Add caption |
Q 1 मेरा १ प्रश्न और हल कर दीजिए । जैसे भारत और पाकिस्तान में लडाई हो जाती है । तो उसमें बहुत से फ़ौजी मर जाते हैं । और बहुत से फ़ौजी बच भी जाते हैं । इसका कारण तो भाग्य को ही कह सकते हैं । लेकिन जो फ़ौजी दुसरे फ़ौजी के हाथों अर्थात गोलियों द्वारा मारे गए ( जैसे भारतीय की गोली से पाकिस्तानी और पाकिस्तानी की गोली से भारतीय ) तो क्या मारने वाले और गोली चलाने वाले को पाप लगेगा ?
ANS - मेरे एक परिचित दीवानी में नौकरी करते थे । अच्छे संस्कार थे । अच्छी आमदनी थी । घर वाले भी ठीकठाक थे । मतलब औसत रूप से सही परिवार था । लेकिन परिवार के सभी सदस्य किसी न किसी रूप में बीमार ( भले ही छोटे मोटे सही ) रहते थे । उन्हें भी तमाम रोग थे । उन्होंने मुझसे इसका कारण पूछा ।
मैंने कहा - आप और आपके परिवार वाले इसे भगवान की कृपा समझते हो कि उसने आपको दुर्लभ सरकारी नौकरी दी । जबकि वास्तव में तुम धरती के मनुष्य रूप यमदूत हो । ( यमदूतों का भी यही कार्य होता है - आगे देखें ) सन्त एक मजेदार बात कहते हैं । इंसान को अगर जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है । और सुख से जीवन बिताना है । तो इन चार कोटों से हमेशा बचा रहे ।
1 काला ( वकील ) 2 सफ़ेद ( डाक्टर ) 3 खाकी ( पुलिस ) 4 पेटीकोट ( औरत के प्रति कामवासना की चाह )
इनमें डाक्टर भले ही थोङा अलग हो जाता हो । क्योंकि वो कम से कम मरीज को अच्छा तो करता है । पर आप सब ये तो निर्विवाद मानोगे कि ये सभी हाय ( कसक से प्राप्त पैसा ) का पैसा खाते हैं । यही यमदूत करते हैं । मृतक के संस्कार में उसकी यमलोक यात्रा के दौरान यहाँ से परिजनों द्वारा श्राद्ध आदि का तर्पण जो मृतक जीव के लिये होता है । छीनकर खा जाते हैं । उसे मामूली अंश ही देते हैं ।
अब आपकी बात - अपने निजी हित के लिये किया गया कार्य । और डयूटी का कार्य ये दो अलग बातें हो जाती हैं । हालांकि इसके पीछे भी संस्कार ही कार्य करता है । शायद आपने सुना हो कि - दाने दाने पर लिखा है । खाने वाले का नाम । हरेक गोली पर लिखा है । मरने वाले का नाम ।..बहुत से ऐसे फ़ौजी । पुलिस वाले । और गुन्डा तत्व भी होते हैं । जो आजीवन सकुशल कार्य करते रहते हैं । और उनसे एक भी हत्या नहीं होती । इसके अलावा इसका एक दूसरा पहलू ( यहाँ नियम ) भी है । हन्ते को हनिये । इसमें दोष न जनिये । मतलब कोई भी पाप पुण्य उस वक्त के सही हालात और आपकी सच्ची भावना पर निर्भर है । अतः प्रश्न भाव के अनुसार ऐसे फ़ौजी को मामूली हत्या ( फ़र्ज और हालात देशभक्ति आदि ) का पाप अवश्य लगेगा । लेकिन इसी कार्य के दूसरे पुण्य उस पाप को नष्ट कर देंगे । आपको पता होगा । राम को पापी रावण के इतने पाप होते हुये भी बृह्महत्या ( क्योंकि रावण बृह्मग्यानी था ) का पाप लगा था । जिसका उन्होंने वैदिक रीति से प्रायश्चित । स्नान । यग्य । हवन आदि द्वारा उपचार ( निबटारा ) किया था ।
Q 2 या मारने वाले मतलब गोली चलाने वाले मरने वालों के निमित्त बने हुए होते हैं ? ( भाग्य के अनुसार )
ANS - इस तरह के प्रसंगों में निमित्त और बदला दोनों ही बातें लागू होती है । एक बार पार्वती ने एक पेशे से वधिक ( कसाई ) को देखकर शंकर जी से पूछा । भगवन ! आप कहते हो कि प्रत्येक जीव अपने साथ किये का बदला अवश्य चुकाता है । तो ये कसाई जो इतने जीवों की हत्या कर रहा है । इसको बारबार इन्हीं जीवों का जन्म लेना होगा । और ये जीव अगली बार कसाई या किसी अन्य रूप में इसका वध करेंगे । अब क्योंकि 84 लाख योनियों के नियमानुसार मनुष्य को दुबारा मनुष्य जन्म 84 लाख योनियाँ भोगने के बाद यानी साढे 12 लाख साल बाद मिलता है । इस तरह तो ये एक ही जन्म की कहानी बहुत लम्बी हो जायेगी । यहाँ ये भी मान लिया जाय कि नेक्स्ट टाइम कसाई बकरा मुर्गा आदि का जन्म बार बार बार ले । और ये सभी जीव उस अगले चक्र में कसाई या अन्य किसी रूप में उसका वध करें । तो भी ये प्रक्रिया बहुत लम्बे समय तक चलेगी । इस तरह सृष्टि का खेल बदला चुकाने हेतु ही हो जायेगा ।
