नमस्ते राजीव जी । मैं भी आपके ब्लोग का पिछ्ले कुछ समय से पाठक हूँ । मैंने अभी तक किसी से भी दीक्षा नही ली । जिसकी एक से अधिक वजह हैं ।
लेकिन अब दीक्षा लेने का विचार है । वो भी आपके गुरुजी से । वैसे मैंने आज तक कोई साधना नहीं की है । बस भगवत गीता का पाठ मैंने सुना और पढा हुआ है । मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि ये गीता का ग्यान जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) और अर्जुन को नश्वर देह के मोह से उपर उठाकर उसको उसके असली स्वरुप अनश्वर आत्मा के बारे में समझाया था ।
आमतौर पर ( शायद अग्यानता से ) कुछ लोग बोल देते हैं कि ये अति गोपनीय से भी गोपनीय ग्यान कृष्ण जी द्वारा प्रथम बार दिया गया ।
लेकिन मुझे लगता है कि ये बात सही नही । आजकल शाम को टीवी चैनल स्टार उत्सव पर रामायण नाटक आ रहा है । ऐसा ही मिलता जुलता ग्यान ( गीता वाला आत्मा के बारे में ) महर्षि वशिष्ठ उसमे श्रीराम को भी गुरुकुल में दे रहे होते हैं ।
तो आप बताइए । क्या वशिष्ठ जी ने राम को वही ग्यान दिया ? जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था । क्या ये ग्यान उससे भी पहले किसी को दिया गया होगा ( राम जी से भी पहले ) क्योंकि अगर आत्मा अनादि है । तो इससे सम्बन्धित ग्यान भी अनादि ही हुआ ।
तो क्या उन लोगों का कहना गलत है । जो ये कहते है कि ये ग्यान पहली बार सिर्फ़ कृष्ण जी द्वारा प्रकट हुआ । उससे पहले ये ग्यान लुप्त था । और इसके बारे मे कोई भी नहीं जानता था ।
आप बताइए कि गीता वाला आत्मा से सम्बन्धित ग्यान द्वापर में प्रकट हुआ । या अनादि है ? १ प्रश्न और था । मुझे अपनी जाब के कारण कुछ साल कोलकता मे भी रहना पडा । वहाँ पर २ महात्माओं के प्रति लोगों की बडी भारी श्रद्धा है । वो हैं स्वामी रामकृष्ण परमहँस और वामा खेपा ।
स्वामी रामकृष्ण तो सन्त थे । शायद और ग्रहस्थ थे । लेकिन वामा खेपा का समझ नहीं आया कि वो सन्त थे । या कोइ सिद्ध थे ? क्योंकि उन्होंने शादी भी नहीं की थी । और तकरीबन सारा जीवन शमशान में ही गुजारा । इतना पता है कि वो शायद किसी तारादेवी के भक्त थे । और किसी महाशमशान में रहते थे ।
राजीव जी आपके पुराने लेखों मे पढा है कि सबसे बडे तो सन्त होते है । और सिद्ध सन्त से छोटे होते हैं । तो वामा खेपा जैसे सिद्ध महात्माओं की क्या गति होती है ? वे स्थूल शरीर को जब त्यागते हैं । तब किस लोक में उनको स्थान मिलता है । आप मेरे प्रश्नों के उत्तर जरूर दें । और मैंने भी दीक्षा लेनी होगी ( इस पर भी विचार रखें ) कुन्दन कुमार ( आजकल नेपाल में हूँ । लेकिन जल्द ही इस साल वापिस भारत आने की उम्मीद है )
