01 अप्रैल 2011

ये भुवन क्या होते हैं ? 14 और 36 का क्या चक्कर है ?

गुड आफ़्टरनून राजीव सर ! आई एम मधु अरोरा फ़्रोम शिमला, हिमाचल प्रदेश । मैं कभी न कभी समय निकाल कर आपके ब्लोग को पढती रहती हूँ । मैं देवी भक्त हूँ । माता पर मेरी शुरु से ही श्रद्धा है । मैंने जब भी उनसे कुछ माँगा । मुझे साथ की साथ मिला । मैं बडी साधारण सी पूजा करती हूँ । मुझसे आड्म्बर नही होता । लेकिन जब भी जुडती हूँ । तो गहरे भाव में डूब जाती हूँ ।
... ( यही आपकी सफ़लता का रहस्य है । वैसे औरतें पूजा कम ढोंग ज्यादा करती हैं - राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ । )

... मैंने अपको मैसेज इसलिये किया । क्योंकि मुझे लगा मेरे प्रश्न का शायद सही जवाब आप ही दे पायें । मेरा प्रश्न है कि माता 14 भुवन की मालिक है । लेकिन आपके किसी पुराने आर्टिकल में मैंने पढा था कि आपने लिखा है कि भुवन 36 तक भी हैं । Q1 ये भुवन क्या होते हैं ? 14 और 36 का क्या चक्कर है ? साथ में ये भी पूछ्ना था कि वैसे तो मैं दुर्गा माता की भक्त हूँ । Q 2 लेकिन क्या सभी देविया छोटी बडी सभी 1 ही माता का रूप हैं ? जिसको आप लोग आद्धा शक्ती बोलते हो । Q 3 ये भी पूछ्ना था कि उनसे मैंने जो भी आज तक संसारिक वस्तु माँगी । वो मुझे किसी न किसी बहाने मिल ही गयी । तो क्या ये सब देवी की किरपा थी मुझ पर ? आप सबके प्रशनो का उत्तर देते हैं । आशा है । आप मुझे भी निराश नही करेंगे । ( ई मेल से )


मेरी बात - मेरे ब्लाग पढने के बाद काफ़ी स्त्री पुरुषों के फ़ोन मेरे पास और श्री महाराज जी के पास आते हैं । ऐसे ही एक बिहार की देवी जी का फ़ोन आया कि वे देवी की साधना करना चाहती हैं । कैसे करें ?
मैंने कहा - कौन सी देवी । जबाब - लक्ष्मी देवी । सीधी सी बात धन हेतु । मैंने कहा । आप महाराज जी से बात कर लीजिये । महाराज जी से भी यही बात हुयी । महाराज जी ने कहा । पत्नी के बजाय पति की साधना करो ना । पति आयेगा । तो पत्नी अपने आप चली आयेगी ।


Q1 ये भुवन क्या होते हैं ? 14 और 36 का क्या चक्कर है ?
ANS - कोई भी बात विषय या प्रसंग के अनुसार कही जाती है । या तो आप उस आर्टीकल का जिक्र करतीं । वैसे भुवन या भवन या घर । यहाँ इसका अर्थ डिपार्टमेंट हैं । चीफ़ आफ़ द डिपार्टमेंट ।..मान लीजिये । एक बङी देवी के अधीन ( अंडर ) 8 देवियाँ हैं । ये उसका भुवन हुआ । और ऐसे 8 डिपार्टमेंट की एक मालिक हो सकती हैं । पर मूल रूप में ये महादेवी ही 14 भुवन यानी शरीर के निचले चक्रों जो छोटे बङे मिलाकर 14 हैं । पर शासन करती है । 14 भुवन एक पति होई । इसका वास्तविक मालिक तो चेतन है । पर एक तरह से ये शासन चलाती हैं । इसलिये ऐसा कहा गया है । ( वैसे इसका भी बङा उत्तर बनता है । जो आप कुछ दिन बाद याद दिला देना । तब देने की कोशिश करूँगा । )


