आत्मा के मुख्य रूप से पाँच प्रकार होते हैं । परमात्मा । आत्मा । शिव आत्मा । बृह्म आत्मा और जीव आत्मा
परमात्मा के विषय में प्रायः सभी अपने अपने स्तर से जानते ही है । सबकी मालिक और साहिब के नाम से पुकारी जाने वाली ये शक्ति सर्वोपरि ही है । और सबसे परे है । इसी की सत्ता सर्वत्र है । और दृश्य अदृश्य सभी कुछ इसी से है । लेकिन कमाल की बात है । परमात्मा को किसी से कुछ भी लेना देना नहीं है ।
मैं जिस निर्वाणी ध्वनि रूपी और शरीर के अंतर आकाश में स्वतः गूँजने वाले नाम का जिक्र करता हूँ । वह हँस दीक्षा के समय उल्टे रूप में दिया जाता है । तुलसीदास जी ने इसी के लिये कहा है -
उल्टा नाम जपा जग जाना । वाल्मीकि भये बृह्म समाना ।
ये उल्टा नाम सामान्य स्थिति में प्रत्येक 4 सेकेंड में 1 बार हमारे शरीर में उतरती चेतनधारा में स्वतः आ जा रहा है । इस तरह 24 घंटे में इसकी गिनती 21600 बार हो जाती है ।
भाव पूर्ण ढंग से सुमिरन करते करते जब ये नाम सूक्ष्मता को प्राप्त होकर बृह्म में ऊपर उठता है । तब ये उल्टे से सीधा हो जाता है । और आत्मा मुक्त आकाश में अति आनन्द का अनुभव और विभिन्न रोमांचक स्थलों की सैर करती हुयी हँसो..हँसो कहती हुयी यात्रा करती है । और ज्यों ज्यों ऊपर उठती जाती है । ये सूक्ष्म होती जाती है ।
सुमिरन द्वारा साधक इस नाम को जितना सूक्ष्म कर लेता है । उतना ही गहरा ध्यान समाधि को प्राप्त करता है । उतने ही विलक्षण अनुभव उसे होते हैं । और सबसे अंत में सार शब्द पर पहुँचकर जो वास्तविक नाम है । ये परमात्मा का साक्षात्कार करती है । जिसके लिये कबीर साहब ने कहा है - आङा शब्द कबीर का । डारे पाट उखाङ ।
मतलब ये जन्म मरण रूपी जीवन चक्की का पाट ही उखाङ कर फ़ेंक देता है । इस तरह ये हँस दीक्षा से परमात्मा तक का सफ़र मैंने संक्षेप में बताया ।
इसके बाद सिर्फ़ आत्मा मुक्त रूप में बहुत शक्तिशाली होती है । क्योंकि इसमें कोई भी भाव नहीं जुङा है । और ये हर तरह से निर्विकार है । इसकी अखिल सृष्टि में सर्वत्र गति होती है । ये परमात्मा से कभी भी मिल सकती है । खास बात यह होती है कि इसमें देव बृह्म जीव शिव आदि कोई भी भाव नहीं जुङा होता ।
शिव आत्मा - अर्थात सबके अन्दर जो चेतन शक्ति कार्यरत है । और सदा ही कल्याणकारी शक्ति है । शिव शक्ति है । और जो सबका ही आत्मा भी है । वही शिव आत्मा है । इसी आत्मा के योग को शिव योग भी बोला जाता है । इससे ठीक ऊपर सार शब्द है । और उससे ऊपर परमात्मा ।
बृह्म आत्मा को जानना कोई अधिक कठिन नहीं है । बृह्म सत्ता के अंतर्गत आने वाली आत्माओं को बृह्म आत्मा कहते हैं ।
फ़िर देव आत्मा महा आत्मा सिद्ध आत्मा आदि बहुत प्रकार हो जाते हैं । जो सब बृह्म के अंतर्गत ही आते हैं ।
जीव आत्मा के बारे में आप सभी जानते ही हो । जीव या जीवन या किसी भाव में जीने की इच्छा भाव जुङने से आत्मा जीव आत्मा हो जाती है ।
आत्मा के बारे में सबसे बङा रहस्य यह है । जो आज मैं पहली बार बता रहा हूँ कि डर उत्पन्न होने से इसमें मैं या जीव भाव पैदा होता है । डर भाव उत्पन्न होने से इसमें एक संकुचन पैदा होता है । जिससे ये सिकुङती है । और निडरता निर्भयता से ये फ़ैलती है । विस्तार लेती है ।
इच्छा पैदा होते ही इसमें आवरण बनने लगते हैं । और तम भाव पैदा होने से इसका प्रकाश और शक्ति इच्छाओं से बने आवरण के अनुसार न्यूनतम हो जाती है । आत्मा परमात्मा को जानने का सरल और सहज उपाय निर्वाणी नाम ही है ।
कुछ लोग ये कहते हैं कि ये बात सच है । इसको हम किस तरह मानें ?
