16 अप्रैल 2011

तब तक इसकी खोज जारी रखना

भगवान, मैं एक युवती के प्रेम में था । वह मुझे धोखा दे गई । और किसी और की हो गई । अब मैं जी तो रहा हूं । किंतु जीने का कोई रस न रहा । मैं क्या करूं ? 
- प्रेम में थे । या स्त्री पर कब्जा करने की आकांक्षा में थे ? क्योंकि तुम्हारी भाषा कहती है कि वह मुझे धोखा दे गई । और किसी और की हो गई । प्रेम को इससे क्या फर्क पड़ता है । अगर वह युवती किसी और के साथ ज्यादा सुखी है । तो तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए । क्योंकि प्रेम तो यही चाहता है कि जिसे हम प्रेम करते हैं । वह ज्यादा सुखी हो । वह आनंदित हो । अगर वह युवती तुम्हारे बजाय किसी और के पास ज्यादा आनंदित है । तो इसमें रस खो देने का कहां कारण है । मगर हम प्रेम वगैरह नहीं करते । प्रेम के नाम पर हम कुछ और करते हैं - कब्जा । मालकियत । तुम पति होना चाहते थे । पति यानी स्वामी । और वह किसी और की हो गई । और मजा यह है कि तुम्हें उससे प्रेम था । तुमने अपने प्रश्न में यह तो बताया ही नहीं कि उसे भी तुमसे प्रेम था । या नहीं । तुम से होता । तो तुम्हारे साथ होती । तुम्हें प्रेम था । इससे जरूरी तो नहीं कि उसे भी प्रेम हो । प्रेम कोई जबर्दस्ती तो नहीं । तुम्हें था । यह तुम्हारी मर्जी । और उसे नहीं था । तो उसकी भी तो आत्मा है । उसकी भी तो स्वतंत्रता है । अब किसी को किसी से प्रेम हो जाए । और दूसरे को प्रत्युत्तर देना न हो । तो कोई जबरदस्ती तो नहीं है । तुम प्रेम करने को स्वतंत्र हो । लेकिन किसी के मालिक होने को स्वतंत्र नहीं हो । तुम किसी के जीवन पर छा जाना चाहो । हावी होना चाहो । यह तो अहंकार है - प्रेम नहीं है । प्रेम जानता है - स्वतंत्रता देना । खुश होओ कि अगर वह कहीं भी है । और प्रसन्न है ।  यही तो तुम चाहते थे कि वह प्रसन्न हो जाए । लेकिन नहीं । शायद तुम यह नहीं चाहते थे । तुम चाहते थे कि वह तुम्हारी छाया बनकर चले । तुम्हारे अहंकार की तृप्ति हो । वह तुम्हारा आभूषण बने । तुम दुनिया को कह सको कि देखो, मैंने इस युवती को जीत लिया । वह तुम्हारी विजय का प्रतीक बने । पताका बने । यह तुम्हारे अहंकार का ही आयोजन था । और अहंकार जहां है । वहां प्रेम नहीं है । और शायद इसी अहंकार के कारण वह किसी और की हो गई हो । समझदार रही होगी । अच्छा किया । किसी और की हो गई । तुम्हारी होती । तुम सताते । तुम्हारा अहंकार बता रहा है कि तुम उसकी छाती पर पत्थर बन कर बैठ जाते । अब तुम कह रहे हो । अब मैं जी तो रहा हूं । किंतु जीने का कोई रस न रहा । युवती को देखा था । उसके पहले जीते थे कि नहीं ? तब रस था कि नहीं ? तो अब क्या बिगड़ गया । जैसे