** कुन्दन कुमार जी ! सत्यकीखोज.. पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपसे मिलकर खुशी हुयी । आईये आपके साथ बातचीत का सिलसिला आगे बङाते हैं ।
Q 1 मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि गीता का ग्यान जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) और अर्जुन को नश्वर देह के मोह से उपर उठाकर उसको उसके असली स्वरुप अनश्वर आत्मा के बारे में समझाया था । आमतौर पर ( शायद अग्यानता से ) कुछ लोग बोल देते हैं कि ये अति गोपनीय से भी गोपनीय ग्यान कृष्ण जी द्वारा प्रथम बार दिया गया । लेकिन मुझे लगता है कि ये बात सही नही । आजकल शाम को टीवी चैनल स्टार उत्सव पर रामायण नाटक आ रहा है । ऐसा ही मिलता जुलता ग्यान ( गीता वाला आत्मा के बारे में ) महर्षि वशिष्ठ उसमें श्रीराम को भी गुरुकुल में दे रहे होते हैं । तो आप बताइए । क्या वशिष्ठ जी ने राम को वही ग्यान दिया ? जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था । क्या ये ग्यान उससे भी पहले किसी को दिया गया होगा ( राम जी से भी पहले ) क्योंकि अगर आत्मा अनादि है । तो इससे सम्बन्धित ग्यान भी अनादि ही हुआ । तो क्या उन लोगों का कहना गलत है । जो ये कहते है कि ये ग्यान पहली बार सिर्फ़ कृष्ण जी द्वारा प्रकट हुआ । उससे पहले ये ग्यान लुप्त था । और इसके बारे मे कोई भी नहीं जानता था । आप बताइए कि गीता वाला आत्मा से सम्बन्धित ग्यान द्वापर में प्रकट हुआ । या अनादि है ?
ANS - सबसे पहले आप इस सिद्धांत को ध्यान रखिये कि जो जितना जानता हैं । उतना ही बतायेगा । दूसरा ये कि सभी बातों को एक ही पैमाने से नहीं मापना चाहिये । तीसरी बात ये कि हर मनुष्य का अस्तित्व अहम बेस पर निर्मित होता है । यानी उसे ऐसा लगता है कि वो बहुत कुछ ( या सब कुछ ) जानता है । पर हकीकत ये है कि साधारण मनुष्य जीव संग्या में आता है । और ये अल्पग्य माना गया है । -- अब अपनी बात का उत्तर देखिये । श्रीकृष्ण ने कहा कि मैंने अपना ये विराट रूप ?? मैंने अपना ये गोपनीय ग्यान ?? आदि तुझसे पहले किसी को नहीं दिया । जाहिर है । श्रीकृष्ण सिर्फ़ अपने और अर्जुन के बारे में बात कर रहे हैं । पूरी सृष्टि के बारे में नहीं ।
लेकिन विराट रूप या इस तरह के ग्यान का मामला अलग अलग स्तरों पर भिन्न होता है । जैसे उदाहरण - श्रीकृष्ण का ग्यान । उनकी शक्ति । और उनके समस्त लोकादि ( जो उनके अधीन हैं ) ये सब व्यक्तित्व कृतित्व आदि को मिलाकर उनका खुद का विराट रूप हुआ । जैसे अपने यहाँ टाटा बिरला अम्बानी मित्तल बिल गेटस आदि को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं । इनका पूरा औधोगिक साम्राज्य इनका विराट रूप हुआ ।
जहाँ तक आत्मा के सम्बन्ध में इस ग्यान की बात है - ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) तो श्रीकृष्ण को तो छोङो । उससे पहले त्रेता । सतयुग आदि में छोटे मोटे बाबा लोग भी जानते थे । हाँ क्रियात्मक स्तर पर इसके जानने वाले हमेशा गिने चुने रहे । मतलब जो कह रहे हैं । उसको साबित भी कर सकें ।
और बाकी अपकी बात एकदम सही है के ये ग्यान ( मगर अलग अलग स्तर पर । क्योंकि सबने अपनी पहुँच के अनुसार बात कही है । ) अनादि ही है । क्योंकि आत्मा भी अनादि ही है । अतः उसका ग्यान भी अनादि ही है ।