इसका उत्तर यही है भाई ! कोई आपके शरीर के अन्दर और सभी मनुष्यों के शरीर के अन्दर ध्वनि रूपी नाम को किसी जादू से तो प्रकट नहीं कर सकता । चाहे वह हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई यहूदी पारसी कोई क्यों न हो ।
सदगुरु से ही यह नाम मिला है । इसकी पहचान क्या है ?
यह नाम किसी न किसी रूप में विभिन्न अनुकूल परिवर्तन आपके जीवन में लाने लगता है । और ध्यान सुमिरन के समय आपको दिव्य अनुभव होने लगते हैं । लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि ये सत्यनाम साधक का ( भव ) रोग दूर करता है । अतः संस्कार के अनुसार सुख दुख दोनों के ही अनुभव होते हैं । क्योंकि साधक के संस्कार जलते है । अतः जिस प्रकार इलाज के दौरान कभी कभी कष्ट भी होता है । उसी प्रकार संस्कार के अनुसार आपको सुमरन से भी ऐसा ही अनुभव हो सकता है ।
लेकिन कुछ समय के सुमरन के उपरांत नाम आपको सुखी करने लगता है ।
निज अनुभव तोहि कहूँ खगेसा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।
उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना । सत हरि नाम जगत सब सपना ।
राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल जीव उद्धारी ।
परमात्मा के विषय में प्रायः सभी अपने अपने स्तर से जानते ही है । सबकी मालिक और साहिब के नाम से पुकारी जाने वाली ये शक्ति सर्वोपरि ही है । और सबसे परे है । इसी की सत्ता सर्वत्र है । और दृश्य अदृश्य सभी कुछ इसी से है । लेकिन कमाल की बात है । परमात्मा को किसी से कुछ भी लेना देना नहीं है ।
मैं जिस निर्वाणी ध्वनि रूपी और शरीर के अंतर आकाश में स्वतः गूँजने वाले नाम का जिक्र करता हूँ । वह हँस दीक्षा के समय उल्टे रूप में दिया जाता है । तुलसीदास जी ने इसी के लिये कहा है -
उल्टा नाम जपा जग जाना । वाल्मीकि भये बृह्म समाना ।
ये उल्टा नाम सामान्य स्थिति में प्रत्येक 4 सेकेंड में 1 बार हमारे शरीर में उतरती चेतनधारा में स्वतः आ जा रहा है । इस तरह 24 घंटे में इसकी गिनती 21600 बार हो जाती है ।
भाव पूर्ण ढंग से सुमिरन करते करते जब ये नाम सूक्ष्मता को प्राप्त होकर बृह्म में ऊपर उठता है । तब ये उल्टे से सीधा हो जाता है । और आत्मा मुक्त आकाश में अति आनन्द का अनुभव और विभिन्न रोमांचक स्थलों की सैर करती हुयी हँसो..हँसो कहती हुयी यात्रा करती है । और ज्यों ज्यों ऊपर उठती जाती है । ये सूक्ष्म होती जाती है ।
सुमिरन द्वारा साधक इस नाम को जितना सूक्ष्म कर लेता है । उतना ही गहरा ध्यान समाधि को प्राप्त करता है । उतने ही विलक्षण अनुभव उसे होते हैं । और सबसे अंत में सार शब्द पर पहुँचकर जो वास्तविक नाम है । ये परमात्मा का साक्षात्कार करती है । जिसके लिये कबीर साहब ने कहा है - आङा शब्द कबीर का । डारे पाट उखाङ ।
मतलब ये जन्म मरण रूपी जीवन चक्की का पाट ही उखाङ कर फ़ेंक देता है । इस तरह ये हँस दीक्षा से परमात्मा तक का सफ़र मैंने संक्षेप में बताया ।
