आईये आज आपको पूर्ण दीक्षा के बारे में बताता हूँ ।
चाहे वह द्वैत की कोई भी मंत्र दीक्षा हो । या अद्वैत आत्मग्यान की एकमात्र सत्यनाम महामन्त्र हँसदीक्षा । दोनों में ही एक बात समान रूप से लागू होती है कि दीक्षा लेने वाले को उस ग्यान और गुरु के बारे में पूरी तरह से theory टायप जानकारी होनी ही चाहिये ।
और वह किसी भी तरह से प्रभावित होने के बजाय गुरु और ग्यान के प्रति संतुष्ट होकर दीक्षा ले रहा हो । इसके लिये कम से कम 6 महीने का सतसंग होना आवश्यक होता है । सतसंग का मतलब है । उस ग्यान का सत्य ! जिसको वो अपनाने जा रहा है । धारण करने जा रहा है । अपने जीवन में उतारने वाला है ।
लेकिन हमारे यहाँ सतसंग की यह सुविधा ब्लाग्स के जरिये किसी भी इंसान को घर बैठे । उसके घर आफ़िस या दुकान में आराम से हासिल हो जाती है । कोई भी इंसान आत्मग्यान और हँसदीक्षा के बारे में 6 महीने या अधिक टाइम से श्रद्धालु पाठक होने पर पूरी तरह से जान जाता है । अब आपके ढेरों ई मेल्स से ये प्रमाणित बात हो चुकी है ।
इसके बाद जो भी अन्य प्रश्न या शंकायें पाठक के मन में उत्पन्न होती हैं । उसे वे ई मेल के द्वारा व्यक्त करते हैं । और ब्लाग पर पोस्ट द्वारा उनको उत्तर मिल जाता है । इसका लाभ ये है कि ऐसे ही अन्य प्रश्न रखने वाले पाठकों को बिना पूछे ही उत्तर मिल जाता है ।
इस तरह कोई भी इंसान जब ग्यान और गुरु के प्रति पूरी तरह संतुष्ट हो जाता है । तब उसके शिष्य बनने की बारी आती है ।
अब आईये । इससे आगे क्या होता है । वह आपको बताते हैं ।
जब कोई एक या अधिक इंसान दीक्षा के लिये हमसे अनुमति लेकर समय तय कर देते हैं । तब उन्हें दीक्षा वाले दिन से एक दिन पूर्व श्री महाराज जी के पास आना होता है । वह किसी भी स्थान से आये । एक दिन पहले दोपहर लगभग 1 बजे तक पहुँच जाये । क्योंकि दो तीन घन्टे थकान दूर होकर फ़्रेश होने में आराम से लग ही जाते हैं ।
इसके बाद भले ही आपने पूरा सतसंग जाना हो । पढा हो । श्री महाराज जी अपनी अमृत वाणी से उपदेश रूप में वह ग्यान बताते हैं । बहुत से लोग मैंने देखा है । यहीं चूक कर जाते हैं । पढा या सुना सतसंग । और गुरु द्वारा बोले गये सतसंग ( चाहे अक्षरशः वही क्यों न हो ) में बेहद अंतर होता है । अतः मनमुखता दिखाने या बोरियत महसूस करने के बजाय पूरे श्रद्धा भाव से उसको सुनना चाहिये ।
इस सतसंग में हमारे यहाँ बहुत सी अन्य जानकारी के साथ प्रमुखतया गुप्त आदिनाम की चर्चा और मनुष्य जीवन का वास्तविक लक्ष्य तथा कई आत्मग्यानी सन्तों के दृष्टांत सुनाये जाते हैं ।
इस तरह 1 बजे से आकर 3 - 4 बजे तक सफ़र आदि के प्रभाव से शांत हुये । और 4 से 6 - 7 बजे तक आपने दिव्य सतसंग सुना । इसके बाद एक दो घन्टे खाना पीना और सामान्य बातें ।
अब आ जाईये । रहस्य वाली बात पर । इससे पहले के सतसंग में महाराज जी के पास अन्य बाहरी लोग भी स्थिति अनुसार बैठे हो सकते हैं । पर 7 - 8 बजे के बाद वही लोग रह जाते हैं । जो यूँ ही या टाइम पास के बजाय सच्चे जिग्यासु होते हैं ।