Q 2...१ प्रश्न और था । कोलकता में २ महात्माओं के प्रति लोगों की बडी भारी श्रद्धा है । स्वामी रामकृष्ण परमहँस और वामा खेपा । स्वामी रामकृष्ण तो सन्त और गृहस्थ थे । लेकिन वामा खेपा सन्त थे । या कोई सिद्ध थे ? क्योंकि उन्होंने शादी भी नहीं की थी । और तकरीबन सारा जीवन शमशान में ही गुजारा । इतना पता है कि वो शायद किसी तारादेवी के भक्त थे । और किसी महाशमशान में रहते थे । राजीव जी आपके पुराने लेखों मे पढा है कि सबसे बडे तो सन्त होते है । और सिद्ध सन्त से छोटे होते हैं । तो वामा खेपा जैसे सिद्ध महात्माओं की क्या गति होती है ? वे स्थूल शरीर को जब त्यागते हैं । तब किस लोक में उनको स्थान मिलता है ।
ANS - स्वामी रामकृष्ण परमहँस ! संतमत । सनातन धर्म । आत्मग्यान के पूर्ण सन्त थे । अर्थात उन्हें लास्ट तक ( परमात्मा) का ग्यान हुआ था । प्राप्ति हुयी थी । ये बात अलग है कि वे पहले द्वैत की साधना करते थे । काली उपासक थे । काली को प्रसन्न कर लिया था । बाद में काली ने ही उन्हें किसी सच्चे सन्त से महामन्त्र की दीक्षा लेकर नाम साधना करने की सलाह दी थी । रामकृष्ण के शिष्यों में अकेले विवेकानन्द जी को लास्ट तक का ग्यान प्राप्त हुआ था । उनकी शुरूआती साधना बहुत अच्छी रही । परन्तु साधना में नयी नयी सफ़लता से उत्साहित होकर उन्होंने मनमाना आचरण किया । जिसे सन्तों की भाषा में मनमुखी होना कहा जाता है । इससे नियमानुसार रामकृष्ण ने उनकी समाधि लगना बन्द कर दिया । और कहा कि तुम जीवन भर मेरे आदेश से प्रचार करो । जीवन के अंतिम दिनों में तुम्हें समाधि आयेगी । इस तरह अपने अंतिम दिनों में उन्होंने ग्यान पूरा किया । और शरीर त्याग दिया ।
वामा खेपा सिद्ध थे । सिद्ध क्योंकि चमत्कार अधिक करते हैं । अतः लोगों का उनकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है । सिद्ध यानी किसी भी रहस्य या ग्यान को सिद्ध कर लेना । इसे बिग्यान की तर्ज पर अलौकिक बिग्यान समझो । अब किसी सिद्ध ने क्या सिद्धि की है । बहुत कुछ उस पर निर्भर करता है ।
सिद्ध और सिद्धियाँ अनेक प्रकार की होती हैं । इसको सरलता से इस तरह समझो । मानों किसी ने अपने जीवन में मेहनत करके धन और शक्ति का संचय कर लिया । अब वह उसका किस तरह उपयोग करेगा ? ये तो उसकी मर्जी पर निर्भर है । इसी तरह सिद्धों में वाममार्गी दक्षिणमार्गी आदि होते हैं । सिद्धि कोई साधक एक आकर्षण और लालच के तहत ही करता है । अतः बाद में वे उसका मनमाना उपयोग या दुरुपयोग करते हैं । और अन्त में घोर नरक को प्राप्त होते हैं । वजह - प्रभु की अमूल्य निधि का दुरुपयोग ।
इसके विपरीत जो सिद्ध परमार्थ भलाई आदि का कार्य करते हैं । वे अपने इष्ट ( जिससे संबन्धित सिद्धि की है ) के मामूली गण बन जाते हैं । क्योंकि ग्यान में सिद्धि को तुच्छ माना गया है । हेय दृष्टि से देखा गया है ।
तीसरे उच्च स्तर के ग्यान प्राप्त सिद्ध अपने स्तर के अनुसार सिद्ध लोकों को जाते हैं ।