Q 2  क्या सभी देवियाँ छोटी बडी सभी 1 ही माता का रूप हैं ? जिसको आप लोग आद्धा शक्ती बोलते हो ।
ANS - जब परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया । तब उन्होंने सतलोक या अमरलोक तक ही बनाया । इसमें सभी आत्मायें हँस रूप में आनन्द करती थी । स्त्री पुरुष का भेद नहीं था । वे आनन्द रूप विहार करती थी । दिन रात । सुख दुख । जन्म मरण । रोग मृत्यु आदि कुछ भी नहीं था । बस मौज ही मौज थी । आज भी है ।.. न सूरज है । न चन्दा है । फ़िर भी दिन रात उजाला है । वो प्रभु का देश निराला है । बाद में..सतलोक के मालिक सतपुरुष ( परमात्मा नहीं ) ने अपनी इच्छा से 16  संकल्प सुत उत्पन्न किये । जिनमें पाँचवा निरंजन सबसे अलग स्वभाव का था । ये सतलोक में रहने के बजाय कुछ नीचे स्थित मानसरोवर पर आ गया । और सतपुरुष को प्रसन्न करने के लिये कठिन तपस्या करने लगा ।..इसी की तपस्या के चलते सतपुरुष ने इसके मनोभाव जानते हुये अपने संकल्प से एक अष्टांगी कन्या उत्पन्न करके इसके पास भेजी । तब यह शुद्ध भाव की थी । और इसने निरंजन को भाई कहा । लेकिन निरंजन इसके रूप सौन्दर्य पर इस कदर मोहित हुआ कि उसे भयभीत कर अपनी पत्नी बना लिया ।
इस तरह ये अष्टांगी इस सृष्टि की सबसे पहली स्त्री थी । इसी को आध्या शक्ति या आदि शक्ति या आदि देवी या राम पत्नी के रूप में सीता । कृष्ण प्रेयसी के रूप में राधा । निरंजन की पत्नी के रूप में अष्टांगी या महामाया । मन की पत्नी के रूप में प्रकृति भी यही है । इसके पति निरंजन उर्फ़ राम उर्फ़ कृष्ण उर्फ़ मन और चेतन या ररंकार..ये सब एक ही हैं । इस तरह त्रिलोकी की सबसे बङी शक्तियाँ ये दोनों ही हैं ।
बाद में इन दोनों के तीन पुत्र बृह्मा विष्णु महेश हुये । अब इनके लिये बीबियाँ कहाँ से आयें ? तब अष्टांगी ने अपने अंश से तीन कन्यायें सावित्री लक्ष्मी पार्वती उत्पन्न कीं ।..इस तरह अष्टांगी या महादेवी के बाद उसकी ये तीन बहुयें यानी ये तीन देवियाँ प्रमुख हुयीं । इससे नीचे काली दुर्गा आदि सब इनके ही चेले चपाटे हैं । इसके बाद अलग अलग डिपार्टमेंट की जरूरत के हिसाब से अनेकों देवियाँ बनीं । और ये सिस्टम तब से आज तक ऐसा ही चल रहा है । लेकिन खास चलती  सास और इन तीन बहुओं की ही है । और मायाबती डार्लिंग ( महामाया..आदिशक्ति का मेरे द्वारा  प्यार से रखा गया नाम ) तो अच्छे अच्छों को नचाती ही हैं । पूरा खेल ही उनके दम दमूढे पर चल रहा हैं । उनके हसबैंड तो अदृश्य ही रहते हैं । इस तरह आप समझ गयीं होंगी कि सभी देवियाँ अपने अपने स्तर पर अलग हैं ।
एक स्पेशल बात - आपकी बात से एक स्पेशल बात याद आ गयी । आपने अक्सर सुना और टीवी आदि पर देखा भी होगा कि फ़लां औरत पर वह देवी आती है । फ़लां औरत पर वह आती है । कहीं कोई लङकी देवी बनकर बैठ गयी । तपस्या करने लगी आदि । यह सत्य है कि इनमें 60 % मामले झूठे होते हैं । पर 40%  सत्य किस तरह होते हैं ।
जैसा कि आपने कहा । छोटी बङी सभी देवियाँ एक माता का रूप होती हैं । अरे भाई ! इनकी सेवा के लिये चेले चपाटे भी तो चाहिये । इनको गण कहते हैं । यानी देवताओं के चेले या कार्यकर्ता । जो अपने स्तर के अनुसार अलग अलग होते हैं । तो ये लङकियाँ या उनकी मम्मियाँ देवी की एक्टिंग करते करते यही गण बन जाती हैं । इस तरह की लाखों छोटी देवियाँ हैं । जिनके बारे में विस्तार से बताना मुश्किल ही नहीं नामुमिकन हैं । यहाँ जनसंख्याँ अब भी कम है । वहाँ की जनसंख्याँ के क्या कहने ? मायाबती ने बङा चकरघिन्नी खेल बनाया है । इसी से तो अच्छे अच्छे कह जाते हैं । या देवी सर्वभूतेषु....नमस्तस्ये नमस्तस्ये..आदि ।