तब महाराज जी रुहानी अमृतमय सतसंग देते हैं । इससे पूर्ण भाव से समर्पित इंसान को बङी अलौकिकता का अनुभव होता है । ये सतसंग रात 8 बजे से 11 बजे तक चल सकता है । इसके बाद दीक्षा लेने आया इंसान उन्ही श्रद्धामय भक्तिभाव के साथ गुरु जी के पास ही सो जाता है ।
सुबह 5 - 6 बजे उठकर दिनचर्या से निवृत होकर नहा धोकर हँसदीक्षा के लिये तैयार हो जाता है ।
साधक की श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण सही हँसदीक्षा सिर्फ़ 5 पुष्प से लेकर 2000 रुपये तक की होती है ।
इसमें निम्न चीजें शामिल होती हैं -
5 अलग अलग रंग के पुष्प । बाँटने के लिये प्रसाद 10 रुपये से लेकर श्रद्धा सामर्थ्य अनुसार । एक अच्छी अगरबत्ती या धूपबत्ती का नया पैकेट । और गुरु के लिये दक्षिणा 1 रुपये से लेकर श्रद्धा सामर्थ्य अनुसार ।
गुरु के लिये 5 सफ़ेद वस्त्र - कुर्ते का कपङा ( पौने तीन मीटर ) तहमद या लुंगी का कपङा ( सवा दो मीटर ) अंगोछा या साफ़ी का कपङा ( डेढ मीटर ) अन्डरवियर । बनियान ।
इस तरह हमारे मंडल की हँसदीक्षा का पूरा सामान यह होता है ।
हमारे गुरुजी खासतौर पर टेरीकाट मिक्स काटन ( 80% काटन 20% टेरीकाट ) ही पहनते हैं । ये मैं खासतौर पर इसलिये बता रहा हूँ कि जो भी वस्तुयें शिष्य भेंट करता है । उसका भाव यह रहता है कि गुरुजी उसको इस्तेमाल करें । अतः अनुकूल वस्त्र न होने पर गुरुजी शिष्य की भावना पूर्ति के लिये दो चार बार पहनकर उस कपङे को किसी साधु आदि को दे देते हैं ।
वैसे भी गुरुजी अधिकतर भाग्यशालियों के कपङे ही पहन पाते हैं । क्योंकि इतनी बङी संख्या में सभी के कपङे पहनना कैसे संभव है ? अतः वे अन्य साधुओं को दे ही दिये जाते हैं ।
ये सभी सामान दीक्षा वाले कक्ष में रखकर महाराज जी और दीक्षा लेने वाले कक्ष में पहुँच जाते हैं । तब एकाग्रता शांति और हल्के अँधेरे के उद्देश्य से दरबाजा बन्द कर दिया जाता है । ताकि दीक्षा के समय यकायक कोई डिस्टर्ब न कर दे ।
इसके बाद महाराज जी किसी ऊँचे आसन आदि स्थान पर और दीक्षा लेने वाले शिष्य नीचे चटाई पर बैटते हैं । सभी को मौसम के अनुसार एक शाल जितना बङा कपङा सिर पर डालने के लिये दिया जाता है । सर्दियों में गर्म शाल दी जाती है । ताकि दीक्षा लेने वाला सर्दी महसूस न करे । गर्मियों में सादा कपङा ।
इसके बाद महाराज जी थोङा सा और उपदेश बताते हैं । और इसके बाद आपकी चेतनधारा में गूँजते गुप्त निर्वाणी आदि नाम को ।
अब मुख्य बात आती है । नामदान आपको मिल ही गया । अब दोनों हाथों की उंगलियों से आँख । उंगलियों से ही कान । और उंगलियों से ही मुँह भी बन्द कर लेते हैं । आँख और मुँह स्वाभाविक तरीके से भी बन्द करके ऊपर से उँगलियाँ रखें । जैसा अक्सर सही मेडीटेशन में होता है । और महाराज जी द्वारा बतायी जगह पर ध्यान दें ।
विशेष - मैंने इस बारे में बहुत समझाया । फ़िर भी ज्यादातर लोग अक्सर ये गलती करते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि सतसंग में बताये अनुसार या ब्लाग में पढे अनुसार अब ध्यान में ये दिखायी देगा । वो दिखायी देगा । ऐसे अनुभव होंगे । वैसे अनुभव होंगे ।