लेकिन अब दीक्षा लेने का विचार है । वो भी आपके गुरुजी से । वैसे मैंने आज तक कोई साधना नहीं की है । बस भगवत गीता का पाठ मैंने सुना और पढा हुआ है । मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि ये गीता का ग्यान जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) और अर्जुन को नश्वर देह के मोह से उपर उठाकर उसको उसके असली स्वरुप अनश्वर आत्मा के बारे में समझाया था ।
आमतौर पर ( शायद अग्यानता से ) कुछ लोग बोल देते हैं कि ये अति गोपनीय से भी गोपनीय ग्यान कृष्ण जी द्वारा प्रथम बार दिया गया ।
लेकिन मुझे लगता है कि ये बात सही नही । आजकल शाम को टीवी चैनल स्टार उत्सव पर रामायण नाटक आ रहा है । ऐसा ही मिलता जुलता ग्यान ( गीता वाला आत्मा के बारे में ) महर्षि वशिष्ठ उसमे श्रीराम को भी गुरुकुल में दे रहे होते हैं ।
तो आप बताइए । क्या वशिष्ठ जी ने राम को वही ग्यान दिया ? जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था । क्या ये ग्यान उससे भी पहले किसी को दिया गया होगा ( राम जी से भी पहले ) क्योंकि अगर आत्मा अनादि है । तो इससे सम्बन्धित ग्यान भी अनादि ही हुआ ।
तो क्या उन लोगों का कहना गलत है । जो ये कहते है कि ये ग्यान पहली बार सिर्फ़ कृष्ण जी द्वारा प्रकट हुआ । उससे पहले ये ग्यान लुप्त था । और इसके बारे मे कोई भी नहीं जानता था ।
आप बताइए कि गीता वाला आत्मा से सम्बन्धित ग्यान द्वापर में प्रकट हुआ । या अनादि है ? १ प्रश्न और था । मुझे अपनी जाब के कारण कुछ साल कोलकता मे भी रहना पडा । वहाँ पर २ महात्माओं के प्रति लोगों की बडी भारी श्रद्धा है । वो हैं स्वामी रामकृष्ण परमहँस और वामा खेपा ।
स्वामी रामकृष्ण तो सन्त थे । शायद और ग्रहस्थ थे । लेकिन वामा खेपा का समझ नहीं आया कि वो सन्त थे । या कोइ सिद्ध थे ? क्योंकि उन्होंने शादी भी नहीं की थी । और तकरीबन सारा जीवन शमशान में ही गुजारा । इतना पता है कि वो शायद किसी तारादेवी के भक्त थे । और किसी महाशमशान में रहते थे ।
राजीव जी आपके पुराने लेखों मे पढा है कि सबसे बडे तो सन्त होते है । और सिद्ध सन्त से छोटे होते हैं । तो वामा खेपा जैसे सिद्ध महात्माओं की क्या गति होती है ? वे स्थूल शरीर को जब त्यागते हैं । तब किस लोक में उनको स्थान मिलता है । आप मेरे प्रश्नों के उत्तर जरूर दें । और मैंने भी दीक्षा लेनी होगी ( इस पर भी विचार रखें ) कुन्दन कुमार ( आजकल नेपाल में हूँ । लेकिन जल्द ही इस साल वापिस भारत आने की उम्मीद है )
** कुन्दन कुमार जी ! सत्यकीखोज.. पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपसे मिलकर खुशी हुयी । आईये आपके साथ बातचीत का सिलसिला आगे बङाते हैं ।