पहले जीते थे । बिना युवती के । युवती को जाना नहीं था । तब भी तो जीते थे न । मेरे पास लोग आकर पूछते हैं कि हमें बड़ा डर लगता है कि मरने के बाद क्या होगा ? मैं उनसे कहता हूं कि जन्म से पहले का तुम्हें कुछ डर लगता है ? तुम थे या नहीं - कुछ पता है ? वे कहते हैं - कुछ पता नहीं । कुछ हर्जा है । नहीं थे तो ? उन्होंने कहा - क्या हर्जा है ? जब पता ही नहीं । तो रहे हों । या न रहे हों । मैंने कहा - तो बस यही मौत के बाद होगा । जो जन्म के पहले था । इसलिए घबड़ाहट क्या है ? जन्म के पहले का तुम्हें कुछ पता नहीं है । मौत के बाद का भी तुम्हें कुछ पता नहीं होगा । तो चिंता क्या कर रहे हो । युवती नहीं मिली थी । उसके पहले भी तुम जिंदा थे । और बड़ा रस था । और युवती को देखकर सारा रस खो गया । ऐसे गुलाम हो ? और कल का तो भरोसा रखो । कल कहीं फिर कोई दूसरी युवती मिल जाए । उससे भी सुंदर, उससे भी आकर्षक । तो तुम परमात्मा को धन्यवाद दोगे कि अच्छा हुआ कि उस बाई से छुटकारा हो गया ।
मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी के साथ जा रहा था । एक सुंदर स्त्री पास से गुजरी । खटक गई । आंख में अटक गई । पत्नी तो ऐसी चीजें एकदम से पहचान लेती हैं । पत्नी ने फौरन मुल्ला से कहा कि - ऐसी सुंदर स्त्री को देखकर तुम्हें जरूर भूल ही जाता होगा कि तुम विवाहित हो । मुल्ला ने कहा कि - नहीं नहीं फजूल की मां । ऐसी स्त्रियों को देखकर ही मुझे याद आता है कि - अरे, मैं विवाहित हूं । हाय राम, मैं विवाहित हूं । ऐसी स्त्रियों को देखकर ही याद आता है । कल का भरोसा रखो । अगर बीते कल में धोखा खा गए थे । तो आने वाले कल में भी धोखा फिर खाओगे । ऐसी क्या जल्दी पड़ी है । और पूछते हो । जीवन में कोई रस नहीं रहा । अब मैं क्या करूं ? अगर इस तरह ही रस आता हो । तो फिर कोई तलाश कर लो । युवतियों की कोई कमी है । पृथ्वी भरी पड़ी है । 
लेकिन अगर कुछ समझ की बात करनी हो । तो थोड़ा सोचो । तुमने बच्चों की कहानियां पढ़ी होंगी । बच्चों की कहानियों में यूं कहानियां आती हैं कि कोई राजा है । उसके प्राण उसने तोते में रख दिए । इससे उसको कोई मार नहीं सकता । जब तक तोते को न मारे । राजा को नहीं मार सकता । राजा को कितना ही मारो । मरता ही नहीं । उसने प्राण अपने तोते में छिपा रखे हैं । जब तोते को पकड़ कर मार डालोगे । तो राजा मर जाएगा । ये कहानियां बड़ी ठीक हैं । अब यह तो यूं हुआ कि तुमने अपने प्राण उस लड़की में रख दिए । इतने जल्दी गिरवी रख दिए । हर किसी के हाथ में दे देते हो प्राण । जीवन का रस ही चला गया । ज्यादा कुछ रहा नहीं होगा रस । भ्रांति में हो तुम कि रस था । ऐसे कहीं रस जाता है ?
