गुरु अमरदास जी तीसरी पातशाही ।
इसका मतलब है । संसार में सबका वो परमेश्वर एक ही है । चाहे वो हिन्दू हो । मुसलमान । सिख । ईसाई । राजा । रंक । चोर । दानी । ऊँचा । नीचा कोई भी हो । और वह " पूरे गुरु " ते ( से ) सूझता ( पता चलता ) है ।
अन्दरि रंगु सदा सचिआरा । गुर कै सबदि हरि नाम पिआरा ।
अन्दर वह सदा सच्चा रंग कौन सा है । गुरु ने जो सबद ( नाम ) दिया । उसकी कमाई की । तो वह हरि ( भगवान ) का नाम प्रकट हुआ । इस शब्द को वेदों ने नाद कहा । ऋषि मुनियों ने आकाशवाणी । मुसलमान .. बांगे आसमानी । कलाम ए इलाही । निदाए आसमानी कहते हैं ।
नउ निधि नामु बसिया घटि अंतरि । छोडिआ माइआ का लाहा है ।
नौ निधियों वाला नाम कहाँ बताया जा रहा है । हमारे घट अंतर ( यानी शरीर के अन्दर ) इसको जान लेने से माया का जहर उतर जाता है ।
नानक साहब ही कह रहे हैं ।
पडीअहि जेते बरस बरस । पडीअहि जेते मास ।
पडीए जेती आरजा । पडीअहि जेती सास ।
नानक लेखै एक गल होरु । हउमे झखङा झाख ।
इसका मतलब है । सिर्फ़ पढने से काम नहीं चलेगा । चङना ( आत्मिक चङाई ) भी आवश्यक है । यानी सिर्फ़ किताबों से मुक्ति नहीं होगी ।
नानक कागद लख मणा । पडि पडि कीचै भाउ ।
मसू तोटि न आवई । लेखणि पउण चलाउ ।
भी तेरी कीमति ना पवै । हउ केवडु आखा नाउ ।
लाखों मन कागज पर लिखा हुआ पढ लो । बेशुमार कागज पर लिखते ही चले जाओ । फ़िर भी तेरी महिमा का पार नहीं पा सकते । मिठाई रसगुल्ला बनाने की विधि किताब में लिखी हो । सुन्दर चित्र असली जैसा छपा हो । तो क्या उसे खाने का आनन्द मिल जायेगा । हरगिज नहीं । उस विधि से उसे बनाना होगा । इसलिये गुरुगृन्थ साहब में पढने पर नहीं करने पर जोर है । पोथियों में नाम की महिमा है । नाम नहीं हैं ।
नानक साहब कहते हैं । वह नाम बङा ऊँचा है । पढने लिखने बोलने में नहीं आता ।
संत संगि अंतरि प्रभु डीठा । अर्थात सन्तों के संग से ही अंतर में प्रभु के दरस होते हैं ।
गुरुगृन्थ साहेब में नाम की तारीफ़ है नाम नहीं । गुरुगृन्थ साहेब का कहना है । इसके लिये किसी गुरु के पास जाओ ।
हम नशीनी साइते बा औलिया । बेहतर अज सद सालह ताइत बे रिआ । मौलवी रूम साहिब ।
औलिया ए अल्लाह ( परमात्मा को प्राप्त पुरुष ) के पास एक घङी बैठना । सौ बरस प्रेमपूर्वक की गयी बन्दगी से बेहतर हैं ।
तैडी बन्दिस में कोई न डिठा । तू नानक मनि भाणा ।
घोलि घुमाइ तिसु मित्रु विचोले । जै मिलि कंतु पछाणा ।
तू ही मेरी आत्मा का स्वामी है । तेरे बराबर कोई दूसरा नहीं है । और तू सतगुरु रूपी विचोले के द्वारा प्राप्त होता है ।
सचि संजमु सतिगुरु दुआरै । हउमै क्रोधु सबदि निवारै ।
अगर उस सच को प्राप्त करना है । तो सतगुरु या मुर्शिद ए कामिल के पास जाओ । उससे उपदेश लेकर परदा खोलो । तब सच अर्थात शब्द मिलेगा । जब उस शब्द या आबे हयात का पान करेंगे । तो हवासे खमसा ( बाहरी पाँच इन्द्रियाँ ) और हवासे बातिनी ( आंतरिक इन्द्रियाँ ) सब वश में हो जायेंगी ।
गोश रा नजदीक कुन काँ दूर नेस्त । लेकन ई गुफ़्तन ब तो दस्तूर नेस्त ।
गुफ़्त पैगम्बर कि आवाजे खुदा । मी रसद दर गोशे मन हमचो सदा ।
तुर्को कुर्दो पारसी गोओ अरब । फ़हम कर्दह आँ निदा बेगोशो लव । मौलाना रूम साहिब
क्या तुर्किस्तान वाले । क्या फ़ारस वाले । क्या अरब । जितने भी फ़कीर अन्दर गये हैं । उन्होंने उस बांगे इलाही को सुना है । जिनकी रूह उस कलामे इलाही के साथ लग गयी है । उन्हें हम मोमिन कहेंगे । जिनकी रूह उस कलामे इलाही के साथ नहीं लगी । वह काफ़िर है । जिस मुसलमान के पास कलमा नहीं । उसे मुसलमान क्यों कर कहेंगे ? वह कलमा ( नाम ) लिखने पढने बोलने में नहीं आता । वह अलिखित कानून और अनबोली भाषा है । किताबों में नाम की तारीफ़ है । नाम नहीं है । वह तो आपके अन्दर है । जब आप अन्दर जायेंगे । तब मिलेगा । अगर गृन्थों पोथियों किताबों से नाम माँगे । तो वे कहती हैं कि अन्दर जाओ । नाम लफ़्ज नहीं । अगर लफ़्ज हो । तो गुरु के पास जाने की क्या जरूरत है ? किताबें लफ़्जों से भरी पङी हैं ।
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