Q 1 मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि गीता का ग्यान जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) और अर्जुन को नश्वर देह के मोह से उपर उठाकर उसको उसके असली स्वरुप अनश्वर आत्मा के बारे में समझाया था । आमतौर पर ( शायद अग्यानता से ) कुछ लोग बोल देते हैं कि ये अति गोपनीय से भी गोपनीय ग्यान कृष्ण जी द्वारा प्रथम बार दिया गया । लेकिन मुझे लगता है कि ये बात सही नही । आजकल शाम को टीवी चैनल स्टार उत्सव पर रामायण नाटक आ रहा है । ऐसा ही मिलता जुलता ग्यान ( गीता वाला आत्मा के बारे में ) महर्षि वशिष्ठ उसमें श्रीराम को भी गुरुकुल में दे रहे होते हैं । तो आप बताइए । क्या वशिष्ठ जी ने राम को वही ग्यान दिया ? जो कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया था । क्या ये ग्यान उससे भी पहले किसी को दिया गया होगा ( राम जी से भी पहले ) क्योंकि अगर आत्मा अनादि है । तो इससे सम्बन्धित ग्यान भी अनादि ही हुआ । तो क्या उन लोगों का कहना गलत है । जो ये कहते है कि ये ग्यान पहली बार सिर्फ़ कृष्ण जी द्वारा प्रकट हुआ । उससे पहले ये ग्यान लुप्त था । और इसके बारे मे कोई भी नहीं जानता था । आप बताइए कि गीता वाला आत्मा से सम्बन्धित ग्यान द्वापर में प्रकट हुआ । या अनादि है ?
ANS - सबसे पहले आप इस सिद्धांत को ध्यान रखिये कि जो जितना जानता हैं । उतना ही बतायेगा । दूसरा ये कि सभी बातों को एक ही पैमाने से नहीं मापना चाहिये । तीसरी बात ये कि हर मनुष्य का अस्तित्व अहम बेस पर निर्मित होता है । यानी उसे ऐसा लगता है कि वो बहुत कुछ ( या सब कुछ ) जानता है । पर हकीकत ये है कि साधारण मनुष्य जीव संग्या में आता है । और ये अल्पग्य माना गया है । -- अब अपनी बात का उत्तर देखिये । श्रीकृष्ण ने कहा कि मैंने अपना ये विराट रूप ?? मैंने अपना ये गोपनीय ग्यान ?? आदि तुझसे पहले किसी को नहीं दिया । जाहिर है । श्रीकृष्ण सिर्फ़ अपने और अर्जुन के बारे में बात कर रहे हैं । पूरी सृष्टि के बारे में नहीं ।
लेकिन विराट रूप या इस तरह के ग्यान का मामला अलग अलग स्तरों पर भिन्न होता है । जैसे उदाहरण - श्रीकृष्ण का ग्यान । उनकी शक्ति । और उनके समस्त लोकादि ( जो उनके अधीन हैं ) ये सब व्यक्तित्व कृतित्व आदि को मिलाकर उनका खुद का विराट रूप हुआ । जैसे अपने यहाँ टाटा बिरला अम्बानी मित्तल बिल गेटस आदि को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं । इनका पूरा औधोगिक साम्राज्य इनका विराट रूप हुआ ।
जहाँ तक आत्मा के सम्बन्ध में इस ग्यान की बात है - ( आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अविनाशी है । ये नित्य । शाश्वत । सनातन । कालातीत और हमेशा रहने वाली है ) तो श्रीकृष्ण को तो छोङो । उससे पहले त्रेता । सतयुग आदि में छोटे मोटे बाबा लोग भी जानते थे । हाँ क्रियात्मक स्तर पर इसके जानने वाले हमेशा गिने चुने रहे । मतलब जो कह रहे हैं । उसको साबित भी कर सकें ।
और बाकी अपकी बात एकदम सही है के ये ग्यान ( मगर अलग अलग स्तर पर । क्योंकि सबने अपनी पहुँच के अनुसार बात कही है । ) अनादि ही है । क्योंकि आत्मा भी अनादि ही है । अतः उसका ग्यान भी अनादि ही है ।
