07 जून 2011

सैकड़ों चलते हैं लेकिन 1 पहुंचता है

उत्तराधिकारी - मुझे 1 प्राचीन तिब्बती कथा याद आती है । 2 आश्रम थे । 1 आश्रम तिब्बत की राजधानी लहासा में था । और इसकी 1 शाखा दूर कहीं पहाड़ों के भीतर थी । वह लामा, जो इस आश्रम का प्रधान था । बूढ़ा हो रहा था । और वह चाहता था कि प्रमुख आश्रम से उसका उत्तराधिकारी बनने के लिए किसी को वहां भेजा जाए । उसने 1 संदेश भेजा । 1 लामा वहां गया । यह कुछ सप्ताह का पैदल मार्ग था । उसने प्रधान से कहा - हमारे गुरु बहुत बीमार हैं । वृद्ध हैं । और इस बात की पूरी संभावना है कि वह अब बहुत दिनों तक नहीं जीएंगे । अपनी मृत्यु से पूर्व, वह चाहते हैं कि आप किसी संन्यासी को जो भलीभांति प्रशिक्षित हो, को वहां भेज दें । ताकि वह आश्रम का उत्तरदायित्व सम्हाल सके ।
प्रधान ने कहा - कल सुबह तुम उन सबको ले जाओ ।
उस नौजवान ने कहा - उन सबको ले जाओ ? मैं केवल 1 को लेने आया हूं । उन सबको ले जाओ, से आपका क्या मतलब है ?
उसने कहा - तुम समझते नहीं हो । मैं 100 संन्यासियों को भेजूंगा ।
- लेकिन, उस नौजवान ने कहा - यह तो बहुत अधिक है । हम इतने सारे लोगों का क्या करेंगे ? हम गरीब हैं । और हमारा आश्रम भी गरीब है । एक 100 संन्यासी हमारे ऊपर भार होंगे । और मैं तो केवल 1 को भेजने की प्रार्थना करने यहां आया हूं ।

प्रधान ने कहा - चिंता न करो । केवल 1 ही पहुंचेगा । मैं भेजूंगा 100 । पर 99 राह में ही खो जाएंगे । तुम सौभाग्यशाली होगे । यदि 1 भी पहुंच जाए । उसने कहा - अदभुत...।
दूसरे दिन बड़ा एक 100 संन्यासियों का, जुलूस वहां से रवाना हुआ । और उनको सारे देश में से होकर गुजरना था । प्रत्येक संन्यासी का घर रास्तें में कहीं न कहीं पड़ता था । और लोग खिसकना शुरू कर दिये - मैं वापस आऊंगा । बस थोड़े से दिन अपने माता पिता के साथ...मैं बहुत साल से वहां नहीं गया हूं । 1 सप्ताह में केवल 10 लोग बचे थे ।
उस नौजवान ने कहा - वह बूढ़ा प्रधान शायद ठीक ही था । देखें इन 10 लोगों का क्या होता है ।
जैसे ही 1 नगर में उन्होंने प्रवेश किया । कुछ संन्यासी आए । और बोले कि - उनके प्रधान की मृत्यु हो गई है । इसलिए आपकी बड़ी कृपा होगी । आप 10 हैं । अगर 1 लामा आप हमें दे सकें । जो प्रधान बन सके । और जो भी आप चाहें । हम सब कुछ करने को तैयार हैं । अब हर कोई प्रधान बनने का इच्छुक था । अंततः उन्होंने 1 व्यक्ति को तय किया । और उसे वहीं छोड़ दिया । 1 दूसरे नगर में, राजा के कुछ आदमी आए । और बोले - रुको, हमें 3 संन्यासी चाहिए । क्योंकि राजा की बेटी की शादी है । और हमें 3 पुरोहितों की आवश्यकता है । यह हमारी परंपरा है । इसलिए या तो आप अपनी इच्छा से आ जाएं । वर्ना हमें आपको जबरदस्ती ले जाना पड़ेगा । 3 आदमी और चले गए । केवल 6 बचे । और इस तरह से वे 1-1 करके कम होते चले गए । आखिर में केवल 2 व्यक्ति ही बचे । और जैसे-जैसे वे आश्रम के निकट पहुंच रहे थे । सांझ हो गई थी । 1 जवान स्त्री राह पर उन्हें मिली । उसने कहा - आप लोग इतने करूणावान हैं । मैं यहां पहाड़ों पर रहती हूं । मेरा घर यहीं पर है । मेरे पिता 1 शिकारी हैं । मेरी मां की मृत्यु हो चुकी है । और मेरे पिता बाहर गए हुए हैं । उन्होंने आज लौटने का वायदा किया था । पर वे अभी तक लौटे नहीं हैं । और रात में अकेली रहने से मैं बहुत भयभीत हूं । बस 1 संन्यासी । केवल 1 रात के लिए । वे दोनों ठहरना चाहते थे । स्त्री इतनी सुंदर थी कि उनमें आपस में बड़ा संघर्ष था । वह नौजवान जो संदेशवाहक बनकर आया था । उन एक 100 व्यक्तियों को गायब होते, जाते हुए देख चुका था । और अब अंत में. अंत में उन्होंने उस स्त्री से ही कहा - तुम हममें से 1 को चुन लो । नहीं तो व्यर्थ में झगड़ा होगा । और हम बौद्ध भिक्षुओं से लड़ने की 