रस को तुम जानते ही नहीं कि रस क्या है ? जिन्होंने जाना है । उन्होंने कहा है - रसो वै सः । उन्होंने तो परमात्मा की परिभाषा को है कि वह रस है । उन्होंने तो सिर्फ परमात्मा को ही रस माना है । और किसी चीज का कोई रस नहीं है । मिल जाती स्त्री । तो भी रस खो जाता । और स्त्री गले से बंध जाती - सो अलग । फिर उससे छूटना मुश्किल हो जाता । जरा तुम उससे भी तो पूछो । जिसके गले बंध गई है । उसकी क्या हालत है ? उसका भी तो बेचारे का दुख दर्द जानो । उसका दुख दर्द जानकर तुमको बड़ी सांत्वना मिलेगी । बड़ा आश्वासन मिलेगा । 
एक पागलखाने में एक राजनेता देखने गया था पागलखाने को । एक आदमी अपने बाल नोंच रहा था । छाती पीट रहा था । और हाथ में एक तस्वीर लिए था । आंखों से आंसू बह रहे थे - झरझर । छाती से लगाता था तस्वीर को । सींखचों में बंद था । पूछा उसने सुपरिंटेंडेंट को - इस आदमी को क्या हो गया । यह क्या कर रहा है ? यह तस्वीर किसकी है ? उसने कहा - यह तस्वीर एक स्त्री की है । जिसको यह पाना चाहता था । और नहीं पा सका । जब से नहीं पाया । पागल हो गया है । बस अब तब से यह बस बाल नोंचता है । रोता है । छाती से फोटो लगाता है । चीख पुकार मचाता है । इसको पागलखाने में रखना पड़ा है । इसके घर के लोग परेशान हो गए । इसने सबका चैन हराम कर दिया है । राजनेता ने कहा - बेचारा । आगे बढ़े । दूसरे कटघरे में एक आदमी सींखचों को पकड़ पकड़ कर हिला रहा था । सींखचों से सिर मार रहा था । लहूलुहान हो रहा था उसका सिर । पूछा - इसको क्या हो गया ? इस बेचारे को क्या हो गया ? उस सुपरिंटेंडेंट ने कहा कि - अब आप न पूछो । तो अच्छा । इसने उस लड़की से शादी कर ली । जिस लड़की की याद में पहला मरा जा रहा है । जब से इसने शादी की है । तब से इसकी यह हालत हो गई । तब से यह सींखचों से सिर मारता है । दीवालों से सिर फोड़ता है । यह आत्महत्या करने को उतारू है । यह आत्महत्या न कर ले । इसलिए इसको पागलखाने में रखना पड़ा है । किसको बेचारा कहोगे ? वह । जिसको नहीं मिली स्त्री - वह । या जिसको मिल गई - वह ? किसके जीवन में रस है ? तुम जरा उनको तो देखो । जिसको उनकी प्रेयसियां मिल गई हैं । उनके प्रेमी मिल गए हैं । उन पर तो जरा नजर डालो । वहां कहां रस है ? ऊबे बैठे हैं । जब भी तुम किसी जोड़े को उदास देखो । समझना - विवाहित हैं । जब भी तुम किसी स्त्री पुरुष को लड़ते देखो । समझो विवाहित हैं । एक  दूसरे की गर्दन को दबाते देखो । समझो कि - विवाहित हैं । जरा देखो तो चारों तरफ आंख खोलकर । तुम मुझसे कुछ रहे हो । अब मैं जी तो रहा हूं । किंतु जीने का कोई रस न रहा । इतने जल्दी गंवा दोगे - जीवन का रस ? जीवन कुछ और बड़े काम के लिए है । जीवन कुछ और विराट आकाश को पाने के लिए है । अभी और भी मंजिलें हैं । अभी और भी आसमान हैं ।
दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं । 
इतना रोया हूं कि अब आंख में आंसू भी नहीं । 
कासाए दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा । 
मेरे दामन में तेरे प्यार की खुशबू भी नहीं । 
छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसासे जमाल । 
तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं । 