बस यही बहुत बङी चूक हो जाती है । ऐसा पक्का भाव बनते ही " मैं " खङा हो जाता है । और होने वाले अनुभव मामूली ही रह जाते हैं । क्योंकि -
जब " मैं " था तब हरि नहीं । जब हरि हैं मैं नाहिं । सब अँधियारा मिट गया । जब दीपक देख्या माँहि ।
वास्तव में यहाँ आपको एकदम कोई भाव न रखते हुये गुरु में पूर्ण समर्पण करते हुये अपने आपको ढीला छोङ देना है । तब गहन अनुभूति अनुभव उसी समय हो जाते हैं । अन्यथा बाद में अभ्यास करने पर धीरे धीरे होते हैं ।
ये आपकी वास्तविक हँसदीक्षा ( आत्मा का दिखना ) होने लगी । अब इसमें किसी को थोङे अनुभव ( ठीक इसी समय से ) 20 मिनट तक ही हो पाते हैं । और बहुत से 1 घंटा तक अनुभव करते हैं । इस तरह आपकी हँसदीक्षा पूरी हुयी ।
इसके बाद दीक्षा लेने वाले को सामर्थ्य अनुसार । 1 से लेकर जितने वह चाहे । ब्राह्मणों ( जाति से ब्राह्मण नहीं । बल्कि दीक्षा प्राप्त दीक्षित । बृह्म + अणि ( स्थित ) = ब्राह्मण ) को भोजन कराना श्रेष्ठ होता है ।
और इसके बाद शाम को भजन कीर्तन करा के प्रसाद आदि बाँटना ।
इस तरह ये मैंने पूर्ण दीक्षा के बारे में आपको बताया ।
अब कुछ अलग शंकायें जो अक्सर पाठक पूछते हैं ।
- कोई लेडी मासिक धर्म के दौरान दीक्षा नहीं ले सकती । लेकिन गर्भवती होने पर कोई बात नहीं । उल्टे उसके गर्भस्थ शिशु को भी नामदान मिल जाता है ( क्योंकि गर्भस्थ शिशु और माँ का एका होता है ) इससे दिव्यगुण वाली संतान पैदा होती है ।
- यदि शराब और मीट खाने से मजबूर हैं । तो भी कोई बात नहीं आप नामदान ले सकते हैं ।
- यदि आप हिन्दू नहीं है । और सिख मुसलमान ईसाई यहूदी पारसी अरबी अंग्रेज कोई भी हैं । मगर इंसान हैं । तो आप भी दीक्षा ले सकते हैं ।
- दीक्षा के बाद आपको sex बन्द करके बृहमचर्य से रहना होगा । ऐसी कोई बात नहीं । ये शरीर की आवश्यकता है । नाम भक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं ।
- आप किसी और गुरु से दीक्षा ले चुके हैं । मगर असंतुष्ट हैं । तो आप संतुष्ट न होने तक 1000 गुरु बना सकते हैं । यानी दीक्षा ले सकते हैं । इसमें कोई गलती या पाप नहीं होता ।
- दीक्षा के बाद आपको किन्ही विशेष नियमों जैसे ध्यान पर घंटों बैठना आदि आवश्यक नहीं होता ।
- एक ही परिवार के अधिक लोग यदि एक साथ दीक्षा ले रहे हों । तो सबको बराबर उतने ही सामान की आवश्यकता नहीं होती । सिर्फ़ हरेक शिष्य को गुरु दक्षिणा अलग अलग देनी होती है । बाकी गुरु के वस्त्र । प्रसाद । ब्राह्मणों को भोजन आदि सबका एक साथ उसी में हो जाता है ।
*******
अब मेरी बात - अक्सर दीक्षा लेने के उत्सुक लोग फ़ोन पर इस तरह के प्रश्न पूछते रहते हैं । अतः उनका धन और समय का व्यय होता है । मुझे भी बारबार समझाना होता है । अतः आप सभी के लिये अधिकाधिक जानकारी प्रकाशित कर रहा हूँ । जय जय श्री गुरुदेव । जय गुरुदेव की ।