आशा तो की नहीं जाती । उसने कम आयु वाले संन्यासी को, जो कि सुंदर भी अधिक था । चुन लिया । और उसे लेकर घर के भीतर चली गई । दूसरे संन्यासी ने उस नौजवान से कहा - अब चलो भी । वह आदमी अब वापस नहीं आएगा । उसे भूल ही जाओ ।
नौजवान ने कहा - परंतु अब तुम मजबूत बने रहना । आश्रम बहुत समीप है । और आश्रम से ठीक पहले । अंतिम गांव में, 1 नास्तिक ने उस संन्यासी को चुनौती दी - कोई आत्मा नहीं है । कोई ईश्वर नहीं है । यह सब फिक्शन, कल्पना है । यह केवल लोगों का शोषण करने के लिए है । मैं तुम्हें सार्वजनिक वाद विवाद के लिए चुनौती देता हूं ।
नौजवान ने कहा - इस सार्वजनिक वाद विवाद के चक्कर में मत फंसो । क्योंकि मैं नहीं जानता कि यह कब तक चलेगा । और मेरा प्रधान प्रतीक्षा कर रहा होगा । शायद वह अब तक मर भी गया होगा ।
संन्यासी ने कहा - यह पराजय होगी । बौद्ध धर्म की पराजय । जब तक कि मैं इस व्यक्ति को हरा न दूं । मैं इस जगह से हिल नहीं सकता । सार्वजनिक वाद विवाद तो अब होगा ही । अतः सारे गांव को खबर कर दो । नौजवान ने कहा - अब बहुत हो गया । क्योंकि तुम्हारे गुरु ने कहा था कि कम से कम 1 तो पहुंचेगा ही । पर ऐसा लगता है कि अकेला मैं ही वापस पहुंचूंगा ।
उसने कहा - तुम यहां से भाग जाओ । मैं 1 तार्किक हूं । और मैं इस तरह की चुनौती बरदाश्त नहीं कर सकता । इसमें चाहे महीनों लग जाये । हम हर बात की विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं । क्योंकि मैं जानता हूं । मैंने इस आदमी के बारें में सुना है । वह भी बड़ा बौद्धिक, बड़ा दार्शनिक व्यक्ति है । तुम जाओ । और यदि वाद विवाद में मैं जीत गया । तो मैं आऊंगा । यदि मैं हार गया । तब मुझे उसका शिष्य हो जाना पड़ेगा । फिर मेरी प्रतीक्षा न करना । उसने कहा - यह तो बहुत हो गया । वह आश्रम पहुंचा । बूढ़ा प्रधान प्रतीक्षा कर रहा था । उसने कहा - तुम आ गए़ ? तुम्हीं मेरे उत्तराधिकारी होओगे । उन एक 100 में से तो कोई यहां आने से रहा । और गुरु जानता था कि - केवल 1 ही वहां पहुंचेगा । तिब्बत में यह प्राचीन कहावत है कि सैकड़ों चलते हैं । लेकिन मुश्किल से 1 पहुंचता है । वह भी दुर्लभ है । ओशो
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अस्वस्थ व्यक्ति मजा ले ही नहीं सकता । इसलिए वह अपनी सारी ऊर्जा वर्चस्व कायम करने में लगा देता है । जो गीत गा सकता है । जो नाच सकता है । वह नाचेगा । और गाएगा । वह सितारों भरे आसमान के नीचे उत्सव मनाएगा । लेकिन जो नाच नहीं सकता । जो विकलांग है । जिसे लकवा मार गया है । वह कोने में पड़ा रहेगा । और योजनाएँ बनाएगा कि दूसरों पर कैसे हावी हुआ जाए । वह कुटिल बन जाएगा । जो रचनाशील है । वह रचेगा । जो नहीं रच सकता । वह नष्ट करेगा । क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है । जो रोगी है । अस्वस्थ है । बदसूरत है । प्रतिभाहीन है । जिसमें रचनाशीलता नहीं है । जो घटिया है । जो मूर्ख है । ऐसे सभी लोग वर्चस्व स्थापित करने के मामले में काफी चालाक होते हैं । वे हावी रहने के तरीके और जरिए खोज ही निकालते हैं । वे राजनेता बन जाते हैं । वे पुरोहित बन जाते हैं । और चूँकि जो काम वे खुद नहीं कर सकते । उसे वे दूसरो को भी नहीं करने दे सकते । इसलिए वे हर तरह की खुशी के खिलाफ होते हैं । ओशो