मौज दर मौज तेरे गम की शफक खिलती है ।
मुझे इस सिलसिलाए रंग पे काबू भी नहीं ।
दिल वो कमबख्त कि धड़के ही चला जाता है ।
ये अलग बात कि तू जीनते पहलू भी नहीं ।
ये अजब राहगुजर है कि चट्टानें तो बहुत ।
और सहारे को तेरी याद के बाजू भी नहीं ।
जल्दी ही भूल जाओगे । फिर उलझोगे और भूल जाओगे । अभी लगता है कि दिल के सहारा में कोई आस का जुगनू भी नहीं । इतना रोया हूं कि अब आंख में आंसू भी नहीं । लेकिन यह सब रोना धोना । यह आशाओं का बुझ जाना । यह जुगनुओं का भी खो जाना । ज्यादा देर नहीं टिकेगा । आदमी भ्रम पालन में बड़ा कुशल है । जरा रुको । फिर भ्रम पालोगे । एक भरम टूटता नहीं कि दूसरा भरम हम पैदा कर लेते हैं । फिर से रस की धार बहने लगेगी । हालांकि वह रस की धार बिलकुल झूठी है । रसधार तो बहती है सिर्फ उसके जीवन में । जो परमात्मा के प्रेम से भर जाता है । इन छोटे मोटे प्रेमों में प्रेम नहीं है । आसक्तियां हैं । प्रेम के धोखे हैं । प्रेम केवल शब्द है - प्यारा शब्द । लेकिन शब्द को उघाड़ कर देखो । तो भीतर कुछ भी नहीं । कोई अर्थ नहीं । कोई गौरव नहीं । कोई गरिमा नहीं । कोई काव्य नहीं । कोई संगीत नहीं । अब तलक मुझ सी किसी पर भी नहीं गुजरी है ।
मैं बहारों में जला और किनारों में बहा ।
मैंने हर आंख में ढूंढा है प्यार अपने लिए ।
दिल मेरा प्यार भरा प्यारा का भूखा ही रहा ।
जिंदगी मेरी सिसकती रहेगी क्या यूं ही ?
क्या मुझे कोई सहारा न मिल सकेगा कभी ?
बहारें देखती हैं मुड़ के मगर रुकती नहीं ।
कोई भी फूल क्या मेरा न खिल सकेगा कभी ?
इससे बढ़ करके भला और क्या है मजबूरी ।
अपने अरमानों की लाशों पर मुझे चलना पड़ा । 
छिपाता आया हूं जिसको मैं बड़ी मुद्दत से । 
आज सबके ही सामने वह राज कहना पड़ा । 
अब तलक मुझ सी किसी पर भी नहीं गुजरी है । 
मैं बहारों में जला और किनारों में बहा । 
मैंने हर आंख में ढूंढा है प्यार अपने लिए ।
दिल मेरा प्यार भरा प्यार का भूखा ही रहा ।
इस जगत में तुम अगर प्रेम को खोज रहे हो । तो यह ऐसा ही है । जैसे कोई रेत से तेल को निचोड़ने की कोशिश कर रहो हो । जो नहीं है वहां । तुम किससे प्रेम मांग रहे हो ? यह भी तो देखो कि तुम जिससे प्रेम मांग रहे हो । वह भी तुमसे प्रेम मांग रहा है । न उसके पास है । न तुम्हारे पास है । यहां हर कोई हर किसी से मांग रहा है । और सब भिखमंगे हैं । तुम भी चाहते हो । दूसरा प्रेम दे । और दूसरा भी चाहता है कि तुम प्रेम दो । और दोनों को इसकी फिक्र नहीं है कि है भी किसी के पास । जो दे दे ? पहले होना तो चाहिए । देने के पहले होना चाहिए । इसलिए तो यहां हर व्यक्ति हारा हुआ है । थका हुआ है । परेशान है, पीड़ित है । कोई तुम्हीं नहीं । समझो । इस मौके को चूको मत । बड़ी कृपा की उस युवती ने । जो किसी और की हो गई । तुम पर उसकी दया है । अनुकंपा है । उसने बड़ा प्रेम जतलाया तुम्हारे प्रति । एक अवसर दिया तुम्हें देखने का । तुम मांग रहे थे - प्रेम । मगर तुम्हारे पास है ? जिसके पास है । वह मांगता नहीं । वह देता है । और जिसके पास नहीं है । वह मांगता है । और किससे मांग रहे हो ? जिसके पास हो । उससे मांगो । और प्रेम का झरना किसके पास होता है ? जिसके पास ध्यान - उसके