कुलश्रेष्ठ जी ! नमस्कार जी ! मैं आपको श्री गुरुगृन्थ साहिव जी से कवीर साहिव जी की 52 अखरि भेज रहा हूँ । आप अपने ब्लाग पर 5 अखरों के अर्थ सहित रोज प्रकाशित करें । आपका निर्मल बंसल । भिलाई । छत्तीसगढ ।
*** धन्यवाद ! बंसल जी ! बंसल जी हमारे गुरुभाई हैं । और एक बेहतरीन साधक हैं । जो लोग सोचते हैं कि आज की अति व्यस्त जिंदगी में ( नाम ) साधना करना संभव नहीं । निर्मल जी उनके लिये एक सशक्त उदाहरण हैं । निर्मल जी के कहे अनुसार इस " बावन अखरी " का अर्थ भी शीघ्र प्रकाशित होगा ।
तब तक आप सदगुरु कबीर साहब की इस वाणी में क्या रहस्य छुपा है ? जानने की कोशिश करें ।
एक बात और - जिन भाई बहनों को लगता है कि वे इस वाणी का सही अर्थ कर सकते हैं । रहस्य बता सकते हैं । भले ही पूरी " बावन अखरी " का हो । या कुछ ही दोहों का । वे ई मेल द्वारा भेज सकते हैं । मैं भी देखना चाहता हूँ कि आप लोग कबीर साहब को या श्री गुरुगृन्थ साहिव को कितना " ठीक से " जानते हो ? समझते हो ।
रागु गउड़ी पूरबी बावन अखरी कबीर जीउ की ।
ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥
बावन अछर लोक त्रै । सभु कछु इन ही माहि ।
ए अखर खिरि जाहिगे । ओइ अखर इन महि नाहि । 1
जहा बोल तह अछर आवा । जह अबोल तह मनु न रहावा ।
बोल अबोल मधि है सोई । जस ओहु है तस लखै न कोई । 2
अलह लहउ तउ किआ । कहउ कहउ त को उपकार ।
बटक बीज महि रवि रहिओ । जा को तीनि लोक बिसतार । 3
अलह लहंता भेद छै । कछु कछु पाइओ भेद ।
उलटि भेद मनु बेधिओ । पाइओ अभंग अछेद । 4
तुरक तरीकति जानीऐ । हिंदू बेद पुरान ।
मन समझावन कारने । कछूअक पड़ीऐ गिआन । 5
ओअंकार आदि मै जाना । लिखि अरु मेटै ताहि न माना ।
ओअंकार लखै जउ कोई । सोई लखि मेटणा न होई । 6
कका किरणि कमल महि पावा । ससि बिगास स्मपट नही आवा ।
अरु जे तहा कुसम रसु पावा । अकह कहा कहि का समझावा । 7
खखा इहै खोड़ि मन आवा । खोड़े छाडि न दह दिस धावा ।
खसमहि जाणि खिमा करि रहै । तउ होइ निखिअउ अखै पदु लहै । 8
गगा गुर के बचन पछाना । दूजी बात न धरई काना ।
रहै बिहंगम कतहि न जाई । अगह गहै गहि गगन रहाई । 9
घघा घटि घटि निमसै सोई । घट फूटे घटि कबहि न होई ।
ता घट माहि घाट जउ पावा । सो घटु छाडि अवघट कत धावा । 10
ङंङा निग्रहि सनेहु करि निरवारो संदेह । नाही देखि न भाजीऐ परम सिआनप एह । 11
चचा रचित चित्र है भारी । तजि चित्रै चेतहु चितकारी ।
चित्र बचित्र इहै अवझेरा । तजि चित्रै चितु राखि चितेरा । 12
छछा इहै छत्रपति पासा । छकि कि न रहहु छाडि कि न आसा ।
रे मन मै तउ छिन छिन समझावा । ताहि छाडि कत आपु बधावा । 13