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यदि तुम श्रद्धा कर सको । कुछ न कुछ हमेशा होता रहेगा । और तुम्हारे विकास में मदद करेगा । तुम्हें उपलब्ध रहेगा । विशेष समय पर जिस किसी भी चीज की जरूरत होगी । वह तुम्हें उपलब्ध करवाया जाएगा । उसके पहले नहीं । तुम्हें तब ही मिलेगा । जब तुम्हें उसकी जरूरत होगी । और वहां 1  क्षण की भी देरी नहीं होगी । जब तुम्हें जरूरत होगी । तुम्हें मिल जाएगा । तत्काल, उसी समय । श्रद्धा की यह खूबसूरती  है । धीरे धीरे तुम यह सीखते हो कि कैसे अस्तित्व तुम्हें हर चीज उपलब्ध करवा रहा है । कैसे अस्तित्व तुम्हारा ध्यान रखता है । तुम ऐसे अस्तित्व में नहीं जी रहे हो । जो उपेक्षा से भरा है । वह तुम्हारी उपेक्षा नहीं करता । तुम नाहक चिंता से भरे रहते हो । तुम्हें हर चीज उपलब्ध करवायी जाती है । 1 बार श्रद्धा की दक्षता तुम सीख लेते हो । सारी चिंताएं विदा हो जाती हैं ।
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पूजा - यदि 1 व्यक्ति भीड़ के विपरीत जाता है - जीसस या बुद्ध । भीड़ इस व्यक्ति के साथ अच्छा महसूस नहीं करती । भीड़ उसे नष्ट कर देगी । या यदि भीड़ बहुत सभ्य है । भीड़ उसकी पूजा शुरू कर देगी । लेकिन दोनों ही ढंग 1 जैसे हैं । यदि भीड़ थोड़ी असभ्य है । जंगली है । जीसस को सूली दे देगी । यदि भीड़ भारतीयों जैसी होगी - बहुत सभ्य । सदियों पुरानी सभ्यता । अहिंसक है । प्रेमपूर्ण है । आध्यात्मिक है । वे बुद्ध की पूजा करेंगे । लेकिन पूजा के द्वारा वे कह रहे हैं । हम अलग हैं । आप अलग हैं । हम आपका अनुसरण नहीं कर सकते । हम आपके साथ नहीं आ सकते । आप अच्छे हैं । बहुत अच्छे हैं । सच में बहुत अच्छे हैं । लेकिन आप हमारे जैसे नहीं हैं । आप परमात्मा हैं । हम आपकी पूजा करेंगे । लेकिन हमें तकलीफ न दो । ऐसी बातें हमें मत कहो । जो हमारी चूलों को हिला दे । जो हमारी गहरी नींद को खराब कर दे । जीसस की हत्या करो । या बुद्ध की पूजा करो । दोनों 1 ही बात है । जीसस की हत्या कर दी गई । ताकि भीड़ भूल सके कि ऐसा कोई व्यक्ति हुआ भी । क्योंकि यदि यह व्यक्ति सच्चा है । और यह व्यक्ति सच्चा है । इसका पूरा होना इतना आनंद और आशीष से भरा है कि वह सच्चा है । चूंकि सत्य को देखा नहीं जा सकता । बस खूशबू जो सत्य से आती है । व्यक्ति महसूस कर सकता है । आनंद को महसूस किया जा सकता है । और यह सबूत है कि यह व्यक्ति सच्चा है । पर यदि यह व्यक्ति सच्चा है । तब सारी भीड़ गलत हो जाती है । और यह बहुत ज्यादा हो जाता है । सारी भीड़ ऐसे व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती । वह कांटा है । पीड़ादायी है । इस व्यक्ति को नष्ट करना होगा । या पूजा करनी होगी । ताकि हम कह सकें - आप किसी दूसरी दुनिया से आए हैं । आप हम में से नहीं हैं । आप अनूठे हैं । आप सामान्य नियम नहीं हैं । हो सकता है कि आप अपवाद हैं । लेकिन अपवाद सिर्फ नियम को सिद्ध करते हैं । आप आप हैं । हम हम हैं । हम अपनी राह चलेंगे । शुभ है कि आप आए । हम आपका बहुत सम्मान करते हैं । लेकिन हमें परेशान ना करो । हम बुद्ध को मंदिर में रख देते हैं । ताकि उन्हें बाजार में आने की जरूरत ना पड़े । वर्ना वे परेशानी पैदा करेंगे । ओशो

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326