इसके बाद सिर्फ़ आत्मा मुक्त रूप में बहुत शक्तिशाली होती है । क्योंकि इसमें कोई भी भाव नहीं जुङा है । और ये हर तरह से निर्विकार है । इसकी अखिल सृष्टि में सर्वत्र गति होती है । ये परमात्मा से कभी भी मिल सकती है । खास बात यह होती है कि इसमें देव बृह्म जीव शिव आदि कोई भी भाव नहीं जुङा होता ।
शिव आत्मा - अर्थात सबके अन्दर जो चेतन शक्ति कार्यरत है । और सदा ही कल्याणकारी शक्ति है । शिव शक्ति है । और जो सबका ही आत्मा भी है । वही शिव आत्मा है । इसी आत्मा के योग को शिव योग भी बोला जाता है । इससे ठीक ऊपर सार शब्द है । और उससे ऊपर परमात्मा ।
बृह्म आत्मा को जानना कोई अधिक कठिन नहीं है । बृह्म सत्ता के अंतर्गत आने वाली आत्माओं को बृह्म आत्मा कहते हैं ।
फ़िर देव आत्मा महा आत्मा सिद्ध आत्मा आदि बहुत प्रकार हो जाते हैं । जो सब बृह्म के अंतर्गत ही आते हैं ।
जीव आत्मा के बारे में आप सभी जानते ही हो । जीव या जीवन या किसी भाव में जीने की इच्छा भाव जुङने से आत्मा जीव आत्मा हो जाती है ।
आत्मा के बारे में सबसे बङा रहस्य यह है । जो आज मैं पहली बार बता रहा हूँ कि डर उत्पन्न होने से इसमें मैं या जीव भाव पैदा होता है । डर भाव उत्पन्न होने से इसमें एक संकुचन पैदा होता है । जिससे ये सिकुङती है । और निडरता निर्भयता से ये फ़ैलती है । विस्तार लेती है ।
इच्छा पैदा होते ही इसमें आवरण बनने लगते हैं । और तम भाव पैदा होने से इसका प्रकाश और शक्ति इच्छाओं से बने आवरण के अनुसार न्यूनतम हो जाती है । आत्मा परमात्मा को जानने का सरल और सहज उपाय निर्वाणी नाम ही है ।
कुछ लोग ये कहते हैं कि ये बात सच है । इसको हम किस तरह मानें ?
इसका उत्तर यही है भाई ! कोई आपके शरीर के अन्दर और सभी मनुष्यों के शरीर के अन्दर ध्वनि रूपी नाम को किसी जादू से तो प्रकट नहीं कर सकता । चाहे वह हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई यहूदी पारसी कोई क्यों न हो ।
सदगुरु से ही यह नाम मिला है । इसकी पहचान क्या है ?
यह नाम किसी न किसी रूप में विभिन्न अनुकूल परिवर्तन आपके जीवन में लाने लगता है । और ध्यान सुमिरन के समय आपको दिव्य अनुभव होने लगते हैं । लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि ये सत्यनाम साधक का ( भव ) रोग दूर करता है । अतः संस्कार के अनुसार सुख दुख दोनों के ही अनुभव होते हैं । क्योंकि साधक के संस्कार जलते है । अतः जिस प्रकार इलाज के दौरान कभी कभी कष्ट भी होता है । उसी प्रकार संस्कार के अनुसार आपको सुमरन से भी ऐसा ही अनुभव हो सकता है ।
लेकिन कुछ समय के सुमरन के उपरांत नाम आपको सुखी करने लगता है ।
निज अनुभव तोहि कहूँ खगेसा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।
उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना । सत हरि नाम जगत सब सपना ।
राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल जीव उद्धारी ।
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