जजा जउ तन जीवत जरावै । जोबन जारि जुगति सो पावै ।
अस जरि पर जरि जरि जब रहै । तब जाइ जोति उजारउ लहै । 14
झझा उरझि सुरझि नही जाना । रहिओ झझकि नाही परवाना ।
कत झखि झखि अउरन समझावा । झगरु कीए झगरउ ही पावा । 15
ञंञा निकटि जु घट रहिओ । दूरि कहा तजि जाइ ।
जा कारणि जगु ढूढिअउ । नेरउ पाइअउ ताहि । 16
टटा बिकट घाट घट माही । खोलि कपाट महलि कि न जाही ।
देखि अटल टलि कतहि न जावा । रहै लपटि घट परचउ पावा । 17
ठठा इहै दूरि ठग नीरा । नीठि नीठि मनु कीआ धीरा ।
जिनि ठगि ठगिआ सगल जगु खावा । सो ठगु ठगिआ ठउर मनु आवा । 18
डडा डर उपजे डरु जाई । ता डर महि डरु रहिआ समाई ।
जउ डर डरै त फिरि डरु लागै । निडर हूआ डरु उर होइ भागै । 19
ढढा ढिग ढूढहि कत आना । ढूढत ही ढहि गए पराना ।
चड़ि सुमेरि ढूढि जब आवा । जिह गड़ु गड़िओ सु गड़ महि पावा । 20
णाणा रणि रूतउ नर नेही करै । ना निवै ना फुनि संचरै ।
धंनि जनमु ताही को गणै । मारै एकहि तजि जाइ घणै । 21
तता अतर तरिओ नह जाई । तन त्रिभवण महि रहिओ समाई ।
जउ त्रिभवण तन माहि समावा । तउ ततहि तत मिलिआ सचु पावा । 22
थथा अथाह थाह नही पावा । ओहु अथाह इहु थिरु न रहावा ।
थोड़ै थलि थानक आर्मभै । बिनु ही थाभह मंदिरु थ्मभै । 23
ददा देखि जु बिनसनहारा । जस अदेखि तस राखि बिचारा ।
दसवै दुआरि कुंची जब दीजै । तउ दइआल को दरसनु कीजै । 24
धधा अरधहि उरध निबेरा । अरधहि उरधह मंझि बसेरा ।
अरधह छाडि उरध जउ आवा । तउ अरधहि उरध मिलिआ सुख पावा । 25
नंना निसि दिनु निरखत जाई । निरखत नैन रहे रतवाई ।
निरखत निरखत जब जाइ पावा । तब ले निरखहि निरख मिलावा । 26
पपा अपर पारु नही पावा । परम जोति सिउ परचउ लावा ।
पांचउ इंद्री निग्रह करई । पापु पुंनु दोऊ निरवरई । 27
फफा बिनु फूलह फलु होई । ता फल फंक लखै जउ कोई ।
दूणि न परई फंक बिचारै । ता फल फंक सभै तन फारै । 28
बबा बिंदहि बिंद मिलावा । बिंदहि बिंदि न बिछुरन पावा ।
बंदउ होइ बंदगी गहै । बंदक होइ बंध सुधि लहै । 29
भभा भेदहि भेद मिलावा । अब भउ भानि भरोसउ आवा ।
जो बाहरि सो भीतरि जानिआ । भइआ भेदु भूपति पहिचानिआ । 30
ममा मूल गहिआ मनु मानै । मरमी होइ सु मन कउ जानै ।
मत कोई मन मिलता बिलमावै । मगन भइआ ते सो सचु पावै । 31
ममा मन सिउ काजु है । मन साधे सिधि होइ ॥
मन ही मन सिउ कहै कबीरा । मन सा मिलिआ न कोइ । 32
इहु मनु सकती इहु मनु सीउ । इहु मनु पंच तत को जीउ ।
इहु मनु ले जउ उनमनि रहै । तउ तीनि लोक की बातै कहै । 33
यया जउ जानहि तउ दुरमति हनि करि बसि काइआ गाउ ।
रणि रूतउ भाजै नही सूरउ थारउ नाउ । 34
रारा रसु निरस करि जानिआ । होइ निरस सु रसु पहिचानिआ ।