चाहे वह द्वैत की कोई भी मंत्र दीक्षा हो । या अद्वैत आत्मग्यान की एकमात्र सत्यनाम महामन्त्र हँसदीक्षा । दोनों में ही एक बात समान रूप से लागू होती है कि दीक्षा लेने वाले को उस ग्यान और गुरु के बारे में पूरी तरह से theory टायप जानकारी होनी ही चाहिये ।
और वह किसी भी तरह से प्रभावित होने के बजाय गुरु और ग्यान के प्रति संतुष्ट होकर दीक्षा ले रहा हो । इसके लिये कम से कम 6 महीने का सतसंग होना आवश्यक होता है । सतसंग का मतलब है । उस ग्यान का सत्य ! जिसको वो अपनाने जा रहा है । धारण करने जा रहा है । अपने जीवन में उतारने वाला है ।
लेकिन हमारे यहाँ सतसंग की यह सुविधा ब्लाग्स के जरिये किसी भी इंसान को घर बैठे । उसके घर आफ़िस या दुकान में आराम से हासिल हो जाती है । कोई भी इंसान आत्मग्यान और हँसदीक्षा के बारे में 6 महीने या अधिक टाइम से श्रद्धालु पाठक होने पर पूरी तरह से जान जाता है । अब आपके ढेरों ई मेल्स से ये प्रमाणित बात हो चुकी है ।
इसके बाद जो भी अन्य प्रश्न या शंकायें पाठक के मन में उत्पन्न होती हैं । उसे वे ई मेल के द्वारा व्यक्त करते हैं । और ब्लाग पर पोस्ट द्वारा उनको उत्तर मिल जाता है । इसका लाभ ये है कि ऐसे ही अन्य प्रश्न रखने वाले पाठकों को बिना पूछे ही उत्तर मिल जाता है ।
इस तरह कोई भी इंसान जब ग्यान और गुरु के प्रति पूरी तरह संतुष्ट हो जाता है । तब उसके शिष्य बनने की बारी आती है ।
अब आईये । इससे आगे क्या होता है । वह आपको बताते हैं ।
जब कोई एक या अधिक इंसान दीक्षा के लिये हमसे अनुमति लेकर समय तय कर देते हैं । तब उन्हें दीक्षा वाले दिन से एक दिन पूर्व श्री महाराज जी के पास आना होता है । वह किसी भी स्थान से आये । एक दिन पहले दोपहर लगभग 1 बजे तक पहुँच जाये । क्योंकि दो तीन घन्टे थकान दूर होकर फ़्रेश होने में आराम से लग ही जाते हैं ।
इसके बाद भले ही आपने पूरा सतसंग जाना हो । पढा हो । श्री महाराज जी अपनी अमृत वाणी से उपदेश रूप में वह ग्यान बताते हैं । बहुत से लोग मैंने देखा है । यहीं चूक कर जाते हैं । पढा या सुना सतसंग । और गुरु द्वारा बोले गये सतसंग ( चाहे अक्षरशः वही क्यों न हो ) में बेहद अंतर होता है । अतः मनमुखता दिखाने या बोरियत महसूस करने के बजाय पूरे श्रद्धा भाव से उसको सुनना चाहिये ।
इस सतसंग में हमारे यहाँ बहुत सी अन्य जानकारी के साथ प्रमुखतया गुप्त आदिनाम की चर्चा और मनुष्य जीवन का वास्तविक लक्ष्य तथा कई आत्मग्यानी सन्तों के दृष्टांत सुनाये जाते हैं ।
इस तरह 1 बजे से आकर 3 - 4 बजे तक सफ़र आदि के प्रभाव से शांत हुये । और 4 से 6 - 7 बजे तक आपने दिव्य सतसंग सुना । इसके बाद एक दो घन्टे खाना पीना और सामान्य बातें ।
अब आ जाईये । रहस्य वाली बात पर । इससे पहले के सतसंग में महाराज जी के पास अन्य बाहरी लोग भी स्थिति अनुसार बैठे हो सकते हैं । पर 7 - 8 बजे के बाद वही लोग रह जाते हैं । जो यूँ ही या टाइम पास के बजाय सच्चे जिग्यासु होते हैं ।
