दुर्गति ही होगी । और यह सब कुछ वह कबीर के नाम पर । खुद को कबीर पँथी बताकर । इसको कबीर का ग्यान बताकर करेगा । जो जीव उसके जाल में फ़ँस जायेंगे । वह क्रूर काल निरंजन के मुख में ही जायेंगे ।
हे धर्मदास ! अब तीसरे दूत जयदूत के बारे में जानों । यह यमदूत बङा विकराल होगा । यह झूठा प्रपँची अपनी वाणी को आदि अनादि ( वाणी ) कहेगा । यह जयदूत कुरकुट ग्राम में जाकर प्रकट होगा । जो बाँधौगढ के पास ही है । वह चमार कुल में उत्पन्न होगा । और ऊँचे कुल वालों की जाति को बिगाङने की कोशिश करेगा । यह यमदूत दास कहायेगा । और गणपत नाम का उसका पुत्र होगा । वे दोनों पिता पुत्र प्रबल काल स्वरूप दुखदायी होंगे । और तुम्हारे वंश को आकर घेरेंगे । अर्थात जीवों के उद्धार में यथाशक्ति बाधा पहुँचायेंगे ।
वह कहेगा । असली ग्यान हमारे पास है । और हे धर्मदास ! वह तुम्हारे वंश को उठा देगा । अर्थात प्रभाव खत्म करने की कोशिश करेगा । वह अपना अनुभव कहकर अपने बहुत से गृंथ बनायेगा । और उसमें ग्यानी पुरुष के समान संवाद बनायेगा । वह कहेगा कि मूल ग्यान तो सत्यपुरुष ने मुझे दिया है । धर्मदास के पास मूल ग्यान नहीं है । वह तुम्हारे वंश को भरमा देगा । और ग्यान मार्ग को विचलित करेगा ।
वह तुम्हारे वंश में अपना मत पक्का करेगा । और मूल पारस थाका पँथ चलायेगा । मूल छाप लेकर वंश को बिगाङेगा । वह काल दूत अपना मूल पारस देकर सबकी वैसी ही बुद्धि कर देगा ।
( आप लोगों को रैदास जी की बात याद होगी । जिन्हें एक साधु पारस दे गया था । जिन लोगों ने नहीं पङी । इन्हीं ब्लाग्स में देखें । )
वह भीतर शून्य 0 में झंकृत होने वाले " झंग " शब्द की बात करेगा । जिससे ग्यानहीन कच्चे जीव को भुलावा देगा । पुरुष स्त्री के जिस रज वीर्य ( के जल ) से शरीर की रचना होती है । उसको ही वह अपना मूल मत प्रचलित करेगा ।
शरीर का मूल आधार बीज काम विषय है । परन्तु उसका नाम वह गुप्त रखेगा । पहले तो वह अपना मूल आधार थाका ही गुप्त रखेगा । फ़िर जब शिष्यों को जोङकर पूरी तरह साध लेगा । तव उसका वर्णन करेगा । पहले तो ग्यान गृन्थों को समझायेगा । फ़िर पीछे से अपना मत पक्का करायेगा । वह स्त्री के अंग को पारस ग्यान देगा । जिसे आग्या मानकर उसके सब शिष्य लेंगे ।
पहले वह ग्यान का शब्द उपदेश समझायेगा । फ़िर काम विषय वासना जो नरक की खान है । उसे वह मूल बखानेगा । वह झांझरी दीप की कथा सुनायेगा ।
हे भाई ! पाँच तत्व से बने शरीर की शून्य 0 गुफ़ा में जाकर ये पाँचों तत्व बहुत प्रकार से रंगीन चमकीला प्रकाश बनाते हैं । उस गुफ़ा में " हंग " शब्द बहुत जोर से उठता है ।
जब " सोहंगम " जीव अपना शरीर छोङेगा । तब कौन से विधि से " झंग " शब्द उसके सामने आयेगा । क्योंकि वह तो शरीर के रहने तक ही होता है । शरीर के छूटते ही वह भी समाप्त हो जायेगा । झांझरी दीप काल निरंजन ने रच रखा है । और " झंग - हंग " दोनों काल की ही शाखा हैं ।
ये अन्यायी कालदूत अविहर ( स्त्री पुरुष का काम सम्बन्ध ) ग्यान कहेगा । अविहर ग्यान काल निरंजन का धोखा है । वह तुम्हारे ग्यान की भी महिमा शामिल करके मिलाकर कहेगा । इसलिये उसके मत में बहुत से कङिहार महंत होंगे । वह कालदूत स्थान स्थान पर नीच कर्म करेगा । और हमारी बात करते हुये हम पर ही हँसेगा ।
अतः अग्यानी संसारी लोग समझेंगे कि यह सब समान है ।
अर्थात कबीर का मत और जयदूत का मत एक ही है । जब कोई इस भेद को जानने की कोशिश करेगा । तभी उसे पता चलेगा । जिसके हाथ में सतनाम रूपी दीपक होगा । वह हँस जीव काल के इस जंजाल को त्यागकर अपना कल्याण करेगा । इसमें कोई संदेह नहीं है । ये कपटी काल बगुले का ध्यान लगाये रहेगा । और सत्यनाम को छोङकर काल सम्बन्धी नामों को प्रकटायेगा ।
हे धर्मदास ! अब चौथे विजयदूत की बात सुनो । यह बुन्देलखन्ड में जाकर प्रकट होगा । और अपना नाम जीव धरायेगा । यह विजयदूत सखा भाव की भक्ति पक्की करेगा । यह सखियों के साथ रास रचायेगा । और मुरली बजायेगा । अनेक सखियों के संग लगन प्रेम लगायेगा । और अपने आपको दूसरा कृष्ण कहायेगा । वह जीवों को धोखा देकर फ़ाँसेगा ।
और कहेगा - आँखों के आगे मन की छाया रहती है । और नाक के ऊपर की ओर आकाश शून्य 0 है । आँख और कान बन्द कर ध्यान लगाने की स्थिति में कोहरा जैसा दीखता है । सफ़ेद । काला । नीला । पीला आदि रंग दिखना चित्त की क्रियायें हैं । परन्तु वह मुक्ति के नाप पर उनमें जीवों को डालकर भरमायेगा । ये सब काल का धोखा है । यह प्रतिक्षण बदलती क्रियायें स्थिर हैं । जो शरीर की आँखों से देखी जाती हैं । अतः यह कालदूत मन की छाया माया दिखायेगा । और मुक्ति का मूल छाया को बतायेगा । यह सत्यनाम से जीव को भटकाकर काल के मुख में ले जायेगा ।
विशेष - अब मेरे तमाम पाठक समझ सकते हैं कि आजकल मुक्ति ग्यान के नाम पर जो हो रहा है । वह सब क्या है ? क्यों है ? और उसे बताने वाले कौन हैं ?
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