Q 3 ये भी पूछ्ना था कि उनसे मैंने जो भी आज तक संसारिक वस्तु माँगी । वो मुझे किसी न किसी बहाने मिल ही गयी । तो क्या ये सब देवी की किरपा थी मुझ पर ?
ANS - ये औरतें जब नवदुर्गा आदि में तरह तरह के गाने गातीं हैं । मैया ये दे दो । मैया वो दे दो । मैया तुम्हें पान लड्डू पेङा साङी लंहगा जाने क्या क्या चङाऊँगी । तब मुझे बङी हँसी आती है । ऐसे माँगने और रिश्वत से काम होने लगे । तो पता नहीं क्या से क्या हो जाये । जरा देखिये । इन लाइनों को..तेरी सत्ता के बिना । हिले न पत्ता । खिले न एक हू फ़ूल । हे मंगल मूल । ..परमात्मा जो सबका मालिक है । उसकी राजी के बिना एक पत्ता नहीं हिल सकता । फ़िर किसी देवी देवता की क्या ताकत है ? कि किसी को कुछ गिफ़्ट कर सके । और वो बङे निर्मोही भाव से अपना शासन चलाता है । यानी एक तिनका इधर से उधर नहीं हो सकता । अगर हो गया । तो पूरा खेल बिगङ जायेगा । पूरा नियम खराब हो जायेगा । वो किसी एक पर दयालु क्यों होगा । किसी एक की ख्वाहिश पूरी क्यों करेगा । जबकि सभी उसके अपने हैं । सभी समान हैं ।
तो इंसान को जो कुछ मिलता है । उसके अपने कर्मफ़ल द्वारा निर्मित हो चुके भाग्य से मिलता है । आपको लगता है कि आपने कोई वस्तु या इच्छा चाही और मिल गयीं । एक बात बताओ । जेब में ट्रेन के पैसे हों । तो आपके अन्दर प्लेन में बैठने की चाह नहीं होगी । क्योंकि आपको पता है । वो संभव नहीं हैं । इसी प्रकार अन्दर से भाग्यफ़ल रूपी धन आपकी संस्कार रूपी इच्छाओं को बाहर लाकर पूरा करता है । और आप समझती हो कि मैया कृपालु हो गयी । अरे भाई ! माताजी पिताजी सब अपने धन्धे में व्यस्त हैं । किसी को किसी की सुनने की फ़ुरसत नहीं है । अगर वे ऐसे सुनने लगें । तो आप कल्पना करो । इसी संसार में कितने
लोग होंगे । जो ओ मम्मी..मम्मी..ओ डैडी..डैडी..करते रहते हैं । अब बताओ । मम्मी डैडी किस  किसकी सुनें । इसलिये मधु देवी ! आप जो कुछ भी प्राप्त करती हैं । वो सब अपने भाग्य से । इसमें न मैया जी कुछ करती हैं । न पिताजी । कोऊ न काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।
अब एक अजीब बात - शास्त्र तो खैर कम ही लोगों ने पढे होंगे । पर टीवी पर धार्मिक सीरियल आदि में देखा हो । सीता या राधा स्त्री रूप होकर जब इस मृत्युलोक में आती हैं । तो वे भी दिनों के अनुसार नवदुर्गा आदि विभिन्न देवियों की पूजा करती हैं । ऐसा क्यों ?? जबकि वह खुद इनसे बङी शक्ति है ।


इसका उत्तर है - नियम का पालन और जगत व्यवहार की मर्यादा । आपको याद होगा । कुछ समय पहले प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी को शायद अपना ड्राइविंग या कोई और लाइसेंस बनबाना था । और इसके लिये वो बाकायदा उस आफ़िस गये । चाहते तो उनका एक बहुत छोटा चेला भी ये काम खङे खङे करवा सकता था । बल्कि चेले के आर्डर पर अधिकारी दौङा दौङा उसके पास लाइसेंस पहुँचाता । पर ये नियम के विरुद्ध होता । वही बात यहाँ लागू होती है ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326