तब महाराज जी रुहानी अमृतमय सतसंग देते हैं । इससे पूर्ण भाव से समर्पित इंसान को बङी अलौकिकता का अनुभव होता है । ये सतसंग रात 8 बजे से 11 बजे तक चल सकता है । इसके बाद दीक्षा लेने आया इंसान उन्ही श्रद्धामय भक्तिभाव के साथ गुरु जी के पास ही सो जाता है ।
सुबह 5 - 6 बजे उठकर दिनचर्या से निवृत होकर नहा धोकर हँसदीक्षा के लिये तैयार हो जाता है ।
साधक की श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण सही हँसदीक्षा सिर्फ़ 5 पुष्प से लेकर 2000 रुपये तक की होती है ।
इसमें निम्न चीजें शामिल होती हैं -
5 अलग अलग रंग के पुष्प । बाँटने के लिये प्रसाद 10 रुपये से लेकर श्रद्धा सामर्थ्य अनुसार । एक अच्छी अगरबत्ती या धूपबत्ती का नया पैकेट । और गुरु के लिये दक्षिणा 1 रुपये से लेकर श्रद्धा सामर्थ्य अनुसार ।
गुरु के लिये 5 सफ़ेद वस्त्र - कुर्ते का कपङा ( पौने तीन मीटर ) तहमद या लुंगी का कपङा ( सवा दो मीटर ) अंगोछा या साफ़ी का कपङा ( डेढ मीटर ) अन्डरवियर । बनियान ।
इस तरह हमारे मंडल की हँसदीक्षा का पूरा सामान यह होता है ।
हमारे गुरुजी खासतौर पर टेरीकाट मिक्स काटन ( 80% काटन 20% टेरीकाट ) ही पहनते हैं । ये मैं खासतौर पर इसलिये बता रहा हूँ कि जो भी वस्तुयें शिष्य भेंट करता है । उसका भाव यह रहता है कि गुरुजी उसको इस्तेमाल करें । अतः अनुकूल वस्त्र न होने पर गुरुजी शिष्य की भावना पूर्ति के लिये दो चार बार पहनकर उस कपङे को किसी साधु आदि को दे देते हैं ।
वैसे भी गुरुजी अधिकतर भाग्यशालियों के कपङे ही पहन पाते हैं । क्योंकि इतनी बङी संख्या में सभी के कपङे पहनना कैसे संभव है ? अतः वे अन्य साधुओं को दे ही दिये जाते हैं ।
ये सभी सामान दीक्षा वाले कक्ष में रखकर महाराज जी और दीक्षा लेने वाले कक्ष में पहुँच जाते हैं । तब एकाग्रता शांति और हल्के अँधेरे के उद्देश्य से दरबाजा बन्द कर दिया जाता है । ताकि दीक्षा के समय यकायक कोई डिस्टर्ब न कर दे ।
इसके बाद महाराज जी किसी ऊँचे आसन आदि स्थान पर और दीक्षा लेने वाले शिष्य नीचे चटाई पर बैटते हैं । सभी को मौसम के अनुसार एक शाल जितना बङा कपङा सिर पर डालने के लिये दिया जाता है । सर्दियों में गर्म शाल दी जाती है । ताकि दीक्षा लेने वाला सर्दी महसूस न करे । गर्मियों में सादा कपङा ।
इसके बाद महाराज जी थोङा सा और उपदेश बताते हैं । और इसके बाद आपकी चेतनधारा में गूँजते गुप्त निर्वाणी आदि नाम को ।
अब मुख्य बात आती है । नामदान आपको मिल ही गया । अब दोनों हाथों की उंगलियों से आँख । उंगलियों से ही कान । और उंगलियों से ही मुँह भी बन्द कर लेते हैं । आँख और मुँह स्वाभाविक तरीके से भी बन्द करके ऊपर से उँगलियाँ रखें । जैसा अक्सर सही मेडीटेशन में होता है । और महाराज जी द्वारा बतायी जगह पर ध्यान दें ।
विशेष - मैंने इस बारे में बहुत समझाया । फ़िर भी ज्यादातर लोग अक्सर ये गलती करते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि सतसंग में बताये अनुसार या ब्लाग में पढे अनुसार अब ध्यान में ये दिखायी देगा । वो दिखायी देगा । ऐसे अनुभव होंगे । वैसे अनुभव होंगे ।