पास प्रेम । बिना ध्यान के प्रेम नहीं । ध्यान की छाया है - प्रेम । ध्यान का फूल है - प्रेम । बुद्धों के पास प्रेम होता है । उनसे मांगो । मत मांगो । तो भी वे देते हैं । झोली फैलाओ । मत फैलाओ । तो भी बरस जाते हैं । जहां रोशनी है । वहां जाओगे । तो रोशनी तुम पर पड़ेगी ही । तुम्हारे मांगने, न मांगने का सवाल नहीं । फूल खिलेगा । उसके पास से गुजरोगे । गंध मिलेगी । मांगने न मांगने का कोई सवाल ही नहीं है । लेकिन इस जगत में बड़ी अजीब हालत चल रही है । भिखमंगे भिखमंगों के सामने भिक्षा पात्र लिए खड़े हैं कि कुछ दे दो । बाबा, कुछ मिल जाए । और दूसरा भी मांग रहा है । और दोनों इस भ्रांति में हैं कि दूसरे के पास होगा । किसी के पास नहीं है । सिर्फ उन थोड़े से लोगों के पास प्रेम होता है । जिन्होंने ध्यान की अंतिम गहराइयां छुई हैं । प्रेम परिणाम है - ध्यान का । और मजा यह है कि ध्यानी किसी से प्रेम नहीं मांगता । देता है । सिर्फ देता है । मांगता ही नहीं । और यह भी तुम समझ लेना । यह जीवन का महा गणित कि जो देता है । उसे बहुत मिलता है । हालांकि वह मांगता नहीं । वह छांट छांट कर भी नहीं देता । वह सिर्फ बांटता ही रहता है । और उस पर बहुत बरसता है । आकाश से बरसता है । बादलों से बरसता है । चांद त्तारों से बरसता है । परमात्मा उसे चारों तरफ से भर देता है । वह लुटाए चला जाता है । परमात्मा उसे दिए चला जाता है - रसो वै सः । परमात्मा रस रूप है । लेकिन किसको परमात्मा मिला है ? जो भीतर जागा है । जिसने भीतर सारी तंद्रा और नींद तोड़ दी है । जिसने भीतर बेहोशी की सारी परतें उखाड़ फेंकी हैं । जिसने मूर्च्छा को जड़ों से उखाड़ दिया है । जिसने भीतर रोशन कर लिया अपने को । जो प्रकाशित हो गया है । उसके भीतर परमात्मा उतर आता है । रस की धार बह जाती है । तुम जिस ढंग से सोच रहे हो । उसका तो अंतिम परिणाम आत्महत्या है । मैं जो कह रहा हूं । उसका अंतिम परिणाम आत्म रूपांतरण है । और इसको भी तुमसे कह दूं कि आत्महत्या के क्षण में ही आत्म रूपांतरण की संभावना है । क्योंकि जब आदमी ऐसी जगह आ जाता है । जहां आगे चलने को कोई जगह नहीं रह जाती । रास्ता खतम हो जाता है । वहीं क्रांति घटती है । नहीं तो क्रांति नहीं घटती । इस अवसर को चूकना मत । यह अवसर है कि तुम जागो । और प्रेम की जगह ध्यान पर दृष्टि जमाओ । प्रेम धोखा दे गया । देने ही वाला था । क्योंकि था ही नहीं । ध्यान ने कभी किसी को धोखा नहीं दिया है । आज तक नहीं दिया है । जिसने भी ध्यान की तरफ नजर उठाई । मालामाल हो गया है । सम्राट हो गया है । और मजा यह है कि उसकी संपदा में प्रेम की संपदा भी आती है । भीतर झांको । वहां प्रभु का राज्य है । अपने पर आओ । प्रेम कहता है - दूसरे को पकड़ो । ध्यान कहता है - अपने को पकड़ो । इसलिए ऊपर से तो प्रेम और ध्यान के रास्ते बिलकुल विपरीत मालूम पड़ते हैं । और हैं भी विपरीत । तुम्हारे प्रेम से तो ध्यान का रास्ता बिलकुल विपरीत है । अब तुम्हारी नजर उस युवती पर अटकी है । दूसरे पर अटकी है । यह भी कोई बात हुई ? पहले अपने को तो खोज लो । फिर दूसरे की तलाश में जाना । और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम अपने को खोज लो । तो दूसरे तुम्हारी तलाश में आएंगे । तुम्हें कहीं किसी की तलाश में जाना न पड़ेगा । तुम दैदीप्यमान हो उठो । तो तुम्हारी किरणें दूसरों को बुला लाएंगी । दूर दूर से लोग चले आएंगे । तुम्हारे झरने पर पानी पीने । अपनी प्यास बुझाने । कुछ ऐसा करो कि तुम्हें तो रस मिले ही मिले । औरों को भी रस मिल जाए । कुछ ऐसा करो कि परमात्मा तुमसे बह उठे । और जब आदमी ऐसी जगह आ जाता है । जहां सोचने लगता है कि अब खतम ही कर लूं अपने को । जरूर तुमने सोचा होगा बहुत बार कि अब अपने को मिटा ही लूं । क्योंकि अब जीवन तो है ही नहीं । रस नहीं है । जीए जा रहा हूं । क्या सार है - जीने में । खतम ही क्यों न कर लूं ? जब खतम करने तक की तैयारी हो । तो इसके पहले एक काम और कर लो । फिर खतम कर लेना । इसके पहले एक काम यह तो कर लो । जान तो लो कि मैं कौन हूं ? फिर आत्महत्या करनी हो । तो आत्महत्या कर लेना । हालांकि जिसने अपने को जाना है । उसने कभी आत्महत्या नहीं की है । क्योंकि वह तो जानता है - आत्महत्या हो ही नहीं सकती । आत्मा अमर है । मिटाओ । तो भी मिट नहीं सकती । जलाओ । तो भी जल नहीं सकती । और इस शाश्वत को पहचानते ही अपूर्व घटनाएं घटती है । चमत्कार घटते हैं । जादू जीवन में आ जाता है । तुम मिट्टी छुओ । और सोना हो जाएगी । तुम कांटा छुओगे । और फूल हो जाएगा । यह सारा अस्तित्व परमात्मा से जगमगा उठता है । तुम जगमगा जाओ भीतर । तो बाहर दीए ही दीए जल जाते हैं । जल ही रहे हैं । सिर्फ तुम अंधे हो । इसलिए दिखाई नहीं पड़ रहे हैं । और चारों तरफ से रस तुम्हारी तरफ बहने लगता है । तुम बहो । फिर देखो । यह संकट की घड़ी है । इसका उपयोग कर लो । मेरे हिसाब से संकट की घड़ियां बड़े सौभाग्य की घड़ियां होती हैं । समझदार उनको वरदान बना लेते हैं । नासमझ  उनको अभिशाप । सब तुम पर निर्भर है । 
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किसी गायक को गीत गाते देखकर तुम्‍हें याद आ जाती है अपने कंठ की कि कंठ तो मेरे पास भी है । और किसी नर्तक को नाचते देखकर तुम्‍हें याद आ जाती है । अपने पैरों की कि पैर तो मेरे पास भी है । चाहूं तो नाच तो मैं भी सकता हूं । किसी चित्रकार को चित्र बनाते हुए देखकर तुम्‍हे भी याद आ जाती है कि चाहूं तो चित्र मैं भी बना सकता हूं । ऐसो ही किसी बुद्ध को देखकर तुम्‍हें याद आ जाती है कि चाहूं तो बुद्धत्‍व मैं भी पा सकता हूं ।
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दुविधा में मत अटके रहो । क्योंकि दुविधा में जो अटका । वह बहुत खो देता है । वह द्वार पर ही खड़ा रह जाता है । न भीतर जाता । न बाहर जाता । वह अटक गया - दुविधा में दोऊ गए । माया मिली न राम ।
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जब तक तुम इस एक को न पा लो । तब तक बेचैनी जाएगी नहीं । जब तक तुम इस एक को न पा लो । तब तक तुम तृप्त होना भी नहीं । तब तक इसकी खोज जारी रखना । तब तक जो भी दाव पर लगाना पड़े । लगाना । क्योंकि यही पाने योग्य है । और सब पाकर भी कुछ पाया नहीं जाता । और इस एक को जो पा लेता है । वह सब पा लेता है -  एक हि साधे सब सधे । सब साधे सब जाए ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326