समझ नहीं आ रहा कि बात कहाँ से शुरु करुँ । मैं बात शुरु करने से पहले अपना परिचय देना उचित समझता हूँ । मैं एक (....... ) हूँ ( शायद आपको मेरे से बात करने में कोई दिक्कत न हो ) लेकिन आपसे बहुत प्रेरित हूँ । मेरा नाम ....... है । और मैं गुजरात का रहने वाला हूँ । मेरा आपके ब्लोग पर १ दिन अचानक ही आना हो गया । उसके बाद से आपके ब्लोग पर आना १ नियम सा ही हो गया । मुझे आपके ब्लोग में जो सबसे अच्छी बात लगी । वो ये है कि " ये मनुष्य जिस्म बहुत दुर्लभ है " । और मैं इससे सहमत हूँ । लेकिन मेरी १ समस्या का समाधान कीजिये । ये तो मैं मानता हूँ कि मानव तन दुर्लभ है । जिसको फ़रिश्ते भी तरसते है । लेकिन क्या इस मानव तन का पूरा लाभ गृहस्थ जीवन में लिया जा सकता है ? क्योंकि मेरी मजबूरी है कि मेरे सारे घर की जिम्मेदारी मेरे सर पर है । मेरी पहली पत्नी मर चुकी है । और उससे २ बच्चे हैं । ( १ बेटा और १ बेटी ) फ़िर मुझे दूसरी शादी करनी पडी । अब दूसरी पत्नी से भी १ बेटी है । इसलिये मैं घर छोडकर सन्यासी तो बन नही सकता । अगर मैं महाराज जी से दीक्षा ले लूँ । तो क्या इस जनम में भी मैं अपना जीवन सार्थक कर सकता हूँ । ( इस समय मेरी उमर ४५ के करीब है ) मेरा मूल प्रशन ये है कि अगर मैं सन्यासी बना । तो फ़िर मुझे किसी के घर या आश्रम मे आसरा लेना होगा । किसी का दिया खाना होगा । और किसी का दिया पहनना होगा । और मेरे ३ बच्चों और जवान पत्नी का क्या होगा ? इसलिये मैं आपसे सिर्फ़ ये जानना चाहता हूँ कि क्या मैं भी महाराज जी से दीक्षा लेकर साधना घर में ही कर सकता हूँ । अपने परिवार के साथ । और उस परविदगार की दी हुई सुविधाओं को भोगते हुए क्या मैं अपने जीवन को सार्थक कर सकता हूँ ? और क्या उस परमात्मा परविदगार की पूर्ण प्राप्ति हो सकती है । इसके लिये मुझे अपने परिवार को छोड्ना तो नही पडेगा ? और क्या मुझसे देर तो नही हुई । ( मेरी उमर ४५ के लगभग है ) इसलिये मेरा मूल प्रशन ये है कि सन्यासी बडा है । या गृहस्थी ? मैं..... हूँ । तो क्या महाराज जी को मुझे दीक्षा देने मे कोई आपत्ति तो नही होगी । मुझे आपके जवाब का ब्लोग में इंतजार रहेगा । मैं अपनी १ फोटो भेज रहा हूँ आपको । जिसमें मैं । मेरी दूसरी पत्नी । और सबसे छोटी बेटी है । अब मैं और क्या कहूँ । आप ही सब जानते हैं । वालेकुम सलाम । ( गुजरात से । ई मेल । )
अब इसके जबाब टू द प्वाइंट -
लेकिन इसके पहले मेरी बात - प्रिय भाईजान ! आपका पत्र पढकर बहुत खुशी हुयी । थोङे शब्दों में कहना चाहूँगा । आप कोई पहली बार ऐसा अकेले नहीं कर रहे । आपसे पहले आपके बहुत से लोगों ने यह ग्यान प्राप्त किया है । कबीर साहब । नानक । नंगली ( मेरठ ) धाम के स्वरूपानन्द जी । अद्वैतानन्द जी आदि के यहाँ आपके बहुत लोग थे । बस इस बात के लिये क्षमा चाहूँगा कि आपके पत्र में से मैंने आपका धर्म परिचय इसलिये अभी हटा दिया । क्योंकि मैं नहीं चाहता । किसी अन्य को बुरा लगे । और कोई भी विवाद पैदा हो । उम्मीद है । आप मेरे जज्बात को सही तरीके से समझेंगे । धन्यवाद ।
***लेकिन मेरी १ समस्या का समाधान कीजिये । ये तो मैं मानता हूँ कि मानव तन दुर्लभ है । जिसको फ़रिश्ते भी तरसते है । लेकिन क्या इस मानव तन का पूरा लाभ गृहस्थ जीवन में लिया जा सकता है ?