इह रस छाडे उह रसु आवा । उह रसु पीआ इह रसु नही भावा । 35
लला ऐसे लिव मनु लावै । अनत न जाइ परम सचु पावै ।
अरु जउ तहा प्रेम लिव लावै । तउ अलह लहै लहि चरन समावै । 36
ववा बार बार बिसन सम्हारि । बिसन सम्हारि न आवै हारि ।
बलि बलि जे बिसनतना जसु गावै । विसन मिले सभ ही सचु पावै । 37
वावा वाही जानीऐ वा जाने इहु होइ ।
इहु अरु ओहु जब मिलै तब मिलत न जानै कोइ । 38
ससा सो नीका करि सोधहु । घट परचा की बात निरोधहु ।
घट परचै जउ उपजै भाउ । पूरि रहिआ तह त्रिभवण राउ । 39
खखा खोजि परै जउ कोई । जो खोजै सो बहुरि न होई ।
खोज बूझि जउ करै बीचारा । तउ भवजल तरत न लावै बारा । 40
ससा सो सह सेज सवारै । सोई सही संदेह निवारै ।
अलप सुख छाडि परम सुख पावा । तब इह त्रीअ ओहु कंतु कहावा । 41
हाहा होत होइ नही जाना । जब ही होइ तबहि मनु माना ।
है तउ सही लखै जउ कोई । तब ओही उहु एहु न होई । 42
लिंउ लिंउ करत फिरै सभु लोगु । ता कारणि बिआपै बहु सोगु ।
लखिमी बर सिउ जउ लिउ लावै । सोगु मिटै सभ ही सुख पावै । 43
खखा खिरत खपत गए केते । खिरत खपत अजहूं नह चेते ।
अब जगु जानि जउ मना रहै । जह का बिछुरा तह थिरु लहै । 44
बावन अखर जोरे आनि । सकिआ न अखरु एकु पछानि ।
सत का सबदु कबीरा कहै । पंडित होइ सु अनभै रहै ।
पंडित लोगह कउ बिउहार । गिआनवंत कउ ततु बीचार ।
जा कै जीअ जैसी बुधि होई । कहि कबीर जानैगा सोई । 45
*** धन्यवाद ! बंसल जी ! बंसल जी हमारे गुरुभाई हैं । और एक बेहतरीन साधक हैं । जो लोग सोचते हैं कि आज की अति व्यस्त जिंदगी में ( नाम ) साधना करना संभव नहीं । निर्मल जी उनके लिये एक सशक्त उदाहरण हैं । निर्मल जी के कहे अनुसार इस " बावन अखरी " का अर्थ भी शीघ्र प्रकाशित होगा ।
तब तक आप सदगुरु कबीर साहब की इस वाणी में क्या रहस्य छुपा है ? जानने की कोशिश करें ।
एक बात और - जिन भाई बहनों को लगता है कि वे इस वाणी का सही अर्थ कर सकते हैं । रहस्य बता सकते हैं । भले ही पूरी " बावन अखरी " का हो । या कुछ ही दोहों का । वे ई मेल द्वारा भेज सकते हैं । मैं भी देखना चाहता हूँ कि आप लोग कबीर साहब को या श्री गुरुगृन्थ साहिव को कितना " ठीक से " जानते हो ? समझते हो ।
रागु गउड़ी पूरबी बावन अखरी कबीर जीउ की ।
ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥
बावन अछर लोक त्रै । सभु कछु इन ही माहि ।
ए अखर खिरि जाहिगे । ओइ अखर इन महि नाहि । 1
जहा बोल तह अछर आवा । जह अबोल तह मनु न रहावा ।
बोल अबोल मधि है सोई । जस ओहु है तस लखै न कोई । 2
अलह लहउ तउ किआ । कहउ कहउ त को उपकार ।
बटक बीज महि रवि रहिओ । जा को तीनि लोक बिसतार । 3