Q 2...१ प्रश्न और था । कोलकता में २ महात्माओं के प्रति लोगों की बडी भारी श्रद्धा है । स्वामी रामकृष्ण परमहँस और वामा खेपा । स्वामी रामकृष्ण तो सन्त और गृहस्थ थे । लेकिन वामा खेपा सन्त थे । या कोई सिद्ध थे ? क्योंकि उन्होंने शादी भी नहीं की थी । और तकरीबन सारा जीवन शमशान में ही गुजारा । इतना पता है कि वो शायद किसी तारादेवी के भक्त थे । और किसी महाशमशान में रहते थे । राजीव जी आपके पुराने लेखों मे पढा है कि सबसे बडे तो सन्त होते है । और सिद्ध सन्त से छोटे होते हैं । तो वामा खेपा जैसे सिद्ध महात्माओं की क्या गति होती है ? वे स्थूल शरीर को जब त्यागते हैं । तब किस लोक में उनको स्थान मिलता है ।
ANS - स्वामी रामकृष्ण परमहँस ! संतमत । सनातन धर्म । आत्मग्यान के पूर्ण सन्त थे । अर्थात उन्हें लास्ट तक ( परमात्मा) का ग्यान हुआ था । प्राप्ति हुयी थी । ये बात अलग है कि वे पहले द्वैत की साधना करते थे । काली उपासक थे । काली को प्रसन्न कर लिया था । बाद में काली ने ही उन्हें किसी सच्चे सन्त से महामन्त्र की दीक्षा लेकर नाम साधना करने की सलाह दी थी । रामकृष्ण के शिष्यों में अकेले विवेकानन्द जी को लास्ट तक का ग्यान प्राप्त हुआ था । उनकी शुरूआती साधना बहुत अच्छी रही । परन्तु साधना में नयी नयी सफ़लता से उत्साहित होकर उन्होंने मनमाना आचरण किया । जिसे सन्तों की भाषा में मनमुखी होना कहा जाता है । इससे नियमानुसार रामकृष्ण ने उनकी समाधि लगना बन्द कर दिया । और कहा कि तुम जीवन भर मेरे आदेश से प्रचार करो । जीवन के अंतिम दिनों में तुम्हें समाधि आयेगी । इस तरह अपने अंतिम दिनों में उन्होंने ग्यान पूरा किया । और शरीर त्याग दिया ।
वामा खेपा सिद्ध थे । सिद्ध क्योंकि चमत्कार अधिक करते हैं । अतः लोगों का उनकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है । सिद्ध यानी किसी भी रहस्य या ग्यान को सिद्ध कर लेना । इसे बिग्यान की तर्ज पर अलौकिक बिग्यान समझो । अब किसी सिद्ध ने क्या सिद्धि की है । बहुत कुछ उस पर निर्भर करता है ।
सिद्ध और सिद्धियाँ अनेक प्रकार की होती हैं । इसको सरलता से इस तरह समझो । मानों किसी ने अपने जीवन में मेहनत करके धन और शक्ति का संचय कर लिया । अब वह उसका किस तरह उपयोग करेगा ? ये तो उसकी मर्जी पर निर्भर है । इसी तरह सिद्धों में वाममार्गी दक्षिणमार्गी आदि होते हैं । सिद्धि कोई साधक एक आकर्षण और लालच के तहत ही करता है । अतः बाद में वे उसका मनमाना उपयोग या दुरुपयोग करते हैं । और अन्त में घोर नरक को प्राप्त होते हैं । वजह - प्रभु की अमूल्य निधि का दुरुपयोग ।
इसके विपरीत जो सिद्ध परमार्थ भलाई आदि का कार्य करते हैं । वे अपने इष्ट ( जिससे संबन्धित सिद्धि की है ) के मामूली गण बन जाते हैं । क्योंकि ग्यान में सिद्धि को तुच्छ माना गया है । हेय दृष्टि से देखा गया है ।
तीसरे उच्च स्तर के ग्यान प्राप्त सिद्ध अपने स्तर के अनुसार सिद्ध लोकों को जाते हैं ।
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