ANS** जी हाँ । हमारे बहुत से साधक घर पर रहते हुये । अपनी सभी जिम्मेदारियाँ ( दीक्षा के पहले से ) और भी अच्छी तरह निभाते हुये इस ग्यान को प्राप्त कर रहे हैं । गौतम बुद्ध जब वन से ग्यान प्राप्त कर अपने महल में आये । तो उनकी पत्नी ने कहा कि मैं सिर्फ़ आपसे एक बात पूछना चाहती हूँ । कि वन में ऐसा क्या था ? जो घर पर नहीं हो सकता था ? इस पर बुद्ध चुप रह गये । क्योंकि उनकी पत्नी सच ही कह रही थी । यही ग्यान वो आराम से घर पर भी प्रात कर सकते थे ।
क्योंकि मेरी मजबूरी है कि मेरे सारे घर की जिम्मेदारी मेरे सर पर है । मेरी पहली पत्नी मर चुकी है । और उससे २ बच्चे हैं । ( १ बेटा और १ बेटी ) फ़िर मुझे दूसरी शादी करनी पडी । अब दूसरी पत्नी से भी १ बेटी है । इसलिये मैं घर छोडकर सन्यासी तो बन नही सकता । अगर मैं महाराज जी से दीक्षा ले लूँ । तो क्या इस जनम में भी मैं अपना जीवन सार्थक कर सकता हूँ । ( इस समय मेरी उमर ४५ के करीब है )
ANS** आपको संयासी बनने की कोई जरूरत नहीं । आप अभी भी आराम से इसी जीवन में प्रभु की प्राप्ति कर सकते हो ।
मेरा मूल प्रशन ये है कि अगर मैं सन्यासी बना । तो फ़िर मुझे किसी के घर या आश्रम मे आसरा लेना होगा । किसी का दिया खाना होगा । और किसी का दिया पहनना होगा । और मेरे ३ बच्चों और जवान पत्नी का क्या होगा ?
ANS** आपको ऐसा कुछ नहीं करना होगा । आप ज्यों के त्यों पहले की ही तरह अपने घर में रहते हुये ही आनन्द से इस असली पूजा इवादत को कर सकेंगे । और तुरन्त के तुरन्त इसके लाभ भी देखेंगे । आपके पत्नी और बच्चे पहले से और भी सुखी हो जायेंगे ।..एक बात और भी बता दूँ । हमारे यहाँ आपसे यह भी नहीं कहा जायेगा । कि आप अपनी इवादत ( पहले वाली ) छोङ दो । ये खाना छोङ दो । वो पीना छोङ दो ।
ऐसा कुछ भी नहीं । बस आपको असली नाम को याद करना बताया जायेगा । उसी से सब लाभ होगा ।
इसलिये मैं आपसे सिर्फ़ ये जानना चाहता हूँ कि क्या मैं भी महाराज जी से दीक्षा लेकर साधना घर में ही कर सकता हूँ । अपने परिवार के साथ । और उस परविदगार की दी हुई सुविधाओं को भोगते हुए क्या मैं अपने जीवन को सार्थक कर सकता हूँ ?
ANS** जी हाँ । आप आराम से ऐसा कर सकते हैं । वो भी अपने परिवार के साथ रहते हुये ।
और क्या उस परमात्मा परविदगार की पूर्ण प्राप्ति हो सकती है । इसके लिये मुझे अपने परिवार को छोड्ना तो नही पडेगा ? और क्या मुझसे देर तो नही हुई । ( मेरी उमर ४५ के लगभग है ) इसलिये मेरा मूल प्रशन ये है कि सन्यासी बडा है । या गृहस्थी ? मैं..... हूँ । तो क्या महाराज जी को मुझे दीक्षा देने मे कोई आपत्ति तो नही होगी ।
ANS** आपको कोई देर नहीं हुयी । अभी बहुत समय है । आपको परिवार एक दिन के लिये भी नहीं छोङना पङेगा । महाराज जी को आपको दीक्षा देने में कोई आपत्ति नहीं होगी । वे खुशी खुशी आपके घर का खाना तक खायेंगे । हम लोग जाति धर्म नहीं मानते । बल्कि इंसानियत मानते हैं । संयासी और गृहस्थ दोनों का ही अपना अपना महत्व है । सुई का काम तलवार से नहीं होता । और तलवार का काम सुई से नहीं होता ।.. जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवार । हर चीज का महत्व अपनी जगह है ।
अब इसके जबाब टू द प्वाइंट -
लेकिन इसके पहले मेरी बात - प्रिय भाईजान ! आपका पत्र पढकर बहुत खुशी हुयी । थोङे शब्दों में कहना चाहूँगा । आप कोई पहली बार ऐसा अकेले नहीं कर रहे । आपसे पहले आपके बहुत से लोगों ने यह ग्यान प्राप्त किया है । कबीर साहब । नानक । नंगली ( मेरठ ) धाम के स्वरूपानन्द जी । अद्वैतानन्द जी आदि के यहाँ आपके बहुत लोग थे । बस इस बात के लिये क्षमा चाहूँगा कि आपके पत्र में से मैंने आपका धर्म परिचय इसलिये अभी हटा दिया । क्योंकि मैं नहीं चाहता । किसी अन्य को बुरा लगे । और कोई भी विवाद पैदा हो । उम्मीद है । आप मेरे जज्बात को सही तरीके से समझेंगे । धन्यवाद ।
***लेकिन मेरी १ समस्या का समाधान कीजिये । ये तो मैं मानता हूँ कि मानव तन दुर्लभ है । जिसको फ़रिश्ते भी तरसते है । लेकिन क्या इस मानव तन का पूरा लाभ गृहस्थ जीवन में लिया जा सकता है ?