अलह लहंता भेद छै । कछु कछु पाइओ भेद ।
उलटि भेद मनु बेधिओ । पाइओ अभंग अछेद । 4
तुरक तरीकति जानीऐ । हिंदू बेद पुरान ।
मन समझावन कारने । कछूअक पड़ीऐ गिआन । 5
ओअंकार आदि मै जाना । लिखि अरु मेटै ताहि न माना ।
ओअंकार लखै जउ कोई । सोई लखि मेटणा न होई । 6
कका किरणि कमल महि पावा । ससि बिगास स्मपट नही आवा ।
अरु जे तहा कुसम रसु पावा । अकह कहा कहि का समझावा । 7
खखा इहै खोड़ि मन आवा । खोड़े छाडि न दह दिस धावा ।
खसमहि जाणि खिमा करि रहै । तउ होइ निखिअउ अखै पदु लहै । 8
गगा गुर के बचन पछाना । दूजी बात न धरई काना ।
रहै बिहंगम कतहि न जाई । अगह गहै गहि गगन रहाई । 9
घघा घटि घटि निमसै सोई । घट फूटे घटि कबहि न होई ।
ता घट माहि घाट जउ पावा । सो घटु छाडि अवघट कत धावा । 10
ङंङा निग्रहि सनेहु करि निरवारो संदेह । नाही देखि न भाजीऐ परम सिआनप एह । 11
चचा रचित चित्र है भारी । तजि चित्रै चेतहु चितकारी ।
चित्र बचित्र इहै अवझेरा । तजि चित्रै चितु राखि चितेरा । 12
छछा इहै छत्रपति पासा । छकि कि न रहहु छाडि कि न आसा ।
रे मन मै तउ छिन छिन समझावा । ताहि छाडि कत आपु बधावा । 13
जजा जउ तन जीवत जरावै । जोबन जारि जुगति सो पावै ।
अस जरि पर जरि जरि जब रहै । तब जाइ जोति उजारउ लहै । 14
झझा उरझि सुरझि नही जाना । रहिओ झझकि नाही परवाना ।
कत झखि झखि अउरन समझावा । झगरु कीए झगरउ ही पावा । 15
ञंञा निकटि जु घट रहिओ । दूरि कहा तजि जाइ ।
जा कारणि जगु ढूढिअउ । नेरउ पाइअउ ताहि । 16
टटा बिकट घाट घट माही । खोलि कपाट महलि कि न जाही ।
देखि अटल टलि कतहि न जावा । रहै लपटि घट परचउ पावा । 17
ठठा इहै दूरि ठग नीरा । नीठि नीठि मनु कीआ धीरा ।
जिनि ठगि ठगिआ सगल जगु खावा । सो ठगु ठगिआ ठउर मनु आवा । 18
डडा डर उपजे डरु जाई । ता डर महि डरु रहिआ समाई ।
जउ डर डरै त फिरि डरु लागै । निडर हूआ डरु उर होइ भागै । 19
ढढा ढिग ढूढहि कत आना । ढूढत ही ढहि गए पराना ।
चड़ि सुमेरि ढूढि जब आवा । जिह गड़ु गड़िओ सु गड़ महि पावा । 20
णाणा रणि रूतउ नर नेही करै । ना निवै ना फुनि संचरै ।
धंनि जनमु ताही को गणै । मारै एकहि तजि जाइ घणै । 21
तता अतर तरिओ नह जाई । तन त्रिभवण महि रहिओ समाई ।
जउ त्रिभवण तन माहि समावा । तउ ततहि तत मिलिआ सचु पावा । 22
थथा अथाह थाह नही पावा । ओहु अथाह इहु थिरु न रहावा ।
थोड़ै थलि थानक आर्मभै । बिनु ही थाभह मंदिरु थ्मभै । 23
ददा देखि जु बिनसनहारा । जस अदेखि तस राखि बिचारा ।
दसवै दुआरि कुंची जब दीजै । तउ दइआल को दरसनु कीजै । 24
धधा अरधहि उरध निबेरा । अरधहि उरधह मंझि बसेरा ।
अरधह छाडि उरध जउ आवा । तउ अरधहि उरध मिलिआ सुख पावा । 25