बस यही बहुत बङी चूक हो जाती है । ऐसा पक्का भाव बनते ही " मैं " खङा हो जाता है । और होने वाले अनुभव मामूली ही रह जाते हैं । क्योंकि -
जब " मैं " था तब हरि नहीं । जब हरि हैं मैं नाहिं । सब अँधियारा मिट गया । जब दीपक देख्या माँहि ।
वास्तव में यहाँ आपको एकदम कोई भाव न रखते हुये गुरु में पूर्ण समर्पण करते हुये अपने आपको ढीला छोङ देना है । तब गहन अनुभूति अनुभव उसी समय हो जाते हैं । अन्यथा बाद में अभ्यास करने पर धीरे धीरे होते हैं ।
ये आपकी वास्तविक हँसदीक्षा ( आत्मा का दिखना ) होने लगी । अब इसमें किसी को थोङे अनुभव ( ठीक इसी समय से ) 20 मिनट तक ही हो पाते हैं । और बहुत से 1 घंटा तक अनुभव करते हैं । इस तरह आपकी हँसदीक्षा पूरी हुयी ।
इसके बाद दीक्षा लेने वाले को सामर्थ्य अनुसार । 1 से लेकर जितने वह चाहे । ब्राह्मणों ( जाति से ब्राह्मण नहीं । बल्कि दीक्षा प्राप्त दीक्षित । बृह्म + अणि ( स्थित ) = ब्राह्मण ) को भोजन कराना श्रेष्ठ होता है ।
और इसके बाद शाम को भजन कीर्तन करा के प्रसाद आदि बाँटना ।
इस तरह ये मैंने पूर्ण दीक्षा के बारे में आपको बताया ।
अब कुछ अलग शंकायें जो अक्सर पाठक पूछते हैं ।
- कोई लेडी मासिक धर्म के दौरान दीक्षा नहीं ले सकती । लेकिन गर्भवती होने पर कोई बात नहीं । उल्टे उसके गर्भस्थ शिशु को भी नामदान मिल जाता है ( क्योंकि गर्भस्थ शिशु और माँ का एका होता है ) इससे दिव्यगुण वाली संतान पैदा होती है ।
- यदि शराब और मीट खाने से मजबूर हैं । तो भी कोई बात नहीं आप नामदान ले सकते हैं ।
- यदि आप हिन्दू नहीं है । और सिख मुसलमान ईसाई यहूदी पारसी अरबी अंग्रेज कोई भी हैं । मगर इंसान हैं । तो आप भी दीक्षा ले सकते हैं ।
- दीक्षा के बाद आपको sex बन्द करके बृहमचर्य से रहना होगा । ऐसी कोई बात नहीं । ये शरीर की आवश्यकता है । नाम भक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं ।
- आप किसी और गुरु से दीक्षा ले चुके हैं । मगर असंतुष्ट हैं । तो आप संतुष्ट न होने तक 1000 गुरु बना सकते हैं । यानी दीक्षा ले सकते हैं । इसमें कोई गलती या पाप नहीं होता ।
- दीक्षा के बाद आपको किन्ही विशेष नियमों जैसे ध्यान पर घंटों बैठना आदि आवश्यक नहीं होता ।
- एक ही परिवार के अधिक लोग यदि एक साथ दीक्षा ले रहे हों । तो सबको बराबर उतने ही सामान की आवश्यकता नहीं होती । सिर्फ़ हरेक शिष्य को गुरु दक्षिणा अलग अलग देनी होती है । बाकी गुरु के वस्त्र । प्रसाद । ब्राह्मणों को भोजन आदि सबका एक साथ उसी में हो जाता है ।
*******
अब मेरी बात - अक्सर दीक्षा लेने के उत्सुक लोग फ़ोन पर इस तरह के प्रश्न पूछते रहते हैं । अतः उनका धन और समय का व्यय होता है । मुझे भी बारबार समझाना होता है । अतः आप सभी के लिये अधिकाधिक जानकारी प्रकाशित कर रहा हूँ । जय जय श्री गुरुदेव । जय गुरुदेव की ।
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