ANS** जी हाँ । हमारे बहुत से साधक घर पर रहते हुये । अपनी सभी जिम्मेदारियाँ ( दीक्षा के पहले से ) और भी अच्छी तरह निभाते हुये इस ग्यान को प्राप्त कर रहे हैं । गौतम बुद्ध जब वन से ग्यान प्राप्त कर अपने महल में आये । तो उनकी पत्नी ने कहा कि मैं सिर्फ़ आपसे एक बात पूछना चाहती हूँ । कि वन में ऐसा क्या था ? जो घर पर नहीं हो सकता था ? इस पर बुद्ध चुप रह गये । क्योंकि उनकी पत्नी सच ही कह रही थी । यही ग्यान वो आराम से घर पर भी प्रात कर सकते थे ।
क्योंकि मेरी मजबूरी है कि मेरे सारे घर की जिम्मेदारी मेरे सर पर है । मेरी पहली पत्नी मर चुकी है । और उससे २ बच्चे हैं । ( १ बेटा और १ बेटी ) फ़िर मुझे दूसरी शादी करनी पडी । अब दूसरी पत्नी से भी १ बेटी है । इसलिये मैं घर छोडकर सन्यासी तो बन नही सकता । अगर मैं महाराज जी से दीक्षा ले लूँ । तो क्या इस जनम में भी मैं अपना जीवन सार्थक कर सकता हूँ । ( इस समय मेरी उमर ४५ के करीब है )
ANS** आपको संयासी बनने की कोई जरूरत नहीं । आप अभी भी आराम से इसी जीवन में प्रभु की प्राप्ति कर सकते हो ।
मेरा मूल प्रशन ये है कि अगर मैं सन्यासी बना । तो फ़िर मुझे किसी के घर या आश्रम मे आसरा लेना होगा । किसी का दिया खाना होगा । और किसी का दिया पहनना होगा । और मेरे ३ बच्चों और जवान पत्नी का क्या होगा ?
ANS** आपको ऐसा कुछ नहीं करना होगा । आप ज्यों के त्यों पहले की ही तरह अपने घर में रहते हुये ही आनन्द से इस असली पूजा इवादत को कर सकेंगे । और तुरन्त के तुरन्त इसके लाभ भी देखेंगे । आपके पत्नी और बच्चे पहले से और भी सुखी हो जायेंगे ।..एक बात और भी बता दूँ । हमारे यहाँ आपसे यह भी नहीं कहा जायेगा । कि आप अपनी इवादत ( पहले वाली ) छोङ दो । ये खाना छोङ दो । वो पीना छोङ दो ।
ऐसा कुछ भी नहीं । बस आपको असली नाम को याद करना बताया जायेगा । उसी से सब लाभ होगा ।
इसलिये मैं आपसे सिर्फ़ ये जानना चाहता हूँ कि क्या मैं भी महाराज जी से दीक्षा लेकर साधना घर में ही कर सकता हूँ । अपने परिवार के साथ । और उस परविदगार की दी हुई सुविधाओं को भोगते हुए क्या मैं अपने जीवन को सार्थक कर सकता हूँ ?
ANS** जी हाँ । आप आराम से ऐसा कर सकते हैं । वो भी अपने परिवार के साथ रहते हुये ।
और क्या उस परमात्मा परविदगार की पूर्ण प्राप्ति हो सकती है । इसके लिये मुझे अपने परिवार को छोड्ना तो नही पडेगा ? और क्या मुझसे देर तो नही हुई । ( मेरी उमर ४५ के लगभग है ) इसलिये मेरा मूल प्रशन ये है कि सन्यासी बडा है । या गृहस्थी ? मैं..... हूँ । तो क्या महाराज जी को मुझे दीक्षा देने मे कोई आपत्ति तो नही होगी ।
ANS** आपको कोई देर नहीं हुयी । अभी बहुत समय है । आपको परिवार एक दिन के लिये भी नहीं छोङना पङेगा । महाराज जी को आपको दीक्षा देने में कोई आपत्ति नहीं होगी । वे खुशी खुशी आपके घर का खाना तक खायेंगे । हम लोग जाति धर्म नहीं मानते । बल्कि इंसानियत मानते हैं । संयासी और गृहस्थ दोनों का ही अपना अपना महत्व है । सुई का काम तलवार से नहीं होता । और तलवार का काम सुई से नहीं होता ।.. जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवार । हर चीज का महत्व अपनी जगह है ।
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