नंना निसि दिनु निरखत जाई । निरखत नैन रहे रतवाई ।
निरखत निरखत जब जाइ पावा । तब ले निरखहि निरख मिलावा । 26
पपा अपर पारु नही पावा । परम जोति सिउ परचउ लावा ।
पांचउ इंद्री निग्रह करई । पापु पुंनु दोऊ निरवरई । 27
फफा बिनु फूलह फलु होई । ता फल फंक लखै जउ कोई ।
दूणि न परई फंक बिचारै । ता फल फंक सभै तन फारै । 28
बबा बिंदहि बिंद मिलावा । बिंदहि बिंदि न बिछुरन पावा ।
बंदउ होइ बंदगी गहै । बंदक होइ बंध सुधि लहै । 29
भभा भेदहि भेद मिलावा । अब भउ भानि भरोसउ आवा ।
जो बाहरि सो भीतरि जानिआ । भइआ भेदु भूपति पहिचानिआ । 30
ममा मूल गहिआ मनु मानै । मरमी होइ सु मन कउ जानै ।
मत कोई मन मिलता बिलमावै । मगन भइआ ते सो सचु पावै । 31
ममा मन सिउ काजु है । मन साधे सिधि होइ ॥
मन ही मन सिउ कहै कबीरा । मन सा मिलिआ न कोइ । 32
इहु मनु सकती इहु मनु सीउ । इहु मनु पंच तत को जीउ ।
इहु मनु ले जउ उनमनि रहै । तउ तीनि लोक की बातै कहै । 33
यया जउ जानहि तउ दुरमति हनि करि बसि काइआ गाउ ।
रणि रूतउ भाजै नही सूरउ थारउ नाउ । 34
रारा रसु निरस करि जानिआ । होइ निरस सु रसु पहिचानिआ ।
इह रस छाडे उह रसु आवा । उह रसु पीआ इह रसु नही भावा । 35
लला ऐसे लिव मनु लावै । अनत न जाइ परम सचु पावै ।
अरु जउ तहा प्रेम लिव लावै । तउ अलह लहै लहि चरन समावै । 36
ववा बार बार बिसन सम्हारि । बिसन सम्हारि न आवै हारि ।
बलि बलि जे बिसनतना जसु गावै । विसन मिले सभ ही सचु पावै । 37
वावा वाही जानीऐ वा जाने इहु होइ ।
इहु अरु ओहु जब मिलै तब मिलत न जानै कोइ । 38
ससा सो नीका करि सोधहु । घट परचा की बात निरोधहु ।
घट परचै जउ उपजै भाउ । पूरि रहिआ तह त्रिभवण राउ । 39
खखा खोजि परै जउ कोई । जो खोजै सो बहुरि न होई ।
खोज बूझि जउ करै बीचारा । तउ भवजल तरत न लावै बारा । 40
ससा सो सह सेज सवारै । सोई सही संदेह निवारै ।
अलप सुख छाडि परम सुख पावा । तब इह त्रीअ ओहु कंतु कहावा । 41
हाहा होत होइ नही जाना । जब ही होइ तबहि मनु माना ।
है तउ सही लखै जउ कोई । तब ओही उहु एहु न होई । 42
लिंउ लिंउ करत फिरै सभु लोगु । ता कारणि बिआपै बहु सोगु ।
लखिमी बर सिउ जउ लिउ लावै । सोगु मिटै सभ ही सुख पावै । 43
खखा खिरत खपत गए केते । खिरत खपत अजहूं नह चेते ।
अब जगु जानि जउ मना रहै । जह का बिछुरा तह थिरु लहै । 44
बावन अखर जोरे आनि । सकिआ न अखरु एकु पछानि ।
सत का सबदु कबीरा कहै । पंडित होइ सु अनभै रहै ।
पंडित लोगह कउ बिउहार । गिआनवंत कउ ततु बीचार ।
जा कै जीअ जैसी बुधि होई । कहि कबीर जानैगा सोई । 45
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