तब शंकर जी ने कहा - पार्वती इसके उत्तर के लिये कुछ समय इंतजार करो ।
समय बीतने के साथ ही कसाई मृत्यु को प्राप्त हुआ । और कुछ अन्य योनियाँ भोगने के बाद उसने ऊँट का जन्म लिया । कुछ समय बाद ही ये ऊँट किसी असाध्य रोग से पीङित हुआ जमीन पर सङते हुये घाव के सथ तङप रहा था । और सैकङों चींटी मक्खियाँ आदि उसके घाव में दंश देते हुये अपना भोजन प्राप्त करते हुये उसे तङपा रहे थे ।
यही दृश्य दिखाकर शंकर जी ने कहा । पार्वती इस ऊँट और इसको दंश देते जीवों का पिछला जन्म चक्र देखो । पार्वती ने ऐसा ही किया । तो वही कसाई और उससे वध होते जीव नजर आने लगे ।
शंकर जी ने कहा । पार्वती वध होते समय भी 15 ( अधिकतम ) मिनट की असह्य पीङा से गुजरना होता है । इसी तरह ये कीट पतंगा श्रेणी के जीव दंश द्वारा उसको तङपती असहाय ( जब कसाई जीवों का वध कर रहा था । तब वे भी तङपते हुये असहाय ही थे ) अवस्था में कष्ट देकर अपना बदला पूरा कर रहे हैं । ये अपने कसाई जन्म के कृत्यों को बहुत कुछ यहीं चुका देगा ।
इसी प्रसंग में एक धनी आदमी के पुत्र ने एक चीटियों के बिल में खेल खेल में जानबूझ कर गर्म पानी डाल दिया था । जिससे 999 चीटियाँ तङपती हुयी मर गयी थीं । बाद में यह लङका 1000 रानियों वाले एक निसंतान राजा के बङी मुश्किलों मन्नतों यग्य सग्य के बाद सबसे छोटी रानी के गर्भ से जन्मा । यह देखकर शेष 999 रानियों ने अति ईर्ष्या और डाह से कि अब छोटी रानी के सामने राजा हमको पूछेगा भी नहीं । चुपचाप षङयन्त्र करके उस राजकुमार को विष के द्वारा मरवा दिया । राजा ने इस रहस्य को अलौकिक विध्या के जानकारों से पूछा । तव उसे राजकुमार और चीटियों के संस्कार के बारे में ग्यात हुआ ।
परमात्मा की इस सृष्टि में बदला हरेक कोई लेता है । राम ने बाली को छुपकर मारा । बाली ने बहेलिया बनकर कृष्ण को तीर मार दिया । राम ने समुद्र की मर्यादा हनन ( समुद्र पर पुल बनाने से उसकी मर्यादा भंग होती है । होने वाली प्रलय के एक कारणों में यह भी है कि लोग समुद्र में ( या पर ) पुल और आवास आदि बनाने की कुचेष्टा कर रहे हैं ) कर उस पर पुल बनाया । समुद्र ने कृष्ण की द्वारिका डुबोकर बदला पूरा किया । इसीलिये सन्तों ने कहा है - काया से जो पातक होई । बिनु भुगते छूटे नहीं कोई ।
Q 3 और क्या ये ही भाग्य नीति पुलिस फ़ोर्स मे भी लागू होती है । जब कोई गुन्डा पुलिस के हाथों मारा जाये ( तो क्या गोली चलाने वाले अफ़सर को पाप लगेगा ? या वो उस गुन्डे की मौत का निमित्त था )
ANS - आपके प्रश्नों का उत्तर मैंने टू द प्वाइंट न देकर मिश्रित भाव से दिया है । लेकिन तीनों ही प्रश्नों पर एक ही बात समान रूप से लागू होती है । और वो पुलिस या फ़ौज में ही नहीं जीवन के किसी भी पक्ष । किसी भी मोङ पर लागू होती है । आपके द्वारा जो भी अच्छा बुरा कार्य हो रहा है । उसकी शास्त्र परम्परा
या सज्जनों की विचारधारा परिभाषा के अनुसार उस वक्त क्या उचित है । क्या अनुचित है ? आप जिसको मार रहे हो । उसकी जगह आप होते । तो आपको क्या सही लगता ? आदि पर निर्भर करता है । आपको पता होगा । हरेक देश के संविधान में एक ही अपराध में कई किन्तु परन्तु लगकर कई धारायें बन जाती हैं ।
फ़िर भी हरेक अपराध के चार मुख्य फ़ैसले हो सकते हैं ।
1 - इतने साल की सामान्य या कठोर सजा ।
2 - इतना जुर्माना ।
3 - सजा और जुर्माना दोनों ।
4 - न्यायाधीश के विवेक के अनुसार ?
जिन्दगी के संविधान में भी ठीक यही बात है । जिसमें सर्वश्रेष्ठ फ़ैसला विवेक का माना जाता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें