नमस्ते राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी । मेरा नाम कामिनी चोपडा है । मुझे आपके ब्लोग के बारे में सुशील कुमार जी ने बताया था । मैं उनके आफ़िस में ही काम करती हूँ । मैंने आपका नवीन लेख पढा । उसमें आपने लिखा है कि संस्कृत के शुद्ध मन्त्र ही काम करते हैं । लेकिन अलग अलग धर्मों में भी लोग अलग अलग किस्म की सिद्धियाँ करते हैं । उनके मन्त्र तो संस्कृत में नही होते ? फ़िर भी वो लोग सिद्धि हासिल कर लेते हैं ? क्या आप बता सकते हैं । ये सब कैसे ? और दुसरी बात । जैसे कोई शिव मन्त्र ( ओम नम: शिवाय ) का अपनी मर्जी से जाप करे । तो क्या इसका फ़ल मिलेगा ? अगर इसको किसी महात्मा से दीक्षा के रुप में लिया जाये । और फ़िर इसका जाप किया जाये । तो क्या तब इसका फ़ल ज्यादा मिलेगा ? इसके बारे में जरूर बतायें । आमतौर पर हम जैसे शुद्ध हिन्दु परिवार के लोग वृत भी रखते हैं । तीर्थ पर भी जाते हैं । मूर्तिपूजा भी करते हैं । खास दिन त्योहार पर साधारण पूजापाठ भी होता है । ब्राह्मणों को भोजन भी करवाते है । और दान भी देते है । मैं सिर्फ़ ये जानना चाहती हूँ कि इन सब बातों का ( जो मैंने लिखी हैं ) क्या सामान्य गृहस्थ लोगों को कुछ न कुछ फ़ल मिलता है क्या ? प्लीज आप इस बारे में जरूर खुलकर बताएँ । मुझे आपके लेख का इन्तजार रहेगा । नमस्ते ।
** तो आईये । हमारे नये मेहमान सुश्री कामिनी जी के साथ सतसंग वार्ता करते हैं । सत्यकीखोज..पर आपका बहुत बहुत स्वागत है..कामिनी जी । भाई सुशील जी का बेहद आभार । उन्होंने आप जैसे सतसंग प्रेमी से हमारा परिचय कराया ।
Q 1 मैंने आपका नवीन लेख पढा । उसमें आपने लिखा है कि संस्कृत के शुद्ध मन्त्र ही काम करते हैं । लेकिन अलग अलग धर्मों में भी लोग अलग अलग किस्म की सिद्धियाँ करते हैं । उनके मन्त्र तो संस्कृत में नही होते । फ़िर भी वो लोग सिद्धि हासिल कर लेते हैं । क्या आप बता सकते हैं । ये सब कैसे ?
ANS - एक ही डिजायन का आभूषण हीरा । सोना । चाँदी । ताँवा । पीतल । स्टील । काँच । प्लास्टिक । लकङी । और थोङी अधिक कोशिश करने पर फ़ूल पत्तियों । कागज आदि तमाम चीजों से बनाया जा सकता है । इनमें क्या फ़र्क होता है । बताने की आवश्यकता नहीं हैं । संस्कृत के मन्त्रों और अन्य भाषायी मन्त्रों में यही अंतर होता है । सिद्धियों के लाखों प्रकार ( अतिस्योक्ति न लगे । इसलिये कह रहा हूँ । वैसे होते तो करोङों हैं ) होते हैं । शाबर मन्त्र आदि तो लगभग ग्रामीण टायप भाषा में होते हैं । ऐसे मन्त्रों से उच्च सिद्धियाँ हासिल नहीं होती । जैसा रा मटेरियल.. वैसी चीज होगी ।
नवीन लेख का जिक्र होने से मुझे याद है । वहाँ मैंने दिव्य मन्त्रों की बात कही है । जिसे उच्च स्तर के ऋषि मुनि देव आदि प्रयोग करते हैं । और जिनसे दिव्य वाहन विमान आदि । अस्त्र शस्त्रादि । दिव्य भवन आदि का निर्माण किया जाता है । ऋषि विश्वामित्र द्वारा अलग स्वर्ग निर्माण का आपको पता ही होगा । ये अन्य भाषाओं के निम्न स्तरीय मन्त्रों से संभव नहीं होता । जो लोग आज ठीक से हिन्दी का स्पष्ट उच्चारण नहीं कर पाते । वे नीचे के संस्कृत आदि शव्दों का सही उच्चारण भला कैसे करेंगे । जो संस्कृत में आम होते हैं । दूसरे संस्कृत मन्त्र गीत जैसी लय और दीर्घ । लघु । गम्भीर । हल्के आदि जरूरत अनुसार स्वर में उच्चरित किये जाते हैं ।
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B - और दुसरी बात जैसे कोई शिव मन्त्र ( ओम नम: शिवाय ) का अपनी मर्जी से जाप करे । तो क्या इसका फ़ल मिलेगा ? अगर इसको किसी महात्मा से दीक्षा के रुप में लिया जाये । और फ़िर इसका जाप किया जाये । तो क्या तब इसका फ़ल ज्यादा मिलेगा ? इसके बारे में जरूर बतायें ।
ANS - हर बात । हर पूजा का अपना फ़ल है । बिना दीक्षा के साधारण फ़ल । और सच्चे सन्त से प्राप्त दीक्षा से कई गुना फ़ल प्राप्त होता है । ये ठीक उसी तरह है । जैसे कोई आम जीवन में विद आऊट कालेज मगर उतनी ही नालेज प्राप्त कर ले । तो उसका विद कालेज वाला लाभ नहीं उठा सकता । जी हाँ ! ठीक समझा आपने । इसमें भी दीक्षा सर्टिफ़िकेट का कार्य करती हैं ।
गुरु बिन माला फ़ेरता । गुरु बिन करता दान । कह कबीर निष्फ़ल भये । कह गये वेद पुरान ।
हर बैंक पोस्ट आफ़िस में एक खाता ऐसा होता है । जिसका नाम का सही शब्द इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहा । पर उसका मतलब होता है । इसका मालिक अग्यात । या कोई नहीं । या नान रजिस्टर्ड । इसमें बैंक के उन खातों का वह धन सबमिट कर दिया जाता है । जिसका कोई सही दावेदार पता नहीं होता ।
ठीक इसी तरह बिना गुरु की साधारण पूजा के छोटे मोटे फ़ल भैरव खाते में जमा हो जाते है । जो एक तरह से ना के बराबर लाभ देती हैं । आप जिस भी देवता का मन्त्र जाप करेंगे । वो उस नियम में जाप आदि के अनुसार फ़ल देगा । वैसे इस तरह की बहुत बङी पूजा भी उस देवता का अधिक से अधिक गण ( कार्यकर्ता )
बना पाती है ।
Q 2 आमतौर पर हम जैसे शुद्ध हिन्दु परिवार के लोग वृत भी रखते हैं । तीर्थ पर भी जाते हैं । मूर्तिपूजा भी करते हैं । खास दिन त्यौहार पर साधारण पूजापाठ भी होता है । ब्राह्मणों को भोजन भी करवाते है । और दान भी देते है । मैं सिर्फ़ ये जानना चाहती हूँ कि इन सब बातों का ( जो मैंने लिखी हैं ) क्या सामान्य गृहस्थ लोगों को कुछ न कुछ फ़ल मिलता है क्या ?
ANS - ऊपर ही मैंने कहा कि हर बात का फ़ल होता है । लेकिन..विशेष बात ये है कि ये एक तरह से परम्परा की लीक पीटना मात्र है ।
जैसे आपके ही शब्द - वृत - सप्ताह के या किसी एक खास दिन को सिर्फ़ भगवान के ध्यान में साधुई आचरण से वरतना ( वृत या वरत ) । हल्का भोजन या फ़लाहार आदि इसलिये कि अन्नादि वस्तुयें खाने से सुस्ती और नींद आती है । विचारों में भी तरह तरह की कामनायें बनती हैं ।
तीर्थ - ती - रथ ! तीन गुणों से बनी इस सृष्टि के तीन गुणों पर नियंत्रण करते हुये । इस शरीर रूपी रथ के द्वारा अंतरजगत में भृमण करना । अर्थात तीन गुणों से यह रथ किस तरह क्रियाशील है । इसका क्या रहस्य है आदि ? ये तीर्थ है ।
मूर्तिपूजा - इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण । एकलव्य और द्रोणाचार्य । यानी इष्ट की मूर्ति को प्रतीक रूप से ध्याते हुये इष्ट को असल रूप में प्राप्त करना । या अपने लक्ष्य को प्राप्त करना ।
त्यौहार या खास दिन - इन सबका भी ऊपर की तरह खास मतलब होता है । उदाहरण - एकादशी वृत ।
एकादशी यानी ग्यारह । पाँच कर्मेंद्रियों और पाँच ग्यानेन्द्रियों के इस शरीर को इसके राजा मन ( सहित 11 ) एक करके प्रभु भक्ति में प्रवृत होना ही असली एकादशी है ।
ब्राह्मणों को भोजन - आज ब्राह्मण शब्द जाति के लिये प्रयुक्त होता है । पहले ये बृह्म ग्यानियों के लिये प्रयुक्त होता था । जाहिर है । जाति की तुलना में वे लोग उच्च स्तर के भक्त और साधक होते थे । तो उन्हें भोजन दक्षिणा वस्त्र आदि देना भारी पुण्य हुआ । और पहले के ब्राह्मण ये सेवा मुफ़्त में नहीं लेते थे । बल्कि मेजबान और उसके बच्चों को सारगर्भित ग्यान भी देते थे । योग शक्ति । हवन । यग्य आदि द्वारा उनकी विभिन्न समस्याओं का उपचार भी करते थे ।
दान - सही अर्थों में किया दान ( यानी गुरुदीक्षा लेने के बाद ) भविष्य में इसी जन्म के लिये या अगले जन्मों के लिये फ़िक्स डिपाजिट का काम करता है । आज कर रहे हो । कल ब्याज सहित मिलेगा । पाप और पुण्य कर्मों का भी यही गणित है । अतः ये तो अपने लिये करना ही है । अब आप समझ गये होंगे । इन असली परम्पराओं की ये सब आज लीक पिट रही है । अतः इनका क्या फ़ल हो सकता है ?? आप खुद ही समझदार हैं ।
आज लोग क्रीम पाउडर जेल वेल जींस आदि से अपना चेहरा चमकाकर ऊपरी तौर पर तो हीरो बन जाते है । पर अन्दर कचरा पेटी है । अन्दर की स्वच्छता भी आवश्यक है । जो सिर्फ़ और सिर्फ़ असली ग्यान से होती है ।..नाम जपत कोढी भला । कंचन भली न देह ।
इसलिये भाईयो बहनों ! ढाई अक्षर का वो असली नाम जपो । जिसके जपने में कोई झंझट नहीं । कोई आडम्बर नहीं । जिसके लिये कहा गया है । कलियुग केवल नाम अधारा । सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।
** तो आईये । हमारे नये मेहमान सुश्री कामिनी जी के साथ सतसंग वार्ता करते हैं । सत्यकीखोज..पर आपका बहुत बहुत स्वागत है..कामिनी जी । भाई सुशील जी का बेहद आभार । उन्होंने आप जैसे सतसंग प्रेमी से हमारा परिचय कराया ।
Q 1 मैंने आपका नवीन लेख पढा । उसमें आपने लिखा है कि संस्कृत के शुद्ध मन्त्र ही काम करते हैं । लेकिन अलग अलग धर्मों में भी लोग अलग अलग किस्म की सिद्धियाँ करते हैं । उनके मन्त्र तो संस्कृत में नही होते । फ़िर भी वो लोग सिद्धि हासिल कर लेते हैं । क्या आप बता सकते हैं । ये सब कैसे ?
ANS - एक ही डिजायन का आभूषण हीरा । सोना । चाँदी । ताँवा । पीतल । स्टील । काँच । प्लास्टिक । लकङी । और थोङी अधिक कोशिश करने पर फ़ूल पत्तियों । कागज आदि तमाम चीजों से बनाया जा सकता है । इनमें क्या फ़र्क होता है । बताने की आवश्यकता नहीं हैं । संस्कृत के मन्त्रों और अन्य भाषायी मन्त्रों में यही अंतर होता है । सिद्धियों के लाखों प्रकार ( अतिस्योक्ति न लगे । इसलिये कह रहा हूँ । वैसे होते तो करोङों हैं ) होते हैं । शाबर मन्त्र आदि तो लगभग ग्रामीण टायप भाषा में होते हैं । ऐसे मन्त्रों से उच्च सिद्धियाँ हासिल नहीं होती । जैसा रा मटेरियल.. वैसी चीज होगी ।
नवीन लेख का जिक्र होने से मुझे याद है । वहाँ मैंने दिव्य मन्त्रों की बात कही है । जिसे उच्च स्तर के ऋषि मुनि देव आदि प्रयोग करते हैं । और जिनसे दिव्य वाहन विमान आदि । अस्त्र शस्त्रादि । दिव्य भवन आदि का निर्माण किया जाता है । ऋषि विश्वामित्र द्वारा अलग स्वर्ग निर्माण का आपको पता ही होगा । ये अन्य भाषाओं के निम्न स्तरीय मन्त्रों से संभव नहीं होता । जो लोग आज ठीक से हिन्दी का स्पष्ट उच्चारण नहीं कर पाते । वे नीचे के संस्कृत आदि शव्दों का सही उच्चारण भला कैसे करेंगे । जो संस्कृत में आम होते हैं । दूसरे संस्कृत मन्त्र गीत जैसी लय और दीर्घ । लघु । गम्भीर । हल्के आदि जरूरत अनुसार स्वर में उच्चरित किये जाते हैं ।
ञ ळ ऴ ऱ ऩ ऋ ॠ ऌ ॡ ऍ ( अॅ ) ऎ ऑ ऒ क् च् ट् त् प्
B - और दुसरी बात जैसे कोई शिव मन्त्र ( ओम नम: शिवाय ) का अपनी मर्जी से जाप करे । तो क्या इसका फ़ल मिलेगा ? अगर इसको किसी महात्मा से दीक्षा के रुप में लिया जाये । और फ़िर इसका जाप किया जाये । तो क्या तब इसका फ़ल ज्यादा मिलेगा ? इसके बारे में जरूर बतायें ।
ANS - हर बात । हर पूजा का अपना फ़ल है । बिना दीक्षा के साधारण फ़ल । और सच्चे सन्त से प्राप्त दीक्षा से कई गुना फ़ल प्राप्त होता है । ये ठीक उसी तरह है । जैसे कोई आम जीवन में विद आऊट कालेज मगर उतनी ही नालेज प्राप्त कर ले । तो उसका विद कालेज वाला लाभ नहीं उठा सकता । जी हाँ ! ठीक समझा आपने । इसमें भी दीक्षा सर्टिफ़िकेट का कार्य करती हैं ।
गुरु बिन माला फ़ेरता । गुरु बिन करता दान । कह कबीर निष्फ़ल भये । कह गये वेद पुरान ।
हर बैंक पोस्ट आफ़िस में एक खाता ऐसा होता है । जिसका नाम का सही शब्द इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहा । पर उसका मतलब होता है । इसका मालिक अग्यात । या कोई नहीं । या नान रजिस्टर्ड । इसमें बैंक के उन खातों का वह धन सबमिट कर दिया जाता है । जिसका कोई सही दावेदार पता नहीं होता ।
ठीक इसी तरह बिना गुरु की साधारण पूजा के छोटे मोटे फ़ल भैरव खाते में जमा हो जाते है । जो एक तरह से ना के बराबर लाभ देती हैं । आप जिस भी देवता का मन्त्र जाप करेंगे । वो उस नियम में जाप आदि के अनुसार फ़ल देगा । वैसे इस तरह की बहुत बङी पूजा भी उस देवता का अधिक से अधिक गण ( कार्यकर्ता )
बना पाती है ।
Q 2 आमतौर पर हम जैसे शुद्ध हिन्दु परिवार के लोग वृत भी रखते हैं । तीर्थ पर भी जाते हैं । मूर्तिपूजा भी करते हैं । खास दिन त्यौहार पर साधारण पूजापाठ भी होता है । ब्राह्मणों को भोजन भी करवाते है । और दान भी देते है । मैं सिर्फ़ ये जानना चाहती हूँ कि इन सब बातों का ( जो मैंने लिखी हैं ) क्या सामान्य गृहस्थ लोगों को कुछ न कुछ फ़ल मिलता है क्या ?
ANS - ऊपर ही मैंने कहा कि हर बात का फ़ल होता है । लेकिन..विशेष बात ये है कि ये एक तरह से परम्परा की लीक पीटना मात्र है ।
जैसे आपके ही शब्द - वृत - सप्ताह के या किसी एक खास दिन को सिर्फ़ भगवान के ध्यान में साधुई आचरण से वरतना ( वृत या वरत ) । हल्का भोजन या फ़लाहार आदि इसलिये कि अन्नादि वस्तुयें खाने से सुस्ती और नींद आती है । विचारों में भी तरह तरह की कामनायें बनती हैं ।
तीर्थ - ती - रथ ! तीन गुणों से बनी इस सृष्टि के तीन गुणों पर नियंत्रण करते हुये । इस शरीर रूपी रथ के द्वारा अंतरजगत में भृमण करना । अर्थात तीन गुणों से यह रथ किस तरह क्रियाशील है । इसका क्या रहस्य है आदि ? ये तीर्थ है ।
मूर्तिपूजा - इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण । एकलव्य और द्रोणाचार्य । यानी इष्ट की मूर्ति को प्रतीक रूप से ध्याते हुये इष्ट को असल रूप में प्राप्त करना । या अपने लक्ष्य को प्राप्त करना ।
त्यौहार या खास दिन - इन सबका भी ऊपर की तरह खास मतलब होता है । उदाहरण - एकादशी वृत ।
एकादशी यानी ग्यारह । पाँच कर्मेंद्रियों और पाँच ग्यानेन्द्रियों के इस शरीर को इसके राजा मन ( सहित 11 ) एक करके प्रभु भक्ति में प्रवृत होना ही असली एकादशी है ।
ब्राह्मणों को भोजन - आज ब्राह्मण शब्द जाति के लिये प्रयुक्त होता है । पहले ये बृह्म ग्यानियों के लिये प्रयुक्त होता था । जाहिर है । जाति की तुलना में वे लोग उच्च स्तर के भक्त और साधक होते थे । तो उन्हें भोजन दक्षिणा वस्त्र आदि देना भारी पुण्य हुआ । और पहले के ब्राह्मण ये सेवा मुफ़्त में नहीं लेते थे । बल्कि मेजबान और उसके बच्चों को सारगर्भित ग्यान भी देते थे । योग शक्ति । हवन । यग्य आदि द्वारा उनकी विभिन्न समस्याओं का उपचार भी करते थे ।
दान - सही अर्थों में किया दान ( यानी गुरुदीक्षा लेने के बाद ) भविष्य में इसी जन्म के लिये या अगले जन्मों के लिये फ़िक्स डिपाजिट का काम करता है । आज कर रहे हो । कल ब्याज सहित मिलेगा । पाप और पुण्य कर्मों का भी यही गणित है । अतः ये तो अपने लिये करना ही है । अब आप समझ गये होंगे । इन असली परम्पराओं की ये सब आज लीक पिट रही है । अतः इनका क्या फ़ल हो सकता है ?? आप खुद ही समझदार हैं ।
आज लोग क्रीम पाउडर जेल वेल जींस आदि से अपना चेहरा चमकाकर ऊपरी तौर पर तो हीरो बन जाते है । पर अन्दर कचरा पेटी है । अन्दर की स्वच्छता भी आवश्यक है । जो सिर्फ़ और सिर्फ़ असली ग्यान से होती है ।..नाम जपत कोढी भला । कंचन भली न देह ।
इसलिये भाईयो बहनों ! ढाई अक्षर का वो असली नाम जपो । जिसके जपने में कोई झंझट नहीं । कोई आडम्बर नहीं । जिसके लिये कहा गया है । कलियुग केवल नाम अधारा । सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।
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